अश्वमेघ करते नमो बनाम तुष्टिकरण की नैया पर राहुल

प्रवीण गुगनानी     

शरद पवार ने स्पष्ट की गुजरात दंगों के निर्णय पर उनकी राय  

 

पिछले दिनों कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता सलमान खुर्शीद ने विदेशी धरती पर विदेशियों के बीच भारतीय संवैधानिक संस्थाओं को जी भर के धोया, कोसा और गरियाया था. ऐसा करते हुए वे संविधान के प्रति अपनी शपथ को भी विस्मृत कर चुकें थे और सामान्य गरिमा और शिष्टाचार को भी छोड़ चुकें थे, तब लगा था कि उनकें अपनें दल के नेता ही उन्हें इस बात के लिए सीख देंगे और कोई सबक वाला बयान सामनें आएगा किन्तु खेद-विडम्बना और अफ़सोस की हुआ ठीक इसके उल्टा!! हताशा में डूबी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने नरेन्द्र मोदी पर हमला करनें के चक्कर में पुनः देश की संवेधानिक संस्थाओं पर विवादास्पद बयानबाजी कर दी. गुजरात दंगो के नाम पर भाजपा के प्रधानमन्त्री प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी को घेरने के प्रयास में सतत-निरंतर लगे रहनी वाली कांग्रेस के नेताओं को लीड करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के लिए मोदी को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती है. राहुल का कहना था कि दंगों के दौरान प्रशासन की स्पष्ट और अक्षम्य विफलता के लिए मोदी सरकार की न्यायिक जवाबदेही तय की जानी चाहिए. कांग्रेस उपाध्यक्ष के अनुसार, ‘दंगों में मोदी की भूमिका को लेकर लगे आरोपों और साक्ष्यों की ठीक तरीके से जांच होना अभी होना बाकी है.’ राहुल गांधी यह कहते हुए भूल गए कि देश की न्यायिक व्यवस्था का एक स्तर नरेन्द्र मोदी को बेदाग़ बताकर गुजरात दंगो के दाग से मुक्त कर चुका है!! न्याय व्यवस्था का यह निर्णय उच्च स्तरीय न्यायिक व्यवस्था में परिक्षण हेतु जा सकता है और गया भी है किन्तु इसलिए नहीं कि गली चौराहों पर कोई भी इस निर्णय की समीक्षा करते हुए बयानबाजी करें! न्याय व्यवस्था में निर्णय को चुनौती देनें के अपनें निर्धारित प्रारूप और तरीकें हैं जिनकें बाहर जानें को न्यायालय की अवमानना कहा जाता है यह तथ्य कांग्रेस भूलती रही है. यह तो निर्विवादित तथ्य हो गया है कि राहुल गांधी ने यह कहते हुए न्यायालय की अवमानना की है कि “निचले न्यायालय द्वारा स्वीकृत एस आई टी की रिपोर्ट कई गलतियों से भरी है और उच्च न्यायालय ने अभी इस रिपोर्ट की न्यायिक समीक्षा नहीं की है और यह कि 2002 के दंगों के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराने वाले स्पष्ट आरोपों और पुख्ता साक्ष्यों की पर्याप्त जांच होना बाकी है.” देशवासियों की ज्ञान वृद्धि का हास्यास्पद प्रयास करते हुए राहुल गांधी ने यह बात इस अंदाज में कही जैसे उनकें अतिरिक्त कोई इस बात को जानता ही नहीं है!! राहुल स्वयं भी जानते हैं कि ऐसा कहते हुए वे एक नीतिगत भूल कर रहें है किन्तु वे और कांग्रेस के अन्य नेता अब परेशान और मजबूर हैं कि लगातार लम्बी लाइन खींच रहे नरेन्द्र मोदी का विरोध करनें के लिए उनके पास गुजरात दंगों पर देश वासियों को बरगलाने और उकसाने के अलावा कुछ है ही नहीं.

                   वैसे भी कांग्रेस हताशा के गहरे सागर में गोते लगाते हुए लगातार ऐसे बयान दे रही है जिनमें आगामी हार के व्यवस्थित कारण और सफाई ढूंढी जा रही है. कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता लोकसभा चुनावों में हार का ठीकरा फोड़ने के लिए किसी व्यवस्थित सिर की तलाश कर रहें है जो कि उनकें पास मनमोहन सिंह के रूप में चिरकाल से उपलब्ध है ही. कांग्रेस के सभी प्रवक्ता कमोबेश इस बात को कह चुकें हैं कि कांग्रेस अपनें कायों को व्यवस्थित रूप से और समय पर जनता के बीच में नहीं रख पाई. मतदाता समझ रहा है कि मुद्दों के अभाव में कांग्रेस के पास नरेन्द्र मोदी की टांग पकड़कर खीचनें और गुजरात दंगों का बेसुरा राग अलापनें के अलावा कोई राह नहीं बची है किन्तु इस के लिए कम से कम राहुल न्यायालीन प्रक्रियाओं पर अनावश्यक और अशोभनीय टीका टिपण्णी न करें.

                    कांग्रेस और गांधी परिवार से यह देश अब गुजरात दंगों के नाम पर भड़काने और साम्प्रदायिकता के भूतों की राजनीति करनें आजिज आ चुका है. अब समय है कि कांग्रेस या तो कुछ नए तथ्य और ठोस साक्ष्य लाये या फिर अदालती निर्णय का सम्मान करते हुए गुजरात दंगों पर चुप्पी साध ले. ऐसा नहीं है कि मैं कांग्रेस से गुजरात दंगो के मुद्दे पर बोलनें का संवैधानिक अधिकार छीनना चाहता हूँ किन्तु ऐसा अवश्य है कि मैं चाहता हूँ कि कांग्रेस जब भी गुजरात दंगों की बात करे तब वह कारसेवकों से भरी रेलगाड़ी के डिब्बों को जला देनें की घटना से बात शुरू करें और इस बात का व्यवस्थित नयायालीन के साथ साथ सामाजिक परीक्षण करे-कराये. देश की राजनैतिक परिस्थितियों पर कभी हास्य और कभी विडम्बना का का भाव आता है जब देश के लगभग सौ करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं के विपरीत गुजरात दंगों की आधी अधूरी समीक्षाएं और चर्चाएँ की जाती है! गुजरात के दंगे गोधरा की में की गई क्रिया की प्रतिक्रया थे यह सारा देश मानता है और न्यायिक निर्णयों में भी यह भावना प्रकट हो चुकी है किन्तु न जानें क्यों देश का राजनैतिक मंच इस तथ्य को गलीचें के नीचें छुपाये रखना चाहता है. वोटो की राजनीति-तुष्टीकरण की राजनीति-छदम साम्प्रदायिकता की राजनीति से ऊपर सोचते हुए यदि कांग्रेस ने एक बार भी गुजरात दंगों की घटनाओं का समुचित और यथोचित परीक्षण किया होता तो देश आज एक नई और अनुपम  सामाजिकता, सौहाद्रता और सद्भाव की कहानी लिख चुका होता और देश साम्प्रदायिकता की घटनाओं से ऊपर आ रहा होता किन्तु कांग्रेस की सतत एतिहासिक तुष्टिकरण की भूलें देश को भंवरजाल में फसायें रख रही है. कांग्रेस की ही लम्बे समय से साथी रही राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार ने राहुल गांधी द्वारा प्रारम्भ किये गए गुजरात दंगों के विषय में नरेन्द्र मोदी और निचली अदालत के निर्णय को घेरने और आलोचना के इस नए दौर की व्यवस्थित समीक्षा कर दी है. युपीए के घटक दल के नेता शरद पवार ने कहा कि जब अदालत ने कुछ कहा है, तो हमें इसे स्वीकार करना चाहिए, तब इस मुद्दे को अनावश्यक क्यों उठाया जा रहा है? इस सम्बन्ध में ही पवार ने कहा है कि वे इस सम्बन्ध में उन राहुल गांधी के बयानों से सहमत नहीं हैं जिन्होंने हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में मोदी को गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए उत्तरदायी ठहराया था. गुजरात दंगों के सन्दर्भ में एक बात शरद पवार ने बड़ी उचित कही जिसे पूरा देश कहना चाहता है कि- अगर राहुल या कांग्रेस के पास कुछ अलग जानकारी है, तो मैं इस बारे में नहीं जानता. अदालत ने जो कुछ कहा, यहां मैं सिर्फ उसके साथ जा रहा हूं. यहाँ यह भी कहा जाना चाहिए कि यदि राहुल के पास कोई अन्य तथ्य हैं तो उसे वे देश के सामनें लायें और नरेन्द्र मोदी पर नए सिरे से दोष मढ़े या फिर गुजरात दंगों का बेसुरा ढोल पीटना और बजाना बंद कर दे.

                   

 

 

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  1. अब तो सलमान एक कदम और आगे बढ़ गए है कांग्रेस अंतर्मन से अपनी पराजय को स्वीकार कर चुकी है,मनमोहनसिंह को दोष देने वाले नेता यह क्यों भूलते है कि उन्हें कम करने व अपनी बात कहने को फ्री हैण्ड ,पार्टी ,और उसकी आलाकमान ने कभी दिया ही नहीं वह एक कटपुतली सरकार के कटपुतली नायक थे और है अब अपने नेताओं के कुकर्मों पर पर्दा ढापने के लिए उनकी याद आ रही है अब एक मात्र उपाय यही है कि हर जगह जा मोदी और विपक्ष को गरियाया जाये और अलाप समझ वाले लोगों में अपने वोट पक्के किये जाएँ याह पहला लोकसभा चुनाव होगा जो बिना मुद्दों के लड़ा जा रहाहै,और एक दुसरे पर कीचड़ उछाला जा रहा है साडी गरिमा ख़तम हो गयी है व मंत्री भी इतने गिरे हुए बयां दे रहे है कि विश्व राजनीती में हमारी थू थू हो रही है

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