चुनाव परिणामों से भाजपा के फिर आ गये अच्छे दिन ?

सूफीमत
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मृत्युंजय दीक्षित

पांच प्रांतों व कुछ राज्यों की विधानसभा सीटों के उपचुनाव परिणामों पर पूरे देश की नजर थी। भारतीय जनता पार्टी के लिये यह चुनाव उतने महत्वपूर्ण नहीं माने जा रहे थे लेकिन दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के लिये यह चुनाव अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जा रहे थे क्योंकि भाजपा के नजरिये से इन चुनावों में खोने के लिये कुछ  भी नहीं था जबकि कांग्रेस के पास दो सरकारें दांव पर लगी हुई थी। इसी के साथ कांग्रेस पार्टी के समक्ष गांधी परिवार की साख बचाना भी एक बड़ी समस्या थी। चुनाव परिणामों से जहां भाजपा उत्साहित व मजबूत होकर उभरी हैं वहीं दूसरी ओर अब कांग्रेस तेजी के साथ सिकुड़ती जा रही है। चुनाव परिणामों से भाजपा का मनोबल ऊंचा हुआ है तथा पीएम मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व को एक बार फिर मजबूती प्रदान हुई है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी सफलता उत्तर – पूर्व के किसी बड़े राज्य वह भी असम में सहयोगी दलों के साथ मिलकर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आ  रही है। इस बात का उल्लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव परिणामों के बाद भाजपा कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भी कही। चुनाव परिणामों के बाद  पीएम मोदी का कहना है कि उनकी विचारधारा को पूरे भारत में मान्यता मिल रही है। यह बात सही भी है क्योंकि भाजपा ने पहली बार केरल में एक नया गठबंधन बनाकर  गंभीरता के साथ चुनाव मैदान में उतरी और दस प्रतिशत से भी अधिक अंक पाकर तथा ओ राजगोपाल के रूप में एक सदस्य को विधायक बनवाने में सफलता भी प्राप्त कर ली। वहीं तमिलनाडु में भी भाजपा को कुछ मजबूती अवश्य प्राप्त हुई हैं भले ही वहाँ पर  सीटें न प्राप्त कर सकी हो। दूसरी ओर बंगाल में भी ममता बनर्जी की सुनामी के बीच दस प्रतिशत से अधिक वोटों के साथ अपने दम पर तीन सीटें प्राप्त करने में सफल रही है।

भाजपा के लिए सर्वाधिक उत्साहजनक परिणाम असम से आया जहां भाजपा पहली बार अपनी सरकार बनाने जा रही है। यह इस क्षेत्र के लिए बहुत जरूरी भी हो गया था। विगत 15 वर्षो से  यह राज्य कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरूण गोगोई  के निराशाजनक प्रदर्शन के साये तले दबा जा रहा था। राज्य में प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा था एक प्रकार से राज्य में चारों ओर लूट ही लूट मची थी। केंद्र सरकार राज्य के विकास के लिए पर्याप्त धन भेजती थी लेकिन यहां पर आकर वह धन आतंकी संगठन व  भ्र्रष्टाचार में डूबे नेता व अफसर आपस में बांट लेते थे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लगातार दस वर्षो से भी अधिक समय तक असम से राज्यसभा सदस्य रहे लेकिन उन्होंनें राज्य की किसी भी समस्या पर विचार तक नहीं किया। जनता परिवर्तन के लिए तैयार बैठी रहती थी लेकिन उसे विपक्ष के रूप में  अभी तक कोई नया चेहरा नहीं दिखलायी पड़ रहा था। इस बार केंद्र में  पीएम  मोदी के नेतृत्व में नयी सरकार आने के बाद इधर की ओर गंभीरता पूर्वक ध्यान दिया गया तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उसके आनुषंगिक संगठनों की ओर से  भी काफी काम करके एक वातवावरण तैयार किया गया जिसका परिणाम आज मिला है। वहीं दूसरी ओर असम  बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या  से भी त्रस्त हो गया है। मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले दलों के कारण आज पूरे असम का जनसांख्यिकीय गणित गड़बड़ा गया है। 24 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता सीधा प्रभाव डाल रहे थे लेकिन इस बार मोदी ओर सर्वानंद की लहर के कारण सभी आंकड़ें ध्वस्त हो गये हैं। इस राज्य में कई सारे मुददे सामने आ गये जो कि कांग्रेस के खिलाफ जा रहे थे। अब राज्य में भाजपा की अग्निपरीक्षा यह होगी कि वह जनता के साथ किये वायदों को बिनीा किसी देरी के साथ जल्द उन पर काम करना प्ररम्भ कर दे और असम  से उत्तर पूर्व के और राज्यों की ओर अपने कदम आगे बढ़ाये।

पाँच प्रांतों के चुनाव सभी दलों के लिए सबक हैं तथा व्यापक संदेश भी दे रहे है।सबसे अधिक बड़ी विजय बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मिली है वह 200 से भी अधिक सीटें लेकर सत्ता पर फिर काबिज हुई हैं वहीं दूसरी ओर तमिलनाड़ु में तो अन्नाद्रमुक की नेता व पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने तो सभी चुनाव पूर्व अनुमानों को ध्वस्त करके सत्ता पर पुनः वापसी की है। तमिलनाडु में जया की वापसी निश्चय ही बेहद चौंकाने वाली रही है कम से कम 28 वर्षो के बाद उन्होनें राज्य का राजनैतिक इतिहास ही बदल कर रख दिया है। तमिलनाडु के चुनाव परिणाम यदि सही मायने में मानाजाये तो वंशवाद की राजनीति के खिलाफ ही हैं तमिलनाडु की जनता ने वृद्ध करूणानिधि को जीवन के अंतिम क्षणों में फिर से मुख्यमंत्री बनने का अवसर नहीं दिया है।

चुनाव प्रचार के दौरान  डीएमके नेता करूणानिधि ने बयान दिया था कि यदि भविष्य में उनको कुछ हो जाता है तो उनके बेटे स्टालिन को पार्टी व सरकार की कमान सौंपी जायेगी। जिसे वहां की जनता ने नकार दिया है। करूणा की इस घोषणा का कहा जा रहा हैं कि उनके दल व कार्यकर्ताओं में भी विपरीत असर पड़ा है। यही कारण है चुनाव परिणामों के बाद जनता को संबोधित करते हुए जयललिता ने कहाभी कि यह चुनाव परिणाम वंशवाद की राजनीति के खिलाफ हैं। वहीं जयललिता की सफलता का मूलमंत्र माना जा रहा है राज्य में शराबबंदी का उल्लेख करना और साथ ही बीपीएल परिवारों को फ्रीमोबाइल जैसी लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा करना। तमिल राजनीति में जया को लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा करने और उनको अमल में लाने की कला में माहिर भी माना जाता है। चुनाव प्रचार व चुनाव पूर्व बाद के एग्जिट पोलों में चुनाव विश्लेषक इन चुनावों में जया को आउट मान कर चल रहे थे लेकिन जैसे- जैसे गिनती आगे बढ़ती गयी जया आगे निकलती चली गयंी। इसके साथ ही चुनाव विश्लेषकों के अनुमान धरे के धरे रह गये। सभी चुनावी धुरंधरों का यही मत था कि विगत दिनों चेन्नई में आई बाढ़ की विभीशिका में जया का सपना बह जायेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है और जया और अधिक मजबूत होकर उभरी हैं।  जया की यह सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि उनके खिलाफ दो गठबंधन पूरी ताकत के साथ लडे़ं लेकिन सभी गठबंधनों की हालत अब राज्य की जनता के सामने हैं।

इन चुनावों से सबसे बड़ा झटका निश्चय ही कांग्रेस को उसकी गठबंधन व भविष्य की राजनीति को लगा है।  कांग्रसे महासचिव दिग्विजय सिंह का बयान भी आ गया है कि अब कांग्रेस को एक बहुत बड़ी सर्जरी की आवश्यकता है। अभी कांग्रेस के हाथ में छह राज्य बचे हैं । जिसमें कर्नाटक ही सबसे बड़ा राज्य है। जबकि हिमांचल प्रदेश, उत्तराखंड ,मणिपुर, मेघालय व मिजोरम बहुत ही छोटे राज्य हैं । जिसमें हिमांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह आय से अधिक संपत्ति व भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हैं, उत्तराखंड अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है।  बाकी राज्यों का भी बुरा हाल है । अब किसी भी  प्रांत में फिलहाल कांग्रेस की सरकारों को स्थिर नहीं कहा जा सकता। जिसके कारण कांग्रेस की राज्यसभा सीटों पर भी संकट आ गया है। आगामी विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को अभी व्यापक सफलता मिलने में संदेह हैं। हालांकि भाजपा शासित राज्यो में वह अभी भी विपक्ष के रूप में मजबत विकल्प के रूप में माजूद है लेकिन वह कोई मजबूत व नया चेहरा जनता को देने में सफल नहीं हो पा रही है यही कारण है कि आज कांग्रेस के समक्ष नेतृत्व का संकट भी पैदा होने जा रहा हैं।

उधर उपचुनाव परिणामों में भी कांग्रेस को भारी निराशा ही हाथ लगी है। मेघालय की एकमात्र लोकसभा सीट पर हुये उपचुनाव मं कांग्रेस की अब तक की सबसे शर्मनाक पराजय हुयी हैं वहीं गुजरात में एकमात्र विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने बाजी मार ली है। बस केवल एक सीट झारखंड में ही कांग्रेस को नसीब हुई जबकि उप्र में कांग्रेस की रणनीति फेल हो गयी। अब ऐसा लगने लगा है कि यह देश धीरे- धीरे ही सही कांग्रेसमुक्त की ओर बढ़ रहा है।  लेकिन यह बात भी सही है कि अब भाजपा को मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रपों से जूझना होगा। वहीं कई राज्यों में अभी भी कांग्रेस मुख्य विपक्षी  दल तो है ही।

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