लोग अपने व्यस्त जीवन से कुछ पल चुरा कर हंसना – हँसाना चाहते हैं और इसके लिए वो टी वी पर प्रसारित होने वाले कॉमेडी शो को देखते हैं लेकिन क्या सही मायनों में आज के हास्य शो को देख कर दर्शक हँसते हैं या उन्हें द्विअर्थी संवादों को झेलना पड़ता है. पूरा परिवार एक साथ बैठकर इन शो को नही देख सकता अगर देखने बैठे तो उसे अगल — बगल झांकना पड़ता है या फिर शो के बीच में से उठना पड़ता है. पहले ऐसा तब होता था जब लोग अंग्रेजी फ़िल्में देखते थे जिसमें कभी भी कुछ ऐसे द्रश्य आ जाते थे जब साथ बैठे लोग एक दूसरे को इग्नोर करते थे.
क्या विशुद्ध हास्य नही दिखा सकते कार्यक्रम के निर्माता ? अगर ऐसा नही कर सकते तो उन्हें इन कॉमेडी शो को वयस्कों के लिए देर रात्रि में ही प्रसारित करना चाहिए. फूहड़ व अश्लील हास्य देख कर कई बार तो हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारा स्तर क्या इतना गिर गया है कि हम इस तरह के कार्यक्रमों को दिखाने पर मजूबर हो गये हैं.
एक समय था जब अश्लील संवादों के लिए लोकप्रिय मराठी अभिनेता दादा कोंडके और हमारी हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय संवाद लेखक व अभिनेता कादर खान के संवाद भी किसी किसी फिल्म में द्विअर्थी व अश्लील होते थे लेकिन अब तो उनके संवाद भी इन हास्य शो के सामने साफ़ सुथरे नजर आते हैं. आज ऐसा लगता है कि हर कोई दादा कोंडके व कादर खान से टक्कर लेने में लगा है इस टक्कर में फंस गये हैं दर्शक व इस कार्यक्रम में अभिनय करने वाले अभिनेता. जो कि इसमें अभिनय तो कर रहे हैं लेकिन उनको रचनात्मकता संतुष्टि नही मिलती. वो खुद अपने परिवार के सामने इनको नही देख सकते, देखते हैं तो छिपते छिपाते. जैसे कि कोई पोर्न फिल्म देख रहे हैं. आज के कॉमेडी शो ऐसे हो गये हैं जैसे हम सेक्स जोक सुन व देख रहे हों. कई कलाकार इसमें काम तो कर रहे हैं लेकिन उनका मन गंवारा नही कर रहा है कि वो लगातार इससे जुड़े रहेगें.
मर्दों का महिला बनना और महिलाओं का मर्द की वेश – भूषा में अभिनय करना कोई बुरा नही है लेकिन ऐसे संवाद बोले जाते हैं जिन्हें सुनकर हसीं नही आती बल्कि ऐसा लगता है कि हम भरे पूरे कपडे पहने अभिनेताओं को किसी सेक्स चैनल पर देख रहे हों. अब इस कार्यक्रम के निर्माता व निर्देशक कहेगें कि आपके हाथ में रिमोट है तो क्यों नही चैनल बदल लेते. हाँ बदल सकते हैं चैनल लेकिन क्या यही तरीका है बस इस समस्या से निपटने का कि बस “कबूतर की तरह आँख मूँद लो”. कुछ समय पहले तक तो इस हास्य शो का हिस्सा एक छोटी बच्ची सलोनी भी थी न तो कार्यक्रम के निर्माताओं को समझ में आता था और न ही उसके मम्मी पापा को कि इस तरह के अश्लील व फूहड़ हास्य के शो में क्यों उस छोटी बच्ची को उन्होंने शामिल किया था.
हमने कॉमेडी का मतलब बस सेक्स कामेडी ही समझ लिया है इससे परे हास्य हमें हास्य नज़र ही नही आता. “क्या कूल हैं हम” और मस्ती आदि फ़िल्में भी इसी तरह की फ़िल्में थी. इन हास्य कार्यक्रमों में एंकर लड़की हमेशा ऐसे कपडे पहन कर आती है जिसमें उसकी पैर आधे से ज्यादा नज़र आते हैं और उस पर हर कलाकार उसके पैरों के बारे में ही ऐसी — ऐसी कॉमेडी करता था कि पूछो मत.
ये सारे अश्लील हास्य शो पाकिस्तान के कॉमेडी शो “बकरा किस्तों पर” को ही आधार मान कर बनाए गये हैं. पाकिस्तान का यह शो एक समय था जब बहुत ही लोकप्रिय था और इस कार्यक्रम में कलाकार उमर शरीफ अश्लीलता की कई हदें पर पार कर जाते थे.