आरक्षण विरोध के बाद प्रकाश झा की सत्याग्रह

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प्रकाश झा निर्देशित बहुचर्चित मूवि सत्याग्रह 23 की जगह 30 अगस्त को रिलीज हो रही है। 27 फरवरी 1952 को बिहार के चंपारण में जन्में प्रकाश झा ने अबतक राजनीति, अपहरण, चक्रव्यूह, गंगाजल और आरक्षण जैसी कुछ फिल्मों का निर्माण किया है जिसने समाज में बदलाव की साक्षी रही। आपको याद होगा आरक्षण मूवि को लेकर देश में ऐसा हो होल्ला और विरोध का स्वर फूटा की मानों चारो तरफ आरक्षण मूवि रिलीज होने से दंगा हो जायेगा। इसका विभिन्न पार्टियों ने विरोध किया। कुछेक सरकारों ने तो कमेटी तक बना दी फिल्म रिलीज को लेकर और सरकार ने फिल्म देखकर उसे रिलीज करने दिया और किन्हीं राज्यों ने रिलीज पर रोक तक लगा दी। मान लीजिये अगर कोई पत्रकार स्टिंग आॅपरेशन भी करें और प्रकाशित अथवा प्रदर्शन से पहले ही उसका संक्षिप्त रूप अभियोजन पक्ष को दिखला भी दे तो आप स्वयं समझ सकते है कि उस खबर का हमारे देश में क्या होगा। कुछ यही हाल आरक्षण का हुआ था। आरक्षण के ट्रेलर में उन बातों को शामिल कर लिया गया था जो उस फिल्म के प्रकाश स्वरूप थे। जिनसे समाज में असर पैदा किया जाना था। लेकिन सिर्फ ट्रेलर देखकर ही कुछेक समूहों ने इसका विरोध कर दिया और विरोध भी ऐसा की फिल्म को हानि ही उठानी पड़ी। अगर फिल्मों को समाज में सबसे अधिक असरकारक माना जाये तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि वास्तव में सिनेमा में बैठा दर्शक वह सबकुछ देखता, ग्रहण करता है जो फिल्मकार उसे दिखाना समझाना चाहता है। वास्तव में फिल्म के जो उद्देश्य होते है वह देखने वालों से निर्माता वसूल कर ही लेता है। चाहे वह पैसा हो अथवा विचार संक्रमण के माध्यम से अन्य लाभ। विदेशी फैशन, प्रोडक्ट्स के मार्केट विस्तार के लिए आज भी विदेशी कंपनीया हाॅलीवुड अथवा बाॅलीवुड अथवा अन्य देशों के के फिल्मों का सहारा लेती है ताकि फिल्म में प्रदर्शित किये जाने वाले प्रोडक्ट्स, स्टाइल, फैशन अथवा अन्य वैचारिक उद्देश्य की पूर्ति हो सके और उनके हित सध सके। फिल्में अगर समाज के मानसिक पटल पर असरदार न होती तो फिर आखिर क्यों विधु विनोद चोपड़ा की ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ देखकर भारत के अनेक क्षेत्रों में लाल गुलाब दिये गये। पूरा वातावरण गांधीमय हो गया था। अहिंसा का अनुसरण पर अनुसरण होने लगा था। भारत में अनेकों ऐसी फिल्में बनी जिनकी मिशाल आज भी दी जाती है। पूरब और पश्चिम, तिरंगा, क्रान्तिवीर, मदर इंडिया, क्रान्ति, श्री 420 आदि। कुछ इसी प्रकार की फिल्मों का निर्माण प्रकाश झा ने भी किया। इसी परिप्रेक्ष्य में हो सकता है इनकी गंगाजल और अपहरण ने बिहार में सुशासन की चमक जगाने में योगदान दिया हो। कई प्रकार के उद्देश्यों को रेखांकित करके फिल्मों का निर्माण किया जाता है। कुछ फिल्में मसाला वाली होती है जिनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ पैसा बनाना होता है। कुछ फिल्में ऐसी होती है जिनका उद्देश्य पैसा बनाना तो होता ही है परन्तु उस फिल्म से निर्माता अथवा उस फिल्म के अपने कुछ भावनात्मक उद्देश्य भी जुड़े होते है जो समाज तक पहुंचाने के लिए लिखे अथवा गढ़े गये होते है। प्रेमचंद, मंटों की कहानियां भी स्वतंत्रता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों के हौसला बढ़ाने के उद्देश्य से लिखी गयी थी और अंग्रेजों ने उनको प्रतिबंधित भी किया था। मान लीजिये अगर इन लेखकों ने अपनी कहानियों को प्रकाशित होने से पहले इनके किताबों के सरांशों को अंग्रेजों तक पहुंचाया होता तो क्या उनकी किताबें जो इनके द्वारा चाही गयी मुलरूप में हमारे पास है होती। शायद नहीं। उसी प्रकार प्रकाश झां ने जो आरक्षण मूवि बनाया अगर वे आरक्षण के ट्रेलर को सही तरीके से बनाते मतलब ट्रेलर में उन विध्वंशक बातों को न समाहित करते जिनकों समाज गलत अर्थों में लेता तो निश्चय ही आरक्षण अपने मुल रूप में दर्शकों के सामने होती। केवल ट्रेलर से ही सभी पक्षों को नहीं जाना जा सकता। ढाई घंटे के मूवि के अर्थ को ढाई मिनट में समझना कुछ उसी प्रकार होगा जैसे घर पर बैठकर समुद्र के किनारे के सुहाने वातावरण की महक सुंघना। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आरक्षण अपने असली रूप में रिलीज हो जाती अगर ट्रेलर को उत्तेजक न बनाया गया होता। जब ट्रेलर देखकर पूरी कहानी समझ में ही नहीं आनी है तो आखिर ट्रेलर में उन प्रसंगों को समेटने का मतलब ही क्या था जिसका समाज गलत अर्थ निकालें और विरोध के स्वर फूटने शुरू हो।
सत्याग्रह के ट्रेलर रिलीज हो चुके है। आने वालों हफ्तों में रिलीज होगी। आरक्षण जैसी तो नहीं लेकिन इस फिल्म को लेकर भी कुछेक मामले सामने आने लगे है। प्रकाश झा टीम ने समाज सेवी अन्ना हजारे को ट्रेलर दिखाने से मना कर दिया है। फिल्म में अन्ना हजारे, केजरीवाल और हाल के वर्षों में हुये आन्दोलन को लेकर एक प्रकार का क्लाइमेक्स बनना शुरू हो गया। सूत्रों से खबरे आ रही है कि टीम अन्ना सत्याग्रह रिलीज होने से पहले देखना चाह रही है। टीम को डर है कि कहीं पर्दें पर अन्ना हजारे को गलत ढंग से न पेश कर दिया जाए। प्रकाश झा हालांकि टीम अन्ना के आग्रह हो स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। अनुमान लगाये जा रहे है कि कि सत्याग्रह अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलनों पर बनी है।

विकास कुमार गुप्ता,

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