देवनागरी,रोमन की शब्द क्षमताएँ

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डॉ. मधुसूदन (एक)आलेख का उद्देश्य

आज के, आलेख का उद्देश्य सरल शब्दों में पाठकों को हिन्दी-देवनागरी और रोमन-अंग्रेज़ी लिपियों का  परीक्षण कर शब्द समृद्धि की चरम सीमा की दृष्टि से तथ्यात्मक तुलना प्रस्तुत करना है। आगे स्वतंत्र लेखों में,  शब्द भी कैसे रचे जा सकते हैं, इस का विवेचन किया जाएगा। (प्रस्तुत आलेख शब्द रचना की चरम सीमा पर मर्यादित है) पाठकों से, अनुरोध है, कि टिप्पणियाँ भी इसी विषय पर मर्यादित रखें।

वास्तविक सारे शब्द आज हमारे पास उपलब्ध नहीं होंगे।पर, इस लिए परम्परा पुनर्स्थापित की जा सकती है। आज के प्रयास मेरी दृष्टि में अपर्याप्त है। जिस कार्य से राष्ट्र की प्रगति होती हो, वैसे काम को संकट कालीन शीघ्रता से करना चाहिए।  जापान की १९४५ के अणुबम में लाखों लोग और दो नगर पूरे ध्वस्त होने के बाद केवल दस वर्ष में फिरसे खडा हुआ था।उससे कुछ सीख ले।
पर शब्दों को गढने का अनुपम वादातीत सर्वोच्च (हाँ सर्वोच्च) शास्त्र हमारे पास अवश्य है। इस विषय में कोई विवाद भी नहीं है। फिर भी पाठकों से अनुरोध है, कि प्रश्नों को “शब्द रचने की चरम सीमा” पर ही मर्यादित रखें, जिससे कुछ रचनात्मक चर्चा हो सके।

(दो) शब्द रचना की कच्ची सामग्री,
शब्दों के लिए उपयोगी उच्चारण  निर्देशित करने वाले अक्षर ही उसकी कच्ची सामग्री है। बिना अक्षर शब्द कैसे बन सकेगा? अंग्रेज़ी शब्द रचना की कच्ची सामग्री अंग्रेज़ी आल्फाबेट है।अंग्रेज़ी के आल्फाबेट अलग हैं, और उनके शब्दोच्चार और अलग हैं। दो-दो; तीन-तीन; अक्षर साथ में लेकर एक एक उच्चार भी बनता है। जैसे The का दी हुआ। Call का कॉल हुआ। Stop का स्टॉप हुआ। तो हर शब्द में २-३ अक्षर लिखने पर एक ही उच्चारण मिलता है। लातिनि के कुल अक्षर पहले २० थे, फिर २३, फिर २४ और अब २६ होते हैं। उनके कुल अक्षर आज २६ ही है। पहले कम थे। अंग्रेज़ी लातिनी के ही अक्षर लेकर शब्द रचती है।
(तीन) अंग्रेज़ी रोमन लिपि के बदलाव
रोमन लिपि भी बदलती गयी है।
(१) (क)मूलतः पुराने रोमन साम्राज्य के, लातिनी वर्णाक्षर, कुल मिलाकर २० थे।
A B C    D E F     H I K L M N O P Q R S T V X  (कुल २०)
(ख)सुधारित लातिनी वर्णाक्षर रोमन राज्य के।
A B C D E F G H I K L M N O PQ R S T VXYZ (कुल २३)
(ग) आजके लातिनी वर्णाक्षर (विस्तरित)
Aa Bb Cc Dd Ee Ff Gg Hh Ii Jj Kk Ll Mm Nn Oo Pp Qq Rr Ss Tt Uu Vv Ww Xx Yy Zz (कुल २६)
बडे और छोटे मिलाकर ५२ हुए। पर उच्चारण में या शब्द रचना में केवल २६ का ही योगदान होता है।(चार) अंग्रेज़ी रोमन लिपि का निरीक्षण
सभी जानकार होने से सीधे दूसरे चरण पर विचार करते हैं। a, e, i. o, u, y इतने स्वर हैं। b,c,d,f,g,h, j ,k,l,m,n,p,q,r,s,t,v,w,x,z, इतने व्यंजन हैं। इन व्यंजनों में भी c, k, q, ck, एक ही ध्वनि को अलग रीति से दर्शाते हैं।केवल b, d, f, g, h, j, k, m, n. p, r,s,t, v, x,y, z, (१७ ही) स्वतंत्र और विशिष्ट, उच्चार दर्शाते हैं। v और  w, एक ही उच्चार के दो अक्षर हैं।उसी प्रकार c और s, उसी प्रकार c,k,q, और ck,  समान उच्चारण का ही गुण रखते हैं; y स्वर और व्यंजन दोनों है। तो वास्तव में १७ ही व्यंजन और ६ स्वर से उन्हें काम चलाना पडता है। बाकी सारे अनावश्यक ही है। कुल उच्चारण २३ ही हुआ।
इस विषय में संस्कृतज्ञ मॅकडोनेल का अगले परिच्छेद में, दिया हुआ उद्धरण और विश्लेषण पढने का अनुरोध है। वैसे कुछ एक शतक पहले का उद्धरण है, पर आज भी उतना ही सत्य है। इस से हमें भी अपना आत्म-विश्वास स्थापित करने  की आवश्यकता है।

(पाँच) मॅकडॉनेल कहते हैं।
“देव नागरी लिपि — मात्र  संस्कृत के सभी उच्चारों को ही नहीं दर्शाती, पर लिपि को विशुद्ध वैज्ञानिक आधार देकर  उच्चारों का वर्गीकरण भी करती है।”
रोमन लिपि:”…. और दूसरी ओर, हम युरप वासी आज, २५०० वर्षों बाद भी,  (तथाकथित) वैज्ञानिक युग में उन्हीं A B C D  खिचडी वर्णाक्षरों ( रोमन लिपि ) का प्रयोग करते हैं, जो हमारी भाषाओं के सारे उच्चारणों को दर्शाने में असमर्थ और अपर्याप्त है, स्वर और व्यंजनो की ऐसी  खिचडी को, उसी भोंडी अवस्था में  बचाके रखा है, जिस जंगली अवस्था में, ३००० वर्षों पहले अरब-यहूदियों से उसे प्राप्त किया था।”
(संदर्भ: संस्कृत साहित्य का इतिहास -ए. ए. मॅकडॉनेल पृष्ठ १७)(छः) यह मॅकडॉनेल कौन है?
ये हैं “संस्कृत साहित्य का इतिहास”  के लेखक। बहुत हर्ष की बात नहीं है। वे भी हमारा अनुचित लाभ ही ले रहें हैं, इंग्लैंड के हितमें। कुछ आगे पढिए।
यह मॅकडॉनेल (१८५४-१९३०) बिहार में जन्मे, जर्मनी और इंग्लैण्ड में संस्कृत पढे थे। १८८४ में, ऑक्सफर्ड युनिवर्सिटी में संस्कृत के प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए थे। ७००० संस्कृत की हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ काशी से खरिद कर ऑक्सफ़र्ड ले गए थे। इस काम में उन्हें भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्ज़न(१८५९-१९२५) नें सहायता की थी। कुल १०.००० संस्कृत की पाण्डु लिपियां मॅकडोनेल ने ऑक्सफ़र्ड ले जाकर उदारता पूर्वक दान कर दी थी। वाह वाह मॅकडॉनेल साहेब, ग्रंथ किसके? और दानी कौन? और दान दिया किसी और को? आप के घर को, ही कोई दूसरा, किसी तीसरे को दान कर दे।आपकी अनुमति भी ना पूछे? तो क्या कहोगे ? आज ऑक्सफर्ड, बनारस नहीं, उन १०,००० ग्रंथों का अधिकारी है।

(सात)ज्ञान था, आपका और हमारा।
ज्ञान था, आपका और हमारा, पूर्वजो नें घोर भगीरथ तपस्याओं के सहारे प्राप्त किया था, पर आज हमारे पास नहीं। पीडा तो इससे भी अधिक उसकी है, कि यह न हमें पता है, न हमें इसकी पीडा है। बहुमूल्य ग्रंथों को रद्दी समझने वाले हम, और संस्कृत को बैल गाडी युग की भाषा समझने वाले हमारे शासक, उन पुरखों की संतान कहलवाने के लिए भी, सर्वथा अयोग्य है। सुना है, जर्मनी ने हमारे ग्रंथों के अध्ययन से अपनी प्रगति की थी। हमारे पाणिनि का व्याकरण संगणक की आंतरिक भाषा में प्रयुक्त हुआ है। हमारे अंकों का और उच्च गणित का उपयोग हम जब परतंत्र में सड रहे थे, पश्चिम उन्नति कर रहा था।ज्ञान का भण्डार देखते ही मॅक्डोनेल दक्षता पूर्वक, कर्ज़न द्वारा दबाव बढवाया होगा। गुरूकुल परम्परा का र्‍हास भी करवा ही रहे थे। यस सर, नो सर करने  वाले बाबु क्लर्क बन गए हम। आप सब जानते ही हैं।

(आँठ)शब्द रचना की कच्ची सामग्री

पहले कच्ची सामग्री का अर्थ समझ लें।जैसे भवन निर्माण की कच्ची सामग्री ईटें समझी जा सकती है; या जैसे,कोई व्यञ्जन बनाने की अलग अलग खाद्य पदार्थों की भी कच्ची सामग्री ही होती है।
उसी प्रकार हम शब्द बनाना चाहे, तो किसी भी, विशेष भाषा में शब्द रचना करने के लिए तीन वस्तुओं की आवश्यकता होगी। एक हमें जिस वस्तुका नया शब्द चाहिए, वह व्यक्त या अव्यक्त वस्तु, और उसका सही सही वर्णन चाहिए। जिसको उस नए शब्द के “अर्थ” की संज्ञासे जाना जाएगा। इस अर्थ को कच्ची सामग्री नहीं, पर पक्की सामग्री कहना उचित है।
और दो उस शब्द को लिखित चिह्नों से और ध्वनि से व्यक्त करने के लिए “उच्चारण” (अर्थात ध्वनि) चाहिए।
और उस ध्वनि को स्थायित्व देने के उद्देश्य से किसी प्रकार का लेखित रूप चाहिए।
प्रत्येक भाषा के अलग अलग अक्षरों  (उच्चारणों) की, कुल संख्या, उस भाषा में, शब्द-रचना की दृष्टि से निर्णायक होती है।
हवाईयन भाषा में केवल १२-१३ अक्षर होने के कारण उस भाषा की शब्दसमृद्धि  उसी से सीमित हो सकती है।इसी तथ्य को स्थूल रूप से एक विशेष सिद्धान्त के रूपमें भी देखा जा सकता है।
उसी प्रकार अंग्रेज़ी में भी २६ अक्षर होने से उसमें भी वह संख्या शब्द रचना की कच्ची सामग्री मानी जा सकती है।और देवनागरी या ब्राह्मी प्रणीत लिपियों के लिए, उनके सारे उच्चारणों या अक्षरों को  आप कच्ची सामग्री मान सकते हैं। जैसे ईटों के सहारे दीवार बांधी जाती है, भवन खडा किया जाता है। तो ईटों को दीवाल की कच्ची सामग्री कह सकते हैं। या आपके पास बडा क्षेत्र है, उसमें से कुछ भूमिपर आप धान उगाते हैं। बडा क्षेत्र उपलब्ध है पर उसी में से कुछ क्षेत्र चुनकर उस पर आप धान उगाते हैं।
पूरा क्षेत्र आप की कच्ची सामग्री है। उसमें से जो अंश चुनकर आप खेत उगाते हैं, वह अंश आपकी पक्की पक्की सामग्री है।

(नौ) देवनागरी या ब्राह्मी प्रणीत लिपियों की विशेषता

हमारी कच्ची सामग्री

अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः  (१२)
क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः (१२)
ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः (१२)
ऐसे प्रत्येक व्यञ्जन के १२ उच्चारण बन पाते हैं।
,क ख  ग, घ, ङ,
च, छ,ज, झ,ञ,
ट, ठ, ड, ढ,ण
त, थ, द, ध,न
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व, श
ष, स, ह, ळ, क्ष, ज्ञ
प्रत्येक व्यंजन के ऐसे क का कि की ……इत्यादि की भाँति  (१२) उच्चार ऐसे कुल व्यञ्जनों के उच्चारण ही।
३६x१२= ४३२ हुए। स्वरों के १२ उच्चारण जोडने पर ४४४ हुए।

(दस) संयुक्त व्यञ्जन
संयुक्त व्यंजन जैसे कि क्र, क्ष्व, इत्यादि २५० तक संस्कृत में प्रायोजित होते है।
तो कुल संस्कृत  उच्चारण प्रायः ६९४ हुए। हिंदी में ५५० तक मान सकते हैं।
पर ऐसे संयुक्त व्यञ्जनों को छोड कर भी हम केवल ४४४ उच्चारणों का ही विचार करें, तो भी  हमारी कच्ची सामग्री अंग्रेज़ी से कई गुना अधिक ही मानी जाएगी।
क्यों कि हमारा उच्चारण और अक्षर भिन्न नहीं है। जो लिखा जाता है, वही पढा जाता है। प्रत्येक अक्षर के लिए एक निश्चित मानक उच्चार, और प्रत्येक उच्चार को दर्शाने के लिए अक्षर।
अब उदाहरणार्थ  पाँच पाँच  अक्षरों के शब्द तुलना के लिए बनाते हैं।
कुल पाँच अक्षरों के शब्द = ४४४x४४३x४४२x४४१x४४०= १६८६९४२३१३००००
हिंदी के  कुल ५ अक्षरों के शब्द= १६८६९४२३१३०००० शब्द
अंग्रेज़ी के कुल ५ अक्षरों वाले शब्द= २६x२५x२४x२३x२२=  ७८९३६०० शब्द हुए
हिन्दी के शब्द अंग्रेज़ी की अपेक्षा २१३७१०१ गुणा हुए।

(ग्यारह) हिंदी ५ अलग अक्षर के शब्द उदाहरण :
शब्द में  एक अक्षर एक बार ही प्रयोजा हो, ऐसे शब्द।
उदाहरण देखें :जैसे  (१) उपनिषद (२) अंजनीपुत्र (३) जनकसुता (४) पुराणकथा।
स्पष्टीकरण: (१) उपनिषद शब्द में, उ, प, नि, ष, और द एक एक बार ही प्रयोजा गया है।
ऐसे शब्दों की कच्ची सामग्री की सीमा  की तुलना है।
पर विपरित उदाहरण:  नवजीवन शब्द में न और व दो बार आया है। ऐसे शब्दों को छोडा जाए। शब्द तुलना का नियम दोनों लिपियों के लिए, समान ही रखा है।
अंग्रेज़ी का उदाहरण: CABLE, HINDU, INDUS.

कितना गुणा शब्द होते हैं? आँखे चकाचौंध हो जाएगी।
जिस कामधेनु ने आज तक हमें जो माँगा वह शब्द दिया, और भी देने की क्षमता है उसकी। उसी को डंडा मार कर भगा रहें हैं हम ?
सूचना: किसी भी भाषा विज्ञान की पुस्तक में या नियत कालिक में इस विषय पर आलेख देखा नहीं है। आप ने देखा हो तो सूचित करने की कृपा चाहता हूँ।

9 COMMENTS

  1. देवनागरी लिपि की सामर्थ्य और क्षमता असीम है पूर्णता और वैज्ञानिकता में कोई और लिपि इसके आगे नहीं ठहरती .इसकी विशेषताओं के प्रति सब को सजग कर, प्राचीन विरासत का महत्व और स्वीकार्यता को रेखांकित करने का आपका हर प्रयत्न स्तुत्य है !

  2. सर्वप्रथम मै मधुसुदन जी से क्षमा याचना करता हूँ की मैं टिप्पणी के लिए उनके द्वारा दी गयी मर्यादा का उल्लंघन कर रहा हूँ.ये सत्य है की अंग्रेजी राज में हमारे संस्कृत ज्ञान भंडार को बुरी तरह से लूटा गया.आपके द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड में दस हज़ार ग्रन्थ ‘दान’ देने की जो जानकारी दी गयी है वह वापिस प्राप्त करने के लिए उचित प्रयास होने चाहिए.इसी से मिलता एक उदहारण है. भरद्वाज मुनि द्वारा रचे गए “यन्त्र सर्वस्वं” नामक ग्रन्थ के ‘वैमानिकी’ अध्याय में आठ प्रकार के वायुयान का उल्लेख है और विस्तार से उनके बारे में बताया गया है.उनके आधार पर कार्य करके शिवकर बापूजी तलपडे ने सुब्बराया शास्त्री के सहयोग से मारुतसखा नामक विमान का निर्माण करके 1895 में छुपाती पर उसे १५०० फिट की ऊँचाई तक उडाया.बाद में तलपडे जी का अकाल देहांत हो जाने पर उनके परिवार ने सारा साहित्य रेली ब्रदर्स को बेच

    • कुछ “ए कॉन्साइज़ एन्सायक्लोपिडीया ऑफ ऑथेन्टिक हिंदुइज़म” से पता चलता है; कि एशियाटिक सोसायटी की स्थापना करने में भी, अंग्रेज़ का, गुप्त उद्देश्य था, भारत की पांडुलिपियों को इकठ्ठा करना। २००.००० (दो लाख) पाण्डुलिपियाँ संगृहीत की गयी थी ।इंग्लैण्ड में भी शाखा थीं। मॉनियेर विलियम्स संस्कृत-अंग्रेज़ी-संस्कृत शब्द कोष की प्रस्तावना में, स्पष्ट लिखता है, कि यह शब्द कोष -मिशनरियों को धर्मान्तरण में सहायता, और शासक की सहायता के उद्देश्य से बनाया गया है।—-धन्यवाद गुप्ताजी और वि. शर्माजी।

  3. प्रो० मधुसूदन जी का यह आलेख भी पूर्व के आलेखों की ही भांति बहुत ही ज्ञानवर्धक और रोचक है. इस आलेख को यदि शॊध लेख की उपमा दी जाए तो उचित रहेगा. आलेख के अंतिम ४ उपविषय (आँठ)शब्द रचना की कच्ची सामग्री से लेकर ….. (ग्यारह) हिंदी ५ अलग अक्षर के शब्द उदाहरण, तो मेरे जैसे व्यक्ति के लिए न केवल नए हैं बल्कि बहुत ही ज्ञानवर्धक हैं. इस प्रकार के शोध लेख हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ हम भारतवासियों को भी गर्वान्वित करती हैं की हमारी भाषा कितनी संपन्न है. प्रवक्ता के माध्यम से प्रो० मदुसूदन जी को बहुत बहुत साधुवाद……. !

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