दिल्ली धमाके: फिर मानवता हुई लहूलुहान

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तनवीर जाफ़री 

महानगर मुबई में गत् 12 जुलाई को हुए सीरियल बलास्ट की गूंज अभी खत्म भी नहीं हई थी कि मानवता के दुश्मन आतंकवादियों ने एक बार फिर देश की शांतिप्रिय राजधानी दिल्ली को अपने निशाने पर ले लिया। आमतौर पर देश में बुधवार के दिन होने वाले बम धमाकों की ही तरह पिछला बुधवार भी दिल्लीवासियों के लिए अशुभ साबित हुआ। दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नं० 4/5 के बाहर हुए इस धमाके में 11 लोगों के मारे जाने व 91 लोगों के घायल होने का समाचार है। हालांकि सरकार अपनी ओर से अभी तक किसी संगठन विशेष का इन धमाकों में हाथ होने का खुलासा फलहाल नहीं कर रही है। परंतु बंगलादेश आधारित आतंकी संगठन हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी (हूजी)ने कुछ भारतीय समाचार एजेंसियों को एक ई-मेल कर इसमें अपने संगठन का हाथ होने का दावा किया है। यदि हूजी का यह दावा सही है तो यह भी कितने अफसोस की बात है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उसी दिन बंगलादेश में बैठकर भारत-बंगलादेश संबंध बेहतर बनाने संबंधी समझौतों पर विचार-विमर्श व हस्ताक्षर कर रहे हैं तो दूसरी ओर वहीं का आतंकी संगठन भारत को आहत करने की कोशिश कर रहा है। गोया हमारे ही देश के रहम-ो-कर्म पर वजूद में आया पड़ोसी देश आज हमारे ही देश के लिए घातक साबित हो रहा है।

यदि हूजी की स्वीकारोक्ति को ही सत्य मानते हुए इस पूरे घटनाक्रम की समीक्षा की जाए तो हूजी ने अपने ई-मेल पर अपनी मंशा ज़ाहिर करते हुए यह साफतौर पर लिखा है कि- ‘हमारी मांग है कि अफज़ल गुरु की मौत की सज़ा को तत्काल रद्द किया जाए अन्यथा हम बड़े हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट को निशाना बनाएंगे। गौरतलब है कि अफज़ल गुरु २००१ में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले का दोषी है। उसे उच्चतम् न्यायालय द्वारा फांसी की सज़ा दी जा चुकी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी राष्ट्रपति से अफज़ल गुरु को फांसी दिए जाने की सिफारिश कर दी है। परंतु अफज़ल गुरु ने अपनी फांसी के सिलसिले में राष्ट्रपति को दया याचिका दे रखी है। जिसपर राष्ट्रपति भवन का फैसला आना शेष है। इस बीच अफज़ल गुरु की फांसी को लेकर पूरे देश में तरह-तरह की बहस जारी है। जम्मू -कश्मीर के एक विधायक ने तमिलनाडु की ही तर्ज पर जम्मू -कश्मीर विधानसभा में अफज़ल गुरु की फांसी की सज़ा को माफ किए जाने का प्रस्ताव पेश कर दिया है। गौरतलब है कि तमिलनाडु विधानसभा में भी राजीव गांधी के हत्यारों को दी जाने वाली फांसी की सज़ा को माफ किए जाने का प्रस्ताव पारित हो चुका है।

उपरोक्त हालात एक बार फिर शांतिप्रिय भारतवासियों को यह सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि आखिर हमारा देश किस दिशा में जा रहा है। संप्रदायवाद व क्षेत्रवाद की भावना कहीं भारत जैसे विशाल धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को कमज़ोर तो नहीं कर रहीं? क्या वजह है कि जघन्य अपराधों व संगीन आतंकवादी हमलों में शामिल दोषियों को लंबे समय तक सरकार मेहमान बनाकर उनकी खातिरदारी करती है? और आखिरकार ऐसे आतंकियों व अपराधियों को जेल में रहते हुए इतना अधिक समय बीत चुका होता है कि उन्हें अपने पक्ष में रखने के लिए यह तर्क मिल जाता है कि इतने वर्षों तक जेल की सज़ा भुगतने के बाद आखिर फांसी का क्या औचित्य रह जाता है? इस समय देश के कई अलग-अलग हिस्सों से जघन्य अपराध करने वाले फांसी की सज़ा पा चुके आतंकियों को क्षमा किए जाने की आवाज़ें उठाई जा रही हैं। फांसी की सज़ा हमारे देश में होनी चाहिए या नहीं यह एक अलग अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बहस है जिसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन संघर्षरत है। परंतु फिलहाल भारत में गंभीर किस्म के अपराधों को अंजाम देने के लिए चूंकि फांसी की सज़ा का प्रावधान है और अदालतें अभी भी कहीं न कहीं किसी न किसी दुर्दांत आतंकी या अपराधी को फांसी की सज़ा सुनाया करती हैं। लिहाज़ा इस सज़ा पर अमल करने में भी अधिक देरी नहीं करनी चाहिए। कंधार विमान अपरहरण कांड से हमें सबक लेना चाहिए और यथाशीघ्र संभव अपराधियों को सज़ा की उनकी मंजि़ल तक पहुंचा देना चाहिए। भले ही इसके नकारात्मक परिणामों का कुछ समय के लिए सामना ही क्यों न करना पड़े। परंतु इन्हें पालना-पोसना या इनकी मेहमान नवाज़ी करना दूसरे हादसों को दावत देने के सिवा और कुछ नहीं है।

रहा सवाल दिल्ली हाईकोर्ट में हुए ताज़ातरीन ब्लास्ट में सुरक्षातंत्रों की विफलताओं का, तो हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बंगला देश से भारत वापसी के समय विमान में पत्रकारों को संबोधित करते हुए यह स्वीकार कर चुके हैं कि सुरक्षा व्यवस्था में कुछ खामियां हैं जिसका लाभ चरमपंथी उठा रहे हैं। केंद्र सरकार तथा दिल्ली के उपराज्यपाल भी अपनी जिम्मेदारी से इंकार नहीं कर रहे हैं। परंतु इन सब के बावजूद यह प्रशन अपनी जगह पर बरकरार है कि क्या मात्र सुरक्षा व्यवस्था तथा चौकसी और गुप्तचर सूचनाओं के आधार पर पूरे देश को आतंकवादी घटनाओं से मुक्त किया जा सकता है? आंकड़ों के अनुसार भारतवर्ष में गत् १५ वर्षों में १९ बड़े आतंकी हमले हो चुके हैं। इसी दिल्ली हाईकोर्ट में चार महीनों में यह दूसरा बम धमाका हुआ है। गत् २५ मई को भी इसी हाईकोर्ट में बम ब्लास्ट हुआ था। उस हादसे के बावजूद सरकार तथा सुरक्षा एजेंसियां उसी हाईकोर्ट व उसके आसपास के क्षेत्र को सुरक्षित रख पाने में नाकाम रहीं। अब इस ताज़ातरीन हादसे के बाद सरकार ने इस घटना की जांच के लिए बीस उच्चाधिकारियों की एक टीम गठित की है। ज़ाहिर है सरकार को इस बात का विश्वास होगा कि बीस सदस्यीय यह जांच टीम इन धमाकों के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकेगी। परंतु दिल्ली की पूर्व पुलिस कमिश्रर तथा आंतरिक सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ किरण बेदी का कुछ और ही मत है। उनका मानना है कि बीस अधिकारी इस हादसे की जांच के लिए पर्याप्त नहीं हैं बल्कि इसके बजाए कम से कम २०० अधिकारियों की टीम के हाथों इस घटना की जांच सौंपी जानी चाहिए। ऐसे में सरकार द्वारा उठाए जाने वाले हादसे के बाद के जांच संबंधी कदमों की सफलता को लेकर संदेह खड़ा होता है।

इसमें कोई शक नहीं कि २६/११ को मुंबई में हुए देश के अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के बाद देश की सुरक्षा व गुप्तचर ढांचे में काफी बदलाव किए गए हैं। यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। परंतु सरकार को चाहिए कि वह अपना ध्यान किसी घटना के बाद अपराधियों को शीघ्र पकडऩे या उनका सही-सही पता लगाने के बजाए गुप्तचर व्यवस्था को मजबूत करने में अधिक दे। क्योंकि किसी हादसे के बाद किसी अपराधी संगठन का पता लगाने या उसे सज़ा देने से प्रभावित लोगों के परिवार को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती। लिहाज़ा हादसों को रोकना व उन्हें किसी भी कीमत पर न होने देना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इस म$कसद के लिए गृहमंत्रालय को अपने खुफिया तंत्र को और अधिक वृहद्, कारगर,आधुनिक व प्रशिक्षित बनाना चाहिए। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि भारत के दुश्मन तत्व भारत की एकता,धर्मनिरपेक्षता तथा आर्थिक तरककी से खुश नहीं हैं। यह शक्तियां हमारे देश को कमज़ोर व अस्थिर करना चाह रही हैं। यही वजह है कि आतंकियों के निशाने पर अब दिल्ली व मुंबई जैसे महानगर बार-बार आ रहे हैं। क्योंकि देश के महानगर हमारी आर्थिक प्रगति के प्रतीक हैं और आतंकी इन्हीं महानगरों में आतंकी हादसे अंजाम देकर पूरी दुनिया को यह संदेश देना चाह रहे हैं कि भारत के महानगर सुरक्षित नहीं हैं। उनकी इस प्रकार की गलत धारणा को समाप्त किया जाना चाहिए। और ऐसा तभी संभव है जबकि खुफिया एजेंसियां किन्हीं हादसों से पूर्व ही इन्हें धर दबोचें।

जो भी हो भारतीय नागरिक यह बात अच्छी तरह समझ चुका है कि भारत में अब तक हुए सभी बम धमाकों का मकसद एक ही है और वह है देश के सांप्रदायिक सद्भाव पर प्रहार करना तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना। परंतु हमारेे देश ने न तो पहले कभी इनके नापाक इरादों को सफल होने दिया है न ही भविष्य में इनके मंसूबे कामयाब होंगे। हां इन हादसों से बचने के उपाय करने बहुत ज़रूरी हैं और यह उपाय सुरक्षा एजेंसियों, स्थानीय पुलिस तथा आम नागरिकों के परस्पर सहयोग व जि़ मेदारी से ही संभव हैं। लिहाज़ा इनके नापाक इरादों को नाकाम करने में हमें अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए। और आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले जो आतंकी गिरफ्तारी में आ चुके हों उन्हें बिना समय गंवाए तत्काल ‘निपटा देना चाहिए।

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