इस्लाम और दूसरे मज़हबों में ईद का दिन

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ईद 10 सितंबर पर विशेष

-सरफ़राज़ ख़ान

मुसलमानों का त्योहार ईद उल-फ़ित्र इसलाम के उपवास के महीने रमज़ान के ख़त्म होने के बाद मनाया जाता है। इस्लामी साल में दो ईदों में से यह एक है, दूसरा ईद उल-अज़हा या बक़रीद कहलाता है। पहला ईद उल-फ़ित्र पैगम्बर हज़रत मुहम्मद ने 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था।

ईद उल-फ़ित्र शव्वल इसलामी कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलेंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चांद के दिखने पर शुरू होता है।

इस ईद में मुसलमान 29 या 30 दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। रमज़ान की समाप्ति के बाद ईद के दिन मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीनेभर के रोज़े रखने की शक्ति दी। ईद के दिन लोग सेवइयां और अन्य लज़ीज़ पकवान खाते हैं। इस दिन सभी नए कपड़े पहनते हैं। ईद उल-फ़ित्र के दिन लोग पुराने गले-शिकवे भूल कर गले मिलते हैं।

ईद के दिन मस्जिद में सुबह की नमाज़ से पहले हर मुसलमान फ़ितरा और ज़कात देता है। इस दान को ज़कात उल-फ़ित्र कहते हैं। यह पैसा ग़रीबों में बांट दिया जाता है।

ईद का मतलब है ख़ुशी। हर क़ौम और समुदाय के कुछ विशेष त्योहार, उत्सव और प्रसन्नता व्यक्त करने के दिन होते हैं। उस दिन उस क़ौम के लोग अपने रीति-रिवाजों के अनुसार अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। इस्लाम के आगमन से पहले अरबों के यहां ईद का दिन ‘यौमुस सबाअ’ कहलाता था। मिस्र में कुब्ली ‘नवरोज़’ को ईद मनाते थे। मजूसियों के दो धार्मिक त्योहार नवरोज़ और मीरगान थे, जो बाद में मौसमी त्यौहार बन गए। नवरोज़ बसंत के मौसम में मनाया जाता था, जबकि मीरगान सूर्य देवता का त्यौहार था और पतझड़ में मनाया जाता था। पारसियों के इस त्यौहार का प्रभाव कुछ मुगल शहंशाहों पर भी रहा, जो बड़े जोशो-ख़रोश से नवरोज़ का आयोजन करते थे।

ईरान में फ़िरोज़ जान की ईद पांच दिनों तक मनाई जाती थी। उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मृत परिजनों की आत्माओं का आदर-सत्कार उन्हीं दिनों में किया जाता था। बसंत के मौसम में जश्ने-चिराग़ां मनाया जाता था। यहूदियों की सबसे बड़ी ईद ईदुल ख़िताब है। यह त्यौहार उस दिन की याद में मनाया जाता है, उनके ईश्वर यहुवाह ने सीना घाटी के पहाड़ से बनी इसराइल को संबोधित किया था।

ईसाई रोमन कैथोलिक और पश्चिमी अहले क्लीसा साल में कई ईदें मनाते हैं। उने यहां जैतूनिया का त्यौहार रोज़ों के सातवें दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बैतुल मुक़द्दस आगमन की याद में मनाया जाता है। यह ईस्टर से एक दिन पहले मनाया जाता है। ईस्टर 21 मार्च या उसके पहले रविवार को मनाया जाता है। इसे अरबी में ईदुल कियामा कहा जाता है।

ईदस्सलीब उस सलीब की याद में मनाई जाती है, जो कुस्तुनतुनिया के कैसर ने आसमान में देखा था। उसके बाद सलीब ईसाइयों का धार्मिक निशान बन गया। ईसाइयों की ईदुल बशारह उस घटना की याद दिलाती है, जब फ़रिश्ते ने हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम को हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के जन्म की शुभ सूचना दी थी। ईसाइयों का त्यौहार क्रिसमस 25 दिसंबर को दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)

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सरफराज़ ख़ान
सरफराज़ ख़ान युवा पत्रकार और कवि हैं। दैनिक भास्कर, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी सहित देश के तमाम राष्ट्रीय समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में समय-समय पर इनके लेख और अन्य काव्य रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। अमर उजाला में करीब तीन साल तक संवाददाता के तौर पर काम के बाद अब स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं। हिन्दी के अलावा उर्दू और पंजाबी भाषाएं जानते हैं। कवि सम्मेलनों में शिरकत और सिटी केबल के कार्यक्रमों में भी इन्हें देखा जा सकता है।

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