मेरे सपनों का बिहार, मेरे अपनों का बिहार

-फख़रे आलम-
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मैंने कभी भी बिहार को इतना खुशहाल, सम्पन्न नहीं देखा, जितना प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास बिहार को आर्थिक प्रशासनिक और संस्कृति रूप से ध्नी और सम्पन्न दिखाता है। कभी कभी मुझे इतिहास पर शक और सुभा होने लगता है के आखिरकार हमारा प्रदेश कब आत्मनिर्भर, सम्पन्न और खुशहाल बनेगा, आखिरकार प्रदेश का चौमुखी और बहुमुखी विकास कैसे और कौन करेगा?! बिहार और बिहार वासियों की गरिमा और प्रतिष्ठा कब स्थापित होगी?

प्रकृति ने बिहार को अपनी ओर से खूब नवाजा है। प्रकृति संसाध्न और श्रोत प्रदेश के विकास और प्रगति के लिए प्रयाणत है। मगर इच्छा शक्ति और राजनीति कुण्ठा ने बिहार को प्रगति के मार्ग पर चलने से रोका है। बिहार, संस्कृत का शब्द बिहार है। जिस का शाब्दिक अर्थ खेल कूद है। पिफर बिहार उस स्थान कहने लगे जहाँ पर बौद्ध भिक्षु धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने और खुशी जीवन जीते थे। फिर अधिक मात्रा में बुद्ध विहार के होने और बहुत मात्रा में सालों भर पानी जमा रहने के कारण इस स्थान का नाम बिहार पड़ा। मगध के राजा और उसकी शासन व्यवस्था इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। मगध की राजधनी सागर पुर का विशेष महत्व है। उत्तरी और दक्षिणी गंगा का मैदान प्रकृति की ओर से बिहार को वरदान मिला है। मगर इस उपजाऊ भूमि का महत्व स्वतंत्राता प्राप्त के 66 वर्षों के बाद भी न तो बिहार सरकार को और न ही केन्द्र सरकार को पता है। अप्रैल 1912 को बिहार राज्य के स्थापना की घोषणा से लेकर आज तक का इतिहास उपेक्षाओं, पिछड़ेपन, जातिगत, संघर्ष, गरीबी, शोषण, उत्पीड़न का इतिहास है।
जिस प्रदेश में गंगा, सरयू, गण्डक, बागमती, कमला, कोसी, पुनपुन, पफल्गु जैसी नदियाँ बहती है। उस प्रदेश में कभी अकाल तो कभी भयावह बाढ़ से प्रदेश और जनता पिछड़ती है। इसके पानी और इन देवियों के द्वारा लाये गये उपजाऊ भूमि का कभी सदउपयोग हुआ ही नहीं इन नदियों पर न तो कभी प्रयोजना बना का लाभ उठाया गया और न ही इनके पानी पर नियंत्राण के लिए योजना बनी। इन्हें प्रकृति के भरोसे आजाद और प्रदेश एवं जनता के भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया।

नए और प्रस्तावित प्रयोजनाओं का क्या, विशालतम वन क्षेत्रों में उपयोगी वनों की सुध् लेने वाला कोई नहीं। साल, शीशम, सेमल, तून और लाख जैसी वनसम्पत्तियाँ अब इतिहास में सामने को है। धन, गेहूँ, मक्का, जौ, मरुआ, ज्वार, बाजरा, गन्ना, जूट, तिलहन, दलहन, आलू, तम्बाकू जैसी पफसलों का रिकाॅर्डतोड़ उत्पादन करने वाला प्रदेश आज सरकारी उपेक्षाओं के कारण किसानों ने कृषि करना बंद कर दिया है। कारण उचित मूल्य ओर बाजार का अभाव हो अथवा मजदूरों का पलायन। पूर्वी सोन नहर, पश्चिमी सोन नहर, त्रिवेणी नहर, कमला नहर, कोसी परियोजना नहरें, राजपुर नहर, गण्डक प्रयोजना नहरें, ढाका, तेऊर, सकरी नहरे और पिफर कोसी विद्युत गृह, कटैया विद्युत गृह, मेदक, सोन प्रयोजना या तो बंद हो गई अथवा बंद होने के कगार पर है इनकी क्षमता बढ़ाने और नये प्रयोजनाओं पर काम होने के बजाय बंद कर दिया गया।

प्रदेश का उद्योग धंधे या तो बंद पड़ गया है अथवा बंद होने की स्थिति में है। नए उद्योग धंधे लगाने वाले बिहार में निवेश नहीं कर रहे हैं। कारण सुविधाओं, सुरक्षाओं और सरकारी उपेक्षा है। बिहार कभी भी बड़ा औद्योगिक नहीं रहा, मगर अपनी आवश्यकताओं की अधिक से अधिक वस्तु प्रदेश के उद्योग में अवश्य ही तैयार किये जाते थे। रेल के डिब्बे बनाने का कारखाना, काँच उद्योग, चीनी उद्योग, वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, तम्बाकू उद्योग, चावल मिले, आटा मिले, तेल मिले, लकड़ी उद्योग, कागज उद्योग, लाख उद्योग राज्य सरकार के अधिक सुचारू रूप से चलाये जाते थे। केन्द्र सरकार के माध्यम से नेशनल प्रोजेक्ट्स कंस्ट्रक्शन काॅर्पोरेशन, तेलशोधक कारखाना बरौनी, भारत वैगन एण्ड इंजीनियरिंग सभी बेहाल है और इसी बदहाटी ने प्रदेश में रोजगार के अवसर का घटाया है और मजदूर, युवा, पढ़े-लिखे प्रदेश से पलायन कर रहे हैं। साथ ही, बिहार राज्य शासन के औद्योगिक उपक्रम सिर्फ बोर्ड पर लिखा है। जमीनी और वस्तु स्थिति दयनीय है।

प्रदेश में रेल मार्गों ने न तो समय के अनुसार विस्तार ही हुआ और न ही आधुनिक प्रक्रियाओं में तेजी आई। प्रस्तावित प्रयोजनायें तो बस्ते में बंद है। प्रदेश में आज भी बड़ी आबादी छोटी और कोयला वाले रेल पर यात्रा करते हैं। प्रदेश का बड़ा भाग आज भी रेल की पटरियों से अनजान और अनभिग्य है। प्रदेश ने अनेकों रेल मंत्री दिये, मगर वह सब के सब बिहार के लिए तो कुछ नहीं कर सके, अपने-अपने हित में बहुत कुछ कर गये। प्रदेश का बहुत बड़ा भाग वर्ष भर में छह माह तक जल मगन रहता है। और लागों का संपर्क सड़कों अथवा शहरों से टूटा रहता है। पक्की सड़कें आज भी बिहार की विकास में बाधायें हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग का भी कार्य एनडीए के प्रथम शासनकाल में हुआ था, वह यूपीए के 10 वर्षों के अधीन ठप्प रहा। राजकीय मार्ग, ग्रामीण सड़के अभी इस पर युद्ध स्तर पर कार्य होना बाकी है। अन्य प्रदेशों की तुलना में अभी बहुत काम शेष है।

जनसंचार के क्षेत्रा में जहाँ पूरा भारत क्रांति के दौर से गुजर रहा है। वही बिहार के सुदूर गांवों और खेत खलिहानों में मोबाइल टावर लग गये हैं। मगर डाकव्यवस्था, आकाशवाणी और दूरदर्शन का विस्तार नहीं के बराबर हुआ है। साथ ही साथ अन्य प्रदेशों की तुलना में बिहार में निजी क्षेत्रों के संचार में निवेश नहीं के बराबर हुआ है। कभी ज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व गुरु या और भारत को विश्व गुरु बनाने वाला बिहार था। आज बिहार के बच्चे अन्य प्रदेशों को शिक्षा प्राप्ति के लिए सब से अधिक धन चुका रहे हैं। क्योंकि प्रदेश में प्राथमिक, मध्य और उच्च शिक्षा का बुरा हाल है। गिरती शिक्षा का स्थर ने बिहार की इज्जत, प्रतिष्ठा और विकास के मनोबल को तोड़कर रख दिया है। प्रदेश के तेरह विश्वविद्यालयों तीन शोध संस्थानों, छह चिकित्सा महाविद्यालयों, नौ विधि महाविद्यालयों एवं पांच आयुर्वेद महाविद्यालय का नाश कर दिया। कभी पटना विश्वविद्यालय से आॅक्सफोर्ड में उच्च शिक्षा ग्रहण करने वालों का साक्षात्कार नहीं लिया जाता था। आज बिहार से शिक्षा प्राप्त प्रत्येक छात्रा को संदेह की दृष्टि से और उनके प्रमाणपत्र को जाली समझा जाता है। पुस्तकालय, पशु चिकित्सा महाविद्यालय, इंजीनियरिंग महाविद्यालय, प्रयोगशालायें और अनुसंधान केन्द्र, कृषि महाविद्यालय, वानिकी महाविद्यालय, सब के सब अन्तिम सांस ले रहे हैं। स्थानीय स्तर पर और सरकारी सरत पर कभी क्षेत्राीय और प्रान्तीय भाषाओं में मगधी, भोजपुरी, मैथिली को प्रोत्साहित किया जाता था! आज यह प्राचीनतम भाषा मरने की स्थिति में है। जबकि मुण्डा पारिवार की भाषा, अंगिका, और वज्जिका लुप्त हो चुकी है। कभी बिहार के पर्व त्यौहार और मेलों में खुशी और उत्सव का माहौल होता था। आज गरीबी, राजनीति अराजकता लूट मार, गुण्डागर्दी, रंगदारी और रोज-रोज के पलायनों ने सभी रोनक छीन लिये और त्यौहारों का रंग जाता रहा। बड़े बड़े बैनर के दैनिक और पत्र-पत्रिकाओं ने बिहार से अपने संस्करण बंद कर दिये, प्रदेश में न्यूज चैनल चलाना घाटे का सौदा है, वही अन्य प्रदेशों और देशभर में बड़े-बड़े चैनल और पत्र-पत्रिका और दैनिक निकाले जा रहे हैं।

इसी प्रदेश से कभी आत्मकथा, आज, सर्वहितैषी, प्रदीप, नवीन भारत, विश्वामित्रा, जनशक्ति, पाटलिपुत्रा टाइम्स और आर्यवर्त जैसे दैनिक निकलते थे। बिहार में न तो सरकारी बैंकों का विस्तार हुआ और न ही निजी बैंकों का इन विस्तार के पीछे भय का वातावरण है। बैंक लूट लेने एटीएम उखाड़ ले जाना बिहार में आम सी बात है। बैंकों का विस्तार बड़े शहरों तक सीमित है। प्रदेश के विकास के लिए जैन ध्रर्म और बुद्ध ही काफी है जो इसी जमीन से विश्व पर छा गया मगर आज तक प्रदेश की सरकारों ने इन दोनों ध्मों के उत्पत्ति स्थल की अनदेखी की जिससे प्रदेश के पर्यटक और धर्मअभिलम्बियों से प्रदेश को बहुत घाटा हुआ। पाटलिपुत्र, कुम्हरार, भिखना पहाड़ी, हरमिन्दर, गोलघर, खुदा बक्श पुस्तकालय जालान का किला, पादरी की हवेली, पटना संग्रहालय, सदाकत आश्रम, सैफ की मस्जिद, सोनपुर का मेला, मुंगरे के किला, बोधगया, वैशाली, नालंदा, राजगिर, पावापुरी, मनेर, बिहार शरीपफ, सासराम, बरौनी, बालमीकि नगर, भागलपुर, आदि ऐतिहासिक और पर्यटन स्थलों का नाम बिहार के लोग भी नहीं जानते आखिर इसके लिए जिम्मेवार कौन है?

जब अशोक और उनके पुत्र एवं पुत्री बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रवार के लिये श्रीनगर, नेपाल और अफगानिस्तान के अनेकों स्थानों की स्थापना कर सकते हैं, मगर आज बिहार के नेता नवीन बिहार का निर्माण क्यों नहीं कर सकते। यह जमीन है अश्वघोष, आम्रपाली, गौतम बुद्ध, राजा जनक, सीता, जरासंध, महावीर, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, राहुल सांकृत्यायन, आर्यभट्ट, रामवृक्ष बेनीपुरी, रेणु, शेरशाह, कुंवर सिंह, राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, जयप्रकाश नारायण, दिनकर, नागार्जुन, केदारनाथ, शिवपूजन जैसी विभूतियों की इस जमीन में बहुत ऊर्जा है। आवश्यकता सिर्फ शुरूआत करने की है।

बड़े जनादेश के साथ केन्द्र में मोदी सरकार आ गई। पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार के गठन में बिहार का बड़ रोल रहा। अपने चुनाव प्रचार के क्रम में मोदी ने बिहार को और बिहार की जनता को जो भी आश्वासन दिये मुझे उम्मीद है कि बिहार के साथ अब पक्षपात और भेदभाव का दौर समाप्त होगा और न केवल प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी बल्कि बिहार से जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद भी बिहार को एक नये दौर में ले जाने के लिये अवश्य ही अथक प्रयास करेंगे।

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