नई दिल्ली। दिल्ली में गठित मैथिली/भोजपुरी अकादमी से मैथिली और भोजपुरी अकादमी को अलग-अलग करने की मांग अखिल भारतीय मिथिला संघ ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से 14 जून को की।
संघ के सदस्यों ने कार्यकारी अध्यक्ष आर. सी. चैधरी और महासचिव विजय चंद्र झा के नेृतत्व में एक ज्ञापन मुख्यमंत्री को उनके आवास पर सौंपा। संघ के सदस्यों ने मुख्यमंत्री को तर्क दिया कि मैथिली की अपनी लिपि, अपना व्याकरण, साहित्य एवं शैली है और यह भोजपूरी से बिल्कुल ही भिन्न है अतः दोनों का एक साथ होना अव्यावहारिक है। ऐसे में मैथिली और भोजपूरी दोनों का ही विकास अवरुद्ध है जिस कारण अकादमी अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रही है। मुख्यमंत्री ने अ.भा.मि.सं. के प्रतिनिधियों के इस तर्क पर गौर करते हुए उन्हें आश्वस्त किया और जल्द ही कोई सकारात्मक फैसला करने की बात कही। प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों ने इसके अलावा मुख्यमंत्री से अपनी कई और मांगे भी रखीं जिसमें दिल्ली में मिथिला भवन के लिए भूमि आवंटन प्रमुख था। इस दौरान संघ के सदस्य ललन झा, अरविंद पासवान, विद्यानंद ठाकुर, अमरनाथ झा, भवेश नंदन, सत्य प्रभा, डा. ममता ठाकुर, पवन कुमार सिंह यादव , शुभ नारायण झा,एवं संजीव झा आदि मौजूद थे।
यह तो होने ही चाहिए
भाषाशास्त्रीय विवेचन में मैथिली की दुहिता भाषाएँ बंगला, असमी, ओरिया हैं जिनकी लिपियाँ भ़ी करीब करीब एक ही हैं
यह मिथिला का दुर्भाग्य रहा की १३२४ में गयासुद्दीन तुगलक ने हमारे हजारों मंदिरओं को तोड़ बिहार बमक एक काल्पनिक सूबा में मिला दिया पर वहां के लोग अपनी अस्मिता को बचाए है-
महामना वाजपेयी ने मैह्तिली को भारत की संविधान की अष्टम अनुसूची में लाया जिसके लिए कहने स्वयम संग के सर्संघ्काहलक माँ. सुदर्शनजी डॉ. भुवनेश्वर परसदा गुरुमैता के साथ उनके आग्रह पर गए थे.
कभी माँ. रज्जू भैया ने डॉ कमलकांत झा (अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् के वर्तमान अध्यक्ष और मधुबनी के जिला संघ्काहलक) को कहा था- ‘आप मैथिली के लिए जो भे एकरी करते हैं, उसे संघ कार्य ही समझे.”
प.पव. गुर्जी ने १९५७ में दरभंगा में कहा था “यदि झारखण्ड राज्य बा सकता है तो संस्कृति का केंद्र मिथिला क्यों नहीं.” (मुझा मदुरै में एक तीर्थयात्री ने २९.९.२००२ को मैह्तिल तीर्थयात्री ने बताया था कबिलपुर गईं के जो उस कार्यक्रम में थे).
आअज मैथिल भारत के ६८ लोकसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं – जो पार्टी मिथिला राज्य बनाएगा उसीको मैथिल समर्थन करेगा.
BHJ गोर्खालान्फ्द की एक सीट के लिए जसवंत सिंह जैसे कद्दावर नेता को भेज सकती (जबके पहले पांचजन्य में छपा करता था की इसाइ घिसिंग राष्ट्र विरोधी माँगा गोरखालैंड की कर रहे हैं ) है, वह मिथिला के मामले में आगे ए- ऐसा नहीं की जैसे शीला शिक्षित ने दिल्ली में अकादमी बनाने में भूमिका बनाई वैसी ही प्रान्त के मामले में कर कांग्रेस को संजीवनी दे दे.