आधारहीन राजनीति कर रहे केजरीवाल

arvindसुरेश हिंदुस्थानी
समाज की यह प्रचलित धारणा है कि जो भी व्यक्ति गलत काम करता है, वह हमेशा इस बात से डरा सहमा रहता है कि कहीं उसकी पोल न खुल जाए। इसके डर से वह हमेशा ऐसे काम भी करता हुआ दिखाई देता है जो उसकी कमियों परदा डाल सके। गलत काम करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने गिरेबान में झांककर नहीं देखता, इसलिए वह यह तय नहीं कर पाता है कि मेरी गलती क्या है? वर्तमान में देश में ऐसे व्यक्तियों का अभाव दिखाई दे रहा है, जो अपनी गलतियों को सुधार करके जीवन का संचालन करे। यह भी देखा जाता है कि गलत काम करने वाला व्यक्ति हमेशा अपनी तारीफ करने वाले लोगों को ही पसंद करता है। उसे सही बुराई करने वाले लोग गलत दिखाई देते हैं। आज भारत की राजनीति में इस प्रकार का खेल दिखाई दे रहा है। जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल केवल अपने राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बिना सोचे समझे बयान देने लगे हैं। उन्हें अपनी पार्टी के नेताओं के कारनामे भी अच्छे लगने लगे हैं। जब व्यक्ति को बुरे काम अच्छे लगने लगते हैं, तब उससे अच्छे कामों की अपेक्षा करना बेकार ही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जिस प्रकार आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे हैं, उससे देश का भला नहीं होने वाला। केजरीवाल सीधे तौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला करते हुए दिखाई दे रहे हैं। जितनी शक्ति वह प्रधानमंत्री का विरोध करने में लगा रहे हैं, उतनी शक्ति और दिमाग का उपयोग अगर दिल्ली के विकास के लिए करें तो आज दिल्ली में समस्याएं नहीं रहतीं। छलांग लगाकर दिल्ली की सत्ता प्राप्त करने वाले केजरीवाल द्वारा ऐसी आधारहीन बयानबाजी केवल पंजाब चुनाव में अपने आपको स्थापित करने के लिए ही की जा रही है। लेकिन केजरीवाल को यह भी समझना चाहिए कि जिस प्रकार से वे जनता द्वारा दिए गए बहुमत के आधार पर मुख्यमंत्री बने हैं, उसी प्रकार नरेन्द्र मोदी भी स्पष्ट बहुमत वाले जन समर्थन के साथ प्रधानमंत्री के पद पर पुहंचे हैं। प्रधानमंत्री देश का अत्यंत ही सम्मानित पद है। इसलिए केजरीवाल को अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए और बयान भी ऐसे देने चाहिए जिससे देश का विकास हो सके। हम जानते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध में बयान देते रहते हैं, लेकिन दोनों के बयानों में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है। नीतीश कुमार संयम के साथ प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते हैं और केजरीवाल संयम की सीमा का उल्लंघन करते दिखाई देते हैं। संवैधानिक प्रेटोकाल के हिसाब से भी देखा जाए तो एक मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री का सम्मान ही करना चाहिए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की असंयमित भाषा को देखकर यही कहा जा सकता है कि वह पूरी तरह से बौखलाए हुए हैं। इसके पीछे के कारण बहुत हैं। वर्तमान में आम आदमी पार्टी विभाजन के कगार पर जाती हुई दिखाई दे रही है। कई विधायक विद्रोह करने पर उतारु हो रहे हैं। इसके पीछे एक ही कारण हैं कि आम आदमी पार्टी के जो भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में दोषी हैं। उन्हें केजरीवाल बचाने का प्रयास नहीं कर रहे। इसलिए यह साफ कहा जा सकता है कि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के कई विधायक अपने ही मुख्यमंत्री के व्यवहार से दुखी हैं। केजरीवाल एक तानाशाह की तरह पार्टी को संचालित कर रहे हैं। उनकी पार्टी के विधायक और दिल्ली सरकार में कानून मंत्री रहे जितेन्द्र सिंह तोमर की फर्जी डिग्रियों का प्रकरण जगजाहिर है। इसी प्रकार कई अन्य प्रकारणों में आप पार्टी के विधायकों के नाम सामने आ रहे हैं। इसमें कानून अपने हिसाब से काम कर रहा है और करना भी चाहिए। वास्तव में अरविन्द केजरीवाल को यह सत्य स्वीकार करना चाहिए कि उनकी पार्टी में कुछ लोग गलत हैं। लेकिन वे सत्य को स्वीकार न करते हुए उलटे मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि उनके विधायकों को परेशान किया जा रहा है। कानून के दायरे में किए जाने वाले कार्य को अगर एक मुख्यमंत्री परेशान करने वाला कदम बताता है। तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वे संवैधानिक मर्यादाओं का किस प्रकार पालन करते होंगे। वास्तव में देखा जाए तो अरविन्द केजरीवाल को एक मुख्यमंत्री की मर्यादाओं का भी ज्ञान नहीं है। अगर है तो उनको कम से कम दोषी विधायकों पर की जा रही कार्यवाही को परेशान करने वाला कदम तो नहीं बताते। केजरीवाल ने जिस प्रकार की राजनीति करने के सपने जनता को दिखाए थे, उसके आधार यही कहना समीचीन होगा कि वे स्वयं आगे आकर गलत काम करने वाले विधायकों पर कार्यवाही करने के लिए कहते, लेकिन जिसका स्वयं का पूर्व कानून मंत्री गलती की सजा भोग रहा हो, उससे यह कैसे कल्पना की जा सकती है कि वह सरकार कानून का पालन कर सकती है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वे राजनीतिक समाज में एक दम नए आए थे। उन्होंने राजनीति करने से पूर्व प्रशासनिक अधिकारी के रुप में काम किया था। जिससे कहा जा सकता है कि उस समय उन पर काम का दबाव कम ही रहा। आज एक मुख्यमंत्री के रुप में उन पर काम का अधिक दबाव होने के कारण केजरीवाल पूरी तरह से जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं। इस दबाव के चलते ही उन्होंने विरोधाभासी बयान देकर दिल्ली की जनता का ध्यान भटकाने का काम किया है। वास्तव में केजरीवाल को पंजाब में पैर पसारने से पूर्व केवल दिल्ली को संभालने में ही पूरी शक्ति लगानी चाहिए, जो उन्होंने नहीं की।
वर्तमान में आम आदमी पार्टी की राजनीति और उनके सरकार चलाने के तरीकों का अध्ययन किया जाए तो यह तो साबित हो रहा है कि केजरीवाल ने आम जनता को जिस प्रकार के सपने दिखाए थे, सरकार वैसा कुछ भी नहीं कर रही है। इतना ही नहीं अब तो आम आदमी पार्टी के नेताओं को भी यह स्पष्ट रूप से लगने लगा है कि हमने जनता से जो वादे किए हैं वे पूरे हो ही नहीं सकते। तभी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने पूर्व में स्वयं इस बात को स्वीकार किया है कि हमारी सरकार जनता से किए गए वादों को पूरा नहीं कर सकती। केजरीवाल की इस बात से यह साफ हो जाता है कि चुनाव के समय केजरीवाल ने आम जनता से झूंठ बोला था, यानि राजनीति की शुरूआत ही झूंठ पर आधारित थी। इस प्रकार के राजनीतिक संत्रास से त्रस्त होकर ही दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को छप्पर फाड़कर समर्थन दिया, लेकिन केजरीवाल द्वारा इस प्रकार की स्वीकारोक्ति करना क्या जनता के साथ विश्वासघात नहीं है।
अभी हाल ही में केजरीवाल ने यह कहकर कि ‘मोदी मुझे मरवा सकते हैंÓ सुर्खियां बटोरने का प्रयास किया था। यह केजरीवाल की निम्न स्तर की राजनीति कही जा सकती है। क्योंकि जो प्रधानमंत्री देश की 125 करोड़ जनता को अपना परिवार मानता हो, वह कैसे इस प्रकार की बात सोच सकता है। इसके विपरीत आम आदमी पार्टी के मटियामहल से विधायक चुने जाने वाले आसिफ अहमद ने केजरीवाल की सत्यता को उजागर करते हुए कहा है कि मुझे केजरीवाल से खतरा है। वह मुझे मरवा सकते हैं। क्या इस बात पर केजरीवाल जी ध्यान देंगे। अगर नहीं तो यह कहा जाएगा कि केजरीवाल की नीतियां दोगुली हैं।
वास्तव में इस प्रकार की आधारहीन राजनीति से आम आदमी पार्टी किस प्रकार का संदेश देना चाह रही है। क्या यह राजनीति देश के विकास के लिए सकारात्मक मार्ग बना सकती है। अगर नहीं तो हमारे देश के राजनेताओं को यह तय करना होगा कि देश के विकास के लिए किस प्रकार की राजनीति की आवश्यकता है। केवल सरकार बनाने की राजनीति करना ठीक नहीं, हमें देश को बनाने की राजनीति करने पर भी ध्यान देना होगा।

1 COMMENT

  1. विद्वान लेखक डेढ़ वर्ष में क्या चाहते हैं? सरकारी स्कूलों की हालत सुधर गयी.सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में सब जाँच होने लगा.महँगी से महँगी दवाइयाँ मुफ्त में मिलने लगी.डॉक्टर समय पर आने लगे.अन्य बहुत से कार्य जो पहले नहीं होते थे,अब होने लगे.केंद्र दिल्ली सरकार के कार्य में कितने रोड़े अटक रहा है,यह तो इसी से सिद्ध हो जाता है कि आये दिन आआप के एम्.एल.ए गिरफ्तार होते हैं और एक दो दिनों में जमानत पर छूट जाते हैं,क्योंकि उनपर कोई चार्ज नहीं बनता.जनता देख रही है यह सब और आने वाले चुनावों में इसका परिणाम भी दिखेगा. बौखलाया हुआ कौन है,यह तो सर्व विदित है.

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