संजय सक्सेना
एक माह पूर्व कांगे्रस के युवराज राहुल गांधी ने जब पूरे तामझाम के साथ पूर्वी यूपी के देवरिया से किसान यात्रा और खाट पंचायत शुरू की थी तो सोचा था कि यात्रा की समाप्ति के बाद राहुल गांधी पर कुछ सार्थक लिखने का मौका मिलेगा। राहुल पहली बार एक महीने की सियासी यात्रा पर निकले थे। भले ही यह यात्रा 2017 के विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखकर आयोजित की गई थी, लेकिन इसके पीछे की एक बड़ी वजह राहुल को पप्पू वाली छवि से छुटकारा दिलाना भी था। पप्पू वाली छवि के साथ राहुल यूपी चुनाव में उतरते तो नतीजा हमेशा की तरह निराशाजनक ही रहता। इसी के तहत कांगे्रस और खासकर राहुल को प्रोजेक्ट करने के लिये आयातित ‘डायरेक्टर’(रणनीतिकार) प्रशांत किशोर ने काफी होशियारी से किसान यात्रा,खाट पंचायत और रोड शो की स्क्रिप्ट तैयार की थी। मकसद था, राहुल को विधान सभा चुनाव से पूर्व जनता के बीच एक ऐसे नायक के रूप में पेश किया जाये,जो किसानों से लेकर मजदूरों, बेरोजगारों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और सीमा पर तैनातजवानों तक के लिये परेशान रहता हो। राहुल के लिये स्क्रिप्ट तो शानदार लिखी गई थी,लेकिन वह नायक वाला किरदार बखूबी निभा नहीं पाये। डायरेक्टर ने जो रोल और संवाद उनके लिये लिखे थे,उसे बोलने की बजाये वह मंच पर अपनी कलाकारी दिखाने लगे। नतीजतन, राहुल की यात्रा विवादों में फंसती चली गई। राहुल की यात्रा पर जब लिखने बैठा तो एक माह की किसान यात्रा के दौरान जनता और राहुल गांधी के बीच हुए संवाद का निचोड़ चंद लाईनों से आगे नहीं बढ़ पाया। पूरी यात्रा जुमलों में सिमट कर रह गई। राहुल ने मोदी और आरएसएस का जाप करते हुए यात्रा शुरू की थी और मोदी-मोदी करते समाप्त भी कर दी। मोदी से सिर्फ 15 उद्योगपतियों को फायदा हो रहा है। मोदी आपका(किसानों) कर्ज माफ नहीं कर रहे,जबकि औद्योगिक घरानों का कर्ज माफ कर दिया। मोदी साम्प्रदायिकता की राजनीति करते हैं। मोदी किसानों से नहीं मिलते हैं। मोदी जी विदेश नहीं,गांव आकर कभी किसानों से भी मिल लीजिये। यहां तक तो फिर भी सही रहा,लेकिन दिल्ली पहुंचते-पहुंचते उनके सुर ऐसे बिगड़े की यहां तक कह गये कि मोदी किसानों के खून की दलाली कर रहे हैं। यह ‘डायलाग’ स्क्रिप्ट का हिस्सा नही था और इसे बीजेपी ने हथिया कर राहुल गांधी की किसान यात्रा की एक ही झटके में पूरी हवा निकाल दी,यहां तक की बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने लखनऊ मे प्रेस कांफे्रस करके यहां तक कह दिया कि मीडिया की कवरेज से सीमा पर सैनिकों का मनोबल बढ़ा,लेकिन कुछ राजनेताओं ने सेना पर सवाल उठाकर निंदनीय कार्य किया है। सेना पर शक करना दुर्भाग्यपूर्ण है। राहुल ने खून की दलाली वाली बात कहकर सभी सीमाओं को लांघ लिया। राहुल का बयान सवा सौ देशवासियों और जवानों का अपमान किया है। सैनिकों ,किसानों का कोई मूल्य नहीं है। उन्होंने पूछा राहुल गांधी को इसमें क्या दलाली दिख रही है। शाह ने कहा दस वर्षो तक सेना के कामों, मौत के सौदागर, जहर की खेती जैसे बयानों से सच्चाई को नकार नहीं सकते हैं,जिसके बाद गुजरात में बीजेपी दो-तिहाई बहुमत से जीती। उन्होंनें राहुल का बयान सेना का मनोबल तोड़ने वाला बताया ।इसके अलावा कांगे्रस राज में हुई दलाली का भी जिक्र किया और कहा कांगे्रस को दलाली शब्द अच्छा लगता है। शाह ने कहा राहुल को आलू की फैक्ट्री पर ध्यान देना चाहिए। बड़ी-बड़ी बातें नहीं करना चाहिए। शाह ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी चुनाव में राहुल गांधी के दलाली वाले बयान को मुद्दा बनायेगी।
वैसे, उत्तर प्रदेश में राहुल का रोड शो विवादित बयानबाजी के अलावा खाट लूट के कारण भी खूब चर्चा रहा। तो कुछ मजेदार वाक्ये भी समाने आये।शो के दौरान राहुल आम जनता के सामने तो मोदी पर खूब गरज-बरस रहे हैं, लेकिन जब वह विद्वानों के बीच जाते हैं तो उनकी बेतुकी बातों का सही जबाव मिल जाता है। इस बात का अहसास लखनऊ के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरूओं ने राहुल को करा दिया। अपने संगी-साथियों के कहने पर राहुल गांधी लखनऊ में रोड शो के दौरान मुस्लिम धर्मगुरूओं से मिलने पहुंच गये। इस कड़ी में सबसे पहले वह विश्व प्रसिद्ध शैक्षिक संस्थान नदवा कालेज पहुंचे। यहां राहुल ने विद्वान मौलाना और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के अध्यक्ष राबे हसनी नदवी से मुलाकात की और कहा हमारे लिए (देश के लिए नहीं) दुआ कीजिए।
मौलाना नदवी जो सामने वाले की मंशा भांपने की काबलियत रखते हैं ने राहुल को आइना दिखाते हुए दुआ करने का वादा तो किया, लेकिन हर उस शख्स के लिये जो मुल्क की खिदमत करेगा। मुल्क की खिदमत कौन कर रहा है, यह बात राहुल और उनकी टीम के अलावा हर कोई समझ सकता है। इसी तरह से राहुल गांधी ने प्रसिद्ध शिया धर्म गुरू और आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के उपाध्यक्ष डा0 कल्बे सादिक के पास जाकर उनसे पाकिस्तान और मुसलमानों के हालात पर चर्चा की। कहा, पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती से निपटने की जरूरत है।
सादिक जिनकी काबलियत का लोहा पूरी दुनिया मानती है,उन्हें भी राहुल की मंशा भांपने मे जरा भी देरी नहंीं लगी। सादिक ने जब यह कहा कि वह पाकिस्तान या मुसलमान की नहीं, देश और भ्रष्टाचार की बात करें, जब भ्रष्टाचार मिटायेंगे तभी देश बचा पाएंगे। तो राहुल बगले झांकने लगे। अब राहुल भ्रष्टाचार पर क्या बोल सकते थे, यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार और घोटाला जगजाहिर है। इस तरह से राहुल यहां से भी मुंह की खाकर चले आये।राहुल की नादानी का आलम यह था कि वह 2017 में 2019 का अश्क देख रहे थे। 2017 के विधान सभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी किसको मिलेगी, इसके लिये भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच कड़ी टक्कर चल रही है, लेकिन राहुल गांधी अपनी सीएम प्रत्याशी शीला दीक्षित के लिये नही 2019 में स्वयं पीएम बनने का रास्ता साफ करने में लगे रहे। इसी लिये वह सीएम अखिलेश यादव, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बजाये प्रधानमंत्री मोदी पर कहीं ज्यादा हमलावर दिखे। उधर, भाजपा नेता राहुल के हमलावर रूख पर चुटकी लेते हुए कहते रहे कि जो स्वयं कुछ नहीं कर पाया, वह मोदी पर तंज कस रहा है। मोदी को सार्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है।