जम्मू कश्मीर की चर्चा में ज़रुरी है उसका भूगोल जानना

kashmir डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

जम्मू कश्मीर आजकल फिर चर्चा में है । जिस प्रकार बिहार लालू प्रसाद यादव के कारण चर्चा में रहता है , उसी प्रकार जम्मू कश्मीर आम तौर पर अब्दुल्ला परिवार के कारण चर्चा में रहता है । अब्दुल्ला परिवार का वंश वृक्ष तो पुराना ही होगा , लेकिन इस परिवार के जो सज्जन चर्चित हुए वे शेख अब्दुल्ला थे । बक़ौल शेख अब्दुल्ला , वे गोत्र से क़ौल हैं , लेकिन अरसा पहले नाम के साथ क़ौल लिखना छोड़ दिया । अब यह परिवार फैल गया है , इसलिये जम्मू कश्मीर की चर्चा भी फैल गई है । अरसा पहले जब फारुक अब्दुल्ला ने अपने पिता शेख अब्दुल्ला की मुख्यमंत्री की गद्दी विरासत में संभाली थी तो वे शबाना आजमी को श्रीनगर में मोटर साईकिल पर घुमा कर राज्य को चर्चा में बनाये रखते थे । लेकिन चर्चा के वे तरीके अब पुराने पड गये हैं । इसलिये परिवार ने नये तरीके खोजे हैं । फ़ारूक़ अब्दुल्ला के भाई मुस्तफा कमाल जब कभी बोलते हैं तो कमाल करते हैं । हर बार नई चर्चा को जन्म देते हैं । फ़ारूक़ के बेटे आजकल जम्मू कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री हैं । वे भी इस चर्चा को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । लेकिन उनका यह सब कुछ करने का अपना तरीक़ा है । वे निश्चित अवधि के बाद राज्य की विधान सभा में रोते हैं । इस बार वे फिर रोये । रोने का यह अवसर उन्हें अफ़ज़ल गुरु की मौत ने प्रदान किया । “अफ़ज़ल साहिब” की मौत पर नैशनल कान्फ्रेंस के कुछ और लोग भी उत्तेजित हुये , लेकिन वे रोने की सीमा तक नहीं गये । यह उत्तरदायित्व केवल मुख्यमंत्री ने निभाया । नैशनल कान्फ्रेंस के महासचिव , जिन मुस्तफा कमाल की हम ने चर्चा की है , उन्होंने “अफ़ज़ल साहिब” की मृत्यु पर अपनी उत्तेजना कुछ दूसरे ढंग से व्यक्त की । वे अपने पुश्तैनी घर से पुराना वाद्य यंत्र उठा लाये और उस पर अपना ख़ानदानी “जनमत संग्रह” का गीत बजाना शुरु कर दिया । इस गीत की रचना और इसे लय से संवारने का काम उनके पिता शेख अब्दुल्ला ने आधी शताब्दी से भी पहले किया था । तब उनके मित्र पंडित जवाहर लाल नेहरु ने इसकी धुन बजाई थी । इसे भी जम्मू कश्मीर का संयोग ही कहना होगा कि पंडित नेहरु भी शेख अब्दुल्ला की तरह कश्मीर के क़ौल ही थे । लेकिन जम्मू कश्मीर विधान सभा ने जब रियासत के भारत में विलय का अनुमोदन कर दिया तो नेहरु भी इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर लोगों की राय से आत्म संतुष्ट हुये और उन्होंने इस गीत की धुन बजाना बंद कर दिया था । लेकिन अब्दुल्ला परिवार को पुरानी चीज़ों का मोह ज़्यादा है , इसलिये उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य इस गीत को बीच बीच में बजा कर राज्य के लोगों को पुरानी यादों में ले जाने का प्रयास करता रहता है । लेकिन आश्चर्य है उन्हें कभी अपने क़ौल वंश की याद नहीं आती , जबकि वह भी उनके परिवार की पुरानी निशानी है । शायद इसलिये कि इससे उन्हें कोई राजनैतिक लाभ नहीं हो सकता । एक वक़्त था जब शेख अब्दुल्ला अपने आप को कश्मीरी अवाम का पर्यायवाची मानते थे और पंडित नेहरु इस धारणा को देश भर में फैलाने का काम करते थे । खुदा का शुक्र है कि अब उनके वंशज कम से कम यह बहम नहीं पालते । जब कमाल पुराना गीत गाते हैं और उनके भतीजे रोते हैं तो देश का मीडिया “आदमी ने कुत्ते को काटा” के स्वभाव के कारण इसे कश्मीर समस्या कह कर उमर के रोने की आबाज से भी ज़्यादा ऊंचे स्वर में क्रन्दन करता सुनाई पड़ता है । ऐसी स्थिति में जम्मू कश्मीर का आम आदमी इस पूरे घटनाक्रम को देख कर सिर धुनता है । क्योंकि राज्य के जिस आम आदमी के नाम पर यह सब कुछ किया जा रहा है , उसमें राज्य का वह आम आदमी कहीं है ही नहीं ।  यही  इस पहेली का रहस्य है । यह रहस्य जम्मू कश्मीर राज्य की सबसे बड़ी समस्या है । “बूझो तो जानो” की तर्ज पर जब इसको बूझ लिया जायेगा तभी समस्या का अन्त भी हो जायेगा । यह पहेली बूझने के लिये राज्य का भूगोल और डैमोग्राफी समझना ज़रुरी है ।

 

राज्य का भूगोल — जम्मू कश्मीर राज्य में भौगोलिक लिहाज़ से पाँच अलग अलग समूह हैं जिनका आपस में केवल इतना ही सम्बध है कि उनको महाराजा गुलाब सिंह ने एक रियासत का हिस्सा बना दिया था । ऐतिहासिक दृष्टि से डोगरा राजवंश इन पाँच अलग अलग भौगोलिक खंडों को आपस में एक राज्य में बने रहने का आधारभूत एकता सूत्र था । इन पाँचों खंडों की भाषायी व सांस्कृतिक पहचान एक दूसरे से भिन्न है ।

१ जम्मू अथवा डुग्गर प्रदेश – जम्मू कश्मीर राज्य का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जम्मू कहलाता है , जिसे पुराने ग्रन्थों में डुग्गर प्रदेश भी कहा जाता है । राज्य में आम बोलचाल में इसे जम्मू संभाग या जम्मू प्रान्त अथवा जम्मू प्रदेश के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है । राज्य की सर्दियों की राजधानी जम्मू नगर ही है और इन दिनों सरकार का मुख्यालय भी जम्मू स्थानान्तरित हो जाता है । जम्मू प्रदेश में कुल दस ज़िले हैं । जम्मू , सांबा , कठुआ,उधमपुर , डोडा, पुंछ , राजौरी , रियासी , रामबन और किश्तबाड । जम्मू क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल ३६३१५ वर्ग किलोमीटर है । लेकिन इसके लगभग १३२९७ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर पाकिस्तान ने बलपूर्वक क़ब्ज़ा किया हुआ है । यह क़ब्ज़ा उसने १९४७-४८ की लड़ाई में ही कर लिया था । जम्मू का मीरपुर पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है । इसी प्रकार पुँछ शहर को छोडकर बाक़ी सारी पुंछ जागीर पाक के क़ब्ज़े में ही है । मुज्जफराबाद भी सारा पाक के क़ब्ज़े में है । इस में कश्मीरी बोलने वाले बहुत कम मिलेंगे । यहाँ या तो गुज्जर हैं या फिर पंजाबी भाषी लोग मिलेंगे । कुल मिला कर जम्मू प्रान्त के भिम्बर , कोटली , मीरपुर, पुँछ , हवेली , बाग़ , सुधान्ती, मुज्जफराबाद , हट्टियां और हवेली ज़िले पाकिस्तान के क़ब्ज़े में हैं । भाषा-संस्कृति साम्य से हमने मुज्जफराबाद को जम्मू प्रान्त में रखा है । पाकिस्तान के क़ब्ज़े बाले जम्मू प्रान्त के हिस्से में डोगरी और पंजाबी भाषा बोली जाती है । मुज्जफराबाद में लंहदी पंजाबी व गुज़री बोलते हैं । पाकिस्तान जम्मू के इसी क़ब्ज़ा किये गये हिस्से को आज़ाद कश्मीर कहता है । यहाँ यह भ्रम हो सकता है कि पुँछ ज़िला पाकिस्तान के क़ब्ज़े में भी है और भारतीय जम्मू प्रान्त में भी है । दरअसल पाकिस्तान ने पुँछ जागीर के अधिकांश हिस्से पर क़ब्ज़ा किया हुआ है , अत वह भी उसे पुँछ ज़िला का ही नाम देता है । शेष बचे पुँछ को जम्मू कश्मीर सरकार भी पुँछ ज़िले का नाम देती है । मुज्जफराबाद को मिला कर पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले जम्मू प्रान्त के हिस्से की जनसंख्या १९९८ में २९७२५०१ घोषित की गई थी ।

जम्मू प्रान्त की भाषा डोगरी है और यहाँ के रहने वालों को डोगरा कहा जाता है । यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से पंजाब व हिमाचल प्रदेश के ज़्यादा नज़दीक़ है । विवाह शादियाँ भी पंजाब हिमाचल में होती रहती हैं । कई बार जम्मू को पंजाब-हिमाचल का विस्तार भी कहा जाता है । शायद यही कारण है कि १९४७ के भारत विभाजन में जब कश्मीर प्राय शान्त था तो जम्मू पंजाब की ही तरह दंगों की आग में झुलस रहा था । पंजाब में पठानकोट में रावी नदी के दूसरे किनारे से शुरु हुआ जम्मू का क्षेत्र पीर पंचाल की पहाड़ियों तक फैला हुआ है । जम्मू प्रान्त की जनसंख्या २०११ की जनगणना के अनुसार ५३५०८११ है । जम्मू प्रान्त हिन्दु बहुसंख्यक प्रान्त है । ६७ प्रतिशत लोग हिन्दु हैं । इसे जम्मू प्रान्त के लोगों का दुर्भाग्य ही कहना होगा कि हिन्दु समाज के दलितों को राज्य सरकार अन्य राज्यों में दी जाने वाली सुविधाएँ नहीं देती । शेष ३३ प्रतिशत जनसंख्या में मुसलमान , गुज्जर , पहाडी इत्यादि शामिल हैं । मुसलमानों में भी राजपूत मुसलमानों की जनसंख्या काफ़ी है ।गुज्जर जनजाति समाज का हिस्सा हैं । इनकी पूजा पद्धति में इस्लाम , शैव , प्रकृति इत्यादि कई तत्वों का मिश्रण देखा जा सकता है । राजनैतिक दृष्टि से जम्मू संभाग में भारतीय जनता पार्टी और सोनिया कांग्रेस प्रमुख राजनैतिक दल हैं , लेकिन नैशनल कान्फ्रेंस और पी डी पी का भी सीमित प्रभाव है । जम्मू संभाग मोटे तौर पर पाकिस्तान से कोई जुड़ाव महसूस नहीं करता ।

कश्मीर संभाग — जम्मू संभाग या प्रान्त पीर पंचाल की पर्वत श्रंखला पर आकर समाप्त हो जाता है । पीर पंचाल के दूसरी ओर कश्मीर शुरु होता है । पहले इन दोनों संभागों का सम्बध गर्मियों में ही जुड़ता था । सर्दियों में बर्फ़ के कारण दोनों संभाग कटे रहते थे । लेकिन अब पीर पंचाल पर्वत श्रंखला के नीचे से बनीहाल सुरंग का निर्माण हो जाने से दोनों संभाग बारह महीने जुड़े रहते हैं । कश्मीर का क्षेत्रफल लगभग सोहलह हजार वर्ग किलोमीटर है और इसके भी दस ज़िले,श्रीनगर, बडगाम , कुलगाम, पुलवामा , अनन्तनाग ,कुपबाडा, बारामूला ,शोपियाँ , गन्दरबल , बांडीपुरा हैं । कश्मीर संभाग की जनसंख्या २०११ की जनगणना के हिसाब से ६९०७६२२ है । कश्मीर संभाग या प्रान्त में कश्मीर घाटी के अतिरिक्त बहुत बड़ा पर्वतीय इलाक़ा है , जिसमें पहाड़ी और गुज्जर रहते हैं । मज़हब के लिहाज़ से कश्मीर संभाग मुस्लिम बहुसंख्यक है । लेकिन शिया लोगों की भी महत्वपूर्ण संख्या है । पर्वतीय इलाक़ों में गुज्जरों की बहुत बड़ी जनसंख्या है । गुज्जरों की ही एक शाखा को यहाँ बक्करबाल भी कहा जाता है । कश्मीरी भाषा केवल घाटी के हिन्दु या मुसलमान बोलते हैं । पर्वतीय इलाक़ों में गोजरी और पहाड़ी भाषा बोली जाती है । कश्मीर घाटी के मुसलमान आम तौर पर सुन्नी हैं । बहावी और अहमदिया भी हैं , लेकिन सुन्नी मुसलमान अहमदिया को मुसलमान मानने को तैयार नहीं है । सुन्नी होने के बावजूद कश्मीर का इस्लाम सूफ़ी सम्प्रदाय से प्रभावित है और उसकी व्यवहार में मैदानी इलाक़ों के मुसलमानों से भिन्नता दिखाई देती हैं । कश्मीर घाटी का मुसलमान आमतौर पर कश्मीर घाटी से बाहर , ख़ास कर मैदानी इलाक़ों के मुसलमानों से विवाह शादी नहीं करते । आतंकवाद का प्रभाव कश्मीर घाटी के कश्मीरी बोलने बाले सुन्नी मुसलमानों तक ही सिमटा हुआ है । कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र के गुज्जर/बक्करबाल और पहाड़ी लोग , शिया और जनजाति समाज के लोग इस में संलिप्त नहीं हैं । राजनैतिक लिहाज़ से कश्मीर संभाग में नैशनल कान्फ्रेंस और पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी , नाम के दो क्षेत्रीय दल हैं , जिनकी चुनावों में ज़बरदस्त भिड़ंत होती है । सोनिया कांग्रेस की भी कुछ पाकेटस कही जा सकतीं हैं ।कश्मीर संभाग में सुन्नी मुसलमान के एक हिस्से को छोड़ कर कोई पाकिस्तान के साथ लगाव महसूस नहीं करता । शिया !गुज्जर और पहाड़ी तो उसके विरोधी हैं ।

 

लद्दाख संभाग — लद्दाख का क्षेत्रफल ८२६६५ वर्ग किलोमीटर है लेकिन इसमें से ३७५५५ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन ने बलपूर्वक दबा रखा है । लेह ज़िला का क्षेत्रफल ४५११० वर्ग किलोमीटर है और इसकी जनसंख्या १४७१०४ है । लेह में अधिकांश जनसंख्या भगवान बुद्ध के बचनों को मानने वाली है । लद्दाख को हिमालय की पर्वतमालाएँ कश्मीर से अलग करतीं हैं । यहाँ की भाषा भोटी है ।

प्रशासनिक लिहाज़ से लद्दाख की दूसरी तहसील कारगिल है, जिसका जनसंख्या १४३३८८ और क्षेत्रफल  १४०३६ वर्ग किलोमीटर है । लेकिन वास्तव में कारगिल बल्तीस्तान का हिस्सा है । कारगिल ज़िला को छोड़ कर शेष सारा बल्तीस्तान पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है । कारगिल में अधिकांश आबादी शिया लोगों की है और ये बल्ती जनजाति के लोग हैं । कारगिल की जंस्कार घाटी में बुद्धमत को मानने वाले लोग हैं । १९४७ के पाक युदंध में लद्दाख स्काऊटस ने ही पाक सेना का बहादुरी से मुक़ाबला किया था ।

 

बलतीस्तान संभाग– कारगिल को छोड़ कर सारे का सारा बल्तीस्तान पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है । इसका क्षेत्रफल लगभग बीस हज़ार वर्ग किलोमीटर है । यहाँ की जनसंख्या  शिया है जिनका आम तौर पर मुसलमानों से झगड़ा होता रहता है । बल्तीस्तान के लोगों ने अब अपने नामों के साथ पुराने वंश के नाम भी कहीं कहीं लिखने शुरु कर दिये हैं ।

 

गिलगित संभाग – यह संभाग पूरे का पूरा पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है । इसका क्षेत्रफल लगभग ४२ हजार वर्ग किलोमीटर है । गिलगित की लगभग पचपन सौ वर्ग किलोमीटर जमीन पाकिस्तान ने १९६३ में चीन को दे दी । गिलगित की सीमा अफगानिस्तान , तजाकिस्तान , और पूर्वी तुर्किस्तान से भी लगती है । यहाँ के लोग दर्द कहलाते हैं । यहाँ की भाषा भी दर्दी स्टाक की हैं । यहाँ के लोग भी शिया हैं और उन्हें मुसलमानों की प्रताडना का शिकार होना पड़ रहा है ।

कुल मिला कर यह पूरे जम्मू कश्मीर की भौगोलिक व भाषायी सांस्कृतिक स्थिति है । इस पूरे परिदृश्य और विशाल भूभाग में घाटी की हैसियत क्या है , इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । कश्मीरी और कश्मीरियों में भी सुन्नी मुसलमान पूरे राज्य की आबादी का एक लघु हिस्सा है । अफ़ज़ल गुरु की मौत पर जम्मू संभाग में कहीं प्रतिक्रिया नहीं हुई । लेह और कारगिल शान्त है । शिया , गुज्जर , बक्करबाल , पहाड़ी सभी चुप हैं । पहले आम तौर पर , जब घाटी में कोई घटना होती थी तो पाक के क़ब्ज़े वाले जम्मू के इलाक़ों में भी उसके समर्थन में प्रतिक्रिया होती थी , लेकिन इस बार तो वहां भी सन्नाटा है । जब घाटी में किसी बात को लेकर प्रतिक्रिया होती है तो उसे सारे राज्य की आबाज मान लिया जाता है । जबकि यह आबाज पूरे राज्य के एक लघु खंड की आबाज होती है और घाटी के भी सभी लोग इस आबाज में शामिल हैं , यह नहीं मान लेना चाहिये । लेकिन सरकार और मीडिया इसे सारे राज्य की आबाज का भ्रम फैलाने का काम करता है । इस लिये जम्मू कश्मीर को लेकर भ्रम फैलते हैं जो राज्य के भूगोल और जनसांखियकी के यथार्थ पर आधारित नहीं होते । इस पूरे बिबेचन में अफ़ज़ल गुरु का क़िस्सा तो मात्र उदाहरण के लिये लिया गया है । जम्मू कश्मीर राज्य में घटित हो रही घटनाओं के कारण और उसके प्रभाव को समझने के लिये राज्य के भूगोल के राह में से गुज़रना लाज़िमी है । इससे गुज़रे बिना राज्य की पहेली को समझा नहीं जा सकता । लेकिन दुर्भाग्य से इस राज्य को लेकर जो एक्स्पर्ट ओपिनियन दी जाती है , वह भूगोल के इस मार्ग पर चलने की बात तो दूर   इसे देखे बिना ही दी जाती है । यही कारण है कि पहेली का सही उत्तर मिल नहीं रहा , लेकिन जो चिल्ला चिल्ला कर उत्तर दे रहे हैं , वे यह ज़िद भी पकड़े हुये हैं कि उनके उत्तर को ही सही घोषित किया जाये ।

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