दिन और रात

DAY AND NIGHT
रोज रोज हो जाता है दिन,
रोज रोज हो जाती रात|
बोलो बापू क्या है कारण,
बोलो बापू क्या है बात|

बापू बोले बात जरासी,
बात ठीक से सोचा कर|
धरती माता रोज लगाती,
सूरज बाबा के चक्कर|
पेट सामने जब धरती का,
सूरज बाबा के होता|
उसी समय धरती के ऊपर,
सोनॆ जैसा दिन होता|
धरती को सूरज की होती,
कितनी अदभुत यह सौगात|
जहां पीठ धरती की होती,
वहां अंधेरा हो जाता|
धरती के पिछले हिस्से से,
सूरज जरा न दिख पाता|
थके थकाये दिन के प्राणी,
नींद ओढ़कर सो जाते,
जंगल नदियां पर्वत सागर,
अंधियारे में खो जाते|
बेटे इसी समय को हम सब,
दुनियां वाले कहते रात|

बापू बोले इसी तरह से,
होते रहते हैं दिन रात|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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