फूट डालो और राज करो

वीरेन्द्र सिंह परिहार 

संप्रग सरकार एक नया विधेयक ”साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम पास करने जा रही है। इसका उद्देश्य साम्प्रदायिक, घटनाओं पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाना बताया जा रहा है। पर वास्तविकता में इस कानून का आशय है-हिन्दू आक्रामक है, तथा मुस्लिम ईसाई तथा दूसरे अल्पसंख्यक पीड़ित है। इस प्रस्तावित विधेयक में ऐसा मान लिया गया है कि दंगा सिर्फ हिन्दू करते है। मुसलमान, ईसाई तथा दूसरे लोग मात्र इसके शिकार होते है। उपरोक्त प्रस्तावित विधेयक में यह कहा गया है कि यदि किसी समूह की सदस्यता के कारण जानबूझकर किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसा कृत्य किया जावें, जो राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने वाला हो। अब समूह से तात्पर्य किसी राज्य में धार्मिक, अथवा भाषाई अल्पसंख्यक या अनुसूचित जाति या जनजाति से है। हिन्दुओं को तो किसी समूह में माना ही नही गया है, इसलिए वह इससे प्रभावित हो ही नही सकते। अब काश्मीर घाटी में भले प्रताड़ित कर उसे हिन्दू-विहीन कर दिया गया हो, पर पूरे भारत में यह विधेयक लागू होगा, लेकिन जम्मू-काश्मीर में नही। जम्मू-काश्मीर में क्यो लागू नही होगा? उत्तर स्पष्ट है क्योकि हिन्दू वहां अल्पसंख्यक है और उनको किसी संरक्षण क्या सहानुभूमि तक की आवश्यकता नही है।

अब गौर करने की बात यह है कि अल्पसंख्यक समूह में मुस्लिम, ईसाई, सिख ही नही बल्कि अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को भी माना गया है। अब यह तो लोगों को पता होगा कि अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेजो का ही ऐसा रवैया था। खास तौर पर अनुसूचित जनजातियों को वह हिन्दू नही मानने पर जोर देते थे। मुस्लिम लीग के लोग तो अनुसूचित जाति के लोगों को हिन्दुओं से अलग करने के लिए मुस्लिम-हरिजन भाई-भाई, बांकी जाति कहां से आई-ऐसा नारा लगाते थे। वो तो डॉ. अम्बेडकर की राष्ट्रवादी एवं व्यापक दृष्टि थी, जिसने देश को इस खतरे से बचा लिया। पर जहां तक इन समुदायों का प्रश्न है, वह जब क्रमश: हिन्दुत्व की धारा में समाहित हो रहे है, तो उनमें ऐसा अलगाववाद के बीज बोने की इस विधेयक के माध्यम से क्या आवश्यकता थी? यह राष्ट्रबोध से जुड़ें नागरिकों के लिए एक अहम चुनौती है।अब जब जन लोकपाल की बात आती है तो उसे संसद पर अतिक्रमण बता दिया जाता है, पर जब यह विधेयक सोनिया गॉधी की एन.एस.सी. की तरफ से आता है तो कोई प्रतिक्रिया ही नही होती।

रहा सवाल मुसलमानों का। असलियत भी यह है कि अवाम से कटी हुई यह सरकार मूलत: मुस्लिम तुष्टीकरण की दृष्टि से ही यह विधेयक ला रही है। इस विधेयक के अनुसार पहली बात तो यह कि मुस्लिम ऐसा समुदाय है, जो दंगें नही करता, हिंसा नही करता, सिर्फ पीड़ित समूह है। जबकि तथ्य यह है कि अंग्रेजों के समय से लेकर स्वतंत्र भारत में जितने दंगें हुए, उसकी शुरूआत करीब-करीब मुस्लिमों ने ही किया। अंग्रेजों की गुलामी के समय मोपला के दंगें अभी तक लोगों को जेहन में है, जिसमें हिन्दुओं पर अमानुषिक अत्याचार किए गए। यहां तक कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगें भी जिनकी बहुत चर्चा अब तक की जाती है, वह भी गोधरा में 59हिन्दुओं को जिंदा जलाकर मार दिए जाने से भड़के। सच्चाई यह है कि यह यू.पी.ए. सरकार जबसे सत्ता में आई है, इसका एक मात्र एजेण्डा मुस्लिम-तुष्टीकरण और इस तरह से उन्हे वोट बैंक बनाना ही रहा है। इस सरकार ने सत्ता में आते ही मुस्लिम छात्रों के लिए जिनके परिवार की वार्षिक आय ढ़ाई लाख रूपयें तक है, उन्हे मेरिट के आधार पर कोर्स के लिए बीस हजार, स्कालरशिप के नाम पर दस हजार, हास्टल सुविधा के नाम पर पॉच हजार रूपयें दे रही है। जबकि एस.सी. एवं एस.टी. समुदाय के छात्रों की हालत ज्यादा बुरी होने पर भी उन्हे यह सुविधा नही दी जा रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि एस.टी.,एस.सी. एवं पिछड़ें वर्ग के छात्रों को जहां आय प्रमाण पत्र सक्षम राजस्व अधिकारियों से प्राप्त करना पड़ता है, वहां मुस्लिम छात्र नान जुडीशियल स्टाम्प में स्वत: यह प्रमाण पत्र दे सकते है। इसी तुष्टिकरण की नीति के तहत देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह चुके है कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। इसी के तहत बजट में मुस्लिमों के लिए 15 प्रतिशत का प्रावधान अलग से किया जाता है।

असलियत यह है कि इसी तुष्टिकरण एवं वोट बैंक की राजनीति के चलते अफजल एवं कसाब जैसे लोगों को फांसी में नही लटकाया जाता। इसी नीति के तहत आंतकवाद से लड़ने के लिए टाडा एवं पोटा जैसे कानून निरस्त किए जाते है। इसी नीति के तहत राहुल गॉधी को लश्करे तोयबा या जेहादी आंतकवाद की तुलना में हिन्दू आंतकवाद ज्यादा खतरनाक दिखाई पड़ता है। इसी नीति के तहत खानदान के प्रवक्ता दिग्विजय सिंह जैसे लोग सर्वत्र हिन्दू आंतकवाद या भगवा आंतकवाद देखते है, उन्हे जेहादी आंतकवाद कही दिखायी ही नही पड़ता। जिसका नतीजा यह है कि देश को आंतकवाद से मुक्ति मिलना संभव नही दिखाई पड़ रहा है।

अब जब उपरोक्त प्रस्तावित विधेयक से धर्म निरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने या किसी अल्पसंख्यक को मनोवैज्ञानिक नुकसान पंहुचाने से आशय है। ऐसी स्थिति में यदि बहुसंख्यक समाज को कोई व्यक्ति यह कहता है कि देश में कामन सिविल कोड मुसलमानों पर भी लागू होना चाहिए। काश्मीर में धारा 370 समाप्त होनी चाहिए, अथवा बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर करना चाहिए या राम जन्मभूमि में भव्य राममंदिर बनना चाहिए या आंतकवादियों को फांसी में लटका देना चाहिए। तो बहुत संभव है कि उपरोक्त प्रस्तावित विधेयक के आशय-अनुसार यह धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने वाला हो। यदि ऐसा नही भी हो तो मुस्लिम समूह को एक बड़ें समुदाय को मनोवैज्ञानिक नुकसान पंहुचाने वाला तो मान ही लिया जाएगा। अब ऐसी स्थिति में ऐसे विचारों के पक्षधरों को जेल जाने की तैयारी अभी से कर लेनी चाहिए। हद तो यह है कि यह प्रस्तावित विधेयक संघीय ढांचे को भी नष्ट करने वाला है, क्योकि इससे केन्द्र सरकार को किसी भी राज्य सरकार पर हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल जाएगा।एक अहम बात और इस प्रस्तावित विधेयक में यदि अल्पसंख्यकों समूहों के मध्य ही काई दंगा भड़कें या संघर्ष हो तो किसे आक्रमणकारी या किसे पीड़ित माना जाएगा-स्पष्ट नही है। जैसे यदि दंगा मुस्लिमों, अनुसूचित जनजाति या अनुसूचित जाति के मध्य भड़का तो ऐसी स्थिति में किसे आक्रामक माना जायेगा और किसे पीड़ित माना जायेगा, स्पष्ट नही है।

इसी तरीके से ”फूट डालों एवं राज करो” की नीति का अंग्रेजों ने इस्तेमाल कर देश में लम्बे समय तक राज किया। अब अंग्रेजों की उत्तराधिकारी कांग्रेस पार्टी भी यही सब कर रही है। प्रस्तावित विधेयक सामाजिक समरसता को छिन्न-भिन्न करने वाला, समाज को जोड़ने की जगह विभाजित करने वाला तो होगा ही। दुर्भाग्यवश यदि वह विधयेक अधीनियम का रूप ले लिया तो स्वतंत्र भारत के हिन्दू द्वितीय श्रेणी के नागरिक हो जाएगे और प्रकारान्तर से गुलामी के दौर में पंहुच जाएंगे।

(लेखक प्रसिद्ध स्तंभकार है)

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