ई-प्रशासन के युग में साइबर अपराध के बढ़ते दुष्प्रभाव

डाँ. रमेश प्रसाद द्विवेदी

आप लोगों को आजकल एक नई आवाज सुनाई दे रही होगी और वह है ‘ई-प्रशासन’ E-Governance, ‘इलेक्ट्रानिक प्रशासन’ अथवा ‘आय. टी. एडमिनिस्टे्रशन’ (Electronic Governance or IT Administration)। ई-प्रशासन वैकल्पिक प्रशासन है (E- Governance is the alternative government.)। ई-प्रशासन ऐसा शासन है जो कहीं भी, कभी भी, उपलब्ध है (E- Governance is Government any time any where.)। ई-प्रशासन सक्षम सरकार, सर्वश्रेष्ठ सरकार, एवं प्रभावी सरकार (E-Governance is really, E-nabled Government, E-xellent- Government and E-ffective Government) है। ई-प्रशासन का मतलब स्मार्ट गवर्नमेन्ट से है। स्मार्ट (SMART- S- Simple, M- Model, A-Accountability, R-Responsibility & T- Transparency) अर्थात इसका मतलब यह है कि सूचना तकनीकी के उपयोग से सरकार स्मार्ट हो जाएगी।

वर्तमान में प्रशासन के लिए Governance शब्द का प्रचलन है। आज तक प्रशासन संचालन का अधिकार सरकार का एकाधिकार माना जाता रहा है, क्योंकि उसके पास संप्रभु शक्ति के प्रयोग की क्षमता नहीं है। आगे चलकर वाणिज्य और औद्योगिक निगमों के क्रियाकलापों के लिए ‘कार्पोरेट गवर्नेस’, शब्द का प्रचलन एक फैशन बन गया है।

ई-प्रशासन से लाभ :

ई-प्रशासन सरकार और जनता के बीच संवाद स्थापित करने का अच्छा माध्यम है। इन्टरनेट, ईमेल, के माध्यम से सरकार अपने नागरिको से सीधा संवाद स्थापित करने में सक्षम हो हुई है। परम्परागत प्रक्रियाओं से सरकार को छुटकारा प्राप्त हुआ है। कार्य करने के तरीकों में निरन्तर सुधार देखा जा रहा है। दूरदराज के गांवों को जिला या राज्य या केन्द्र के मुख्यालयों से जोड़कर देरी कम की जा सकी है। आम व्यक्तियों का वित्त एवं समय की बचत होने लगी है। इस प्रशासन से सूचना का अधिकार को अमली जामा पहनाना आसान हुआ है। नौकरशाही के बोझ एवं प्रशासन में निर्णय चुस्त हुए है। उदाहरण- जैसे ही नागपुर शहर में कोई बाहरी ट्रक घुसता है उसका बजन, उसका नंबर सहित पूरे ढ़ाचे की वीडियोग्राफी हो जाती है। इसकी सूचना महाराष्ट्र राज्य के केन्द्रीय नियंत्रण कक्ष में पहुंच जाती है, जिससे स्थानीय अधिकारियों की मनमानी व सौदेवाजी के अवसर कम हुए है।

साइबर अपराध :

ई-प्रशासन के माध्यम से आज कार्य करना आसान हुआ है और दूरसंचार के साधनों के तेजी से विकास के साथ साथ देश में इन्टरनेट, के तेजी से बढ़ने की संभावना है लेकिन इसके साथ ही ई-प्रशासन के युग में सूचना प्रौद्योगिकी का दुरूपयोग के कारण सायबर अपराधों के बढने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता हैं। सायबर अपराधों की गति और भौगोलिक सीमाओं में निरन्तर वृध्दि हो रही है।

जल, थल और आकाश तीनों क्षेत्रों में अपराधों का विस्तार हुआ है। अपराधियों की पहुंच सभी स्थानों पर है। शासन कोई भी कानून बनाती है उसके पहले उसका तोड़ निकाल लिया जाता है। एक पुरानी कहावत है-” सौ राजा की बुध्दि एक चोर में होती है। आपने अक्सर सुना होगा कि बुजुर्ग लोग हमेशा कहा करते है कि ”चोर ही चांदनी रात न भावा” अर्थात अपराधियों की बुध्दि अंधकार में चलती है। लेकिन संगणक के विकास होने से सूचना व प्रौद्याोगिकी के क्षेत्र भी अपराधों और अपराधियों की पहुंच से बाहर नहीं है। यह चोरी प्रकाश में होने लगी है की कमरे बैठा व्यक्ति हाथ में एक माउस लेकर उतना नुकसान पहुचा सकता है जितना बंम और तोप भी नहीं पहुंचा सकते है।

आज के मानव का जीवन संगणक से जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र के अपराध क्या-क्या हो सकते है, इसे जानना प्रत्येक व्यक्ति के लिए जानना आवश्यक है। कोई भी आपराधिक कार्य जो संगणक अथवा संचार माध्यमों से जुड़ी है, वह साइबर क्राइम है। उदाहरण के तौर पर संगणक के माध्यम से वित्तीय धोखाधड़ी, पहचान की चोरी, हैकिंग, अश्लील संदेश, संप्रेषण टेलीफोन तकनीकी का दुरूपयोग, राष्ट्र विरोधी गतिविधियां, वायरस का फैलाव, निजी हित में संगणक का उपयोग, कंपनी नीति के विपरीत गतिविधि, संगणक नेटवर्क पर आक्रमण, प्रोनोग्राफी को प्रोत्साहन, अंतरिक एवं गुप्त सूचनाओं की चोरी, बौध्दिक संपदा की चोरी आदि गतिविधियां व कार्यकलाप साइबर अपराध कहा जाता है।

सर्व विदित है कि ई-प्रशासन के क्षेत्र में डाटा और सूचना दो चीजे हैं। डाटा संगणक में भंडारित रहते हैं और सूचना डाटा के आधार पर संप्रेषित की जाती है। इस प्रकार की अपराधिक गतिविधियां डाटा से जुड़ी होती है और वे अपने पीछे इलेट्रानिक प्रमाण छोड़ जाती है। साइबर अपराधों की जांच के लिए संगणक फरसेनिक एक सक्षम विधा है, जो विश्व स्तर पर विकसित हो रही है, इसमें सूचना प्रौद्योगिकी एवं और संगणक क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्ति रहते है।

ई-प्रशासन का महत्व व चुनौतियों के अध्ययन से कहा जा सकता है कि साइबर आपरध इस प्रकार है:-

वित्तीय घोखाधड़ी- इस प्रकार के अपराध में डिजिटल डाटा से खिलवाड़, वित्तीय संस्थाओं जैसे कैप, कार्यालय आदि के डाटा को गलत ढंग से प्राप्त करना आदि।

संगणक, मोबाईल और टेलीफोन नेटवर्क से संबंधित अपराध- इस प्रकार के अपराध में मुख्य रूप से हैकिंग, सेकिंग, ई-मेल के माध्यम से धमकी देना, अज्ञात ईमेल, मोबाईल फोन पर अश्लील संदेश देना, वायरस आदि शामिल है।

बौध्दिक धोखधड़ी – इस प्रकार के अपराध में पेटेंन्ट प्रोडक्ट की चोरी, साप्टवेयर पायरेसी, म्यूजिक पायरेसी आदि शामिल है।

गैर-साइबर अपराधों को विस्तारित करने में संगणक का उपयोग- इस प्रकार के अपराध में मुख्य रूप से सेनोग्रसफी से संबंधित है। इसमें संगणक में माध्यम से राष्ट्र विरोधी व समाज विरोधी कार्यकलाप भी शामिल हैं।

साइबर विधि :

सभी देशों ने साइबर अपराधियों को नियंत्रित करने के संबंध में विविध कानून बनाये है जिससे साइबर अपराधियों को पकड़ने व दंडित करने की प्रक्रिया भी तेजी से विकसित हो रही है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की विविध धाराओं के तहत सयबर अपराधियों के खिलाफ कार्यवाई की जा रही है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की कुछ धाराओं में संशोधन भी किया गया है ताकि अपराधियों के विरूध्द और सहजता पूर्वक कार्यवाही की जा सके। धारा 69 ए के तहत पुलिस को अधिकार है कि किसी भी बेबसाइट को ब्लाक कर सकती है। इंडियन कापी राइट एक्ट के तहत भी साइबर अपराधियों के विरूध्द कार्यवाही की जा रही है। साइबर फारसेनिक विशषज्ञों को और भी सशक्त करने की दिशा में चिंतन भी किया जाना चाहिए क्योकि इस क्षेत्र के अपराधी आपराध के नये नये तरीके अपना लिए है। देश के कई बड़े शहर हैदराबाद, बगलौर, लखनउ, दिल्ली, चेन्नै, आदि में साइबर थाने खेले गये है। पुलिस को उचित प्रशिक्षण देने के उपरांत इस थानों में पदस्थ किया जाता है। भारत में जुलाई 2009 में दिल्ली में देश के प्रथम साइबर रेग्यूलेटरी कोर्ट का सुभारंभ किया गया। यहा साइबर अपराधियों की सुनवाई होगी साइबर अपराधों की रोकथाम की दिशा में यह उल्लेखनीय कदम है। सइबर अपराध भारत, चीन, ब्राजील, कनाडा आदि देशों में बढ़ोत्तरी देखी गई है। भारत में काल सेन्टर के कारण साइबर अपराध की संख्या में बृध्दि हो रही है। 2000 में साइबर क्राइम में भारत का स्थान विश्व में 14 वां था। इन अनंत अपराधों पर नियंत्रण आवश्यक है। इसके लिए आवयश्क है साइबर ला का पालन कठोरता से किया जाय और दंड के प्रावधानों का प्रचार-प्रसार किया जाय।

साइबर अपराध को कम करने हेतु सुझाव :

सइबर अपराध में संगणक का प्रयोग या तो हथियार के रूप में किया जाता है या वह टारगेट रहता है। इसे टू द कम्प्यूटर और बाय द कम्प्यूटर भी कहा जा सकता है। इन अपराधों के पीछे मुख्य मूल उददे्श्य यह है- ब्लैकमेल, धमकी, लालच, बदले की भावना, गुप्त सूचनाओं को प्राप्त करना होता है। कई बार लाटरी के माध्यम से भी निजी जानकारियां मांगी जाती है तथा नौकरी व वितीय लाभ देने के प्रलोभन अपराधियों द्वारा दिया जाता है।

ई-वाणिज्य और ई-प्रशासन को बढ़ाने देने के लिए पुलिस एवं जाए अभिकरणों को प्रशिक्षित करके इस योग्य बनाया जाय कि वे साइबर अपराध की जांच कर सके।

पुलिस में संगणक के क्षेत्र अधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रशिक्षित करके इन अपराधियों से निपटने के योग्य बनाना चाहिए।

साइबर अपराधों से निपठने के लिए ई-अदलत का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें संगणक अपराध के जानकारों का सहयोग लिया जाना चाहिए।

किसी के बैंक खाते में कहीं से पैसे आता है तो तुरंत संबंधित वित्तीय संस्था से संपर्क करना चाहिए।

कानून के साथ ही साथ संगणक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वकीलों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, ताकि वे इन अपराधों से निपटने की अच्छी तरह से पैरवी कर सकें।

ई- मेल, दूरभाष संख्या हर किसी को नहीं देना चाहिए। यदि परेशानी हो तो पुलिस को जानकारी देना चाहिए।

असंदिग्ध ईमेल या अपराध का स्वरूप दर्शाते हुए आन लाईल अथवा आवेदन पर अपना विविरण देते हुए पुलिस को शिकायती आवेदन पत्र देना आवश्यक है जिसमे प्राप्त संदेश का पूर्ण विवरण हो और साथ ही इस प्रकार के ईमेल के जबाव देन से बचना चाहिए।

यदि प्रशासन एवं आम जनता इन सुझावों पर विचार कर कार्य करती है तो निश्चित ही इन अपराधों व भावी समस्याओं से बचा जा सकेगा।

संदर्भ

https:/www/mpinfo.org/news

लोक प्रशासन एवं शोध प्रविधि- बी. एल. फाड़िया, साहित्य भवन पब्लिकेशन- 2007.

लोकमत मराठी 1 नवम्बर 2010

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