फ़ुर्सत के दिन

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कुछ दिन लाये थे ,

फ़ुर्सत के ढूंढकर,

दो सोचने मे लग गये,

कंहा चलें क्या करें।

कंही पहाड पर चढ़े,

या किसी मंदिर की,

सीढियां चढे,

या समुद्र तट पर ही न क्यों चलें।

ये भी नहीं तो निकट ही,

रंगीले राजस्थान की तरफ़ चलें।

पर ऐसा कुछ हो न सका,

बीमारियों ने हमे जो धर दबोचा।

पड़े पडे भी क्या करते

गूगल पर चित्र ढूंढकर,

सभी स्थानो का मज़ा क्यों न लें,

फिर दो चार कविताये भी लिख डालें।

पर्यटन अगर गूगल पर ही करना है,

तो क्यों न सीधे स्विटज़रलैंन्ड ही चलें,

वहाँ से अमरीका और जापान होकर,

दुनियां ही देख लें।

ये फ़ुर्सत के दिन हमने,

यों ही मन बहलाते हुए झेले।

–बीनू भटनागर

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