मानव-मानव का भेद मिटाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
आंसू की यह लड़ियाँ टूटे
खुशियों की फुलझड़ियाँ छूटे
शोषण, पीड़ा, शोक भुलाएँ
कितने दीप जल नहीं पाते
कितने दीप बुझ बुझ जाते
दीपक राग मिलकर गाएँ
बाहर बाहर उजियारा है
भीतर गहरा अंधियारा है
अंतर्मन में ज्योति जगाएँ
मंगलघट कण कण में छलके
कोई उर ना सुख को तरसे
हर धड़कन की प्यास बुझाएँ
आलोकित हो सबका जीवन
बरसे वैभव आँगन आँगन
निष्ठुर तम हम दूर भगाएँ
रोशन धरती, रोशन नभ हो
शुभ ही शुभ हो, अब ना अशुभ हो
कुछ ऐसी हो दीपशिखाएँ
हिमकर श्याम
दिल को छू लेने वाली कविता.