सपना या सच

-मनोज लिमये

एक किसना था। सुबह हो या शाम पीकर आराम, यही इसके जीवन का मूल मंत्र था। पिता की असमय हुई मृत्यु ने इस मूलमंत्र में छुपी मूल आत्मा को थोड़ा नुकसान पहुँचाया है, पर जिन्दगी यथावत् जारी है। पहले पिताजी जब खेत देख लेते थे तब कभी ये सोचने की जरूरत नहीं हुई कि अनाज कहाँ से और कैसे आएगा पर अब यही सोच का मुख्य विषय बन गया था। किसना को आज ही उसके चाचाजी ने बताया कि खेत जल्दी से जल्दी यदि उसने अपने नाम नहीं करवाया तो परेशानी हो सकती है। ये खेत वाला काम सिर पर नहीं आता तो शायद उसे अपने पढ़े-लिखे ना होने का अफसोस भी नहीं रहता। किसना अपने चाचा, ग्राम के पंच, सरपंच और पटवारी को खुब जानता था उसे पता था कि आगे की राह आसान नहीं है। पत्नी भी आज दिनभर से चिल्ला रही थी कि पिताजी को गए महीना हो गया कोई काम तो शुरू करो पर वो हमेशा की तरह उसे अब सुनाकर रजाई-तकिए के आगे नतमस्तक हो गया।

ऑंख अभी ठीक से लगी भी नहीं थी कि दरवाजे पर हुई दस्तक से किसना उठ बैठा। दरवाजा खोला तो द्वार पर खड़ी विशाल काया को देख वो सहम गया। हाथों में सोने के मोटे-मोटे कड़े, सिर पर मुकूट, कानों में कूंडल, मस्तक पर टीका और कंधे पर भीमकाय गदा। भय और कौतूहल का मारा किसना सिर्फ इतना पूछ पाया ‘आप कौन’। द्वार पर खड़े रौबदार व्यक्ति ने उसे परे हटाते हुए अन्दर प्रवेश किया और कहा ‘मैं रावण हूँ। रावण ऽ ऽ ऽ ऽ मतलब लंका वाला या रामलीला की नौटंकी वाला . . . . . एक सांस में बोल गया था किसना।

अरे मूरख लंका वाला। असली वाला कहकर रावण ने समीप पड़ा मटका पानी पीने के लिए उठा लिया।

अतिथि दैवो भवो: वाली कहावत् किसना को आज पूरी तरह बकवास लग रही थी। महंगाई के जमाने में घर आया अतिथि वैसे ही देव नहीं लगता और यहां तो सचमुच का राक्षस ही आ धमका है। किसना ने सहमते हुए पूछा ‘महाराज आने का कोई विशेष कारण . . . . .

रावण ने कहा -‘पूछने आया हूँ। हर साल मैं ही क्यों? मुझे ही क्यों जलाते हैं?

किसना बोला, ‘हमारे बचपन में पिताजी के कंधे पर बैठकर जाते थे और दहन करके ही लौटते थे। अब बच्चों को सायकल पर लेकर जाता हूँ। बुराई का अंत हो इसलिए दशहरा मनाते हैं। पिताजी ने बताया था और उनका निधन हो गया (किसना बचना चाहता था)

रावण बोला –’जब एक बार मार दिया तो बार-बार क्यों? क्या मेरे अलावा कभी किसी ने पाप नहीं किया है। कंस भी तो कम नहीं था। उसे तो मथुरा और शाजापुर में ही मारा जाता है। फिर मैं सारे देश में, हर शहर में, हर गली में हर साल क्यों मारा जाता हूँ। किसना सोच में पड़ गया पर रावण का बोलना जारी था ‘तुम दिन रात नशा करके अपने परिवार पर जो जुल्म कर रहे हो। क्या मैंने उससे भी बुरा किया है। बच्चों को स्कूल न भेजना पत्नी को पीटना, पिता का अपमान करना, निठल्ला घुमना क्या ये सब पूजा करने योग्य कार्य है।

रावण बोलते जा रहे थे- ‘गाँव-शहर सब जगह पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, जाति-भाषा के झगड़े, भ्रूण हत्या, पेड़ों का विनाश और अन्य समाज विरोधी गतिविधियाँ क्या ये सब राक्षसीय काज नहीं है ?किसना सहमा और निरूत्तर था फिर भी भारी भरकम गदा को हाथ लगाते हुए पूछ ही बैठा- ‘महाराज सुना और देखा है। आपके तो 10 सिर थे क्या आप सचमुच में असली . . . . .

रावण ने क्रोधिक होते हुए कहा –’निपट मूरख मेरे 10 सिर तो मेरी विद्वता के लिए थे पर आज के समाज में लोग 10 से भी ज्यादा मुखौटे लगाकर लोगों को सरेआम ठग रहे हैं। सीना ताने घूम रहे हैं उन्हें कोई दण्ड नहीं। मेरा तो सिर्फ इतना दोष था कि मैं सीता को जंगल से उठाकर अशोक वाटिका ले आया था। उन्हें हाथ तक नहीं लगाया फिर भी इतने वर्षों से लगातार सजा। मैं तो मोक्ष का रास्ता जानता था इसलिए श्रीराम के मरने हेतु यह राह चुनी पर तू कौन से मोक्ष को प्राप्त करने के लिए इतनी पी रहा है।

किसना के पास जवाब नहीं था। उसका सिर रावण के सामने झुक गया। रावण ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा- ‘हर मनुष्य के अंदर राम और रावण दोनों हैं पर तुमने राम को ना पहचान कर रावण को ज्यादा महत्व दे दिया है। रावण को यदि सच में मारना है तो स्वयं को सम्हालो, जिम्मेदार बनो और अपने परिवार पर ध्यान दो। कागज़ और पटाखों में लिपटे रावण को मारकर यदि मन में रावण जीवित रहा तो दशहरे का क्या मायना। किसना को काटो तो खुन नहीं था। वो रावण की बातें सुनकर सहम गया और घबराहट में गश खाकर गिर गया।

ऑंख खुली तो सिरहाने पत्नी और बच्चों को देख उसे जीवन में पहली बार खुशी हुई। रावण कहीं नहीं था। पत्नी बोली- ‘सपने में ऐसा क्या देख लिया जो पसीना-पसीना हो रहे हो? किसना सपने में ही खोया था वो जानता था कि जो उसने देखा वो सपना था पर सच था। रावण की बातें उसे दशहरे का महत्व समझा गई थी। वो जान गया था कि कल रात रावण ने रावण को मार दिया था।

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