पूर्व मध्य काल का विस्मृति महानायक: सम्राट मिहिर भोज

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1919

-वीरेन्द्र सिंह परिहार-

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सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार अथवा परिहार वंश के क्षत्रिय थे। मनुस्मृति में प्रतिहार, प्रतीहार, परिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण माने जाते हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। कुछ जगहों पर इन्हें अग्निवंशी बताया गया है, पर ये मूलतः सूर्यवंशी हैं। पृथ्वीराज विजय, हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक, हम्मीर महाकाव्य पर्व (एक) मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में परिहार वंश को सूर्यवंशी ही लिखा गया है। लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे, उन्ही के वंशज परिहार है। इस वंश की 126वीं पीढ़ी में हरिश्चन्द्र का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी क्षत्रिय पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे। जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल बना।इसी का पौत्र नागभट्ट था, जो अदम्य साहसी, महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था। इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 756 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जर राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हे सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन, सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। 750 में अरबों ने पुनः संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा दी। लेकिन नागभट्ट कुद्ध्र होकर गया और तीन हजार से ऊपर डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया जिससे देश ने राहत की सांस ली। इसके बाद इसका पौत्र वत्सराज (775 से 800) उल्लेखनीय है, जिसने परिहार साम्राज्य का विस्तार किया। उज्जैन के शासन भण्डि को पराजित कर उसे परिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया।उस समय भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थी। परिहार साम्राज्य-उज्जैन राजा वत्सराज, 2 पाल साम्राज्य-गौड़ बंगाल राजा धर्मपाल, 3 राष्ट्रकूट साम्राज्य-दक्षिण भारत राजा धु्रव। अंततः वत्सराज ने पाल धर्मपाल पर आक्रमण कर दिया और भयानक युद्ध में उसे पराजित कर अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश किया। लेकिन ई. 800 में धु्रव और धर्मपाल की संयुक्त सेना ने वत्सराज को पराजित कर दिया और उज्जैन एवं उसकी उपराजधानी कन्नौज पर पालों का अधिकार हो गया। लेकिन उसके पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने उज्जैन को फिर बसाया। उसने कन्नौज पर आक्रमण उसे पालों से छीन लिया और कन्नौज को अपनी प्रमुख राजधानी बनाया। उसने 820 से 825-826 तक दस भयावाह युद्ध किए और संपूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया। इसने यवनों, तुर्कों को भारत में पैर नहीं जमाने दिया। नागभट्ट का समय उत्तम शासन के लिए प्रसिद्ध है। इसने 120 जलाशयों का निर्माण कराया-लंबी सड़के बनवाई। अजमेर का सरोवर उसी की कृति है, जो आज पुष्कर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि पूर्व काल में राजपूत योद्धा पुष्पक सरोवर पर वीर पूजा के रूप में नाहड़ राय नागभट्ट की पूजा कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे। उसकी उपाधि ‘‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर थी। नागभट्ट के पुत्र रामभद्र ने साम्राज्य सुरक्षित रखा। इनके पश्चात् इनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध मिहिर भोज साम्राट बना, जिसका शासनकाल 836 से 885 माना जाता है। सिंहासन पर बैठते ही भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। भोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है।

इतने विशाल और विस्तृत साम्राज्य का प्रबंध अकेले सुदूर कन्नौज से कठिन हो रहा था। अस्तु भोज ने साम्राज्य को चार भागो में बांटकर चार उप राजधानियां बनाई। कन्नौज- मुख्य राजधानी, उज्जैन और मंडोर को उप राजधानियां तथा ग्वालियर को सह राजधानी बनाया। प्रतिहारों का नागभट्ट के समय से ही एक राज्यकुल संघ था,  जिसमें कई राजपूत राजें शामिल थे। पर मिहिर भोज के समय बुदेलखण्ड और कांलिजर मण्डल पर चंदलों ने अधिकार जमा रखा था। भोज का प्रस्ताव था कि चंदेल भी राज्य संघ के सदस्य बने, जिससे सम्पूर्ण उत्तरी पश्चिमी भारत एक विशाल शिला के रूप में खड़ा हो जाए और यवन, तुर्क, हूण आदि शत्रुओं को भारत प्रवेश से पूरी तरह रोका जा सके। पर चंदेल इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंततः मिहिर भोज ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और इस क्षेत्र से चंदेलों को भगा दिया। मिहिर भोज परम देश भक्त था-उसने प्रण किया था कि उसके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उसने सबसे पहले राजपूताने पर आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे। इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय मिहिर भोज को जाता है। मिहिर भोज के शासन काल में कन्नौज साम्राज्य की सीमा रमाशंकर त्रिपाठी की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ कन्नौज, पेज 246 में, उत्तर पश्चिम् में सतलज नदी तक, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण पूर्व में बुंदेलखण्ड और वत्स राज्य तक, दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूतानें के अधिक भाग तक विस्तृत थी। सुलेमान तवारीखे अरब में लिखा है, कि भोज अरब लोगों का सभी अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक घोर शत्रु है। सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिन्दोस्ता की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-इसमें हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों रथ थे। भोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिर भोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।

भोज का तृतीय अभियान पाल राजाओ के विरूद्ध हुआ। इस समय बंगाल में पाल वंश का शासक देवपाल था। वह वीर और यशस्वी था-उसने अचानक कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और कालिंजर में तैनात भोज की सेना को परास्त कर किले पर कब्जा कर लिया। भोज ने खबर पाते ही देवपाल को सबक सिखाने का निश्चय किया। कन्नौज और ग्वालियर दोनों सेनाओं को इकट्ठा होने  का आदेश दिया और चैत्र मास सन् 850 ई. में देवपाल पर आक्रमण कर दिया। इससे देवपाल की सेना न केवल पराजित होकर बुरी तरह भागी, बल्कि वह मारा भी गया। मिहिर भोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में मिला लिया। भोज को पूर्व में उलझा देख पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो गये। इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने लगे। भोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000 तुर्की और हूण डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों को मृत्यु दण्ड दे दिया। तदनन्तर टक्क देश के शंकर वर्मा को हराकर सम्पूर्ण पश्चिमी भारत को कन्नौज साम्राज्य का अंग बना लिया। चतुर्थ अभियान में भोज ने परिहार राज्य के मूल राज्य मण्डोर की ओर ध्यान दिया। त्रर्वाण,बल्ल और माण्ड के राजाओं के सम्मिलित ससैन्य बल ने मण्डोर पर आक्रमण कर दिया। मण्डोर का राजा बाउक पराजित ही होने वाला था कि भोज ससैन्य सहायता के लिए पहुंच गया। उसने तीनों राजाओं को बंदी बना लिया और उनका राज्य कन्नौज में मिला लिया। इसी अभियान में उसने गुर्जरता, लाट, पर्वत आदि राज्यों को भी समाप्त कर साम्राज्य का अंग बना लिया।

भोज के शासन ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रकूटों ने मध्य भारत और राजस्थान को बहुत सा भाग दबा लिया था। राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष, भोज को परास्त करने के लिए कटिबद्ध था। 778 में नर्मदा नदी के किनारे अवन्ति में राष्ट्रकूट सम्राट अमोधवर्ष और मान्यरखेट के राजा कृष्ण द्वितीय दोनो की सम्मिलित सेना ने भोज का सामना किया। यह अत्यन्त भयंकर युद्ध था। 22 दिनों के घोर संग्राम के बाद अमोघवर्ष पीछे हट गया। इतिहासकारों का मानना है कि छठी सदी में हर्षवर्धन के बाद उसके स्तर का पूरे राजपूत युग में कोई राजा नहीं हुआ। लेकिन यह सभी को पता है कि हर्षवर्धन का जब एक तरह से दक्षिण भारत के सम्राट पुलकेशिन द्वितीय से मुकाबला हुआ था तो हर्षवर्धन को पीछे हटना पड़ा था। भोज के समय में राष्ट्रकूट भी दक्षिण भारत के एक तरह से एकछत्र शासक थे। परन्तु यहां पर राष्ट्रकूट सम्राट अमोधवर्ष को पीछे हटना पड़ा। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हर्षवर्धन और मिहिर भोज में श्रेष्ठ कौन?

स्कंद पुराण के वस्त्रापथ महात्म्य में लिखा है जिस प्रकार भगवान विष्णु ने वाराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष आदि दुष्ट राक्षसों से पृथ्वी का उद्धार किया था, उसी प्रकार विष्णु के वंशज मिहिर भोज ने देशी आतताइयों, यवन तथा तुर्क राक्षसों को मार भगाया और भारत भूमि का संरक्षण किया- उसे इसीलिए युग ने आदि वाराह महाराजाधिराज की उपाधि से विभूषित किया था। वस्तुतः मिहिर भोज सिर्फ प्रतिहार वंश का ही नहीं वरन  हर्षवर्धन के बाद और भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के पूर्व पूरे राजपूत काल का सर्वाधिक प्रतिभाशाली सम्राट और चमकदार सितारा था। सुलेमान ने लिखा है-इस राजा के पास बहुत बडी सेना है और किसी दूसरे राजा के पास वैसी घुड़सवार सेना नहीं है। भारतवर्ष के राजाओं में उससे बढ़कर अरबों का कोई शत्रु नहीं है। उसके आदिवाराह विरूद्ध से ही प्रतीत होता है कि वाराहवतार की मातृभूमि को अरबों से मुक्त कराना अपना कर्तव्य समझता था। उसके साम्राज्य में वर्तमान उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, ग्वालियर, मालवा, सौराष्ट्र राजस्थान बिहार, कलिंग शामिल था। यह हिमालय की तराई से लेकर बुदेलखण्ड तक तथा पूर्व में पाल राज्य से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला था। अपनी महान राजनीतिक तथा सैनिक योजनाओं से उसने सदैव इस साम्राज्य की रक्षा की। भोज का शासनकाल पूरे मध्य युग में अद्धितीय माना जाता है। इस अवधि में देश का चतुर्मुखी विकास हुआ। साहित्य सृजन, शांति व्यवस्था स्थापत्य, शिल्प, व्यापार और शासन प्रबंध की दृष्टि से यह श्रेष्ठतम माना गया है। भयानक युद्धों के बीच किसान मस्ती से अपना खेत जोतता था, और वणिक अपनी विपणन मात्रा पर निश्चिंत चला जाता था। मिहिर भोज को गणतंत्र शासन पद्धति का जनक भी माना जाता है, उसने अपने साम्राज्य को आठ गणराज्यों में विभक्त कर दिया था। प्रत्येक राज्य का अधिपति राजा कहलाता था, जिसे आज के मुख्यमंत्री की तरह आंतरिक शासन व्यवस्था में पूरा अधिकार था। परिषद का प्रधान सम्राट होता था और शेष राजा मंत्री के रूप में कार्य करते थे। वह जितना वीर था, उतना ही दयाल भी था, घोर अपराध करने वालों को भी उसने कभी मृत्यदण्ड नहीं दिया, किन्तु दस्युओं, डकैतों, हूणो, तुर्कों अरबों, का देश का शत्रु मानने की उसकी धारणा स्पष्ट थी और इन्हे क्षमा करने की भूल कभी नहीं की और न ही इन्हें देश में घुसने ही दिया। उसने मध्य भारत को जहां चंबल के डाकुओं से मुक्त कराया, वही उत्तर, पश्चिमी भारत को विदेशियों से मुक्त कराया। सच्चाई यही है कि जब तक परिहार साम्राज्य मजबूत  रहा, देश की स्वतंत्रता पर आंँच नहीं आई। पर जैसे ही यह कमजोर हुआ, तो पहले महमूद गजनवी के हमलों से देश को बुरी तरह लूटा गया तो बाद में पृथ्वीराज चौहान और जयचंद्र के समय में 12वीं सदी के अंत में देश में सचमुच के गुलामी की शुरूआत हो चली। मिहिरभोज की यह दूरदर्शिता ही थी कि उसने राज्यकुल संघ बना रखा था। वहीं शूरवीर और इतिहास का महान नायक कहे जाने वाला पृथ्वीराज चौहान बिना किसी ठोस वजह के सभी प्रमुख देशी राज्यों जैसे कन्नौज, गुजरात, कालिंजर से लड़ रहा था, जबकि मोहमम्द गौरी बराबर सीमा पर दस्तक दे रहा था। जिसका परिणाम था देश की गुलामीय सम्राट मिहिर भोज का साम्राज्य हर्षवर्धन के साम्राज्य से भी बड़ा था और यह महेन्द्रपाल और महिपाल के शासनकाल ई. सन् 931 तक कायम रहा। इस दौर में प्रतिहार राज्य की सीमाएं गुप्त साम्राज्य से भी ज्यादा बड़ी थी। इस साम्राज्य की तुलना पूर्व में मात्र मौर्य साम्राज्य और परवर्ती काल में मुगल साम्राज्य से ही की जा सकती है। वस्तुतः इतिहास का पुर्नमूल्यांकन कर यह बताने की जरूरत है कि उस पूर्व मध्यकाल दौर के हमारे महानायक सम्राट मिहिर भोज ही थे।

51 COMMENTS

  1. गुर्जर समाज ने किया घिनौना कार्य —
    पहले गुर्जर समाज का सच्चा इतिहास जानें !
    ”मध्य एशिया में एक देश है जार्जिया।
    कभी इसको गुर्जिया कहा जाता था। रूस ने इस पर
    कब्जा करके इसका नाम बदलकर जार्जिया कर दिया।
    अरब इतिहासकार इसे गुर्जिस्तान के नाम से पुकारते थे।
    इस प्रदेश में खानाबदोश चरवाहे रहते थे जिन्हें गुर्जर
    कहा जाता था।
    ये गुज्जर विभिन्न सेनाओ को दूध घी मांस की सप्लाई करते
    थे।
    जब हूणों ने भारत पर हमला किया तो ये गुज्जर हूणों के
    साथ भारत आये थे अपने मवेशी लेकर।
    बाद में हूण तो पराजित होकर अफगानिस्तान में बस गये
    और अब पश्तून या पख्तून या पठान कहलाते हैं (पश्त+हूण
    मतलब हारे हुए हूण -पश्तून।
    पश्तून से बिगड़ कर बना पख्तून
    और अंत में नाम पख्तून से बिगड कर हो गया पठान।)।
    कुछ गुज्जर उनके साथ अफगानिस्तान में रहने लगे।
    इसका सबूत है कि अफगानिस्तान के पठानो में गूजर पठान
    भी पाए जाते हैं।
    कुछ हूण भारत में ही रह गये वो गूजरो में मिल गये।
    इसका सबूत है कि भारत के गूजरो में हूण गोत्र मिलता है।
    भारत में ये दो हिस्सों में बंट गये। एक हिस्सा कश्मीर के
    पहाड़ो में बस गया ।आज भी वहां के गुज्जर
    अपनी पुरानी संस्कृति नही भूले।
    एक शाखा आज के दक्षिण पूर्वी राजस्थान में बस गयी।
    जिससे उस हिस्से को उस समय उनकी बड़ी आबादी के कारण
    गुर्जर राष्ट्र या गुर्जरत्रा कहा गया।किन्तु वहां राज
    प्रतिहार राजपूत ही करते थे ।
    गुर्जर प्रदेश के शासक होने
    के कारण ही इन्हें गुर्जर प्रतिहार कहा गया। किन्तु ये
    सूर्यवंशी राघव राजपूत थे। बाद में यही वंश बडगूजर
    राजपूत कहा जाने लगा।
    बाद में गुजरात की सीमाए बदल गयी और अब
    सौराष्ट्र,कच्छ,काठियावाड,लाट के मिलेजुले हिस्से
    को ही गुजरात कहा जाता है। पर
    वहां गूजरो की आबादी न के बराबर है।
    वहां के पटेल
    समुदाय से इनका कोई लेना देना नही है। न ही गुजरात में
    कोई गुज्जरो को जानता है।
    बाद में यही गुज्जर आज के यूपी,हरियाणा,पंजाब में पशु
    पालन करने,चोरी डकैती के काम करने लगे।
    राजपूतो ने इनकी ओरतो से शादी ब्याह किये जिससे
    उत्पन्न संतान से गूजरो में राजपूत पिता का गोत्र चल
    जाता था।
    इस प्रकार राजपूतो की अय्याशी से
    भी गूजरो की आबादी और उनमे राजपूत
    गोत्रो का प्रसार तेजी से बढ़ा।
    सिर्फ 70 साल पहले तक गूजरो के बुजुर्ग खुद को राजपूत
    समुदाय से निकला हुआ मानते थे। पर अब सम्पन्त्ता बढने
    और गुर्जर प्रतिहार राजपूत(बडगूजर)को ये अब गुज्जर
    मानकर अपना फर्जी इतिहास बनाने में लगे हैं।
    विकिपीडिया पर इन्होने राजपूतो के इतिहास
    को एडिट करके जगह जगह गुज्जर जोड़ दिया। पर इससे
    सच्चाई नही बदल सकती।
    आज के अधिकांश गुज्जर राजपूतो की संतान हैं इसीलिए
    गूजरो की भारतीय सेना में राजपूत रेजिमेंट में
    ही भर्ती की जाती है।
    यहाँ गूजरी राजपूत राजकुमारों के लिए धाय
    माता का काम करती थी और उनके रावलो में काम
    करती थी। इन गूजरी के बच्चो को धायभाई या दाभाई
    कहा जाता था। गूजर इस पर बहुत गर्व करते थे। आज
    भी राजस्थान के कई हिस्सों में गूजरो को दाभाई
    कहा जाता है। ”
    ———————
    १.गुर्जर – प्रतिहार राजपूत राजवंश को गुज्जर जाती ने
    गुज्जरो का वंश बताया है –
    अगर एसा होता तो पृथ्वीराज रासौ मे गुज्जरो को दूध –
    धहीं बेचने का प्रक्रण क्यु होता ?
    ” पै सक्करि सूबभत्तौ एकत्तो कणय राइ भाइसी ,
    कर कस्सी गुज्जरियं , रब्बरियं नेव जीवंती ”
    इस दोहे मे लितखा हैं – गुज्जरियो के हाथ की बनी चीज
    कोइ नहीं काता था –
    २.गुर्जरो के अखबार – भारतिय गुर्जर टाइमस 5जून
    2014 – में एक लेख था ‘ गुर्जरो के पतन का कारण ‘ — इस
    लेख के नीचे राजपूतो को अपमान किया हुआ था — उसमे
    लिक्खा था गुर्जर क्षत्रियो के दासियो से उतपन्न
    बालको को राजपूत कहाँ गया ——— !
    अगर गुर्जर राजा होते तो दूध – दही बेचकर गुजारा क्यु
    करते ? गुर्जर जाती का नाम भारत मे गोचर क्यु हैं ? और
    सबसे बडी बात —
    ग्वालियर का गूजरी महल – जो की राणा मान सिंह
    तौमर कि गूजरी रानी मृग्यणी के लिए राणा जी ने
    बनवाया था — मृगण्यणी राणा मान सिंह तो जंगल मे क्यु
    मिली अगर गुर्जर राजा थे तो जंगलो मे जिवन क्यु
    बिता रहे थे ???
    और राजा मान सिंह तौमर और मृगण्यणी के
    पूत्रो को राजपूतो मे न रखतक गूजरो के समूह मे क्यु
    डाला – और पिता का तोमर गोत्र क्यु दिया ??
    कुछ गुर्जर भाइ पृथ्वीराज चौहाण को गुर्जर कहते हैं ?
    जो की हसीँ के पात्र हैं ।
    और भी बहोत कुछ सबूत है जो उपर लिक्खे इतिहास
    को साबित करते हैं !
    इस बात की पुष्टी प्रतिहार वंश राजपूत
    क्षत्रियो का हैं ना की गूजर जाती कां – श्री देवी सिंह
    मंडावा की पुस्तक ” राजपूत शाखाओ का इतिहास ” व ”’
    प्रतिहारो का मूल इतिहास ” मे और ” प्राचीन राजपूत
    नगर ” राजपूत वंशावली व राजपूत क्षत्रिय वाटिका , व
    रघुनाथ जि की पुस्तक क्षत्रिय राजवंश भी करती हैं ।
    और विलियमस क्रुक , कर्नल जेमस टाड , ए.एम.टी जैक्सन ,
    आदी सभी गूजरो को विदेशी शुद्र खज्जर जाती का मानते
    हैं और साबुत भी करते हैं ।
    source — पुस्तक – ” गुर्जर – प्रतिहार एक राजपूत वंश
    [ बडगुजर , सिरवार , मढाड , खडाड आदि शाखाओ
    का इतिहास ] ,

    • Chal agar itna hi अभिमान है अपनी जात पर प्रेस कॉन्फ्रेंस से क्यों घबराते हो? महिपाल मकराना कई बार टाइम देकर गायब हो चुका है। कोन्न किसका बाप है फैसला कर लेते है? रही बात इतिहास और शिलालेख में गुज्जर और गुर्जर दोनों शब्दों के प्रमाण है। और रही बात भैंस पालने की तो वो राजपूत भी पालते है। पूरा दिन भैंसो में ही ईएसितेसी कराते है। अंग्रेजो और मुगलों के चापलूसों प्रूफ हो तो बात करो। ब्लॉग लिखने से इतिहास नहीं बनते। गुर्जर जाति के गद्दार जो मुगलों और अंग्रेजो से मिलकर गुर्जरों को सत्ता से बाहर किया वो राजपूत कहलाए। उनको गुर्जर समाज ने बहिष्कृत किया था। खैर बहस करने से कुछ नहीं होगा। गुर्जरों के अनेकों शिलालेख है। गुर्जर देश है प्राचीन प्रमाण है। ब्लॉग ना लिखे सीधे हम चुनौती देते है प्रेस कांफ्रेंस में आकर प्रूफ दो। नकली और असली का भेद पता लगेगा।
      अगर दम है तो आगे बात करना । मेरा मेल आईडी। choudharylomesh786@gmail.com

      सदस्य
      राष्टीय गुर्जर देवसेना

  2. संस्कृत में गुर्जर का मतलब होता है : दुश्मनों का नाश करने वाला। संधिविच्छेद करें तो गुर यानी दुश्मन और जर यानी नाश करने वाला से बना है गुर्जर। हकीकत यह है कि गुर्जर (गुज्जर, गूजर भी कहलाते हैं) वह कौम है, जिसने देश के लिए दुश्मनों (मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक) से लोहा लिया। गुर्जर हमेशा के लिए जिया है। अब समय है गुर्जर समाज के अतीत को सभी के सामने लाने का तथा इनसे प्र्रेणा लेकर देश को आगे बड़ाने का, हम सबको अतीत से सबक लेकर आगे वढने का समय है।

  3. गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत

    चीनी यात्री हेन सांग (629-645 ई.) ने भीनमाल का बड़े अच्छे रूप में वर्णन किया है। उसने लिखा है कि “भीनमाल का 20 वर्षीय नवयुवक क्षत्रिय राजा अपने साहस और बुद्धि के लिए प्रसिद्ध है और वह बौद्ध-धर्म का अनुयायी है। यहां के चापवंशी गुर्जर बड़े शक्तिशाली और धनधान्यपूर्ण देश के स्वामी हैं।”

    हेन सांग (629-645 ई.) के अनुसार सातवी शताब्दी में दक्षिणी गुजरात में भड़ोच राज्य भी विधमान था| भड़ोच राज्य के शासको के कई ताम्र पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनसे इनकी वंशावली और इतिहास का पता चलता हैं| इन शासको ने स्वयं को गुर्जर राजाओ के वंश का माना हैं|

    कर्नल जेम्स टोड कहते है राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं।

    पं बालकृष्ण गौड लिखते है जिसको कहते है रजपूति इतिहास तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई।

    इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज  थे।

    लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।

    स्मिथ ने कहा गुर्जर वंश, जिसने उत्तरी भारत में बड़े साम्राज्य पर शासन किया, और शिलालेख में “गुर्जर-प्रतिहार” के रूप में उल्लेख किया गया है, गुर्जरा जाति का था।

    डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह “एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा के वंशज हैं।

    डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों व अन्य अग्निवंशीय राजपूतों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हैं।
    जैकेसन ने गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है
    राजपूत गुर्जर साम्राज्य के सामंत थे गुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए

    इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना ​​है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।

    लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती
    (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा ​​तोमर था

    के.एम.पन्निकर ने”सर्वे ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री “में लिखा है गुर्जरो ने चीनी साम्राज्य फारस के शहंसाह,मंगोल ,तुर्की,रोम ,मुगल और अरबों को खलीफाओं की आंधी को देश में घुसने से रोका और प्रतिहार (रक्षक)की उपाधि पायी,सुलेमान ने गुर्जरो को ईसलाम का बड़ा दुश्मन बताया था।

  4. 11 वीं शताब्दी के कवि धनपाल जैन की तिलकमंजरी पुस्तक में भोज परमार गुर्जर राजवंश के प्रमाण

    वासिष्ठस्म कृतस्मयो वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोद्भवो ।भूपालः परमार इत्यभिधया ख्यातो महीमण्डले ॥अद्याप्युद्गतहर्षगद्गदगिरो गायन्ति यस्यार्बुदे ।विश्वामित्रजयोज्झितस्य भुजयोर्विस्फूजितं गुर्जराः ॥३

    (हिंदी में अनुवाद)

    राजा भोज का वश पर वसिष्ठ की स्त्री अरुन्धती रोने लगी ।उसकी ऐसी अवस्था को देख मुनि को क्रोध चढ़ गया और उसने अथर्व मंत्र पढ़ कर आहुति के द्वारा अपने अग्निकुंड से एक वीर उत्पन्न किया ।वह वीर शत्रुओं का नाशकर वसिष्ठ की गाय को वापिस ले आया ।इससे प्रसन्न होकर मुनि ने उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बना दिया ।धनपाल ‘ नामक कवि ने वि० सं० १०७० ( ई० स० १०१३ ) के करीब राजा भोज की आज्ञा से तिलकमञ्जरी नामक गद्य काव्य लिखा था ।उसमें लिखा है : आबू पर्वत पर के गुर्जर लोग , वसिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न हुए और विश्वामित्र को जीतनेवाले , परमार नामक नरेश के प्रताप को अब तक भी स्मरण किया करते हैं ।गिरवर ( सिरोही राज्य ) के पाट नारायण के मन्दिर के वि० सं० १३४४ ( ई० सं० १९८७ ) के लेख में इस वंश के मूल पुरुष का नाम उत्पन्न होने के स्थान पर वसिष्ठ की नन्दिनी गाय के हुकार से पल्हव , शक , यवन , आदि म्लेच्छों काउत्पन्न होना लिखा है : तस्या हुंभारवोत्कृष्टाः पल्हवाः शतशो नृप ॥१८ ॥भूय एवासृजद्घोराच्छकाम्यवनमिश्रितान्

  5. पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है। वर्ष 1191-93 ई. के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ‘जयानक’ ने की। इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है।और पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर लिखा है

    दसवीं शताब्दी में देवनारायण भगवान चौहान वंश के गुर्जर थे और महाराणा प्रताप भी लड़ाई से पहले देवनारायण की पूजा करते थे और आज भी गुर्जर के भगवान है और पुरे राजस्थान मे गुर्जर उनकी पूजा करते है
    और देव नारायण भगवन की वजह से पुष्कर मे गुर्जर घाट बना और पहले पुष्कर मे सिर्फ गुर्जरो को ही पूजा करने का अधिकार था
    और देव नारायण भगवान के वंश मे ही पृथ्वीराज चौहान हुए

    जय देवनारायण भगवान?

  6. राष्ट्रकूट शिलालेखों की सूची है:

    अवांछित और खंडित दासवतारा गुफा शिलालेख का उल्लेख है कि दांतिदुर्ग ने उज्जैन में उपहार दिए थे और राजा का शिविर गुर्जरा महल (उज्जैन में सभी संभावनाओं में) में स्थित था (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास)।
    अमोगवरास (साका संवत 793 = एडी 871) के संजन तांबे की प्लेट शिलालेख दांतिदुर्ग को उज्जैनिस दरवाजे के रखवाले (एल, वॉल्यूम XVIII, पृष्ठ 243,11.6-7) के गुर्जारा भगवान को बनाने के साथ, प्रतिहार नाम दिया गया

    करका द्वितीय (एडी 812-13) की बड़ौदा प्लेट इंद्रदेव को फैलाती है, जिसे कहा जाता है कि अकेले ही गुर्जरा वंश के भगवान को उड़ान भरने के लिए रखा गया है (भारतीय पुरातन [अब से आईए], खंड XII, पृष्ठ 160, 11। 33-34)।बाद में उसी शिलालेख में कहा गया है कि करका ने गुर्जरा वंश के भगवान की दिशा में मालवा के शासक को सुरक्षा प्रदान की, जो गौड़ा और वंगा (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास, पृष्ठ 455) पर उनकी जीत के कारण अपमानजनक होगया था।)।

    गुजरात शाखा के ध्रुव III (एडी 867) की बागुरा तांबे की प्लेट ध्रुव द्वितीय के संदर्भ में कहती है कि ‘उन्हें एक तरफ गुर्जरा जाति का सामना करना पड़ा और वल्लभा को दूसरी तरफ’ (आईए, वॉल्यूम XII, पृष्ठ 188) का सामना करना पड़ा।

    अमोगवर्सा के निलगुंडा शिलालेख (एडी 866) ने गोविंदा (जिसे जगतुंगा भी कहा जाता है) को ‘केरल और मालवा और गौड़ा के लोगों को, गुर्जरा के साथ, जो कि चित्रकुटा के पहाड़ी किले में रहते थे’ (एल, वॉल्यूम VI) ,पीपी 102-3, 11. 6-7)।

    कृष्ण III (एडी 9 5 9) की करहद प्लेटें कहती हैं, ‘उन्होंने जो सुखद शब्द बोलते थे, जिन्होंने गुर्जरा से डर दिया था’ (एल, वॉल्यूम IV, पृष्ठ 283, 1. 22)।वही प्लेटें आगे कहती हैं कि दक्षिणी क्षेत्र में सभी गढ़ों की विजय सुनने पर, नाराज नज़र के माध्यम से, कलंजारा और चित्राकुटा के बारे में आशा गुर्जरा (इबिद।, पृष्ठ 284, 1. 44) से गायब हो गई।)।

    गोविंदा III (एडी 805) का नेसरिका अनुदान भी गुर्जरा जाति की हार को उनके हाथों (एल, वॉल्यूम XXXIV, पृष्ठ 130,1 24) पर दर्शाता है।कहा जाता है कि छंदों के बाद के सेट में, उन्होंने अपने शाही चिन्ह के चौदह राजाओं को वंचित कर दिया है, जिनमें से एक गुर्जरा था।

  7. गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द – ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत

    गुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह राजपूत)

  8. वीर गुर्जर – प्रतिहार राजाओ के ऐतिहासिक अभिलैख प्रमाण

    प्रतिहार एक उपाधि(tital) थी जो राष्ट्रकूट राजा ने गुर्जर राजा को दी थी???????

    1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :—
    अमोघ वर्ष शक सम्वत
    793 ( 871 ई . ) का
    सज्जन ताम्र पञ ) :—- I
    इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे “हिरण्य – गर्भ – महादान ” नामक यज्ञ किया अवांछित और खंडित दासवतारा गुफा शिलालेख का उल्लेख है कि दांतिदुर्ग ने उज्जैन में उपहार दिए थे और राजा का शिविर गुर्जरा महल उज्जैन में स्थित था (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास)।
    अमोगवरास (साका संवत 793 = एडी 871) के संजन तांबे की प्लेट शिलालेख दांतिदुर्ग को उज्जैनिस दरवाजे के रखवाले (एल, वॉल्यूम XVIII, पृष्ठ 243,11.6-7)तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया )और प्रतिहार नाम दिया
    ( ” हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम ” )

    2. सिरूर शिलालेख ( :—-
    यह शिलालेख गोविन्द – III के गुर्जर नागभट्ट – II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे ” गुर्जरान ” गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है।
    ( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान )
    { सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व – दीक्षित – पृष्ठ – 181 }

    3. बडोदा ताम्रपत्र ( 811 ई.) :—
    कर्क राज का बडोदा ताम्रपत्र शक स. 734 ( 811-812 ई ) इस अभिलेख मे गुर्जरैश्वर नागभट्ट – II का उल्लेख है ।
    ( गोडेन्द्र वगपति निर्जय दुविदग्ध सद गुर्जरैश्वर -दि गर्गलताम च यस्या नीतवा भुजं विहत मालव रक्षणार्थ स्वामी तथान्य राज्यदद फलानी भुडक्तै” )
    { सन्दर्भ :- इडियन एन्टी. भाग -12 पृष्ठ – 156-160 }
    4. बगुम्रा-ताम्रपत्र ( 915 ई. )
    इन्द्र – तृतीय का बगुम्रा -ताम्र पत्र शक सं. 837 ( 915 ई )
    का अभिलेख मे गुर्जर सम्राट महेन्द्र पाल या महिपाल को दहाड़ता गुर्जर ( गर्जदै गुर्जर – गरजने वाला गुर्जर ) कहा गया है ।
    ( धारासारिणिसेन्द्र चापवलयै यस्येत्थमब्दागमे । गर्जदै – गुर्जर -सगर-व्यतिकरे जीणो जनारांसति।)
    { सन्दर्भ :-
    1. बम्बई गजेटियर, भाग -1 पृष्ट – 128, नोट -4
    2. उज्जयिनी इतिहास तथा पुरातत्व, दीक्षित – पृष्ठ – 184 -185 }

    5. खुजराहो अभिलेख ( 954 ई. ) :—-
    चन्दैल धगं का वि. स . 1011 ( 954 ई ) का खुजराहो शिलालैख सख्या -2 मे चन्देल राजा को मरु-सज्वरो गुर्जराणाम के विशेषण से सम्बोधित किया है ।
    ( मरू-सज्वरो गुर्जराणाम )
    { एपिग्राफिक इडिका – 1 पृष्ठ -112- 116 }

    6. गोहखा अभिलेख :–
    चैदिराजा कर्ण का गोहखा अभिलैख मे गुर्जर राजा को चेदीराजालक्ष्मणराजदैव दवारा पराजित करने का उल्लेख किया गया हे ।
    ( बगांल भगं निपुण परिभूत पाण्डयो लाटेरा लुण्ठन पटुज्जिर्जत गुज्जॆरेन्द्र ।
    काश्मीर वीर मुकुटाचित पादपीठ स्तेषु क्रमाद जनि लक्ष्मणराजदैव )
    { सन्दर्भ :- 1. एपिग्राफिक इडिका – 11 – पृष्ठ – 142
    2. कार्पस जिल्द – 4 पृष्ठ -256, श्लोक – 8 }

    7. बादाल स्तम्भ लैख:–
    नारायण पाल का बादाल सत्म्भ लैख के श्लोक संख्या 13 के अनुसार गुर्जर राजा राम भद्रदैव ( गुर्जर – नाथ) के समय दैवपाल ने गुर्जर- प्रतिहार के कुछ प्रदेश पर अधिकार कर लिया था ।
    ( उत्कीलितोत्कल कुलम हत हूण गर्व खव्वीकृत द्रविड गुर्जर-नाथ दप्पर्म )
    { सन्दर्भ :–एपिग्राफिक इडिका – 2 पृष्ठ – 160 – श्लोक – 13 }

    8. राजोरगढ अभिलेख ( 960 ई. ) :–
    गुजॆर राजा मथन दैव का वि. स. ( 960 ई ) का राजोर गढ ( राज्यपुर ) अभिलेख मे महाराज सावट के पुत्र गुर्जर प्रतिहार मथनदैव को गुर्जर वंश शिरोमणी तथा समस्त जोतने योग्य भूमि गुर्जर किसानो के अधीन उल्लेखित है ।
    ( श्री राज्यपुराव सिथ्तो महाराजाधिराज परमैश्वर श्री मथनदैवो महाराजाधिरात श्री सावट सूनुग्गुज्जॆर प्रतिहारान्वय …… स्तथैवैतत्प्रतयासन्न श्री गुज्जॆर वाहित समस्त क्षैत्र समेतश्च )

  9. गुर्जर वंश के शिलालेख)????
    नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है ।राजजर शिलालेख” में वर्णित “गुर्जारा प्रतिहारवन” वाक्यांश से। यह ज्ञात है कि प्रतिहार गुर्जरा वंश से संबंधित थे।

    ब्रोच ताम्रपत्र 978 ई० गुर्जर कबीला(जाति)
    का सप्त सेंधव अभिलेख हैं

    पाल वंशी,राष्ट्रकूट या अरब यात्रियों के रिकॉर्ड ने प्रतिहार शब्द इस्तेमाल नहीं किया बल्कि गुर्जरेश्वर ,गुर्जरराज,आदि गुरजरों परिवारों की पहचान करते हैं।

    बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से हुआ है।
    राजोरगढ़ (अलवर जिला) के मथनदेव के अभिलेख (959 ईस्वी ) में स्पष्ट किया गया है की प्रतिहार वंशी गुर्जर जाती के लोग थे

    नागबट्टा के चाचा दड्डा प्रथम को शिलालेख में “गुर्जरा-नृपाती-वाम्सा” कहा जाता है, यह साबित करता है कि नागभट्ट एक गुर्जरा था, क्योंकि वाम्सा स्पष्ट रूप से परिवार का तात्पर्य है।
    महिपाला,विशाल साम्राज्य पर शासन कर रहा था, को पंप द्वारा “गुर्जरा राजा” कहा जाता है। एक सम्राट को केवल एक छोटे से क्षेत्र के राजा क्यों कहा जाना चाहिए, यह अधिक समझ में आता है कि इस शब्द ने अपने परिवार को दर्शाया।

    भडोच के गुर्जरों के विषय दक्षिणी गुजरात से प्राप्त नौ तत्कालीन ताम्रपत्रो में उन्होंने खुद को गुर्जर नृपति वंश का होना बताया

    प्राचीन भारत के की प्रख्यात पुस्तक ब्रह्मस्फुत सिद्धांत के अनुसार 628 ई. में श्री चप
    (चपराना/चावडा) वंश का व्याघ्रमुख नामक गुर्जर राजा भीनमाल में शासन कर रहा था

    9वीं शताब्दी में परमार जगददेव के जैनद शिलालेख में कहा है कि गुर्जरा योद्धाओं की पत्नियों ने अपनी सैन्य जीत के
    परिणामस्वरूप अर्बुडा की गुफाओं में आँसू बहाए।

    । मार्कंदई पुराण,स्कंध पुराण में पंच द्रविडो में गुर्जरो जनजाति का उल्लेख है।

    अरबी लेखक अलबरूनी ने लिखा है कि खलीफा हासम के सेनापति ने अनेक प्रदेशों की विजय कर ली थी परंतु वे उज्जैन के गुर्जरों पर विजय प्राप्त नहीं कर सका

    सुलेमान नामक अरब यात्री ने गुर्जरों के बारे में साफ-साफ लिखा है कि गुर्जर इस्लाम के सबसे बड़े शत्रु है

    जोधपुर अभिलेख में लिखा हुआ है कि दक्षिणी राजस्थान का चाहमान वंश गुर्जरों के अधीन था
    कहला अभिलेख में लिखा हुआ है की कलचुरी वंश गुर्जरों के अधीन था
    चाटसू अभिलेख में लिखा हुआ है की गूहिल वंश जोकि महाराणा प्रताप का मूल वंस है वह गुर्जरों के अधीन था
    पिहोवा अभिलेख में लिखा हुआ है कि हरियाणा का शासन गुर्जरों के अधीन था
    खुमाण रासो के अनुसार राजा खुमाण गुर्जरों के अधीन था

    भिलमलक्काचार्यका ब्रह्मा स्फूट सिद्धांत
    उद्योतनसुरी की कुवलयमाला कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी
    प्रबन्ध कोष ग्रन्थ व खुमान रासो ग्रंथ के अनुसार गुर्जरों ने मुसलमानों को हराया और खुमान रासो
    राम गया अभिलेख
    बकुला अभिलेख
    दौलतपुर अभिलेख
    गुनेरिया अभिलेख
    इटखोरी अभिलेख
    पहाड़पुर अभिलेख
    घटियाला अभिलेख
    हड्डल अभिलेख
    रखेत्र अभिलेख
    राधनपुर और वनी डिंडोरी अभिलेख
    राजशेखर का कर्पूर मंजरी ग्रंथ, काव्यमीमांसा ग्रंथ ,विध्दशालभंजिका ग्रंथ
    कवि पंपा ,
    जैन आचार्य जिनसेन की हरिवंश पुराण आदि के द्वारा दिया गया

    लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था।
    इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना ​​है कि तनवार गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।

    लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती
    (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा ​​तनवार था

    गुर्जर साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त हो गया ।इनमें से मुख्य भागों के नाम थे:

    शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान)
    दिल्ली के तनवार गुर्जर
    मंडोर के गुर्जर प्रतिहार
    बुन्देलखण्ड के कलचुरि गुर्जर
    मालवा के परमार गुर्जर
    मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल गुर्जर
    महोवा-कालिजंर के चन्देल गुर्जर
    सौराष्ट्र के चालुक्य गुर्जर

  10. albaruni ho ya aaj ke writer todd tk ya us time ke silalekh sbne mihirboj ko gujjar vansh ka kha h gujjaro ki wajha se usko gujratra kha gya mtlb wo land jo gujjar ki wajha se surakshit hai or kbhi history check krna sb jagha book ho ya silalekh sb jagha gujjar word milta hai or rha rajput ka to rajput ka word 14th century se phele kisi book mai ho to bta dna

  11. वीरेंद्र परिहार जी आपके लिखने का अंदाज बहुत बहुत काबिले तारीफ है.

  12. Esska Matlab arjun vats rishi gujjar thai yani Mahabharat​ me bhi sabhi Kshatriya nhi the sab gujar the bhai gujjar ka matlab hai gujrat jiska name pehela gujratara tha bhai jaise mewad me rehna vala mewadi bhai Kshatriya​ Dharam Parshuram ne banaya tha kehe do vo bhi Gujjar the kya yaar acha bhai aap log Rajput Kshatriya ko gujjar​ se neeklai huai kai reho ho bhai Kshatriya kai kuldevi hoti esska Matlab Bhagwan bhi gujjar thai kya bhai mihir bhoj Kshatriya Dharam ke thai jeenoh nai gujjar Desh me raj kiya tha eseliye unhe Gujjarnresh kaihaite he Kshatriya Dharam Gujjar nhi hai or bakee aap sabh ke sooch jo marji keho or ek baat or jab Maharana Pratap mughalo se lad rehe thai to gujjro ne unka sath kyi nhi diyaa aap to bahut mahan thai kya bhai kuch bhi jo mhuu mai aaya vo boldoo

    • Maharana Pratap ke pita Uday Singh ko panna dhai Gurjri ne apne putr ki bali dekr bachaya tha Uday Singh ko bachane ke liye apne putr chandr sekhr ki gardan katwadi thi or Uday Singh ko bacha liya tha or tbi maharana parta huy isliye bhai kuch b bolne se phle ap itihaas pad lijiye

    • Bhai mere Teri history kuch jyada hi kamjor h Bhagwan Parshuram Brahman the jinhone kshatriyo ko mara aur unki jameen ko brahamano ko Dan kiya. Kiya yar kuch bhi Matlab Brahman ko kshatriya bna diya?????. Wah Rajputo. Kehdo ki tumhare rajao ne apni behno ki shadi mughalo se nhi Kari wo bhi jhut h.

  13. By d way historians(not bards) both Indians as well as foreigners like James Todd,denim ibbetson,aydogdy kurbanov,john keay ,irawati karve,brij kishore sharma,baij nath Puri,d b bandarkar,people of india (anthropogical survey of india ),and it own thakur yashpal singh rajpoot etc. claim that many of the rajput clans came out of gurjars.
    So by bad mouthing us u r actually abusing ur own forefathers.spitting on ur own face.

    • Acha Bhai to bta na fir Tumhare Bhati, Rathi, Raval, Rawat, Mavi, Nagar, Chauhan, chhoker, parmar, etc kaha se aye or inhi same gotra k log apne app ko gurjar kyu kehte hai or Gurjar kehne walo ki population inse jyada h. Tanwar gotra Jo ki Dalit, Rajput or Gurjar Tino m h us ke bare m kya kehna h. Tujhe to pta b nhi hoga ki rajputo m ye gotra b hote h. Last me ek hi example dunga agar dimag hoga to samajh jayega. “Agar Mera beta ya Bhai musalmano ho gya to iska Matlab ye nahi ki mai bhi musalman hi hu.”

    • Aur Jo tu ye angreji bol rha h ye bhi unhi angrejo ki di hui h jinke bare tu bol rha h ki unhone itihas toda. Unhone sachai batai Jo tumhe hajam nhi hui. Tum to ye bhi claim karte ho ki Ahir nhi Rajput Yaduvanshi hai. Kyo dusro ke itihas ko apna banane me lge ho. Truth is truth whether you accept it or not it’s totally up to you. Ap se ek hi bat kahunga ki apni cast ka dikhawa mat karo. Kal ko tum kehdoge Gurjar Samrat Kanishk bhi Rajput the.?????

  14. Gurjar pratihar king mahipal ko kavi rajshekher ne mahakavya me dahadta gurjar kaha,rastrakutas,Arabs ne unhe gurjar kaha ,Suleiman,am masudi ne unhe gurjar kaha
    Khud unhone khud ko gurjar pratihar kaha.
    Kya unhone ya unke kaal me kisi ne bhi unhe ek baar bhi rajpot kaha ?????

  15. Mihar bhoj gurjar the.ethehas ko ache s pado …apno ko pujao or ense bada chatreye nhi tha ess jaha m ess liye apne nak bachane k liye rajput gurjaro ko be apna purvaj man rahe hae …aap mano hame koi dekat nhi par unke sath rajput sabad na jode vo gujar the or gujar he rahenge ….jai ho miharboj gujar ki ..

  16. Kangaar samaaj kewl ladne k lia hai. Prathviraj chauhan 11 bar Vijay karwaya to us raja ka wans bachhane wale samaaj raja ka surname nahi mil sakta kya.

  17. भैंस चोरों की मति मारी गयी है जो सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार को गुज्जर बनाने पर तुले हुए हैं हूण शकों की औलादों तुम कहाँ से प्रतिहार हो गए और तुम प्रतिहार नही तो मिहिरभोज कहाँ के गुज्जर हो गए अक्ल के अन्धों

    • Apne personal vichar yaha mat bat koi saboot ya fact de ki Gurjar Hoon h. Or sabse pehle na wo गुज्जर nhi गुर्जर hai. Ye gawar game sikhayenge.

    • गुर्जर सम्राट मिहिर भोज वराहमिहिर प्रतिहार वंश के प्रतापी सम्राट थे । जो की गुर्जरो का ही एक वंश था ।राजपूत कोई जाति न होकर एक उपाधि थी ।यह उपाधि इसलिये दी जाती थी क्योकि मनुस्मृति मे राजा के वरिष्ठ पुत्र को राजा बनाने की मान्यता थी और शेष छोटे पुत्रो को राजा का पुत्र अर्थात राजपूत की उपाधि दी जाने लगी ।ओर कुछ लालची राजा के पुत्रो ने अपने बड़े भाई राजा को हटने के लिये मुगल शासकों को आर्यावर्त मे आमंत्रित किया । 13वी शताब्दी के बाद फिर इन्होने मुगलो के साथ मिलकर भारतीय राजाओ को पराजित करना शूरु कर दिया ।धीरे धीरे इनके पारिवारिक सम्बंध भी मुगलो के साथ स्थापित होने लगे अकबर के सेनापति राजा मानसिंह जिन्होंने महाराणा प्रताप जैसे योधा को हरने मे सहायता की थी राजपूत उपाधि से ही थे।

  18. history k sath mat kheliye sir aap kaise kah sakten hain gurjar samrat mihirbhoj parihar hain.. kya galat salat hostory likh rahe ho blogs par . yahan tak ki history men bhi kahin mansion nahin hain.

    • Dekh bhai history kya hai jisse hum khe ki mihir bhoj gujjar the toh maanga..? Chl yeh topic shod tum gujjar log mihir bhoj ko gujjar bna rhe ho coz unka title gujjar tha rite..!phir prithviraj chauhan,bappa rawal,shivaji,anangpal tomar inko b tumari kaum wale gujjar bol rhe hai but kis basic par..? Phle rajppot word nni tha par rajputra and rajneya word tha in sanskrti..!

      Sb baatein shod mujhe ans do ki phir 1000 saal tum gujjar kha gye jb mughal raj aya, khilj, lodhi, suri ,gulam, mangol, britisher aye tb kha the..?

      Nd gaddriye , ahir , kb se suryavanshi nd chandrvanshi hue..? History churane se nni bnanae se hoti hai vaise wo khoon kha se laoge..?

      • Bilkul shi kaha Bhai ab ye bhi kehde Tumhare Rajput Rajao ne apni betio ki shadi mughlo se nhi karai. Phir ye bhi keh diyo ki Gurjar Samrat Kanishk bhi rajput the. Kise gadariya bol rha h aj Delhi, Noida, Ghaziabad, Faridabad ke gurjaro ko dekh kisi raja se kam rutba nahi hai.
        Hm PrithviRaj Chohan ko Gurjar kyu na kahe jab Kairana ke 84 chohan gurjaro ke gaon ye claim karte Hain ki wo PrithviRaj chohan ke chote Bhai ke vanshaj h. Abhi tune Raja Vijay Singh (landhaura) ka nam suna h nhi suna to Google kar liyo wo Gurjar the jinhone angrejo ke sath yudh kiya or veer gati ko prapt hue Tumhare rajput rajao ki tarah angrejo ki gulami nhi ki. Tum sirf castism ko badhawa dete ho. Dusro ke itihas ko apna btate ho. Gurjar Samrat Mihir Bhoj ki army ka senapati Karampal Parmar Gurjar ho sakta hai to Mihir Bhoj Kyu nhi. PrithviRaj Raso k alawa kaha likha h ki Mihir Bhoj Rajput the or wo toh unhke bohot bad me likhi gyi thi or uska bhi Jo original purana version h usme ye kuch nhi likha.

      • ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणपति खंड में गुर्जर जाति का श्री परशुराम भगवान से युद्ध

        Ye puran hai or aj ka nh check kre?

        इस महान जाति ने मूल रूप से अपना नाम ‘गुरुतार’ शब्द से लिया है जैसे कि पं। छोट लाल शर्मा (प्रसिद्ध पुरातात्विक और इतिहासकार)। वाल्मीकि द्वारा रामायण में ‘महाराजा दशरथ’ को ‘गुरुदार’ कहा जाता था। इसका मतलब है “एक बहुत उच्च श्रेणी राजा” .जिसे गुरुजन में बदल दिया गया था और बाद में गुर्जर में बदल दिया गया था। गुर्जर भारत में सबसे प्राचीन जातियों में से एक हैं

        बनारस के एक प्रसिद्ध संस्कृत पंडित पंडित वासुदेव प्रसाद ने प्राचीन संस्कृत साहित्य के माध्यम से साबित किया है कि शब्द “गुज्जर” प्राचीन के नामों के बाद बोली जाने वाली थी, क्षत्रिय अन्य संस्कृत विद्वान राधाकांत का मानना ​​है कि गुज्जर शब्द क्षत्रिय के लिए थे। वैज्ञानिक साक्ष्य ने साबित कर दिया है कि गुज्जर आर्यों से संबंधित है

        राणा अली हुसैन लिखते हैं कि गुज्जर शब्द गुर्जर या गरजर शब्द से लिया गया है, जिसका प्रयोग रामायण में महर्षि वाल्मीकि द्वारा किया गया है। वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है, “गतो दशरत स्वर्ग्यो गार्तारो” – जिसका अर्थ है राजा दशरत जो हमारे बीच क्षत्रिय थे, स्वर्ग के लिए चले गए

        Check kr sakte ho ?

        पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है । वर्ष 1191 – 93 ई . के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ‘ जयानक ‘ ने की । इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है । इस ग्रंथ में पृथ्वी राज चौहान को गुर्जर ही बताया गया है ।

        गुर्जरमण्डलाढ्तागमप्रार्थना २५६?इसमें लिखा है की गुर्जर का दूत आया गुर्जरों से गोरी का युद्ध हुआ

        गुर्जरकृतगोरिपराभववर्णनम् ।?ध्यान से पढ़ लेना इसमें लिखा है गुर्जरो ने गोरी को हराया

        कारागाराधिकाराहितरणरणकैः प्रेतनाथस्य याव तैर्दुर्गे गूर्जराणां नृतनुभिरसुरैर्नड्वलाख्ये निमग्नम् । पृथ्वीराजस्य तावन्निखिलदिग्भयारम्भसंरम्भसीमा भीमा भूभङ्गभङ्गी विरचनसमय कार्मुकस्याववक्षे । । 50 । ।

        ? (वर्ष 1191 – 93 ई )पृथ्वीराज के किले पिथौरा फोर्ट साउथ दिल्ली को
        गुर्जरो का किला लिखा है

        अब ये मत कहना की भी पण्डित ‘ जयानक गुर्जरो से मिला हुआ था जो कि पृथ्वीराज चौहान के समय के है

        राजपूत इतिहासकार?

        रानी लक्ष्मी कुमारी, चुडावत, (राजपूत ) ने राजस्थान का एक लंबा इतिहास लगभग 800 पृष्ठों पर लिखा है। 10 वीं शताब्दी ईस्वी की एक सत्य घटना पर वह लिखती हैं, देव नारायण गुर्जर ने अपने बिखरे परिवार के सदस्यों को एकत्र किया । उसके चचेरे भाइयों में से एक फर्श कालीन पर बैठा था, देवा नारायण ने उसे बुलाया, हे भाई, वह राजपूतों के बैठने की जगह है, तुम यहाँ सिंहासन के पास आओ। उन्हें लगता है कि गुर्जर वर्ग सभी राजपूतों के लिए एक श्रेष्ठ वर्ग है.

        ।गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द – ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत

        गुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह राजपूत)

        पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर चौहान?

        सोमेश्वर सूर गुज्जर नरेस ।मालवी राज सब जग्ग बेस ॥कं० ॥६१३ मारू धजादू भहीन थान ।घल भोमि लई बस्न चाहवान ॥दिल्लेस व्या वर घरेस ।तिह अध्अ भया दिल्ले नरेस ॥ई० ॥६१४ श्रानन्द राज नंदन सु सोम ।मारिया दखनि तिन किया हाम॥निय पुर सु नयर सुर लग्गि धोम ।आनन्द केोति अजमेर भाम ॥० ॥१५ ॥०
        ॥३१६ ॥॥सोलेश्वर जी की शूरता का संक्षेप वर्णन
        ॥कवित्त ।जिछि सोमेसर ।सूर जित्ते पुरसानी ॥जिहि सामेसर सूर ।चढिवि गु्जर धर भानी ।

        13वीं शताब्दी के श्रीहम्मीरमहाकाव्यम् संस्कृत ग्रन्थ में हम्मीर चौहान को गुर्जर लिखा है ?

        श्रीहम्मीरमहाकाव्ये अथ चतुर्थः सर्गः कुर्वन् कुवलयोलास मसंतापकरैः करैः । वेला इव तुषारांशुः स प्रजा अभ्यवीवृधत् ॥ १ ॥ राज्यं निर्विशतेऽन्येा हरिराजमहीभृते । प्रीतिव्रततिवृद्धयर्थं श्रीगुर्जरनरेश्वरः ॥ २ ॥ विस्फुरच्छुक्रसंबंधाः समुन्नतपयोधराः ।

        श्रीहम्मीरमहाकाव्ये १० ]
        भोजदेवसंवादवर्णनम् सोदर्यो यस्य वीरव्रजमुकुटमणिरिमो विश्वजेता सः श्रीहम्मीरवीरः समरभुवि कथं जीते लीलयैव । । २० । । स्वातुलुंदितार्थायननिबिडमते निमुन्मूलयंतो निःशंकं मेनिरे खां स्फुट मुभटतया ये तृणायापि नैव । औदीच्यास्तेपि सेवां विदधति महिमासाहिमुख्या यदीयां मः श्रीहम्मीरवीरः समरभुवि कयं जीयते लीलयैव । । २१ । । देशो यस्यानुघखं कृतमुकृतजनाचारचारूप्रदेशो दुर्ग दुर्गाह्यमेवाहितधरणिभुजां श्रेणिभिश्चेतसापि । अन्योन्यस्पधिवीर्याजित शुचियशसोप्याहवे वीरवाराः सः श्रीहम्मीरवीरः समरभुवि कथं जीयते लीलयैव । । २२ । । अंगो नांगानि धत्ते कलयति न पुनर्युद्वलिंगं कलिंगः काश्मीरः स्मेरमास्यं न वहति तनुते शौर्य संगं न वंगः । गार्जि नो गुर्जरेंद्र : प्रथयति पृथुधीर्यस्य कौक्षेयकाग्रे सः श्रीहम्मीरवीरः समरभुवि कथं जीयते लीलयैव । । २३ । ।

    • यह सभी हमारे देश के महापुरुष है और यह सभी के हैं और रही बात इनकी जाति की तो यह राजपूत ही है गुर्जर एक पशुपालक जाती है जो कि राजपूतों से अलग है आज भी राजस्थान ने हमारे यहां मेवाड़ के आसपास गाडरी गुर्जर रहते हैं जिनका मुख्य काम भेड़ बकरी पालना ही है

  19. Bht bht dhanyavad. 18 Oct. Ko samasth pratihar rajvansh dwara mihir bhoj jayanti manane ka nirnay liya gya h… Jodhpur rajasthan m…aap sadar aamantrit h

  20. भारत का मध्य कालीन इतिहास हमारे तथाकथित सेैकुरल लोगों ने भारत के जन सामान्य के सामने बड़े अटपटे ढ़ंग से पेश किया है जिस कारण लोगों को अनेक भ्रांतियां होती हैं…..इसमें गलती उनकी है आपकी या मेरी नहीं…..बहुत सी जातियां अपने आप को भारत की उच्च जातियों क से सम्बद्ध करतीं हैं जैसे- बुंदेलखण्ड में खंगार जाति आपने आप को परिहारों से जोड़ती है परन्तु वे परिहार नहीं हैं…वहीं जाट समुदाय कई राजपूत वंशों के उपनाम का भी प्रयोग करते मिलेंगे जैसे- सोलंकी, तोमर आदि नाम तो आज जो पिछड़ी जाति गुर्जर अपने आप को गुर्जर-प्रतिहारों से जोड़े तो इसमें कोई नई बात नहीं…..

    • Please Talk sense, there was no caste names as “Rajput” until the 16th Century AD where it was cleverly inserted into “Prithviraj Raso” bu the Rajputs Bards. The 28th generation of Prithviraj are residing in Pakistan. The present day Gujjars are the true descendants of the Gurjar-Pratihars, otherwise how could you connect themselves to the antique Rajputras?

    • इतिहास को भ्रमित मत करो गुर्जरो के बच्चे हो बच्चे ही बन कर रहो गुर्जरो से अलग हो कर एक नयी जाती बना ली तो इसका मतलब ये नही की तुम गुर्जरो का इतिहास मिटा दोगे।

    • Historian Sir Jervoise Athelstane Baines also stated Gurjars as forefathers of Sisodiyas, chauhan, Parmar, Parihar and Chalukya. they all were gujjar The pratiharas belonged to the same clan that of Gurjaras was proved by the “Rajor inscription”.From the phrase “Gurjara Pratiharanvayah” inscribed in the “Rajor inscription”. It is known that the Pratiharas belonged to the Gurjara clan.The Rashtrakuta records and the Arabian chronicles also identify the Pariharas with Gurjaras.Over the years, the Gurjars were assimilated mainly into the castes of Kshatriya varna, although some Gurjar groups (such as Gaur Gurjars of central India) are classified as Brahmins.During the Muslim rule, many of the Gurjars converted to Islam.[55] With the rise of Islam, Muslim Gujjars no longer adhered to their Kshatriya or Brahmin classification but retained clan names as a form of tribal recognition.Places such as Gujranwala, Gujar Khan, Gujar Kot, Gujrat in Pakistan and the state of Gujarat in India are a testament to the Gurjar influence in the past. The name for the state of Gujarat has derived from “Gurjar”.The Gujarat was known as ‘अनार्त प्रदेश’(Land in west) during Mahabharat period. Later on it was known as ‘गुर्जर प्रदेश’(Land of Gurjar). From the word ‘Gurjar Pradesh’, the Gujarat name derived.

    • Tumhe Jo bolna h bolo lekin beshak hm Gurjaro backward bol lo lekin tumne to padha likha hoke bhi apni behen betio ki shadi Mughalo se karwai. Sirf raja bne rahne ke liye itno ghinona kam sharm karo aur apna itihas padho.

    • ग्वालियर। देश व विदेश में प्रख्यात गूजरी महल एक राजा और उसकी प्रेमिका की अमर प्रेम कहानी का गवाह है। इस महल में तोमर वंश के राजपूत राजा मानसिंह और उनकी प्रेयशी रानी मृगनयनी के अमर प्रेम को देखा गया है। इस महल के खंबे मोहब्बत की बुनियाद पर खड़े हुए हैं। शहर के बाहर बनाया गया गूजरी महल राजा मानसिंह तोमर और उनकी गूजर पत्नी मृगनयनी के अमर प्रेम का प्रतीक है। बताया जाता है कि राजा मानसिंह कहीं जा रहे थे तभी उन्हें रास्ते में एक ग्वालन (मृगनयनी) दिखाई दी।
      गुज्जरी को देख राजा मोहित हो गए तथा उसके प्रेम में पूरा महल बना दिया राजपूती परम्परा के कारण उसकी संतानों को नहीं रहने दिया

  21. मान्यवर,
    पुष्कर मे ब्रह्माजी की शादी एक गुर्जर कन्या
    गायत्री से हुआ।
    राधाजी गुर्जर कन्या थी।
    पृथ्वीराज रासो मे कही भी राजपूत शब्द का उल्लेख
    नही है।
    राजपूत एक जाती विशेष शब्द नही है,बना दिया गया है।
    क्योंकी, रजा के पुत्र को राजपुत्र कहे तो
    राजकुमार शब्द का अर्थ क्या होगा?
    राज यानि राज्य, राजपुत्र यानी राज्यपुत्र, मतलब
    राज्यपुत्र नही हो सकता। राजा का पुत्र हो सकता हे।
    मे एक हिन्दु हुं ,मे हिन्दु जाती के सभी क्षत्रीय जाती को
    मान सन्मान देता हु। क्योंकि उन्हों ने कुछ खोया ही हे।
    दुनिया के लिये धर्म के लिये।
    राजस्थान ऐव भारत के इतिहास से पिछले कई सालों से
    विशेषकर “गुर्जर”शब्द को मिटाने का कार्य चल रहा है।
    मेरे स्वतंत्र विचार पेश किये हे। हो सकता हे गलत लगे।
    लेकिन , नही है।

  22. Yaar tere pair kabr me latak rahe hai or tu baat kar raa hai gagan chumbi ki….
    Tumhara koi apna wajood nahi hai kya jo humaari gurjar jaati ke veero ko apni jaati ka bol rahe ho ……. agar tumhara khudd ka koi wajood nahi hai toh jeena chod do

  23. O bhai tharki budhhe…

    Samrat Mihir Bhoj Gurjar they…poori duniya jaanti hai…

    Koi kaam dhandha nahi mil raha kya tumhe ?

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