देश के नामचीन संस्थानों में शुमार आईआईटी ( बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय ) , वाराणसी देश के प्रतिभावान भावी इंजीनियरों के मरणस्थल के रूप में तब्दील होता जा रहा है l हाल ही में संस्थान की बदइंतजामी और कुव्यवस्था के कारण दो प्रतिभावान छात्रों सुमित सागर और अभिनव मिश्रा की संदिग्ध व् दुःखद परिस्थितियों में मौत हुई है l संस्थान का प्रबंधन अपनी व्यवस्था को दुरुस्त करने की बजाए दोनों दुर्भाग्यपूर्ण मौतों के कारणों पर पर्दा डालने की कवायद में जुटा है l छात्रों पर आईआईटी (बीएचयू) की प्रशासकीय इकाई इन दोनों मौतों के बारे में मीडिया के समक्ष या सोशल -मीडिया पर कुछ भी साझा व् उजागर नहीं करने का दबाब डरा-धमाका कर बना रही है l संस्थान के छात्रों और सूत्रों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रथम-दृष्टया दोनों मौतों की सतही वजह फ़ूड- पॉयज़निंग से ग्रसित होने के पश्चात् पर्याप्त चिकत्सीय सुविधा का समय पर उपलब्ध नहीं हो पाना ही प्रतीत होता है l वैसे सही वजह का खुलासा निष्पक्ष व् पारदर्शी जाँच के साथ -साथ पोस्टमार्टम – रिपोर्ट्स को सार्वजनिक किए जाने के पश्चात् ही होगाl आईआईटी प्रबंधन निष्पक्ष जाँच करने / कराने की बजाए पोस्टमार्टम रिपोर्ट को छुपाने और और उसमें हेर-फेर करने / करवाने में जुटा है l अमानवीयता व् संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है l जिन अभिभावकों ने अपने होनहार सपूत खोए हैं उनके दर्द की भरपाई तो किसी भी सूरत में संभव नहीं है लेकिन मौत की वजहों की तह में जाकर दोषियों को कानूनी- प्रावधानों के तहत सजा दिलवाने में सहयोग कर आईआईटी (बीएचयू) , वाराणसी प्रबंधन मर्माहत परिजनों के दर्द को कुछ हल्का व् साझा तो कर ही सकता है ?
आईए… एक नजर डालते हैं घटनाक्रम पर … विगत शनिवार दिनांक ०४.०३.२०१७ को आईआईटी (बीएचयू ) , वाराणसी के आचार्य सत्येंद्र नाथ बोस छात्रावास के प्रथम तल्ले पर प्रथम – वर्ष का छात्र अभिनव मिश्रा ( उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले का मूल – निवासी ) अपने दो रूम-मेट्स के साथ संस्थान – परिसर में स्थित कैंटीन में रात के खाने में आलू- परांठा खाता है , खाने के दौरान ही डिब्बा-बंद पेय-पदार्थ फ्रूटी भी मृतक छात्र पीता है और वापस अपने छात्रावास के कमरे में लौट कर आता है , थोड़ी देर के बाद ही अभिनव की तबीयत बिगड़ती है और वो बेहोश हो जाता है l अभिनव के बेहोश होते ही उसके दोनों साथी छात्रावास के वार्डन से संपर्क करने की कोशिश करते हैं , लेकिन वार्डन छात्रावास में नहीं मिलते हैं और न ही कोई और अधिकारी व् कर्मचारी l यहाँ ये बताना जरूरी है कि संस्थान का प्रबंधन छात्रों के नामांकन के समय अभिभावकों के समक्ष ये दावा करता है कि हरेक छात्रावास में वार्डन २४ x ७ मौजूद रहते / रहेंगे , जबकि संवाद के क्रम में नाम नहीं उजागर करने की शर्त के साथ छात्रावास में रहने वाले छात्रों ने बताया कि वार्डन – महोदय शायद ही कभी छात्रावास में रहते हैं , ५०० से अधिक छात्रों का छात्रावास मजह एक सुरक्षा – गार्ड के भरोसे / जिम्मे रहता है l छात्रों ने इस मामले की पड़ताल कर रही हमारी टीम को ये भी बताया कि आईआईटी (बीएचयू ) के सारे छात्रावासों के मेस शनिवार को बंद रहते हैं और मजबूरन छात्रों को कहीं बाहर खाना पड़ता है l ये जानकारी हैरान करने वाली थी क्यूँकि पिछले वर्ष से ही देश के सारे आईआईटीज की फीस में दुगनी बढ़ोत्तरी सरकार के द्वारा की गयी है और देश के भिन्न कोनों से आए छात्र एक अनजान शहर में कहीं और खाने को विवश हैं l हमारी टीम ने पड़ताल के क्रम में ये भी पाया कि १० x ८ के एक छोटे से दड़बे सरीखे कमरे में तीन – तीन छात्र रहने को मजबूर हैं , न पेय-जल की समुचित व्यवस्था है न ही साफ़-सफाई का समुचित प्रबंध , पेट की बीमारियों से ग्रस्त छात्रों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है , छात्रावासों के मेस के भोजन की गुणवत्ता भी काफी ख़राब है l
एक बार फिर से लौटते हैं अभिनव की दुःखद मृत्यु की कहानी की ओर…. मेधावी वार्डन महोदय को न पा कर अभिनव के बदहवास साथी एम्बुलेंस की तलाश में दिए गए संपर्क – नंबर पर एम्बुलेंस की गुहार लगाते हैं लेकिन आधे घण्टे से अधिक इंतजार के पश्चात भी जब एम्बुलेंस नहीं पहुँचता है तो अभिनव के साथी उसे एक ऑटो-रिक्शा में लाद कर बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय परिसर में ही स्थित मुख्य-हस्पताल सुंदरलाल हस्पताल ले जाते हैं लेकिन अफ़सोस वहाँ के इमर्जेंसी- वार्ड में भी डॉक्टर नदारथ थे l पैंतालीस मिनटों के लंबे समय तक अभिनव किसी भी प्रकार की चिकत्सीय – सुविधा से मरहूम ही रहता है और जब डॉक्टर्स आते हैं तो अभिनव को मृत घोषित करने की महज औपचारिकता ही निभाते हैं l अभिनव के मौत की खबर पाने के पश्चात आईआईटी प्रबंधन को होश आता है और हस्पताल पहुँचकर प्रबंधन के अधिकारीगण मामले पर पर्दा डालने में जुट जाते हैं l आक्रोशित , दुखी व् क्षुब्ध छात्रों को बरगलाने व् डराने -धमकाने का दौर चालू हो जाता है l अभिनव के शव की पोस्टमार्टम की औपचारिकता निभा दी जाती है और शव को हस्पताल के शव-गृह में रख कर अभिनव के अभिभावकों को खबर कर दी जाती है l छात्र बताते हैं कि बिल्कुल ऐसा सब ही हुआ था चंद महीने पहले सुमित सागर की मौत के मामले में भी l हमारी टीम ने जब हस्पताल में जा कर एम्बुलेंस और डॉक्टर्स की अनुपलब्धता के पीछे के कारणों को जानने की कोशिश की तो पता चला की उसी दिन (४ मार्च ) को वाराणसी में विधानसभा चुनावी अभियान के तहत प्रधानमंत्री जी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री महोदय का रोड – शो था और सारे एम्बुलेंसों और डॉक्टरों की तैनाती वहीं थी l
हताशा होती है हमारे देश की व्यवस्था पर जहाँ आम लोगों के जान की हिफाजत भी राजनीति के रहमो-करम पर है , विश्व की सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं में शुमार JEE में उत्तीर्ण हो कर देश का भविष्य कही जाने वाली प्रतिभा ईलाज के अभाव और मूर्धन्य कहे जाने वाले संस्थान की बदइंतजामी के कारण दम तोड़ देती है l सुमित और अभिनव तो अब लौट कर नहीं आएंगे , माता-पिता के मेहनत व् अरमानों की चिता भी इन दोनों बच्चों की चिता के साथ ही बुझ चुकी होगी लेकिन क्या हमारी सरकार व् व्यवस्था की तन्द्रा कभी टूटेगी ? देश के भिन्न आईआईटीज में अपने भविष्य के साथ-साथ देश का भविष्य सँवारने का सपना संजोये हजारों अभिनव व् सुमित क्या आश्वस्त हो सकते हैं कि उनकी मौत भी मरहूम अभिनव व् सुमित की तरह नहीं होने वाली है ? न जाने किन कारणों से एक प्रतिभावान की मौत सनसनी पैदा करने वाली मीडिया के लिए खबर नहीं बन पायी ? क्या बनारस का चुनावी शोर अभिनव के अभिभावकों व् सहपाठियों के क्रंदन से ज्यादा अहमियत रखता था ?
आईआईटी बीएचयू