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राजनीति का शिकार न हो जाए एकलव्य - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
विनोद उपाध्याय एकलव्य हूँ मैं ढूँढ़ता हे द्रोण कहाँ हो , एकाकी शर संधान से हे तात ! उबारो। प्रश्न नहीं मेरे लिये बस एक अंगूठा , कर लिये कृपाण हूँ लो हाथ स्वीकारो। है चाह नहीं देव ! अर्जुन की धनुर्धरता , एकलव्य ही संतुष्ट मैं बस शिष्य स्वीकारो।…