पूछ परख के चक्कर में घनचक्कर हुआ लोकतंत्र

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-जावेद उस्मानी-
poem

मर गए अनगिनत गरीब देखते सियासी तंत्र मंत्र
महंगाई की ज्वाला से घिरा व्याकुल सारा प्रजातंत्र
कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, जंगल बना जनतंत्र
पूंजीधीश के गले लगते भजते विकास का महामंत्र
हवा पानी तक हजम कर गए जिनके उन्नत सयंत्र
अच्छा है यदि जपें न्याय सम्मत जनहित का जंत्र
लोकहित के नारों के पीछे, न स्वार्थ हो न षड्यंत्र

1 COMMENT

  1. गरीब बे मौत मर रहे हैं – हर कोई लूट ही रहा है – भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी चुनाव के समय भारत की आम जनता से सवाल पूछते थे कि कांग्रेस की राज में मंहगाई कम हुई, बेरोजगारी कम हुई, भ्रष्टाचार कम हुआ , इत्यादि इस तरह के अनेकों सवाल नरेंद्र मोदी आम जनता से पूछा करते थे |
    आज जब सत्ता उनके हाथ में है तो मंहगाई आसमान छू रही है और आर्थिक सुधार के नाम पर कड़े फ़ैसले लेने के संकेत नरेंद्र मोदी देश की आम जनता को दे रहे है | जहाँ तक सवाल है आर्थिक सुधार का तो जिस आर्थिक सुधार की बात वो करते है आखिर वह आर्थिक सुधार किसका चाहते है——

    — 20 रुपया रोज कमाने वाले 100 करोड़ देश की आम जनता का या 1100 करोड़ रुपया रोज कमाने वाले मुकेश अंबानी का !!

    क्योकि आज तक आर्थिक सुधार के नाम पर जितने भी फैसले हुए है उससे सिर्फ चंद उधोगपति ही लाभान्वित हो पाए है न कि भारत की आम जनता , इसका सबसे बड़ा उदाहरण है सन 1991 में आर्थिक सुधार के नाम पर भारत के बजारों को उधोगपतियों के हवाले कर दिया गया था |जिसका परिणाम यह हुआ की सन 1991 में 1 डालर = 24.65 पैसा था और आज 1 डालर = 60 रुपया हो चूका है | इस फैसले की वजह से यह हुआ की भारत के चंद उधोगपति दुनिया के सबसे धनी लोगों में गिने जाने लगे और भारत की आम जनता की अर्थव्यवस्था कंगाल हो गई | इसका सीधा अर्थ निकलता है कि आर्थिक सुधार के नाम पर जो भी फैसले लिए जाते है उससे सिर्फ चंद उधोगपति ही माला-माल होते है न कि देश की आम जनता |
    आप क्या सोंचते है …….??

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