बिहार चुनाव और राजग का भविष्य

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

वर्ष 2010 के नवंबर माह में संपन्न हुए बिहार विधान सभा के चुनावों के नतीजों ने मुख्यमंत्री के रुप में पांच वर्ष का एक कार्यकाल पूरा कर चुके जदयू-भाजपा गठबंधन के नीतीश कुमार को जिस प्रकार दुबारा से बिहार की जनता ने सफलता दी वह आशातीत है तथा स्वयं नीतीश कुमार व उसके सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी ने भी इस प्रकार की अद्वितीय जीत के बारे में नही सोचा था।

नीतीश कुमार के जदयू को 115 तथा सहयोगी भाजपा को 91 सीटें प्राप्त हुई। इस प्रकार बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 206 सीटें प्राप्त कर नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मौदान में एक भव्य समारोह में 26 नवंबर, 2010 को बिहार के 32 वें मुख्यमंत्री के रुप में लगातार दूसरी बार गद्दी संभाली। उनको राज्यपाल देवानंद कुंवर ने शपथ दिलाई। नीतीश कुमार ने भाजपा के सुशील कुमार मोदी को उप-मुख्यमंत्री तथा 28 अन्य विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलवा कर बिहार को एक नई दिशा देने की कोशिश की।

श्रीमती राबड़ी देवी को चुनाव लड़े दोनों स्थानों से असफलता हासिल हुई। लालू प्रसाद यादव की राजद की लालटेन को 21, रामविलास पासवान की लोजपा को 4, कांग्रेस को 4, माकपा को 1 तथा अन्य को 7 विधानसभा सीटों पर सफलता प्राप्त हुई। इस प्रकार 206 (85 प्रतिशत) के मुकाबले विपक्ष में मात्र 37 (15 प्रतिशत) सीटें रहने से विपक्ष कमजोर रहेगा। इससे में सत्तारुढ़ पार्टी की बिहारवासियों के प्रति जिम्मेदारी बढ़ गई हैं और आगामी पांच वर्षों में राजग गठबंधन के नीतीश कुमार को अपने द्वारा दिये गये सभी चुनावी वायदों को पूर्ण करते हुए बिहारवासियों के मान व सम्मान के प्रति सजग रहते हुए एक नई दिशा देनी होगी जिसमें बिहार जैसे साधन संपन्न प्रदेश के नागरिक भी गरीबी से निकल कर विकास का एक नवीन उजाला देख सकें तथा इस जीत का बोझ (ऋण) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने कंधों पर से उतार सकेगें।

मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होते समय भारतीय जनता पार्टी की नेता साध्वी उमा भारती ने कहा था कि देश की जनसंख्या के पिछड़े वर्गों ने रोटी की लड़ाई जीत ली है परंतु इज्जत की लड़ाई अभी जीतना बाकी है। भाजपा राम, रोटी व इंसाफ के लिए लड़ाई लड़ रही है। परंतु यह लड़ाई तब तक नहीं जीती जा सकती जब तक की समाज में इस बात को वृहत रुप से स्वीकृति न मिल जायें क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उच्च वर्गों के विरुद्ध अन्य पिछड़ा वर्ग को रख कर एक गलती कर दी थी जिसका परिणाम यह निकला कि देश में जातिवाद व बिरादरीवाद बढ़ कर राजनीति के शिखर तक पंहुच गया और जातिगत वैमनस्यता बढ़ती ही जा रही थी। राजगगढबंधन ने इस जातिगत वैमनस्यता कि राजनीति में घुसपैठ कर चुकी थी उसमें विकास के विटामिन का इंजेक्शन दे दिया है जिससे लगता है कि अब अगामी कुछ वर्षों में उमा भारती के द्वारा कहे गये वे शब्द सत्य सिद्ध हो जायें जिसमें उन्होंने इज्जत की लड़ाई को जीतने की बात कही थी। उमा भारती की बात एकदम से सही नहीं थी कि जिसमें कहा था कि उन्होंने पिछड़े वर्ग को आर्थिक अवसर मात्र मंडल आयोग की सिफाारिशें लागू करके ही उपलब्ध हो सकेगें। यद्यपि विश्वनाथ प्रताप सिंह रोजगार में समान अवसर मिलने में समानता को विकसित करने के लिए ऐतिहासिक चिह्न लगा चुके थे।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की जनता को बहुत बहुत धन्यवाद दिया कि बिहार की जनता ने वोट बैंक की राजनीति को अलविदा कह विकास की राजनीति का स्वागत किया है। प्रसिद्ध लेखक चेतन भगत ने इस जीत को कांग्रेस के मूंह पर लोकतंत्र का थप्पड़ कहा है।

भारतीय राजनीति को बिहार के लोगों ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। भारत की स्वतंत्रता के युग में जयप्रकाश नारायण ने बिहार से ही समग्र क्रांति के नाम से आंदोलन शुरु करके लौह महिला इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती दी थी और उन्हें 1977 में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। जेपी के नाम पर लालू प्रसाद यादव ने बिहार की जनता को 15 वर्षों से अधिक समय तक जी भर कर लूटा। उनके कुशासन के दौरान बिहार के लोग यह भूल चुके थे कि आम लोगों के प्रति सरकार की भी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। लोग निराश हो चुके थे। लेकिन कभी भी शासन एक व्यक्ति का ही नहीं रहता है और जनता के द्वारा राजग गठबंधन में नीतीश कुमार के हाथों बिहार की बागडोर सौंप दी गई। नीतीश कुमार ने दूरदर्शिता दिखाते हुए प्रदेश को विकास का पथ दिखा दिया और लोगों को उस पर चलना भी सीखा दिया। अब तक लोगों को लगने लगा है कि बिहार को विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़ा करने के लिए थोड़े से अतिरिक्त प्रयास की ही जरुरत है और बिहार की जनता ने ऐसा कर भी दिखाया और नीतीश कुमार को दुबारा से सत्तारुढ़ करके नीतीश कुमार के अधूरे कार्यो को पूरा करने का जनादेश दे दिया।

बिहार देश का सबसे पिछड़ा हुआ प्रदेश समझा जाता है। जब बिहार पिछड़ेपन से निकल कर विकास के रास्ते पर चल सकता है तो देश के अन्य प्रदेश क्यों नहीं? पिछड़े और परंतु साधन संपन्न बिहार राज्य ने अपनी सारी बाधाओं व समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी नीतीश कुमार के कंधों पर डाली है।

इस जीत ने नीतीश कुमार को विश्व प्रसिद्ध कर दिया है क्योंकि अभी तक की मान्य सभी राजनीतिक समीकरण बदल कर बिहार में नई दिशाओं के साथ विकास की ओर अग्रसर हो रही है। यदि लालू प्रसाद ने कांग्रेस के साथ मिल कर भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए लड़ाई लड़ी होती और भ्रष्टाचार को कम किया होता तो उन्हें (लालू प्रसाद) इस बार मूंह की नहीं खानी पडती। अब नीतीश कुमार यदि बिहार को सचमुच भ्रष्टाचार से रहित विकास के पथ पर अग्रसर कर सकें तो अच्छा होगा क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार ने अभी तो जरुरत का 10 प्रतिशत काम भी नहीं किया है। अब आगे आगे विकास के रास्ते पर नवीन बाधाएं कौन-कौन सी आती है और नीतीश कुमार उनका निवारण किस प्रकार कर पाते है? तभी उनकी प्रशंसा की जा सकती है अभी नीतीश कुमार की प्रशंसा समय से पूर्व ही कही जा सकती है।

बिहार की राजनीति का सबसे ज्यादा प्रभाव उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पड़ता है। नीतीश कुमार की जीत ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा, बसपा के नेताओं को सिर खुजलाने के लिए मजबूर कर दिया है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन दुबारा से तलाश कर रही है तथा मायावती (बसपा) भी विकास के मामले में अपने खाते में विशेष कुछ जमा नहीं कर सकीं है। बिहार के परिणाम कांग्रेस व बसपा के लिए कत्तई शुभ संकेत नहीं है क्योंकि बसपा तो बिहार में पूरी तरह साफ हो गई और कांग्रेस को भी बहुत मामूली जीत हासिल हुई जबकि सभी प्रकार के राजनीतिक हथकंडे इन दोनों दलों ने बिहार के चुनावों के दौरान अपनाये थे।

नीतीश कुमार की जीत से लगता है कि अब राजनेता जातिवाद, परिवारवाद का डमरु बजा कर जनता को विकास व सुरक्षा से दूर नहीं रख सकते। बिहार ने धर्म, जाति, अगड़े व पिछड़े के अंतर को मिटा कर नीतीश कुमार को विधानसभा की कुल सीटों में से 85 प्रतिशत सफलता प्रदान कर दी है। राजग गठबंधन को मुस्लिम मतदाताओं ने वोट देने में दरियादिली दिखाई। कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ी बात है। कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सदैव ही मुस्लिम तुष्टीकरण ही किया है। कांगेस ने बिहार में कुल 243 सीटों मे से 47 मुसलमान, 56 पिछड़े, 37 अनुसूचित जाति, 79 ऊंची जाति के प्रत्याशी खड़े किये थे। इनमें से 35 महिलाएं तथा 42 युवा भी थे फिर भी कांग्रेस गत विधानसभा की अपनी 9 सीटों में से चार पर ही जीत हासिल कर पायी जबकि कांग्रेस की प्रतिष्ठा एक राष्ट्रीय दल के रुप में है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 20 वर्षों से निरंतर चौथे स्थान पर रहने वाली पार्टी ही बनी हुई है। कांग्रेस ने राहुल गांधी को नेता बना कर मिशन 2012 के रुप में उत्तर प्रदेश में अपना चुनावी अभियान चला रखा है। राहुल गांधी ने बिहार में भी कमान संभाली हुई थी। उत्तर प्रदेश व बिहार में सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक परिस्थितियां लगभग एक ही प्रकार की है तथा उत्तर प्रदेश व बिहार के बीच सैंकडों मील लंबी सीमावर्ती क्षेत्र में रोटी-बेटी व संस्कृति का साझा संबंध है। चुनावी राजनीति भी इस संबंध को बेअसर नहीं कर सकती है। बिहार में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष कु. मायावती के लंबे-चौड़े दलित व ब्राह्माण सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को भी बिहार की जनता ने नकार दिया। फरवरी, 2005 में दो तथा अक्टूबर, 2005 में चार सीटों को जीतने वाली बसपा बिहार में वर्ष 2010 में हुए विधानसभा चुनावों में अपनी उपस्थिति तक दर्ज नहीं करवा सकी है। उत्तरप्रदेश में बसपा के साढ़े तीन वर्षों के शासन में कभी न्यायालय तो कभी सड़क पर सभी जगह उसकी फजीहत पार्को व मूर्तियों के निर्माण को लेकर हो रही है जिसमें सैकड़ों व हजारों करोड़ों रुपये व्यय किये जा रहे है। बसपा विधायक भी कभी प्रधान पद की महिला प्रत्याशी की हत्या, इंजीनियर की हत्या, बलात्कार व हत्या के मामले से अछूते नहीं है। सुरक्षा का मामला तो सर्वोच्च प्राथमिकता के रहते हुए भी प्रदेश की जनता में असुरक्षा का जहर घोल रहा है। बिहार के परिणाम मुलायम सिंह यादव को भी कम परेशान नहीं कर रहे है। वे बसपा के साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल में प्रदेश में बसपा के खिलाफ हुए वातावरण से अपनी सरकार में बनी धूमिल व दागदार छवि को नहीं धो पा रहे हैं । अमर सिंह उनसे अलग हो गये है और मोहम्मद आजम खां का दामन मुलायम सिंह यादव को मुसलमानों की गोद में बैठने को मजबूर कर रहा है।

देश में आजकल भ्रष्टाचार का बोलवाला हो रहा है तथा उससे देश का विकास तबाह हो रहा है। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रुप में मंत्रिपरिषद की प्रथम बैठक में ही 27 नवंबर, 2010 को मंत्रियों को टास्क सौंप दिया है कि वे अपने अपने विभाग की समीक्षा करके 15 दिन के भीतर रोडमैप पेश करें कि आगे विकास के लिए क्या-क्या करना है। नीतीश कुमार ने कहा है कि नई सरकार नई उम्मीद लेकर आई है। लोगों की बड़ी अपेक्षा है व बड़ा मैंडेट मिला है। पूरे तन-मन के साथ काम करना होगा। नीतीश कुमार का मकसद ऊंचे स्तर से लेकर निचले स्तर तक भ्रष्टाचार को खत्म करना है। गत विधानसभा के काल में उन्होंने एक भ्रष्टाचार रोधी कानून भी बनाया था जिसमें भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्तियों को जब्त करके उसमें सरकारी स्कूल खोलने की बात है। नीतीश कुमार ने सत्ता संभालते ही इस दिशा में काम करना शुरु कर दिया है। इसके लिए राइट टू सर्व (सेवा का अधिकार) कानून लेकर आने वाले है। स्थानीय निकायों में भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने के लिए लोकपाल को भी नियुक्त किया जायेगा। प्रांत में इस बार भ्रष्टाचार को रोकने हेतु एक ढांचा प्रांत की जनता ने इन चुनावों ने तैयार कर दिया है। प्रशासनिक सुधार की दिशा में सेवा का अधिकार एक बड़ा कदम होगा। छोटे-छोटे कार्यों के लिए लोगों को सरकारी दफ्तरों के लगातार चक्कर लगाने पड़ते हैं। इस कानून के अंतर्गत जाति प्रमाण पत्र, पासपोर्ट और दूसरे सरकारी दस्तावेज एक निश्चित समय सीमा के तहत बनाने का प्रावधान रहेगा। अगर काम वक्त पर पूरा नहीं हुआ, तो दोषी अधिकारियों को इसके लिए जुर्माना देना होगा तथा जुर्माना उनके वेतन से काटा जायेगा। आगे इस मामले में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) का भी सहारा लिया जायेगा। नीतीश कुमार के पास भ्रष्टाचार जैसी बड़ी बिमारी को रोकने के लिए अन्य उपाय भी है।

नीतीश कुमार इस बार पूरे जोश में है तथा यदि वे विकास के एजेंडे पर बिहार में विकास कार्य इतनी बडी सफलता मिलने के बाबजूद भी नहीं करा पाते है तो वह निश्चित रुप से उनकी असफलता ही कही जायेगी और अगर वे बिहार में विकास की गंगा बहा पाते है तो यह निश्चित रुप से संपूर्ण भारत देश के अन्य प्रांतों के लिए एक उदाहरण होगा तथा विकास के क्रियाकलापों में बिहार अन्य प्रांतों का नेतृत्व कर सकेगा। भ्रष्टाचार की समाप्ति पर ही प्रांतों का विकास जिसमें देश का विकास भी निहित है, होकर आम जनता को साधन संपन्न कर सकेगा। केंद्र सरकार को बिहार की विकास योजनाओं में बिना राजनीति किये अपना सक्रिय सहयोग देना चाहिए। देश के विकास के रास्ते में बाधाएं बहुत है परंतु बिहार से सबक लिया जा सकेगा। देश की जनता को ऐसा विश्वास करना चाहिए। * लेखक सनातन धर्म महाविद्यालय, मुजफरनगर के वाणिज्य संकाय में रीडर तथा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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