लोकतंत्र की जीत

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emergencyआज देश में लोकतंत्र की हत्या की चालीसवीं बरसी है.आज ही के दिन चालीस वर्ष पूर्व श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय से भरष्ट आचरण के कारण उनका रायबरेली से चुनाव रद्द कर दिए जाने से उत्पन्न हुए राजनितिक संकट से निबटने के लिए देश में आंतरिक आपात स्थिति लागू कर दी गयी थी,सभी विपक्षी नेताओं और लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी को जेलों में डाल दिया गया था.अख़बारों पर सेंसरशिप लागू कर दी गयी थी.देश में संविधानेतर सत्ता केंद्र के रूप में संजय गांधी उभर गए थे.
आपात कल की घोषणा के सन्दर्भ में कुछ तथ्यों पर विचार किया जाना समीचीन होगा.इस सप्ताह दो समाचार सामने आये हैं.प्रथम, देश में आंतरिक आपतस्थितिलागू करने का सुझाव इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा जी का चुनाव रद्द किये जाने के निर्णय से लगभग पांच माह पूर्व ही जनवरी १९७५ में पत्र द्वारा पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे द्वारा दिया गया था जिसे इलाहाबाद के फैसले के बाद पुनः दोहराया गया था.द्वित्तीय, नेहरू जी द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए सभी पैंतरे अजमाए थे जिनमे झूठ भी शामिल था.इन दोनों समाचारों से उस समय के नेतृत्व की कार्यशैली और मानसिकता का पता चलता है.वस्तुतः, १९७५ के जून में आपातस्थिति लागू किये जाने से पूर्व की घटनाओं पर विचार करना उचित एवं प्रासंगिक होगा.
१९६९ में इंदिरा जी द्वारा कांग्रेस के पुराने नेतृत्व को धता बताकर कांग्रेस का विभाजन कर दिया गया था.संगठन से जुड़ा धड़ा कांग्रेस (संगठन) और इंदिरा जी की कांग्रेस( इंदिरा) कहलायी.इंदिराजी ने अपनेको प्रगतिशील और गरीबों का हमदर्द सिद्ध करने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और पुराने राजा महाराजाओं को विलय की शर्तों के अंतर्गत दिया जानेवाला भत्ता, प्रिवीपर्स, बंद कर दिया गया.१९७१ में समयपूर्व लोकसभा के चुनाव कराये गए जिसमे इंदिरा जी ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर दो तिहाई बहुमत प्राप्त किया.बड़े बड़े दिग्गज उस चुनाव में धराशायी हो गए.
प्रचंड बहुमत मिलने के कुछ समय बाद ही बांग्लादेश ( पूर्वी पाकिस्तान) से करोड़ों की संख्या में शरणार्थी आ गए जिनके कारण अर्थव्यवस्था पर बड़ा दबाव पड़ा.फिर पाकिस्तान से जंग छिड़ गयी और बांग्लादेश का जन्म हुआ.उससे इंदिरा जी का कद बहुत बढ़ गया और उन्होंने राज्यों की विधान सभा के चुनावों में भी भारी सफलता प्राप्त की!उस समय कांग्रेस पर वामपंथियों का प्रभाव बहुत बढ़ गया था और सोवियत संघ के खेमे में भारत को कोमिन्टर्न देश का ही दर्जा दिया गया था. कांग्रेस में घुसे वाम पंथियों में मोहन कुमार मंगलम,के.रघुरमैय्या,के आर गणेश, डी पी धर आदि प्रमुख चेहरे थे.बांग्लादेश के शरणार्थियों और युद्ध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव बढ़ गया था.कई नए कर एवं दायित्व बढ़ा दिए गए थे.ऐसे में १९७३ में कांग्रेस के वाम पंथी नेताओं के दबाव में इंदिराजी ने खाद्यान्न के थोक व्यापार का राष्ट्रीयकरण कर दिया जिससे देश में वितरण व्यवस्था बिगड़ जाने के कारण खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो गया.कई स्थानों पर फ़ूड रायट्स हुए और कई स्थानों पर सरकारी खाद्यान्न के भंडारों को लूट लिया गया.मजबूर होकर इंदिराजी को फैसला वापिस लेना पड़ा.देश में बढ़ती बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के विरुद्ध युवाओं में भी आक्रोश बढ़ रहा था.
इसी बीच बिहार और गुजरात में छात्रों ने वहां की सरकारों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया.श्री जयप्रकाश नारायण जी ने युवाओं के आक्रोश को जनांदोलन मानकर उसमे अपना योगदान दे दिया.देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों के छात्र संघों के चुनावों में अ.भा. विद्यार्थी परिषद को भारी सफलता मिली.रा.स्व.स. के द्वित्तीय सरसंघचालक पूज्य श्री गुरूजी (गोलवलकर जी) का जून १९७३ में कैंसर के कारण देहांत हो गया.तृतीय सरसंघचालक के रूप में बालासाहब देवरस जी ने भी इस स्थिति को समझा और जयप्रकाश नारायण जी, जो जीवन भर संघ विरोधी रहे, के साथ भेंट कर उनके आंदोलन में संघ के सहयोग का आश्वासन दिया.सभी संघ प्रेरित संगठन और जनसंघ जेपी के साथ जुड़ गए.इस बीच कश्मीर के पत्रकार शमीम अहमद शमीम को दिए साक्षात्कार में कुख्यात तस्कर हाजी मस्तान ने कहा की “कांग्रेस के नेता दिन के उजाले में हमें गालियां देते है और रात के अँधेरे में कटोरा लेकर पैसा मांगने आ जाते हैं”.इस साक्षात्कार पर इंदिरा जी भड़क गयीं और तस्करों और आर्थिक अपराधियों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया गया.कोफेपोसा और मीसा जैसे कानून लागू कर दिए गए.लेकिन मीसा का दुरूपयोग राजनितिक विरोधियों के विरुद्ध किया गया.बिहार के विद्यार्थी परिषद के नेता सुशील कुमार मोदी और श्री राम बहादुर राय भी मीसा में बंद कर दिए गए.जिसके कुछ धाराओं को सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित कर दिया.नागरवाला कांड और तुलमोहन राम कांड में भ्रष्टाचार का मुद्दा मीडिया में और संसद के अंदर बाहर छा गया.नवम्बर १९७४ में पटना में जेपी की रैली पर भारी बल प्रयोग किया गया जिसमे जेपी पर किये गए लाठी के जबरदस्त प्रहार को जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख ने अपने ऊपर लेकर जेपी की रक्षा की.तीन जनवरी १९७५ को समस्तीपुर में एक विस्फोट में केंद्रीय मंत्री ललित मोहन मिश्रा की हत्या कर दी गयी.जिसमे अनेकों द्वारा सत्ता का हाथ होने की आशंका व्यक्त की गयीं!
तो ऐसे माहौल में बढ़ते राजनितिक दबाव और चुनौतियों के परिप्रेक्ष में सिद्धार्थ शंकर रे द्वारा एमर्जेन्सी का सुझाव दिया जाना अधिनायक वादी सोच को प्रदर्शित करता है.
१२ जून १९७५ को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने श्री राजनारायण द्वारा १९७१ में रायबरेली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से इंदिरा जी के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार करते हुए इंदिरा जी को चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोषी माना और उनका चुनाव रद्द कर दिया जिसके फलस्वरूप इंदिराजी संसद की सदस्य नहीं रह गयीं और छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गयीं!यह लोकतंत्र की बड़ी जीत थी और भ्रष्ट अधिनायकवादी सोच को करारा झटका.उसी दिन गुजरात में चिमन भाई की सरकार का पतन हो गया और चुनावों में बाबूभाई पटेल के नेतृत्व में जनता मोर्चा जीत गया.एक और घटना हुई.उसी दिन एक विमान दुर्घटना में अन्य लोगों के साथ कांग्रेस के दिग्गज वामपंथी नेता मोहन कुमार मंगलम की मृत्यु हो गयी.
उसी दिन शाम को ग़ाज़ियाबाद कोतवाली में मैं, वहां के तत्कालीन एस.डी.एम. आई ए एस अधिकारी श्री टी.जार्ज जोजेफ, मेरठ के क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक श्री भंडारी और ग़ाज़ियाबाद के सी.ओ. श्री श्रीकांत त्रिपाठी जी बैठे थे.उसी समय डी.टी.सी. की एक बस उधर से गुजरी जिसमे भीड़ नारे लगा रही थी,”इंदिरा गांधी जिंदाबाद”, “जस्टिस सिन्हा मुर्दाबाद” और “इलाहाबाद हाई कोर्ट हाय हाय”. श्री जोजेफ तुरंत बोले,”ओह! ये लोग सडकों पर उतर आये हैं”.इस पर सी ओ त्रिपाठी जी व्यंग से बोले कि,” बेकार लोकतंत्र का ढिंढोरा पीट रही हैं.सारी पावर अपने हाथ में लेकर देश में मार्शल लॉ लगादें”.
कुछ दिन बाद इंदिरा जी की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश काल के जज जस्टिस कृष्णा ऐय्यर ने इंदिरा जी को प्रधान मंत्री बने रहने का आदेश जारी कर दिया. बीस जून को इस निर्णय पर ख़ुशी जताने के लिए एक रैली कांग्रेस की तरफ से रामलीला मैदान में की गयी. दो दिन बाद बाईस जून को विपक्ष की तरफ से एक रैली रामलीला मैदान में इंदिरा जी से नैतिक आधार पर इस्तीफा मांगने के लिए की गयी.रविवार का दिन था. पूरा रामलीला मैदान और उसके चारों तरफ की सड़कें खचाखच भारी थीं.तमाम देशी विदेशी मीडिया वहां मौजूद था, सभी विपक्षी नेता मौजूद थे.सञ्चालन श्री विजय कुमार मल्होत्रा जी ने किया था. मैं उस समय ग़ाज़ियाबाद में बिक्रीकर अधिकारी के पद पर तैनात था.मैं भी उस रैली में शामिल हुआ था.भारी बारिश के बावजूद कोई हटने को तैयार नहीं था.
रैली के बाद मैं अपने जीजाजी के साथ उनके बहनोई श्री दाताराम गुप्ता जी के नारायणा स्थित घर पर गए. तो दाताराम जी ने पूछा कि इतनी बारिश में कहाँ से आ रहे हैं? हमने बताया कि रामलीला मैदान की रैली से आ रहे हैं.यह बताने पर कि रैली में जेपी को भी आना था लेकिन उनकी फ्लाइट रद्द हो जाने के कारण वो नहीं आ सके श्री दाता राम जी ने तुरंत कहा कि कहीं गिरफ्तार तो नहीं हो गए? उनके मुंह से यह सुनकर मैं हैरान हो गया क्योंकि वो आई बी के अधिकारी थे जो उन दिनों रॉ में तैनात थे.अतः हमें लगा कि सरकार ने सख्ती करने और विरोधियों को कुचलने की तैयारी कर ली थी.अगले दिन ग़ाज़ियाबाद में मैंने अपने साथी अधिकारीयों से भी इसकी चर्चा की. दिनांक २५ जून की सांय उत्तर प्रदेश जनसंघ के संगठन मंत्री (स्व.) श्री कौशल किशोर जी का भोजन हमारे घर पर गांधीनगर ग़ाज़ियाबाद में था.उनसे भी मैंने दाताराम जी की बात बताई तो कौशल जी ने कहा कि कुछ भी हो सकता है.पहले भी महात्मा गांधी की हत्या को बहाना बनाकर नेहरूजी द्वारा संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था और अब आसन्न राजनीतिक संकट को देखते हुए इंदिरा जी कुछ भी कर सकती हैं.
अगले दिन २६ जून को प्रातः हम सब लोग ग़ाज़ियाबाद लोक निर्माण विभाग के निरिक्षण गृह में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन बिक्रीकर आयुक्त श्री एन पी भटनागर जी के साथ जलपान पर भेंट के लिए एकत्रित थे. उनके विदा होने के पश्चात किसी अधिकारी ने ट्रांजिस्टर पर सुबह आठ बजे के समाचार लगा दिए.उससे पता चला कि देश में आतंरिक आपात स्थिति लागू हो गयी है और कुछ ‘लोगों’ को गिरफ्तार किया गया है.लौटते हुए रास्ते में ग़ाज़ियाबाद के संघ के जिला संघचालक और बिक्रीकर/आयकर अधिवक्ता श्री (स्व) विष्णु प्रकाश मित्तल जी मिले.उन्होंने पूछ कि अब क्या होगा?मेरे मुंह से निकल पड़ा कि इससे भी बड़ी तानाशाही इस देश ने हिरण्यकश्यप के रूप में देखी
है लेकिन उसके विरुद्ध भी प्रह्लाद के विरोध के कारण खम्भे की तरह जड़ बन चुके ‘नर’ ‘सिंह’ बन गए थे और तानाशाह का अंत कर दिया था.ऐसी ही जनक्रांति पुनः होगी.शाम को अंग्रेजी अख़बार मदरलेंड का टेब्लॉइड संस्करण आया जिसमे सभी नेताओं की गिरफ़्तारी और सेंसर आदि का पूरा समाचार दिया गया था. ये मदरलेंड का अंतिम संस्करण साबित हुआ.
आपात काल के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार ताक पर रख दिए गए थे.अख़बारों पर सेंसर लगा दिया गया था.न्यायपालिका पंगु हो गयी थी.जबरन नसबन्दियां की जा रही थीं.तुर्कमान गेट पर भारी अत्याचार किये गए थे.अनेकों स्थानों पर लोमहर्षक कांड हुए थे.बरेली कालेज छात्र संघ के अध्यक्ष श्री अच्युत शर्मा, जो अ.भा.विद्यार्थी परिषद के थे, तथा उनके साथी गिरफ्तार कर लिए गए थे और वहां के कोतवाल हाकिम सिंह (ज़ालिम सिंह) ने कार्यकताओं के नाखून प्लास से उखड़वा दिए थे.कुंवारे लड़कों को पकड़ कर उनकी नसबंदी करदी गयी थीं.ऐसे में लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व रा.स्व.स. ने उठाया और प्रतिबन्ध लगने के बाद देश भर में आंदोलन के जरिये गिरफ्तारियां दी गयीं.एक लाख से अधिक स्वयं सेवक गिरफ्तार हुए.संघ के स्वयंसेवकों ने विदेशों में आंदोलन किये.और जहाँ कहीं भी इंदिरा जी गयीं वहां उनका विरोध किया गया.इंदिरा जी ने संघ पर से प्रतिबन्ध हटाने का प्रस्ताव भिजवाया अगर संघ आंदोलन बंद करदे.लेकिन संघ ने लोकतंत्र की पूर्ण बहाली के बिना आंदोलन वापिस लेने से इंकार कर दिया.
आखिर इससे निजात मार्च १९७७ में चुनावों के बाद जनता पार्टी की जीत से ही मिली. इंदिराजी चुनाव हार गयीं.और लोकतंत्र जीत गया.

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