दोकलाम पठार का मामला अब अजीब-सा रुप ग्रहण कर रहा है। चीनी अखबार और सरकार का दावा है कि चीनी फौज तिब्बत में और दोकलाम के पास काफी बड़े पैमाने पर शस्त्रास्त्र जमा कर रही है याने वह युद्ध के लिए पूरी तैयारी में जुटी हुई है और भारत सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि सीमांत पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। हां, पिछले महिने तिब्बत में चीनी सेना ने अपना नियमित सैन्य-अभ्यास किया था। उसका दोकलाम-विवाद से कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन चीन के सरकारी टीवी चैनल सीसीटीवी ने दावा किया है कि सिक्किम की सीमा के पास चीनी सेना का जमाव पिछले हफ्ते से ही शुरु हुआ है।
पता नहीं, कौन सच बोल रहा है। भारत सरकार यह क्यों कहेगी कि सीमांत पर चीन का कोई फौजी जमावड़ा नहीं हो रहा है। यदि हो रहा होता तो वह निश्चय ही उसके बारे में इतना शोर मचाती कि उसे सारी दुनिया सुनती लेकिन चीन शायद इसीलिए शोर मचा रहा है कि भारत डर जाए और डर कर अपने फौजी दोकलाम से हटा ले।
कितने दुर्भाग्य का विषय है कि बातचीत से किसी मसले को हल करने की बजाय चीन इस तरह के दांव-पेंच अख्तियार कर रहा है। इस तरह की पैंतरेबाजी कभी-कभी युद्ध का रुप भी धारण कर लेती है। चीन के कुछ सामरिक विशेषज्ञों ने कहा है कि चीन का यह फौजी जमावड़ा यह सिद्ध करता है कि तिब्बत-जैसी दुर्गम जगह पर भी चीनी फौज कितनी आसानी से पहुंच सकती है याने भारत को यह समझ लेना चाहिए कि उसे चीन के साथ युद्ध छेड़ने की हिमाकत नहीं करना चाहिए।
यह भी एक प्रकार की धमकी ही है। गीदड़भभकी ही है। आश्चर्य है कि एशिया के दो अग्रणी राष्ट्र सीधी बातचीत करने की बजाय इस तरह के दलदल में फंस रहे हैं। पिछले लगभग एक माह से दोनों देशों के जवान एक-दूसरे के सामने तने हुए हैं। यदि आज 1962 हुआ होता तो चीन इंतजार नहीं करता। वह चढ़ बैठता लेकिन चीन को भी पता है कि इन गीदड़भभकियों से भारत डरने वाला नहीं है। उसकी फौजी तैयारी भी पूरी है लेकिन वह युद्ध नहीं चाहता।