ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई !

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ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई,
बना ऋषि घुमाया है हर कोई;
ख़ुद छिपा झाँकता हृदय हर ही,
कराता खोज स्वयं अपनी ही !

पूर्ण है पूर्ण से प्रकट होता,
चूर्ण में भी तो पूर्ण ही होता;
घूर्ण भी पूर्ण में मिला देता,
रहस्य सृष्टि का समझ आता !

कभी मन द्रष्टि की सतह खोता,
कभी आभोग को पटक देता;
कभी तृण के लिये तरस जाता,
कभी सब छोड़ कर चला जाता !

शून्य में अनन्तित कभी होता,
चित्त की तलहटी कभी सोता;
चिता पर लेट कर कभी तकता,
नियन्ता विश्व का कभी बनता !

प्रबंधन कराता कभी करता,
राय दे ले के कभी वह चलता;
कभी सुनता भी कहाँ है ‘मधु’ की,
कभी कर देता वह है हर उर की !

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