तीन महीने में पैसा डबल! काले धन में जनता की हिस्सेदारी!

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Double Your Money in 3 Months! Public Sharing the Black Money!

20वीं सदी तक हमारे भ्रष्ट अधिकारीगण, नेता और उधोगपति टैक्स की चोरी कर के और अन्य परियोजनाओं से चुराए गए धन को स्विस एवं अन्य विदेशी ऍकाउंटों में जमा करते थे। एक समय पर तो भारत की समानान्तर अर्थव्यवस्था (Parallel Economy of India) द्वारा इन विदेशी बैंकों में जमा कराया जाने वाला काला पैसा (Black Money), भारत की कुल घरेलु वार्षिक आय (GDP) से भी अधिक था।

लेकिन, बदलते समय में भारतीय जनता की नज़र इन विदेशी ऍकाउन्टों पर पड़ चुकी है। इन खातों में जमा भारतीय गरीबों का खरबों रुपया अब असुरक्षित हो चुका है। और तो और चोरी से पैसा विदेश भेजने वाले जैन बंधुओँ जैसे कईं हवाला व्यापारी भी अब गिरफ्तार हो चुके हैं। तो ऐसे में भारतवर्ष के इन धनकुबेरों ने अपने काले पैसे को सफेद करने के लिए एक नया और सुरक्षित तरीका खोज निकाला है (New System for Converting the Black Money into White by Corrupts)।

लेकिन अब 21वीं सदी में जनता का चुराया गया यही पैसा ठिकाने लगाने का एक बिल्कुल नया, सुरक्षित और कारगर तरीका इन भ्रष्टाचारियों ने ढूँढ निकाला है – तीन महीने में पैसा डबल करो। ये ऑफर पिछले दो साल से भी ज्यादा, दिल्ली की कईं लो-प्रोफाइल कॉलोनियों में बसे, वहाँ के लाखों बाशिंदो को मिल रहा है। इस सुनहरे अवसर (Golden Opportunity) से कईं परिवार तो इतनी तरक्की कर चुके हैं, जितनी उन्होंने सपने में भी नहीं सोची थी। आज वहां के बाशिंदे, इन गैर-सरकारी संस्थाओं का गुणगान करते नहीं थक रहे।

जिसने भी इन संस्थाओं में हजार रुपये लगाए, वो अब लखपति हो चुके हैं। जिसने लाख रुपये लगाए, वो अब करोड़पति हो चुके हैं। यहाँ पर लोग निश्चित होकर अपना पैसा लगा रहे हैं, और निर्धारित समय पर अपना पैसा डबल बना रहे हैं। इन गैर-सरकारी संगठनों (Non Government Organizations) का लाभ गरीब से लेकर अमीर तक, हर वर्ग अपने सामर्थ्य अनुसार उठा रहा है। कोई अपनी बचत तो कोई ब्याज पर पैसा उधार लेकर धड़ल्ले से बेझिझक इन संस्थाओं में पैसा निवेश कर रहा है। और इस तरह वो काला धन जो भ्रष्टाचारियों ने किसी न किसी रुप से चुराया था, उसका कुछ हिस्सा जनता को भी मिल पा रहा है।

इन संस्थाओं के काम करने का तरीका भी बहुत आकर्षक है। ये संस्थाएँ निवेश करने वाले से दान के नाम पर पैसा (Invest under Donation Head) लेती हैं और तीन महीने में तीन किश्तों में वो पैसा दोगुना होकर वापिस मिल जाता है। मान लीजिए, अगर आपने 1 हजार रुपये यहाँ निवेश किए तो तीन महीनों में, तीन किश्तों में आपको मिलेंगे – रुपये 2000 (330+670+1000 क्रमशः)। रकम के अलावा आप इन संस्थाओं में आधे रेट पर राशन और दूसरा घरेलु सामान भी खरीद सकते हैं। अगर आप घरेलु उपकरण, कम्प्यूटर, इलैक्ट्रोनिक्स आदि खरीदना चाहते हैं, तो आप उसकी कुल कीमत आज ही जमा कराएँगे, और 45 दिन के भीतर वह चीज आपके घर पर होगी। और उसके 45 दिन के बाद आपने जो रकम जमा की है, वो भी आपको वापिस मिल जाएगी। यानि, तीन महीने में आप कोई भी चीज मुफ्त में पा सकते हैं।

इन आकर्षक और कारगर स्कीमों से इन इलाकों में बसे सभी वर्गों के लोगों को लाभ हुआ है। यहाँ तक कि उस स्थान विशेष में गरीब तबके को भी नाममात्र लाभ पहुँचा है, क्योंकि डबल करने के लिए उनके पास अधिक पैसा होता ही नहीं। जिनके पास पर्याप्त धन है, वे लोग तो इन स्कीमों के माध्यम से अपने धन और सम्पत्ति को तीव्र रफ्तार से कईं गुणा कर चुके हैं।

मोटे तौर पर देखें तो इन स्कीमों से, भारतीय पैसा विदेश न जाकर, कम से कम अपने ही देश में रह रहा है। जिसका कुछ हिस्सा गरीबों और मध्यमवर्गीय वर्गों को भी मिल रहा है। और ज्यादा धन आने से उस स्थान विशेष के बाशिंदों को अपना जीवन-स्तर सुधारने में मदद मिल रही है।

लेकिन यदि बारीकी से इस सारे गोरख-धंधे का अध्ययन करें तो आप पाएँगे कि कहीं न कहीं सामाजिक और राजनैतिक तरीके से ये व्यवस्था अनैतिक है। जिस धन का लाभ पूरे देश के लोगों को एक साथ न मिलकर, किसी स्थान विशेष में रहने वालों को ही मिल पा रहा है। और बिना प्रयास किए ही अधिक धन मिलने से ये लोग कर्मठता से दूर हो रहे हैं। सरकार भी इस व्यवस्था से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएगी।

भ्रष्ट आचरण वाले व्यक्ति जो धन कैश में चुराते हैं, वही धन सरकारी स्वीकृति से चल रही इन गैर सरकारी संस्थाओं (Government Recognized and Registered Non Government Organisations) को मिलता है। लोग इन संस्थाओं को कोई भी रकम दान करते हैं, जो कि सफेद धन (White Money) होता है। बदले में तीन महीनों में इन लोगों को इस रकम की दोगुना वापिस मिल जाती है, जो होता है – काला धन (Black Money)। इस व्यवस्था से काला बाजारी कम से कम आधा काला पैसा तो सफेद बना ही रहे हैं। बाकि की कसर सफेद किया हुआ पैसा, तीन महीने में किसी दूसरे स्थान पर निवेश होकर पूरी कर देता है। और तो और इस व्यवस्था पर कोई उंगलि भी नहीं उठा सकता, क्योंकि रिकॉर्ड के अनुसार तो इन संस्थाओं को पब्लिक दान ही दे रही है। और उसी पैसे को दान अथवा उपहार की शक्ल देकर सफेद बना दिया जाता है। ध्यान दें – दान पर कोई टैक्स भी नहीं देना होता। कोई नहीं जानता कि ये पैसा इतनी जल्दी कैसे दोगुना होता है।

अगर यही स्कीम पूरे देश में लागू हो जाए, तो शायद भारत भी धनवान देशों की सूची में शामिल हो जाए। लेकिन ये व्यवस्था कुछ कड़वे सवाल भी पैदा कर रही है। उन नैतिक मूल्यों का क्या, जो इस व्यवस्था के चलते धराशाही हो जाएँगे? बुज़ुर्गों ने भी कहा है – जैसा अन्न (धन), वैसा ही मन। आप जिस तरीके से माया अर्जित करते हैं, आपका जीवन भी वैसा ही हो जाता है। इसका अर्थ तो यही हुआ कि ये गैर सरकारी संस्थाएँ, जो पैसा आज बाँट रही हैं, उस पैसे का जनता पर क्या प्रभाव होगा। ये तो भविष्य ही निर्धारित करेगा।

क्या जनता के इस पैसे का न्यायोचित और समान वितरण (Justified and Even Distribution of Money) हो रहा है? क्यों नहीं ये स्कीम सारे देश में ही चालू कर दी जाए?

वैसे तो इन संस्थाओं के भविष्य की ओर कुछ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सारा गोरखधंधा सारे कानूनू दाँव-पेंचों को ध्यान में रख कर ही चल रहा है। लेकिन यदि कभी इनके अस्तित्व पर खतरा उठा तो उस भोली जनता का क्या होगा जिसने अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर यहाँ निवेश किया होगा? ये सवाल चर्चा का विषय हैं। क्या कहता है, आपका मन?

6 COMMENTS

  1. Anil Sehgal above Reply dtd 07-09-2010 (5:49 PM), it appears, has been left out from the list of Subscriptions maintained by Subscription Manager.
    I have just noticed this; and, I thought, I should point out the above omission in the list of subscriptions of Anil Sehgal.

  2. आपने बिलकुल सत्य कहा है, “बुज़ुर्गों ने भी कहा है – जैसा अन्न (धन), वैसा ही मन। आप जिस तरीके से माया अर्जित करते हैं, आपका जीवन भी वैसा ही हो जाता है।”

    उसी सांस में आप कह रहे हैं, “क्या जनता के इस पैसे का न्यायोचित और समान वितरण (Justified and Even Distribution of Money) हो रहा है? क्यों नहीं ये स्कीम सारे देश में ही चालू कर दी जाए?” मैं पूछता हूँ यह सुझाव दे आप सारे देश को नरक में क्यों धकेल रहे हैं? सभी देशवासियों के मन काले हो जांएगे|

    हां, यदि आपको इस गोरखधंदे का इतना ही ज्ञान है तो आपको सरकारी प्रतिक्रिया भी मालूम होगी| इस पर भी थोड़ी रौशनी डालिये| अच्छी कर व्यवस्था दान के अतिरिक्त आमदनी व लाभ को आंके गी और उस पर कर निर्धारित करेगी| और इस बीच गोरखधंदे के प्रकटीकरण होने पर इस पर शीघ्र रोक भी लगा देगी| बताइये, यह कब तक चलेगा?

  3. “तीन महीने में पैसा डबल ! काले धन में जनता की हिस्सेदारी !”

    प्रणब मुखेर्जी जी !

    आप सुनिए कि :

    देश की कुछ संस्थायों के यहाँ ऐसी योजना चल रही हैं कि अब डाक घर की ८ – ९ % वार्षिक ब्याज दर की बचत-स्कीमों की आवश्यता ही नहीं हैं : e.g.

    रु १,०००/- दो और तीन माह में लीजिये = रु ३३० + ६७० + १,००० + आधे रेट पर राशन एंड दूसरा घरेलू सामान.

    प्रवक्ता.कॉम ने ऐसी Govt. approved and recognized NGOs का विवरण नहीं दिया वरना मैं कब का वहां चला गया होता.

    प्लीस सुने ! जनता की गरीबी हटाओ का यह सुगम ढंग है.

    इंदिरा जी सफल नहीं हो पाई –

    मनमोहन जी इन NGOs से कुछ सीखो और यह मोका हाथ से मत जाने दो.

    Please arise, awake and sleep not. कुछ तो करो गरीबी कम, भाई जी. .

  4. अगर यह सही है की ऐसा हो रहा है तो यह एक जुआ मात्र है. जुए में पैसा लगाना तो कभी भी खतरे से खाली नहीं होता. अतः इसमें पैसा लगाने वाला अगर नहीं सोच रहा है तो दूसरों को अपना दिमाग खराब करने की क्या आवश्यकता है? ऐसे भी इस देश में भगवान् की कृपा पर विश्वास करने वाले बहुत हैं,अतः जो लोग इस तरह पैसा कमा रहे हैं उनके बारे में सोच सोच कर अपना खून सुखाने की क्या जरुरत है? ये दूसरी बात है की कही हम यह तो सोच कर पागल नहीं हो रहे हैं की हमें इसमें हिस्सा बताने का अवसर क्यों नहीं मिल रहा है ?

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