नरौरा परमाणु संयत्रः विकास का वाहक

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-अमित राजपूत-

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दिन अपनें यौवन पर था। सूरज ठीक सिर के ऊपर, लेकिन शान्त चित्त से ही वो हमें निहार रहा था। पास में एकदम तराई सी ठण्ड। पानी का ज़ोर-ज़ोर से झरना हमें रोमांचित कर रहा था। ऊपर से मस्तानी हवा की दस्तक हमें रूहानी फितरत का अहसास करा रही थी। साथ ही कूलिंग टॉवर को उसके ठीक धरातल से ऊपर की ओर देखने पर हमें भारी रोमांच का अहसास हो रहा था। उसके अन्तिम छोर से पानी की हल्की भाप का इतराकर आकाश को आलिंगन करना हमें उत्साह से भर रहा था और हम उस क्षण आकाश की सीमा में खोये हुये प्रगति के पदचिह्न के साक्षी बने उसे महसूस कर पा रहे थे। वास्तव में इस पल हम सब भारत के सबसे पहले निर्मित पूर्ण स्वदेशी परमाणु विद्युत केन्द्र, नरौरा (एनएपीएस) के कूलिंग टॉवर के ठीक नीचे खड़े हैं।

700 एकड़ में फैले नरौरा परमाणु विद्युत स्टेशन न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ़ इण्डिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) की इकाई है। यह संयंत्र तीन दशकों से भी अधिक समय से पूरी तरह से स्वदेशी ईंधन, यंत्र और वैज्ञानिकों की सहायता से लगातार बिजली उत्पन्न कर रहा है। दिल्ली से तकरीबन 150 किलोमीटर दूर एनएपीएस उत्तर प्रदेश के ज़िला बुलंदशहर के नरौरा शहर में स्थित है। नरौरा परमाणु संयंत्र में दो इकाईयां हैं, जो कि 220 मेगावॉट बिजली प्रति इकाई उत्पादन करती है। नरौरा परमाणु विद्युत स्टेशन के परमाणु रिएक्टर उच्चस्तरीय प्रेशराइज़्ड हैवी वॉटर रिएक्टर की तकनीक पर काम करते हैं।

एक दिन पहले ही भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली का 21 सदस्यीय दल नरौरा परमाणु विद्युत स्टेशन के भ्रमण के लिए निकला था। पूरे दल ने परमाणु स्टेशन के ही गेस्ट हाउस में रात्रि-विराम किया। यहां के आवासीय परिसर ने तो सब का मन ही मोह लिया। दल के एक सदस्य ने तो यहां तक कहा कि हमारा विज़िट कुछ और दिनों तक के लिए बढ़ा दिया जाए तो बेहतर है। वहीं कुछ ने तो सदा के लिए यहीं बसे रहने की मंशा ज़ाहिर की। वास्तव में ये  एनपीसीआईएल के व्यवस्थापन और अनुशासन से उपजी मुग्धता का परिणाम था, जो एकबारगी सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा था, जहां चारो ओर ख़ुशहाली और शान्ति का अहसास सा हो रहा है।

आम तौर पर देखा जाए तो समाज में परमाणु शब्द को ही लोग हौव्वा की तरह समझते हैं। यद्यपि वो अनायास ही इससे भयभीत से होने लगते हैं, क्योंकि इस मामले में अक्सर उनकी निज़ी समझ से ज़्यादा कई तरह की सुनी-सुनाई बातें होती हैं, जो उनके दिमाग़ में घर कर लेती हैं। वास्तव में इस दौरान इनकी मनोवृत्ति का अध्ययन किया जाना चाहिए। तब हम पायेंगे कि उनके इस हौव्वा और अंधकार को समाज से मिटाया जाना बहुत ही ज़रूरी है, ताकि वो चीज़ों को सही तरीके से समझने की क़ाबिलियत हासिल कर सकें, न कि वो परमाणु या इससे संबंधित किसी भी जानकारी को लेकर भ्रम में जीते रहें, और यद्यपि वो स्वयं ही विकास की चाह तो रखें, किन्तु उनके कारकों और सोपानों के प्रति ग़लत धारणा के ग्राही बने रहें। इन सबके लिए उन्हें आवश्यक समझ बनानी होगी और मानसिक रूप से आधुनिक और प्रयोगधर्मी होना पड़ेगा।

केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ़) की कड़ी सुरक्षा जांच के बाद हम सब ज़्यों ही स्टेशन के भीतर प्रवेश किये सबने अपनी बांहें फैला ली। सभी एक क्षण ठहरे, मानों बहुत कुछ आज वो संजो लेने की फ़िराक़ में हों। एक चिरमयी जिज्ञासा जो हम सब के साथ थी, के साथ हम सबसे पहले परमाणु प्रशिक्षण केन्द्र के सेमीनार कक्ष की तरफ बढ़े, जहां पर वरिष्ठ साइंटिफिक ऑफ़ीसर ने हमें परमाणु द्वारा विद्युत उत्पादन से सम्बन्धित तमाम बातें बतायीं, और साथ ही नई-नई जानकारियां भी दीं। उन्होनें बताया कि परमाणु द्वारा बिजली प्राप्त करना कई मायनों में सरल, स्वच्छ, सुविधाजनक और सुरक्षित है। थर्मल पॉवर से इसकी तुलना करते हुए उन्होने कहा कि मोटे-मोटे आंकड़ों में इसे समझें तो एक ग्राम यूरेनियम और तीन टन कोयले से हमें बराबर ऊर्जा प्राप्त होती है। इस तरह से हम कम ईंधन में बहुत ज़्यादा बिजली पैदा कर सकते हैं, वो भी बिना किसी कचरे के। मालूम हो कि हर साल एक हज़ार वॉट का प्लांट चलाने के लिए हमें थर्मल पॉवर प्लांट में 4000 कोयलों से भरी ट्रेने चाहिए, जबकि, परमाणु द्वारा बिजली पैदा करने में पूरे साल भर में मात्र एक ट्रक यूरेनियम ही हमें चाहिए। अब फ़र्ज़ कीजिए कि एक साल में कोयले से फ़्लाई ऐश कितना होगा और हम उसे कहां सुरक्षित कर पायेंगे, वहीं दूसरी तरफ़ हम यूरेनियम के बचे भाग को रिप्रॉसेज़ करके प्लूटोनियम प्राप्त कर लेते हैं जो फिर से अगले पड़ाव या चरण के लिए ईंधन के रुप में प्रयोग किया जा सकेगा।

परमाणु रिएक्टर लगाने के लिए हमें अन्य माध्यमों की अपेक्षा कम स्थान की आवश्यकता होती है। ये अपेक्षाकृत कम जगह में ही सही तरह से संचालित हो सकते हैं। चूंकि भारत में जनसंख्या अधिक होने के कारण हम किसी भी चीज़ के लिए चूज़ी नहीं हो सकते हैं, यानी हमें जो भी मिले उसे सहर्ष या मज़बूरीवश स्वीकार ही करना पड़ता है, न कि हम च्वाईश मांगते हैं। तभी तो यद्यपि भारत दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा बिजली उत्पादन करने वाला देश है, फिर भी हमारे यहां अभी भी तीस फीसदी घरों में बिजली नहीं है। बावजूद इसके हम यूरेनियम से अधिक बिजली पैदा करने की कोशिश में लगे हैं। भविष्य के लिए हमारी सरकार अपनी कूटनीति का अच्छा प्रदर्शन करके ईंधन की व्यवस्था के अच्छे प्रयास में लगी है। साथ ही हम थोरियम के उपयोग वाले रिएक्टरों की भी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जोकि अभी शोध का विषय है। जब ये तकनीकी पूर्ण रुप से विकसित हो जाएगी, तब परिस्थियां हमारे अनुकूल होंगी और तब हम दुनिया के सबसे ताक़तवर देशों में से एक होंगे, क्योंकि पूरी दुनिया के एक तिहाई थोरियम का विशाल भण्डार हमारे पास है।

प्रोजेक्ट से पहले का पापड़ः- परमाणु विद्युत स्टेशनों का निर्माण चट मंगनी और पट ब्याह की तर्ज़ पर नहीं होता है। किसी भी प्रोजेक्ट के शुरुआत से पहले एनपीसीआईएल को कई तरह के प्रयास करने पड़ते हैं, जो उनके हिसाब से बेहद आवश्यक होते हैं। नरौरा स्थित इन्वॉयरमेंट सर्वे लैब के ऑफ़ीसर इंचार्ज़ बताते हैं कि प्लांट के शुरुआत से पहले हम तमाम चीज़ों, जैसे कि यहां के आस-पास की हवा, खाने-पीने की चीज़ें, पशु-पक्षियों, यहां की मिट्टी, पानी व खेत-खलिहानों की विश्लेषणात्मक जांच करते हैं और इस तरह की जांचें फिर से लगातार नियमित तौर पर होती रहती हैं, ताकि आरम्भिक जांच से आज की जांच के अन्तर को समझ कर रेडिएशन को मापा जा सके। इन्वॉयरमेंट सर्वे लैब भारत सरकार की एक स्वायत्त संस्था है, जो भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान के अंतर्गत आती है। अतः ये अपने काम को पूरी सावधानी, निष्पक्षता और विश्वसनियता के साथ पूर्ण करती है।

अब तक हम सबकी उत्सुकता इस ओर बढ़ने लगी कि जब यूरेनियम को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है या जलाया जाता है तो उस दौरान रेडिएशन के कितने ख़तरे रहते हैं और वहां की बनावटें कैसी होती हैं। हमारे एक साथी ने सवाल किया।

“न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ़ इण्डिया लिमिटेड का ध्येय है सुरक्षित तरीक़े से ऊर्जा प्राप्त करना।” नरौरा परमाणु विद्युत केन्द्र के केन्द्र निदेशक डी एस चौधरी का दृढ़ता से जवाब आया. उन्होने आगे कहा कि एनएपीएस की समस्त कार्य-प्रणालियां दक्ष वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों के द्वारा संचालित की जाती हैं।  अत्याधुनिक कंट्रोल रूम चौबीसों घण्टे हर गतिविधियों पर नज़र रखते है। अपने इन्हीं सतत प्रयासों से एनएपीएस ने अपने उत्तम सुरक्षा रिकॉर्ड को बरकरार रखा। अपने कार्यालय में एनएपीएस ने सुरक्षा प्रबन्धन और पर्यावरण संरक्षण में कोई कसर नहीं रखी है। एनएपीएस एशिया में पहला परमाणु संयंत्र है जिसे ‘आईएसओ 14001’ और ‘आईएसओ 180001’ प्रमाण-पत्र प्राप्त हुये हैं। एनएपीएस गुणवत्ता के 6 SIGMA सिद्दान्त का भी पालन करता है, जो इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संयंत्र बनाते हैं।

हमारे साथी के सवाल के उत्तर को और स्पष्ट करते हुये उन्होने बताया कि स्वचालित तरीके से ईंधन को फ़्यूल-चैनल में रखा जाता है। यह पूरा चैनल रिएक्टर के हृदय यानी ‘कैलेण्ड्रिया’ में सुरक्षित तरीक़े से पैक रहता है। इसके बाहर एक मीटर की विशेष कंटेन्मेण्ट वॉल होती है, जिसे हम प्रथम दीवार कहते हैं। इस दीवार के बाहर एक मीटर मोटी ऐसी ही एक दूसरी दीवार होती है, जिसे हम द्वितीय दीवार कहते हैं। इन दोनों दीवारों के बीच में वैक्यूम रखा जाता है। इस तरह इन दीवारों की ताक़त ऐसी हो जाती हैं कि इन पर तेज़ गति के विमान से प्रहार या हिट करानें पर भी ये नहीं टूटती हैं। इसके बाहर भी एक किलोमीटर से भी अधिक का एक्सक्लूज़न ज़ोन होता है, जहां तमाम पशु-पक्षी प्रकृतिक रूप से निवास करते हैं। एनएपीएस में लगभग हज़ार से भी अधिक पशु-पक्षी हैं, जिनमें मोर, कई तरह के बंदर, कुछ प्रवासी पक्षी व तमाम संवेदनशील पशु-पक्षी हैं, जो यहां स्वच्छंदता से निवास करते हैं। एक तरह से यहां का नज़ारा मिनी-सेंचुरी की तरह ही दिखाई देता है। एनएपीएस अपने क्षेत्र के पर्यावरण के संरक्षण और विकास के प्रति प्रतिबद्ध है। पशु-पक्षी एनएपीएस के आसपास जिस स्वच्छंदता से विचरण करते दिखाई देते हैं वह साफ दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रयास सफल और दूसरों के लिए उत्साह वर्धक हैं।

पूरा दल कुछ क्षण बाद मेन कंट्रोल-रूम की ओर बढ़ा। यहां पहुंचने से पहले हमें कुछ सावधानियां लेनी पड़ीं। और विशेष अनुशासन का पालन करना पड़ा। यहां हमने देखा कितना चाक-चौबंध और सतर्कता से हर छोटी-बड़ी चीज़ की निगरानी की जा रही है। यह एक बेहतरीन और स्मार्ट तकनीकी से सुसज्जित कंट्रोल-रूम है। इसके अलावा यहां एक सप्लीमेण्ट्री कंट्रोल-रूम भी है। इसके साथ ही हमने ‘टरबाईन हॉल’ का भी भ्रमण किया, जो हम सब के लिए किसी कौतूहल से कम नहीं था।

आम जन की भागीदारीः- भविष्य में सुरक्षा दृष्टि से और एक अनुशासन बनाये रखने के लिए नरौरा परमाणु विद्युत स्टेशन की तरफ से एक मॉक-ड्रिल करायी जाती है। इसमें प्रायःजनता के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस अधिकारी आदि सभी सम्मिलित होते हैं। इसके लिए नरौरा में कुल आठ अलग-अलग सेक्टर निर्धारित किये गये हैं। हर दो साल में एक-एक सेक्टर का बारी-बारी अभ्यास कराया जाता है। इसमें उस सेक्टर की पूरी आबादी की हिस्सेदारी होती है। हांलांकि, चूंकि ड्रिल शब्द से लोगों में कई तरह के भ्रम भी पैदा होते हैं। इसलिए अब इसे मॉक-ड्रिल से नाम बदलकर एक्सरसाईज़ कर दिया गया है।

 

परमाणु बिजलीघर किसी भी तरह के कोई ख़तरनाक रेडिएशन नहीं पैदा करता है, जो हानिकारक हो। इससे इतर

हमारे समाज में हर जगह प्रकृतिक रूप से मौजूद रेडिएशन हैं, लेकिन हम उनसे भयभीत नहीं होते हैं। शायद आपको जानकर ये आश्चर्य होगा कि एक पके केले में भी रेडिएशन की कुछ मात्रा होती है, लेकिन हम उसे चाव से खा लेते हैं। परमाणु बिजली घर अत्यन्त सुरक्षित तरीक़े से काम करते हैं और बहुत ही नियोजित तरीक़े से बिजली का निर्माण करते हैं। फिर बिजली घर से कैसा डरना..? हमें किसी भी तरह की अफवाहों से दूर रहना चाहिए तथा असल में अणु शक्ति की ताक़त और उपयोगिता को समझना चाहिए, ताकि मानव जाति का विकास हो सके।  हम इन सबके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि विभिन्न प्रकार के जन जागरुकता कार्यक्रमों से लोगों के मन के डर को दूर कर सकें।

-अमृतेश श्रीवास्तव-

मैनेजर(कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन्स)

न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ़ इण्डिया लिमिटेड, मुम्बई।

 

रेडिएशन से डर कैसाः- व्यक्ति को हमेशा कुछ न कुछ जानते रहने चाहिए। हमारी भी आंखे खुल गयीं थी रेडिएशन के इस पैमाने को देखकर। इसलिए हमें कई तरह के भ्रम और ग़लत जानकारियों के चंगुल से बचने के लिए सही ज्ञान को तुरंत ग्रहण कर लेना चाहिए। इन्वॉयरमेंट सर्वे लैब में कार्यरत अन्य साइंटिफिक ऑफीसर बताते हैं कि 2400 माइक्रो सीवर्ट का रेडिएशन हमें आमतौर पर बिना किसी प्लांट आदि के मिलता है। इसके अलावा अन्य स्रोतों से मिलने वाले रेडिएशन को हम आगे देख सकते हैं। अधोलिखित स्रोत निम्नलिखित स्तर में रेडिएशन पैदा करते हैं-

कंक्रीट का घर- 70 से 100 मिलीरैम/वर्ष

ईंट की दीवार- 50 से 100 मिलीरैम/वर्ष

सूर्य- 45 मिलीरैम/वर्ष

लकड़ी का घर- 30 से 50 मिलीरैम/वर्ष

पानी/भोजन/हवा- 25 मिलीरैम/वर्ष

एक्स-रे- 20 मिलीरैम/वर्ष

ज़मीन- 15 मिलीरैम/वर्ष

न्यूक्लियर पॉवर प्लांट- 01 मिलीरैम/वर्ष

इसमें भी न्यूक्लियर पॉवर प्लांट द्वारा उत्सर्जित रेडिएशन की लगातार जांच होती रहती है और इसे भी नियंत्रित करने के लगातार प्रयास जारी रहते हैं। अतः हम यह कह सकते हैं परमाणु रिएक्टर से न के बराबर रेडिएशन उत्सर्जित होता है।

इस प्रकार, हमने महसूस किया कि किस प्रकार अज्ञानता और रूढ़िवादिता की ज़ंजीरों में जकड़े हुये लोग विकास की सही परिभाषा को सही तरह से आत्मसात नहीं कर पाते हैं। ऐसे में आज ज़रूरत है इस ज़ंजीरों को तोड़ने की, ताकि हम लोगों को सही तरह से जानकारी देकर उनका ज्ञानवर्धन कर सकें और उनको भी देश की प्रगति में योगदान देने के लिए आमंत्रित कर सकें। तभी राष्ट्र उन्नति के पथ पर सच्चे अर्थों में अग्रसर हो सकेगा।

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अमित राजपूत
जन्म 04 फरवरी, 1994 को उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर ज़िले के खागा कस्बे में। कस्बे में प्रारम्भिक शिक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास और राजनीति विज्ञान विषय में स्नातक। अपने कस्बे के रंगमंचीय परिवेश से ही रंग-संस्कार ग्रहण किया और इलाहाबाद जाकर नाट्य संस्था ‘द थर्ड बेल’ के साथ औपचारिक तौर पर रंगकर्म की शुरूआत की। रंगकर्म से गहरे जुड़ाव के कारण नाट्य व कथा लेखन की ओर उन्मुख हुए। विगत तीन वर्षों से कथा लेखन व नाट्य लेखन तथा रंगकर्म के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों में सक्रिय भागीदारी, किशोरावस्था से ही गंगा के समग्र विकास पर काम शुरू किया। नुक्कड़ नाटकों व फ़िल्मों द्वारा जन-जागरूकता के प्रयास।

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