नासा के पृथ्वी लोक

शुभ्रता मिश्रा

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय वैमानिकी और अन्तरिक्ष प्रबंधन के लिए उत्तरदायी ऐजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, जिसे संक्षेप में नासा कहा जाता है, आजकल काफी लोकप्रिय होती जा रही है। वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा व रोजगार के साथ साथ अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद जैसे विषयों के समानांतर इस समय लोगों में नासा द्वारा खोजी जा रहीं नित नवीन खोजों में दिलचस्पी काफी बढ़ गई है। ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि लोगों में पहले से ही धरती से इतर की आकाशीय दुनिया को देखने, जानने और समझने का कौतुहल अपनी शैशवावस्था से तभी प्रारम्भ हो जाता है, जब वह पहली बार आकाश में सूरज, चांद और सितारों को देखते हैं। ये वो परालौकिक खण्ड होते हैं, जो पृथ्वी से कितने ही दूर होकर भी निकट अनुभूत होते हुए सदा मानव मन-मस्तिष्क में घूमते रहते हैं। भारत के वेदों और धर्म पुराणों से लेकर अन्य प्राचीन वैश्विक सभ्यताओं यथा अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता और मिस्त्र व रोमन सभ्यताओं और यहां तक कि सिन्धु घाटी सभ्यता में भी पृथ्वी के बाहर ब्रह्माण्ड में सूर्यों और अनगिनत ग्रहों व चंद्रमाओं के अस्तित्व से संबंधित व्याख्यान और उपाख्यान भरे पड़े हैं।
अतः जब भी नासा कोई नई अंतरिक्षीय खोज करता है, तो वह कम से कम हम भारतीयों को कहीं से भी नई नहीं लगती वरन् प्रामाणिकता सिद्ध करने वाली अधिक प्रतीत होने लगती है। जब नासा को सूर्य पर ऊँ की ध्वनि सुनाई देती है, जब नासा को धरती के एक और चंद्रमा के बारे में पता चलता है, जब नासा को मंगल ग्रह पर किसी महिला की तस्वीर उकरती दिखती है और जब नासा और अनेकानेक सौरमण्डलों और पृथ्वीनुमा ग्रहों की पुष्टि करता है, तब हमारे वेद कहीं न कहीं हमें एक प्रामाणिक तुष्टिकरण के गौरवबोध से भरने की चेतना जगा देते हैं।
अमेरिका में पहले अंतरिक्ष के मामलों में परामर्श या निर्णय लेने के उद्देश्य से नेशनल एडवाइज़री कमेटी फॉर ऐरोनॉटिक्स (एनएसीए) के नाम से गठित की गई यह समिति 1 अक्टूबर, 1958 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट ईसेनहॉवर द्वारा सेवियत संघ द्वारा प्रक्षेपित किये गए पहले कृत्रिम उपग्रह के प्रत्युत्तर में नासा के रुप में परिवर्तित कर पुनःस्थापित की गई थी। अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण के समस्त कार्यक्रमों को संचालित करने वाले नासा ने अपने अनेक अतिविशिष्ट अपोलो चन्द्रमा अभियान, स्कायलैब अंतरिक्ष स्टेशन, अंतरिक्ष शटल से लेकर इस सदी के मानवरहित चांद, मंगल व अन्य सुदूर अंतरिक्ष में भी अंतरिक्षयान प्रक्षेपण अभियानों से हिन्दी की दांतों तले अंगुली दबाने वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है। इस तरह उद्भवित दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी नासा जब अपने हेडक्वार्टर वाशिंगटन से 27 फरवरी 2017 को सात नई पृथ्वियों के मिलने की घोषणा करती है, तो हमारी पूरी पृथ्वी पर इन नवीन पृथ्वियों के चर्चे छा जाते हैं।
अभी तक भी पूरी दुनिया नासा के इन सात नए लोकों के संसारों में उलझी हुई है। वैज्ञानिकों से लेकर आमलोगों तक हमारी पृथ्वी के विकल्प इन पृथ्वीनुमा बाह्यग्रहों में सोचे जाने लगे हैं। वैसे तो खगोलवैज्ञानिक दृष्टिकोण से ब्रह्माण्ड में आकाशगंगा में अनेक पराविश्रांत और रक्तवर्णीय बौने तारों का बाहुल्य एक आम बात मानी जाती है। इन बौनेतारों की परिक्रमा कर रहे मौजूदा ग्रहों को ढूँढकर उनके अध्ययनों से पृथ्वी जैसे ग्रहों के गठन को समझने में आसानी होती है। नासा अंतरिक्ष ऐजेंसी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर समझने के लिए ही इस तरह के शोधों में लगी हुई है और निरंतर इस तथ्य की खोज पर बल दिया जाता है कि इस ब्रह्मांड में जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई। पिछले कुछ दिनों से नासा द्वारा खोजे गए ट्रेपिस्ट-1 नामक बौने तारे का जिक्र बहुत हो रहा है। यह एक मद्धिम रोशनी वाला पराविश्रांत तारा है, जिसकी त्रिज्या गुरु ग्रह से मात्र 1.2 गुनी अधिक है। यह हमारी धरती से करीब 40 प्रकाश वर्ष दूरी पर स्थित है। इसे नासा के वैज्ञानिकों ने एक नए सौरमंडल के अस्तित्‍व के रुप में प्रस्तुत किया है। ऐसा कहा जा रहा है कि हमारे सूर्य का तेज इससे कहीं बारह गुना अधिक है। इसकी सतह का तापमान केवल 2550 डिग्री केल्विन है, जो मुश्किल से हमारे सूर्य के तापमान का आधा है।
ट्रेपिस्ट-1 तारे के आसपास पिछले वर्ष मई में तीन ग्रहों को परिक्रमा लगाते पाया गया था, लेकिन अभी 22 फरवरी को वैज्ञानिकों ने अपनी गणनाओं के आधार पर स्पष्ट किया कि ट्रेपिस्ट-1 के चारों ओर तीन नहीं बल्कि कुल सात पृथ्वी के आकार के ग्रह हैं। इन सातों ग्रहों को क्रमशः ट्रेपिस्ट-1 बी, सी, डी, ई, एफ, जी एवम् एच नाम दिए गए हैं। नासा के अनुसार उसकी अब तक की खोजों में ऐसा पहली बार देखा गया है कि एक तारे के चारों तरफ इस तरह के ग्रह दिख रहे हों। ये सातों ग्रह अपने तारे ट्रेपिस्ट-1 से अतिनिकट स्थित हैं और इसलिए हमारे सौरमण्डल के ग्रहों की तुलना में अपने तारे के चारों ओर की परिक्रमा करने में इनको अपेक्षाकृत बहुत ही कम समय लगता है। ट्रेपिस्ट-1 के सबसे निकटस्थ ग्रह ट्रेपिस्ट-1 बी मात्र डेढ़ दिन में और दूरस्थ ट्रेपिस्ट-1 एच लगभग बीस दिनों में अपनी परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। ये ग्रह आपस में भी काफी निकट दूरियों पर स्थित हैं, इनके बीच की दूरी हमारे सूर्य और बुध के बीच की दूरी से भी पांचगुना कम है। ट्रेपिस्ट-1 के सभी सातों ग्रह शैल प्रकृति के ठोस ग्रह हैं। इस सौरमण्डल के तीन ग्रह ट्रेपिस्ट-1 ई, एफ व जी आवासीय क्षेत्र में स्थित पाए गए हैं। आवासीय क्षेत्र से तात्पर्य अंतरिक्ष में किसी तारे से एक विशेष दूरी पर स्थित उसके कक्षीय उन ग्रहों की स्थिति से होता है, जिनमें जीवन की सम्भावना हो सकती है। वैज्ञानिक भाषा में इन क्षेत्रों को गोल्डीलॉक जोन भी कहा जाता है। कुछ प्रारम्भिक जलवायु मॉडलों के आंकलन के आधार पर यह माना जा रहा है कि ये तीनों ट्रेपिस्ट-1 ग्रह तापमान के उचित संतुलन को दृष्टिगत रखते हुए अपनी-अपनी सतहों पर जलप्रवाह के लिए सक्षम साबित हो सकते हैं। जल से ही जीवन है, इस शाश्वत सत्य को मूल में रखते हुए वैज्ञानिकों में इस बात की प्रेरणा जागी है कि इन सातों ग्रहों में से इन तीन ग्रहों और विशेषरुप से ट्रेपिस्ट-1 एफ में जीवन की सम्भावना अधिक प्रतीत होती है। क्योंकि यह काफी कुछ पृथ्वी की तरह ही ठण्डा है, जिसमें उपयुक्त वातावरण और कुछ हरितग्रह गैसों के होने की सम्भावना नजर आ रही है। तो ये तो नासा के बिल्कुल हाल ही में खोजे गए वे सात पृथ्वी लोक हैं, जिन्होंने अपने अस्तित्व की पहचान करवाकर पूरे ब्रह्माण्ड को हिलाकर रख दिया है।
नासा ने इन सात पृथ्वी लोकों के अलावा भी पहले ऐसे और पृथ्वी लोक खोजकर यह सिद्ध कर दिया है कि इस अंतहीन अंतरिक्ष में हम ही अकेले नहीं हैं, वरन् भारतीय महाभारत के दौरान दिव्य नेत्रों से अर्जुन ने श्रीकृष्ण में जिन अनंत ब्रह्माण्डों और सौरमण्डलों के दर्शन किए होंगे, वे कदाचित किवदंती तो नहीं ही कहे जा सकते। एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार सिर्फ हमारी आकाशगंगा में ही 10 हजार से लेकर 10 करोड़ तक परग्रही सभ्यताएं हो सकती हैं। नासा ने अपने एक अतिमहत्वाकांक्षी कैपलर मिशन के माध्यम से हमारे सौर मंडल में ही वृहस्पति ग्रह के चार चंद्रमाओं में से एक यूरोपा नामक चंद्रमा पर हमारी पृथ्वी की ही भांति हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की उपस्थिति होने का अनुमान लगाया है। नासा के शोधों से यूरोपा में बर्फ के एक विशाल समुद्र और उसके नीचे एक बड़े से भरेपूरे संसार के होने की आशा जताई गई है। पिछले सालों में नासा मंगल ग्रह पर लवणीय जल की उपलब्‍धता का प्रमाण भी प्रस्तुत कर चुका है, जिससे यह संभावना प्रबल हो गई है कि मंगल अभी भी भौगोलिक रूप से सक्रिय है और वहां पर जीवन हो सकता है।
24 जून 2015 को नासा ने सौरमंडल के अंदर ही पृथ्वी की तरह एक दूसरे ग्रह ‘कैप्लर 452बी’ को भी खोज निकाला है। नासा के इस पृथ्वीलोक की अपने तारे जी2 से दूरी सूरज की पृथ्वी से दूरी के ही समान पाई गई। कैप्लर 452बी भी पृथ्वी की ही तरह अपने तारे का चक्कर लगाने में 385 दिन लगाता है। आकार में हमारी पृथ्वी से लगभग डेढ़ गुना बड़ा यह चट्टानी ग्रह हमसे 1400 प्रकाश वर्ष दूर है। कैप्लर 452बी का पितृतारा कैप्लर 452 छह अरब वर्ष पुराना है, जो हमारे सूरज से भी 1.5 अरब वर्ष बड़ा है और 20% अधिक चमकीला है और प्रकाश भी देता है। इसका गुरुत्व बल पृथ्वी की तुलना में दोगुना है, अतः वैज्ञानिकों का मानना है कि इतने गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में कोई भी जीवधारी जीवित रह सकता है। यहां तक कि ऐसी परिस्थितियों में पौधे भी पनप सकते हैं। कैप्लर 452बी पर अत्यधिक मेघ और सक्रिय ज्वालामुखी होने की भी संभावना है। बल्कि यह न तो बहुत अधिक ठण्डा है और न ही बहुत अधिक गर्म है। पृथ्वी से गहरी समानता दर्शाने और जल व जीवन होने की प्रबल आशा के कारण नासा के इस पृथ्वीलोक को अर्थ 2.0 नाम दिया गया है।
इसके अलावा नासा ने हमारे सौर मंडल से बाहर भी अब तक लगभग सवा दोसौ से भी अधिक ऐसे पृथ्वीलोक जैसे ग्रह खोज निकाले हैं, जो गोल्डीलॉक जोन में आते हैं। इनमें पृथ्वी से 490 प्रकाश वर्ष दूर करीब 10 गुना बड़े ग्रह कैपलर 186 एफ, 20 प्रकाश वर्ष दूर लगभग दो से तीन गुना बड़ा शैलनिर्मित ग्लीस 581 जी, 22 प्रकाशवर्ष दूर लगभग साढ़े चार गुना बड़ा सुपर अर्थ नामक ग्लीस 667 सीसी ग्रह, 600 प्रकाश वर्ष दूर लगभग ढाई गुना बड़ा कैपलर-22बी और 22 प्रकाश वर्ष दूर पिक्टोर नाम के तारामंडल में स्थित एचडी 40307 ग्रह में भी जीवन की प्रबल सम्भावनाएं जताई हैं। नासा के कैपलर-22बी पृथ्वीलोक का सूरज हमारी पृथ्वी के सूर्य से बहुत मेल दर्शाता है। यहां तक कि नासा वैज्ञानिकों ने इस ग्रह पर पृथ्वी की ही भाँति हरितग्रह प्रभाव और औसत तापमान 22 डिग्री सेल्सियस पाया है। अतः नासा के इस पृथ्वीलोक में जैव अनुकूलनताओं की दृष्टि से जीवन की सम्भावना अधिक दिखाई देती है।
नासा के ये प्रमाणिक पृथ्वीलोक निःसंदेह हमारी भारतीय वैदिक संस्कृति में उल्लिखित अनेक लोकों यथा सत्यलोक या ब्रह्मलोक, तपो लोक, भृगु लोक, स्वर्ग लोक, इंद्र लोक, ध्रुव लोक, सप्तऋषि लोक, जन लोक या महर लोक, भूलोक, कर्मलोक, भुवर लोक, पाताल लोक आदि की पुष्टि करते हैं। नासा के पृथ्वीलोक इस उक्ति का कहीं न कहीं समर्थन सा करते प्रतीत होते हैं कि कल्पनाओं की उड़ानों में पंख यथार्थ के ही होते हैं। कल्पनाओं की पराकाष्ठाएँ भी कहीं न कहीं यथार्थ के देखे स्वरुप से ही जन्म लेती हैं, बस प्रमाणों की कसौटियां खोजनी पड़ती हैं। नासा के खोजे पृथ्वीलोक हम भारतीयों के लिए इन कसौटियों से कम नहीं माने जा सकते हैं।

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डॉ. शुभ्रता मिश्रा
डॉ. शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं। डॉ. मिश्रा के हिन्दी में वैज्ञानिक लेख विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं । उनकी अनेक हिन्दी कविताएँ विभिन्न कविता-संग्रहों में संकलित हैं। डॉ. मिश्रा की अँग्रेजी भाषा में वनस्पतिशास्त्र व पर्यावरणविज्ञान से संबंधित 15 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । उनकी पुस्तक "भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र" को राजभाषा विभाग के "राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012" से सम्मानित किया गया है । उनकी एक और पुस्तक "धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर" देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है । मध्यप्रदेश हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्रा के साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी गौरव सम्मान प्रदान किया गया है।

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