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लोकतंत्र का सबसे भयावह और शर्मनाक दौर है यह - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
गिरीश पंकज अपने देश का लोकतंत्र अब धीरे-धीरे छाया-लोकतंत्र में तब्दील होता जा रहा है. मतलब यह कि लोकतंत्र-सा दिख तो रहा है, मगर छाया होने के कारण पकड़ में नहीं आ रहा. लोकतंत्र तो है, आज़ादी भी है, मगर कैसी? भ्रष्टाचार करने के लिये हम स्वतंत्र है, सडकों पर 'स्लट…