नशे की फसल उगाता कश्मीर

जीनत जिशान फाजि़ल

हो सकता है यह बात विश्वास करने के लायक न हो, परंतु यह सत्य है कि धरती का स्वर्ग कहलाने वाला कश्मीर भी अफगानिस्तान की राह पर चल पड़ा है। जिस प्रकार इस क्षेत्र में नशे की खेती जोर पकड़ती जा रही है उससे तो यही महसूस होता है। नशे का सेवन न सिर्फ एक गंभीर समस्या है बल्कि इसका कारोबार और बिना सरकारी आज्ञा के इसका फसल उत्पादन करना भी गैर कानूनी है। इसके बावजूद यह क्षेत्र धीरे धीरे इस जाल में उलझता जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 में पुलिस ने 8831.5 कनाल भूमि पर फैली नशे की खेती को नश्ट किया था। जबकि 2011 में 7444 कनाल भूमि पर की जा रही अवैध खेती को नष्ट किया गया। आंकड़े बताते हैं कि वर्श 2010 के दौरान पुलिस ने 107 किलो 465 ग्राम चरस, 9947 किलो 400 ग्राम फूकी तथा तीन किलो 345 ग्राम ब्राउन शुगर जब्त किया था। इसी वर्श अबतक पुलिस कई लोगों के पास से तकरीबन एक किलो सौ ग्राम अफीम, 450 ग्राम हिरोईन, 360 ग्राम कोकिन, 70 किलो 200 ग्राम भांग तथा 65 किलो भांग का पौधा बरामद कर चुकी है। इस दौरान 300 लोगों को हिरासत में लिया इनमें 247 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया जिसमें एनडीपीएस के तहत अब तक 190 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

इसके अतिरिक्त पुलिस ने नशा बढ़ाने वाली दवाईयों की 3861 बोतलें, 10327 गोलियां और इंजेक्‍शन तथा 2022 कैप्सूल भी बरामद किया है। इसी तरह 2011 के दौरान पुलिस ने घाटी में विभिन्न स्थानों से 104 किलो 243 ग्राम चरस, 5860 किलो 100 ग्राम फूकी, 6 किलो 380 ग्राम ब्राउन शुगर, 251 किलो भांग बरामद किया है। जबकि नशा पैदा करने वाली दवाईयों के 6519 बोतलें, 8827 कैप्सूल और इंजेक्षन भी जब्त किया है। इस दौरान पुलिस ने एनडीपीएस के तहत 263 मामले दर्ज किए, 317 लोगों को हिरासत में लिया गया तथा 182 आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया।

माना जाता है कि राज्य में प्रत्येक वर्ष जितने एकड़ भूमि पर अफीम तथा इससे जुड़े नशे के अन्य फसलों की खेती होती है, पुलिस, आबकारी तथा राजस्व विभाग को उसका केवल एक तिहाई हिस्से का पता लग पाता है। इससे अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि राज्य में इसकी खेती में कितनी बड़ी जमीन का प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रवृति के बढ़ने के पीछे विशेषज्ञों का तर्क है कि अन्य फसलों के मुकाबले इसकी खेती में ज्यादा मेहनत की आवष्यकता नहीं होती है और फिर यह मुनाफे का सौदा भी साबित होता है। यही कारण है कि धीरे धीरे किसान अनाज की अपेक्षा इसे प्राथमिकता दे रहे हैं। एक किलो चरस के उन्हें आसानी से तीस से चालीस हजार रूपए मिल जाते हैं जो अन्य किसी भी फसल की तुलना में अधिक लाभ अर्जित करने का अवसर प्रदान करता है। औषधीय एवं सुरभित वनस्पति विभाग कश्मीदर के वैज्ञानिक डॉक्टर एम.ए.ए.सिद्दकी के अनुसार नकदी फसल होने के अतिरिक्त चरस आसानी से उगाया जाने वाला फसल है। इसके लिए न तो मजदूरों की आवष्यकता होती है, न सिंचाई की और न ही किसी देखभाल की जरूरत होती है। इसके लिए केवल खेतों में केवल बीज डालने की जरूरत है और फसल तैयार होने तक किसान निष्चिंत हो जाता है। विशेष बात यह है कि चरस खरपतवार के बीच भी आसानी से उग जाता है। कश्मीशर अपराध शाखा के आईजी राजा ऐजाज अली खान के अनुसार भांग जैसी गैर कानूनी फसल अब जंगली पौधों की श्रेणी में नहीं कहलाते हैं बल्कि इस नकदी फसल के रूप गिना जाता है।

प्रश्‍न यह उठता है कि आखिर यह सब कुछ सरकार के नाक के नीचे कैसे संचालित होता है? भांग, अफीम तथा इसके जैसे अन्य नशे को बढ़ावा देने वाली फसलें एनडीपीएस एक्ट 1985 के तहत गैर कानूनी है। जिसके लिए दस साल की कैद तथा एक लाख रूपए तक जुर्माना का प्रावधान है। इनकी खरीद फरोख्त करना भी जुर्म के दायरे में आता है। जाहिर है धड़ल्ले से हो रहे इस गैर कानूनी खेती के पीछे मजबूत और ताकतवर सरपरस्ती काम कर रही है। यही कारण है कि न केवल इसकी खेती को नजरअंदाज किया जा रहा है बल्कि इसे राज्य के बाहर भी भेजा जा रहा है। गैर कानूनी होने के कारण अबतक इसका किसी प्रकार सर्वे नहीं किया गया है। इस खेती को बढ़ावा देने में सबसे अधिक जिम्मेदार पटवारियों को माना जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार पटवारियों को प्रत्येक वर्ष राजस्व विभाग को यह रिपोर्ट देनी होती है जिसमें इस बात का उल्लेख होता है कि किस जमीन में कौन सी फसल उगाई जा रही है। परंतु भ्रष्ट पटवारी पैसे लेकर इन जमीनों पर अनाज के फसल दर्शाते हैं। जिससे विभाग को सटीक आकलन नहीं मिल पाता है कि नशे का कारोबार कितने एकड़ में फैला हुआ है। यहां तक कि जब किसी व्यक्ति को इसके गैर कानूनी उत्पादन के लिए पकड़ा जाता है तो वह पटवारी से अनाज उगाने का प्रमाण पत्र दिखाकर अदालत से बरी हो जाता है। हालांकि गैर कानूनी फसल उत्पादन से निजात पाने के लिए राज्य सरकार दो स्तर पर कार्य कर रही है। पहली तो यह कि वह किसानों को इससे होने वाले नुकसान तथा कानूनी पहलूओं के माध्यम से समझाने की कोशिश कर रही है वहीं दूसरी ओर वह इसके खिलाफ जबरदस्त अभियान चला रही है।

मनोरोग चिकित्सक डॉ मुश्ताक मरगूब के अनुसार कश्‍मीर की कुल आबादी का 3.8 प्रतिशत नशे का आदी हो चुका है। इस मामले में कश्‍मीर ने ईरान को भी पीछे छोड़ दिया है जहां कुल आबादी के 2.6 प्रतिशत लोग नशे का शिकार हैं। कश्मी़र की कुल आबादी के दो प्रतिशत लोग भांग का प्रयोग करते हैं जबकि 0.7 प्रतिशत लोग शराब तथा करीब 25 प्रतिशत लोग सिगरेट और इसके जैसे अन्य प्रकार से नशा का इस्तेमाल करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार अफीम का सेवन करने वालों की संख्या में कई गुना हो चुकी है। 1980 में केवल 9.5 आबादी अफीम का सेवन करती थी जो 2002 में बढ़कर करीब 73 प्रतिशत हो चुकी है, जो काफी चिंताजनक है। डॉ. मरगूब के अनुसार 80 के दशक तक हिरोईन और दूसरी अन्य नशीले पदार्थ मुंबई से राज्य में आते थे। परंतु धीरे धीरे यह इलाका अंतराश्ट्रीय स्तर पर नशे के कारोबार का केंद्र बिंदु बनता जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कश्‍मीर में नशे का बढ़ता चलन उसकी खतरनाक पृष्ठभूमि में तैयार हुआ है जहां आतंकवाद ने मौत, तबाही और बेरोजगारी के कारण जहां युवाओं को नशे का आदि बनाया है वहीं कम समय में अधिक पैसे के लालच ने किसानों को अनाज की जगह नशे का उत्पादन करने को प्रवृत किया है। ऐसे में जरूरत है समय रहते कश्मीर की जमीन पर उगने वाले इस कारोबार को खत्म कर दिया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्यर सुरक्षित किया जा सके। (चरखा फीचर्स)

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