विकास बिहार का : कितनी हक़ीक़त कितना फ़साना

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निर्मल रानी

कल तक देश का सबसे $गरीब व पिछड़ा राज्य कहा जाने वाला बिहार इन दिनों अपने विकास व प्रगति के लिए चर्चा में है। जहां बिहार के पूर्व शासकों को निठल्ला, भ्रष्ट, गैरजि़म्मेदार तथा राज्य के विकास को लेकर गंभीरता न बरतने वाला कहा जाता था वहीं आज के मुख्यमंत्री नितीश कुमार को विकास बाबू और सुशासन बाबू जैसे अलंकरणों से नवाज़ा जा रहा है। राज्य की जनता ने भी पिछले विधानसभा चुनावों में उन्हें पूर्ण बहुमत देकर यह साबित किया है कि नितीश कुमार वास्तव में बिहार को तरक्की की राह पर ले जा रहे हैं और राज्य की जनता उनसे बिहार के विकास को लेकर काफी उम्मीदें लगाए बैठी है। सवाल यह है कि क्या वाकई में बिहार उतना विकास कर रहा है जितना कि प्रचारित किया जा रहा है? क्या बिहार के विकास का सेहरा नितीश कुमार के सिर पर ही बांधे जाने की ज़रूरत है तथा केंद्र की यूपीए सरकार का इसमें कोई योगदान नहीं है? क्या बिहार के विकास की दिखाई देने वाली इमारत बुनियादी तौर पर भी उतनी ही मज़बूत है जितनी कि वह दिखाई दे रही है या दिखाई जा रही है?

दरअसल बिहार के विकास की पहली ईंट उस समय पड़ी था जबकि 2007 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पटना में अप्रवासी भारतीयों के एक सममेलन को संबोधित करते हुए बिहार से ही हरित क्रांति की शुरुआत किए जाने का आह्वान किया था। उस समय बिहार से संबंध रखने वाले अधिकांश अप्रवासी भारतीयों ने साफतौर पर देश व राज्य की सरकार से यह कहा था कि यदि राज्य में बिजली,सडक़,कानून व्यवस्था तथा बाढ़ नियंत्रण जैसे उपाय समुचित तरीके से कर लिए जाते हैं तो अप्रवासी भारतीयों को बिहार में निवेश करने में कोई आपत्ति नहीं होगी। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने उनके इस सुझाव पर अमल करने की कोशिश की। यही नहीं बल्कि केंद्र सरकार ने भी राज्य में कई प्रमुख राजमार्गों को दिल्ली व मुंबई जैसे प्रमुख राजमार्गों के स्तर का बनाकर बिहार की भविष्य रेखा को बदलने का प्रयास किया। आम लोगों में आत्मनिरभर्ता लाने हेतु मनरेगा जैसी योजना केंद्र सरकार ने लागू की जिसका लाभ बिहार के गरीबों को मिलना शुरु हुआ। कस्बों व शहरों में भी पक्की सडक़ों व गलियों के निर्माण की शुरुआत हुई। बाज़ारों में रौनक़ दिखाई देने लगी तथा अच्छे शोरूम व शॉपिंग मॉल आदि नज़र आने लगे। फटेहाल व मैले-कुचैले दिखाई देने वाले $गरीब लोगों के तन पर कपड़े दिखाई देने लगे। स्कूल के अभाव से जूझ रहे विद्यार्थियों को अपने गांव के आसपास ही विद्यालय की सुविधा मिलने लगी। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सप्ताह में मात्र एक से दो घंटा ही बिजली की सप्लाई हुआ करती था वहां अब 24 घंटे में 8या 10 घंटे विद्युत आपूर्ति होने लगी है। लगभग पांच हज़ार से अधिक अराजक तत्वों को जेल की सला$खों के पीछे भेज दिया गया। बाढ़ रोकने हेतु बड़े बांध निर्माणधीन हैं। रेलवे स्टेशन पर आधुनिकीकरण,विस्तार व नए प्लेटफार्म, नए गोदाम आदि बनने लगे हैं। राज्य में तमाम फ्लाईओवर व सबवे निर्माणधीन हैं।

ज़ाहिर है बिहार की उपरोक्त तस्वीर यही बताती है कि निश्चित रूप से बिहार तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है और उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर है। विकास की इस गाथा को लिखने के दौरान ही इत्तेफाक से गत् 22मार्च को राज्य ने अपनी स्थापना के सौ वर्ष भी पूरे किए। गौरतलब है कि बरतानवी हुकूमत ने 22 मार्च 1912 को बंगाल प्रेसिडेंसी से बिहार को अलग कर इसे पृथक राज्य का दर्जा दिया था। इसके सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर बिहार में एक विशाल एवं अभूतपूर्व आयोजन किया गया। जिसमें देश-विदेश के तमाम विशिष्ट लोगों ने भाग लिया। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस अवसर को भी बिहार के विकास की गाथा को प्रचारित करने के अवसर के रूप में चुना। उन्होंने पूरे विश्व से आए अतिथियों को यह समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि बिहार उनके नेतृत्व में तरक्की कर रहा है और वही दरअसल राज्य के वास्तविक विकास बाबू हैं। जबकि बिहार की विकास संबंधी उपरोक्त योजनाएं स्वयं अपने-आप में इस बात का प्रमाण हैं कि राज्य के विकास में जहां राज्य सरकार प्रयासरत है वहीं केंद्र की यूपीए सरकार भी राज्य के विकास के लिए कम गंभीर नहीं है। यह और बात है कि नीतिश कुमार अपने मज़बूत संगठनात्मक ढांचे के दम पर जनता को यह समझाने में सफल हो जाते हों कि विकास बाबू व सुशासन बाबू केवल उन्ही का नाम है।

अपनी विकास गाथा बताने के लिए तथा इसी की आड़ में अगले संसदीय चुनावों की तैयारी करने की गरज़ से मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने इन दिनों बिहार में अपनी ‘सेवा यात्रा’ नामक एक व्यापक जनसंपर्क अभियान छेड़ा हुआ है। इसके अंतर्गत् वे लगभग प्रत्येक जि़ले व प्रमुख कस्बों से होकर गुज़र रहे हैं तथा बिहार के विकास का सेहरा अपने सिर बांधते हुए न सिर्फ अपनी पीठ स्वयं थपथपा रहे हैं बल्कि जनता से भी अपनी पीठ थपथपाने को कह रहे हैं। इसी विकास यात्रा के दौरान गत् दिवस बक्सर जि़ले के चौरा गांव से उनका विशाल का फला गुज़रा। गांववासी सडक़ पर इक होकर मुख्यमंत्री का काफिला रोकना चाह रहे थे तथा उन्हें अपने क्षेत्र से संबंधित बिजली, पानी व सडक़ जैसी बुनियादी समस्याओं से अवगत कराना चाह रहे थे। परंतु मुख्यमंत्री व उनके काफिलासालारों ने उन ग्रामीणों की अनदेखी कर काफिला आगे बढ़ाने की कोशिश की। बस फिर क्या था। ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने मुख्यमंत्री की कार सहित काफिले की तमाम गाडिय़ों पर पथराव शुरु कर दिया। मुख्यमंत्री को सुरक्षित रख पाने में उनके सुरक्षागार्डों को काफी मशक्क़त करनी पड़ी। फिर भी कई वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। यह घटना इस बात का सुबूत है कि राज्य में विकास हो तो ज़रूर रहा है पर निश्चित रूप से विकास का लाभ समुचे बिहार तक अभी भी नहीं पहुंच पा रहा है। इस घटना से एक बात और साबित होती है कि राज्य का विकास उतना नहीं हो रहा है जितना कि प्रचारित किया जा रहा है। और यह भी कि राज्य का विकास शहरों व कस्बों में तो ज़रूर दिखाई दे रहा है परंतु ग्रामीण क्षेत्र अभी भी बिजली, पानी व सडक़ जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

अपने एक पारिवारिक कार्य से पिछले दिनों मुझे बिहार जाने का अवसर मिला। अगस्त 2010 में भी बिहार जाने का मौका मिला था। 2010 में दरभंगा जि़ले के लहेरिया सराय से बहेड़ी की ओर जाने वाला मुख्य मार्ग लगभग निर्मित हो चुका था। तीन दशकों में मैंने पहली बार इस सडक़ पर तेज़ र$फ्तार वाहन चलते हुए देखा था। अन्यथा सडक़ में गड्ढा है या गड्ढे में सडक़ कुछ पता नहीं चलता था। यह सडक़ देखकर आभास हुआ था कि शायद अब बिहार की भाग्य रेखा बदलने वाली है। परंतु इस बार जब पुन: उसी सडक़ पर चलने का अवसर मिला तो यह देखकर अफसोस हुआ कि मात्र दो वर्ष में ही उस सडक़ की हालत पहले जैसी हो रही है। जगह-जगह गड्ढे दिखाई देने लगे हैं। ज़ाहिर है यह निर्माण कार्य में हुए भ्रष्टाचार का ही परिणाम है। दरभंगा, लहेरियासराय व मुजफ्फऱपुर जैसे शहरों में गंदगी का जो आलम पहले हुआ करता था वही आज भी है। नगरपालिका के अंतर्गत आने वाली शहर की एक भी नाली ऐसी नहीं दिखाई दी जिसमें सुचारू रूप से पानी आगे बढ़ रहा हो। बजाए इसके सभी नाले व नालियां जाम पड़े दिखाई दिए। जगह-जगह कूड़े के ढेर नज़र आए। हालांकि कुछ स$फाई कर्मचारी जोकि स$फाई करने में अपनी ड्यूटी निभाने के कभी आदी नहीं रहे वे स$फाई करने का ‘प्रदर्शन’ करते ज़रूर दिखाई दिए। यानी आधा कूड़ा उठाना और आधा रास्ते में गिराना या कूड़े के ढेर पर ही छोड़ देना। कई स्थानों पर वाटर सप्लाई की भूमिगत पाईपलाईन क्षतिग्रस्त दिखाई दी। जिसके परिणामस्वरूप न केवल पीने का पानी व्यर्थ बहता रहा बल्कि सडक़ पर कीचड़ व गड्ढा भी बनता रहा। कई दिनों तक यही दृश्य बना रहा परंतु विकास बाबू के प्रशासन का कोई भी व्यक्ति उस टूटी पाईप लाईन की सुध लेने वाला नज़र नहीं आया।

गंदगी व लापरवाही का यही आलम बिहार में प्राय: कालाज़ार,जापानी बुखार व इंसफलाईटिस जैसी बीमारियों की खबरें लेकर आता है। आमतौर पर बिहार में कहीं भी यह देखा जा सकता है कि गंदगी के बीच में बैठकर खाने-पीने की वस्तुएं बनाने, बेचने व खाने-पीने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। यदि बिहार के विकास की गाथा को संपूर्ण करना है तथा इसे वास्तविक विकास के रूप में प्रदर्शित करना है तो राज्य के प्रशासनिक अमले को नाली, सफाई, सडक़, बिजली व पानी जैसी समस्याओं से तो ईमानदारी से जूझना ही होगा, साथ-साथ बिहार के आम लोगों को भी अपने-आप को जागरूक करना होगा तथा गंदगी व सफाई के बीच के अंतर को गंभीरता से समझना होगा। राज्य की जनता जहां अपने अधिकारों को लेकर इतनी जागरूक दिखाई दे रही है कि वह मुख्यमंत्री के काफिले पर अपनी बातों की अनसुनी होने पर पथराव तक कर सकती है उस जनता को अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करना चाहिए। राज्य के विकास में शासन-प्रशासन तथा जनता की समान भागीदारी बेहद ज़रूरी है। और अगर इनमें सामंजस्य स्थापित हो गया तो बिहार को देश के विकसित राज्यों की श्रेणी में ले जाने से कोई नहीं रोक सकेगा।

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