धर्म है सिखाता, आपस में प्यार करना

पद्मश्री खालिद जहीर

Are-You-Kidding-Me-350x151आज भारत जहां खड़ा है, वह इस बात का प्रमाण है कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी प्रान्त का हो या किसी भी मजहब से सम्बन्ध रखता हो या किसी भी भाषा को बोलता हो, वह अपनी भरपूर मेहनत से इस देश को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे रहा है।

भारत एक मिश्रित आबादी का देश है, जहां विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग, विभिन्न जातियों और भाषाओं के बोलने वाले लोग और विभिन्न पहनावा और खान-पान वाले लोग, एक साथ मिलकर रहते हैं। यहां की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इसकी सीमाओं के पार से अलग-अलग समय में बडे़-बड़े साम्राज्य, कबीले, धार्मिक गुरु अपनी-अपनी सभ्यताओ जनसंख्या और अकीदों के साथ, यहां पर आए और फिर यहीं के हो लिए और इस तरह से यहां की सभ्यता एक मिश्रित सभ्यता बनी जैसे कि एक बगीचे में तरह-तरह के फूल अपनी खुशबू महकाते हैं। इसी तरह यह देश भिन्न-भिन्न लोगों के साथ आगे बढ़ता रहा। देश की कुल जनसंख्या में, जहां 80 प्रतिशत हिन्दू हैं, वहीं 14 प्रतिशत मुसलमान, 2 प्रतिशत सिक्ख, 2 प्रतिशत ईसाई और शेष 2 प्रतिशत में जैन, यहूदी, पारसी इत्यादि लोग आते हैं। यह सब मिलकर पूरे देश की सभ्यता को बहुरंगी बनाते हैं।

हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण आयोजन महाकुम्भ के रूप में होता है, जो हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक, उज्जैन में होते हैं। एक ही स्थान पर यह 12 साल के अन्तराल पर आयोजित होते हैं और यहीं से हिन्दू धर्म की विचारधारा और रोशनी समस्त विश्व में पहुंचती है। अप्रैल 2010 में हरिद्वार में महाकुम्भ सम्पन्न हुआ, जिसमें देश-विदेश से साधु-सन्त यहां पर आए और मां गंगा का आचमन किया। इतना बड़ा आयोजन जो जनवरी 2010 से शुरू होकर, मई 2010 तक चला, जिसमें लगभग 3 करोड़ श्रद्धालुओं ने हरिद्वार में गंगा की पूजा-अर्चना की। इसमें शासन-प्रशासन स्थानीय राजनीतिक पार्टी व हर धर्म के लोगों का सहयोग पूरे श्रद्धा भाव से रहा। स्थानीय तीनों मुस्लिम विधायको ने अपनी पूरी क्षमता से कोशिश की, कि यह आयोजन सफल रहे और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बना रहे। श्रद्धालुओं का परिचय हरिद्वार की जनता से रेलवे स्टेशन व बस स्टेशन से उतरते ही होता था। चाहे वो कुली के रूप में हो, रिक्शा तांगा चलाने वाले के रूप में हो। हिन्दुओं के साथ-साथ मुसलमानों ने भी सेवा भाव से, इन श्रद्धालुओं को अपने-अपने मुकाम तक पहुंचने में मदद की। खाने-पीने की आपूर्ति, दूध की आपूर्ति, फलो और सब्जियों की आपूर्ति में इस जनपद के मुसलमानों और सिक्खों का योगदान उतना ही था, जितना कि हिन्दुओं का। जब पेशवाई निकलने का सिलसिला शुरू हुआ, तो सब लोग यह देखकर दंग रह गए, कि जूना अखाड़े की पेशवाई में ज्वालाफर के मुसलमानों ने जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी महाराज का किस कदर बढ़-चढ़ कर स्वागत व सम्मान किया। यह देखते ही बनता था। इसी तरह से और भी जब पेशवाइयां निकलीं और मुस्लिम क्षेत्र से गुजरीं, तो मुकामी मुसलमानों ने इनका बड़ी मौहब्बत और सम्मान के साथ स्वागत किया। यह भी खास बात है कि इन मुसलमानों की पहल को हिन्दू पेशवाइयों ने भी बहुत खुशी से स्वीकार किया। यह एक ऐसा कदम था, कि जो साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया और हमेशा तारीख में स्वर्ण अक्षरों में याद किया जाएगा।

यही माहौल और नजारा, हमें प्रति वर्ष कांवड़ मेले के दौरान भी नजर आता है। यह मेला श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में आता है। सावन की रिमझिम बारिश में श्रद्धालु हरिद्वार के गंगा तट से पानी भर कर कांवड़ को अपने कंधो पर रखकर हरिद्वार से अपने-अपने शिवालयां में ले जाकर जल चढ़ाते हैं। इसमें जहां आस-पास के इलाके के लोग हरिद्वार आते हैं, वहीं राजस्थान, हरियाणा और पंजाब से भी लोग आकर यहां से जल ले जाते हैं और पूरा रास्ता पैदल चल कर काटते हैं। इस पूरे आयोजन में मुसलमानों का बहुत बड़ा योगदान रहता है। कांवड़, जिसे श्रद्धालु कन्धों पर रख कर चलते हैं और जिसके दोनों तरफ जल से भरे लोटे होते हैं। वह कांवड़ ज्यादातर मुसलमान ही बनाते हैं और इसमें व्यवसायिक पहलू के साथ-साथ श्रद्धा और जज्बाती ताल्लुक भी रहता है। इतना लम्बा एरिया पैदल चल कर गुजरने में जगह-जगह मुस्लिम संगठन, इनका स्वागत और जलपान का आयोजन भी करते हैं। इन पन्द्रह दिनांे में पूरे इलाके मे सौहार्द्रपूर्ण माहौल बनाये रखने में प्रशासन के साथ-साथ मुसलमानों का भी एक अहम रोल होता है।

उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री की तीर्थ यात्रा, हिन्दुओं के लिए पूरे जीवन की एक ऐसी तमन्ना होती है, जिसे पूरा करने के लिए हर आस्थावान पूरी कोशिश करता है। इसी यात्रा मंे बद्रीनाथ के पास सिक्खों का महत्वपूर्ण गुरुद्वारा हेमकुंड साहब है और हरिद्वार के पास मुसलमानों का कलियर शरीफ भी है। इन सभी स्थानों की यात्रा के आयोजन में और कलियर शरीफ के मेलों में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख और ईसाइयों का बराबर का सहयोग रहता है। भारत में ही कश्मीर प्रान्त है और वहां बहुत महत्वपूर्ण तीर्थ अमरनाथ गुफा के रूप में जाना जाता है। यहां कुदरती शिवलिंग के उत्पन्न होते ही दो कबूतर भी प्रकट हो जाते हैं। इसकी खोज कश्मीर के एक मुस्लिम गड़रिए ने की थी और आज भी उस मुस्लिम परिवार का हिस्सा बहैसियत फजारी के रूप में रहता है।

राजस्थान स्थित अजमेर शरीफ में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हर धर्म के लोग हाजिरी देते हैं। दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह सब लोगों की आस्था का एक ऐसा मकाम है, जहां पर भारत के कोने-कोने से लोग आकर, अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की दुआएं मांगते हैं। सिक्खों की आस्था का सबसे महत्वपूर्ण मन्दिर अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर है, जहां पर विश्व के हर कोने से सिक्ख माथा टेकने आते हैं। इस स्वर्ण मन्दिर के निर्माण में मुसलमानों का काफी बड़ा योगदान रहा था। यहां तक की इसकी बुनियाद भी एक मुस्लिम सन्त हजरत मियां मीर जी ने दिसम्बर, 1588 मंे रखी थी।

दक्षिण भारत में अगर देखें, तो यहां लार्ड अयप्पा को समर्पित साबरीमाला मन्दिर की बहुत ख्याति है। इसकी एक खास बात यह है कि इसी के पास एक मस्जिद है, जो कि एक मुस्लिम सूफी की याद में बनी हुई है और पूरी तीर्थ यात्रा में इसे भी सम्मिलित किया जाता है। पश्चिम में भारत की पहचान सोमनाथ मन्दिर के रुप में होती है। यह गुजरात के जूनागढ़ जनपद में है। महाराष्ट्र में गणपति पूजा का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। मुम्बई में ही हाजीअली की दरगाह पर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई अपनी मुरादो को हासिल करने के लिए दुआंए मांगने जाते हैं।

पश्चिम में नासिक में महाकुम्भ का आयोजन हर बारह साल बाद होता है। यह मेला गोदावरी नदी पर होता है और ऐसा मानना है कि भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी ने, यहां के तपोवन में 14 वर्ष वनवास के गुजारे थे और इसीलिए इसकी महत्वता बहुत बड़ी है। महाराष्ट्र में अजंता और ऐलोरा विश्व प्रसिद्ध गुफाएं हैं, जिनसे हमें इतिहास का पता चलता है।

बंगाल, असम और पूर्वी उत्तर के प्रान्तों में दुर्गा पूजा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। और इन्हीं दिनों में शेष भारत में दशहरा मनाया जाता है। दुर्गा पूजा के भव्य पंडाल सजाए जाते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजन आयोजित होते हैं। इसमें बहुत से आयोजक इस्लाम धर्म से सम्बन्धित हैं।

भारत के चार धामों में से एक धाम पूरब में पूरी मे स्थित है, यहां पर जगन्नाथ मन्दिर, इतना भव्य मन्दिर है कि पूरे विश्व से लोग इसे देखने आते है। इसी प्रान्त में कोणार्क में माघ मेला जनवरी के महीने में आयोजित होता है। यहां का सूर्य मन्दिर प्रसिद्ध है।

आज भारत जहां खड़ा है, वह इस बात का प्रमाण है कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी प्रान्त का हो या किसी भी मजहब से सम्बन्ध रखता हो या किसी भी भाषा को बोलता हो, वह अपनी भरपूर मेहनत से इस देश को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे रहा है।(भारतीय पक्ष)

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