भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सामूहिक चिन्तन जरूरी

विकास के लिए सकारात्मक सोच जरूरी

सुरेश हिन्दुस्थानी

अच्छे सपने देखना बुरी बात नहीं है, और इस सपने को खुली आँख से देखा जाये तो और भी अच्छा है। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि इन सपनों में किसी प्रकार का संकुचन ना हो। मतलब साफ है कि व्यापक दृष्टि से सपने देखे जाएँ तो यह समग्र विकास की अवधारणा को ठोस आधार प्रदान करने में सहायक सिद्ध होते हैं। व्यक्तिगत हितों का परित्याग करके जो सपना देखा जाता है, उसमें देश का हित होगा ही, यह निश्चित है। वास्तव में जिन सपनों में राष्ट्रीयता के भाव का संचार होता है, उससे देश को आगे बढ़ाने में मजबूत और स्वर्णिम राह का निर्माण होता है।

हमारा चिंतन हमेशा इस प्रकार का होना चाहिए कि बड़े हित को प्राप्त करने के लिए छोटे हितों का परित्याग हो। क्योंकि जब बड़ा हित प्राप्त होने की राह दिखाई देने लगती है तो छोटे हित स्वत: ही निस्तारित हो जाते हैं। देशहित हमारा बड़ा हित है। यहाँ पर एक सवाल करना समीचीन लग रहा है कि क्या हम राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए अपने व्यक्तिगत हित का त्याग नहीं कर सकते? दुनिया के सभी देशों में देखा जाता है कि देश से किसी भी बुराई को दूर करने के लिए वहाँ की सरकार द्वारा कोई अभियान चलाया जाता तो उस देश के नागरिक अपना प्रथम कर्तव्य समझकर उस अभियान को व्यापक समर्थन प्रदान करते हैं। कहना तर्कसंगत होगा कि वहाँ के नागरिकों के मन में अपने राष्ट्र के प्रति गहरा अनुराग दिखाई देता है। यह अनुराग ही उस देश के लिए मजबूती का आधार बनता है।

हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सपना देखा है, वह सपना है देश से बुराई को मिटाने का। कुछ लोग मानते हैं कि भ्रष्टाचार नामक बुराई देश से समाप्त ही नहीं हो सकती। यह विचार सीधे तौर पर निराशा का संचार करता है। ऐसे में यह कहना जरूरी है कि जो लोग भ्रष्टाचार को जीवन का अंग मान बैठे हैं, ऐसे लोग कभी नहीं चाहेंगे कि देश से इस बुराई का अंत हो। मेरा उन लोगों से कहना है कि किसी भी समस्या को हटाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होती है। क्योंकि केवल सरकारी प्रयासों से ही कोई काम सफल नहीं हो सकता, इसके लिए पूरे देश को सरकार का समर्थन करना चाहिए। सरकार ने योजना बना दी है, सरकारी स्तर पर खुद सरकार के मंत्रियों ने इसका पालन भी शुरू कर दिया है। अब जरूरत आम जनता की भागीदारी की है। आमजनता और अन्य राजनीतिक दल जितना सरकार का सहयोग करेंगे, उतनी ही जल्दी इस समस्या से निजात मिलेगी।

corruptionप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से एक बहुत ही अच्छी बात कही है कि मेरा सपना है कि देश से भ्रष्टाचार रूपी समस्या समाप्त हो। प्रधानमंत्री का यह सपना खुली आंख से देखा गया एक ऐसा सपना है, जिसे पूरा करने की दिशा में वर्तमान में हर देशवासी मन से चाहता है, लेकिन यह भी सब जानते हैं कि केवल चाहने भर से कुछ नहीं हो सकता। इसके लिए सामूहिक प्रयास भी करने होंगे। भाषण समाप्त होने के तुरंत बाद देश के विद्युतीय समाचार माध्यमों ने जिस प्रकार का दृश्य दिखाया उससे तो ऐसा ही लगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात कहकर बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। जिस देश में इस प्रकार के राष्ट्रहितैषी अभियानों को आलोचनाओं के भंवर से गुजरना पड़ता हो उस देश का तो भगवान ही मालिक है।

भारत को मजबूत बनाने की दिशा में आगे बढऩे से पहले इस बात का अध्ययन करना बहुत जरूरी है कि हमार भारत देश क्या है। क्या वर्तमान में जो स्वरूप दिखाई देता है वही मात्र भारत है? अगर हमारे चिन्तन की दिशा यही रही तो हम भारत को वह प्रगति और विकास नहीं दे पाएंगे, जिससे भारत ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में आगे दिखाई देंगे। हो सकता है कि कई लोगों को यह लगता हो कि यह काम हो ही नहीं सकता, लेकिन जब कोई व्यक्ति काम शुरू कर देता है तो वह किसी न किसी परिणाम को प्राप्त होता ही है। भारत के बारे में अध्ययन करना है तो हमें गुलामी से पूर्व की कालावधि में जाना होगा। वर्तमान में हमें केवल गुलामी के बाद वाला ही इतिहास बताया जाता है, जो वास्तविकता में भारत का इतिहास है ही नहीं। वह तो गुलामी का इतिहास है। हम जानते हैं कि गुलामी के कालखण्ड में भारत को समाप्त करने के भरसक प्रयास किए गए। भारत के कई टुकड़े किए गए। हम जरा इस बात को सोचें कि संकल्प करने से क्या नहीं हो सकता, अगर अभी संकल्प नहीं किया तो आने वाले दिनों में हम क्या होंगे, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

अब जरा दूसरी बात का भी अध्ययन कर लिया जाए तो अच्छा रहेगा। जब देश से अंगे्रजों को भगाने की कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन करके स्वतंत्रता प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया जा रहा था, उस समय स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धाओं ने ऐसे भारत की कल्पना भी नहीं की होगी, जो आज दिखाई दे रहा है। आज भारत भूमि पर गुलामी के पद चिन्ह विद्यमान हैं। कहीं ध्वस्त मानबिन्दुओं के अवशेष दिखाई देते हैं, तो कहीं मुगलों और अंगे्रजों के नामों को महिमामंडित करने वाले स्थान। हमने निराशावाद को अपनाकर इन नामों को इस प्रकार से अपना लिया जैसे यह अपने ही हों। क्या यह गुलामी की मानसिकता को उजागर नहीं करता।

हमें इस बात की चिन्तन करना चाहिए कि हम किस प्रकार का भारत चाहते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहता हूं जिसमें गरीब से गरीब भी यह अनुभव करे कि यह मेरा भारत है, मेरा अपना है। जिसमें ऊंच नीच का कोई भेद नहीं हो। क्या गांधी के सपनों का वह भारत वर्तमान में दिखाई देता है। आज हमारे देश के प्रधानमंत्री गांधी जी के भारत को मूर्त रूप देने के लिए अग्रसर हो रहे हैं, यह आलोचना का विषय नहीं, बल्कि इसे जोरदार समर्थन दिए जाने की जरूरत है। जितना इस अभियान को समर्थन मिलेगा, हमारा देश उतना ही मजबूती की राह पर अग्रसर होता चला जाएगा।

मैं देश के राजनीतिक दलों से आहवान करना चाहता हूं कि एक बार सारे अंतर विरोध छोड़कर केवल इस बात को साक्षी भाव से अंगीकार करें कि जिस देश में मैं रहता हूं मुझे उसके लिए कार्य करना चाहिए। मेरे व्यक्तिगत जीवन में कभी नकारात्मकता का भाव भी न हो। कहा जाता है कि जो बुराई देखता है, उसे सब कुछ बुरा ही नजर आएगा, और जो केवल अच्छाई देखना चाहता है उसे बुराई में अच्छाई नजर आएगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ, सुंदर और मजबूत भारत बनाने के बारे में जो सपना देखा है। उस सपने को पूरा करने के लिए पूरे देश से एक ही आवाज आना चाहिए कि आज के बाद मेरा हर कदम मेरे मजबूत भारत के लिए ही होगा। जो राजनीतिक दल इस प्रकार के अभियान में राजनीति करते हैं, वह कहीं न कहीं देश का ही नुकसान करते दिखाई देते हैं। यही नकारात्मक राजनीति है। देश के राजनीतिक दलों को इस नकारात्मकता के भंवर से निकलना चाहिए। जहां तक कांगे्रस पार्टी का सवाल है तो उसे प्रथम तो इस बात का चिन्तन करना चाहिए कि उसे देश की जनता ने क्यों नकार दिया। हम जानते हैं कि आज के युवा को कोई भी मूर्ख नहीं बना सकता, क्योंकि देश के राजनीतिक दलों की हर गतिविधि की जानकारी उसे तुरंत मिल जाती है। देश का हर युवा सूचना तंत्र से पूरी तरह जुड़ा हुआ है।

 

सुरेश हिन्दुस्थानी

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  1. भृष्टाचार इतना घुल मिल चुका है की जीवन में कौन ईमानदार है ,ढूंढना,पहचानना ,कठिन है. यदि किसी व्यक्तिकी पुत्री की शादी तय होना है तो वह पाहिले देखेगा,इंजीनियर,फिर डॉक्टर ,किन्तु यह संभव नही. फिर वहदेखेगा आबकारी,विक्रयकर विभाग ,पुलिस ,आयकर विभाग में अधिकारी या निरीक्षक. उस बाप की पसंद सबसे अंतिम होगी शिक्षक और प्राध्यापक। इस प्रकार वह देखता चला जायेगा की उसकी पुत्री किस प्रकार सुविधा पूर्वक जीवन जीती है. मान लीजिये की उसे ऐसा कोई वर मिल नहीं पाता ऐसा स्थान मिलता है जहा वेतन तो कम है लेकिन ”ऊपरी”अधिक है तो वह इस स्थान का बढ़ चढ़ कर वर्णन करेगा.इन सब कोई भी राजनीतिक दल चुनाव में उसी प्रत्याशी को टिकट देगा जिसमे बाहुबल और धनबल हो. प्रतीक शहर में शादी,जन्म,विवाह वर्षगांठ मनाने के लिए महंगे से महज मांगलिक कार्यालय बुक किये जाते हैं. मकानो को कितने महंगे बनाया जाता है. इन सब इन सब कारकों का एक हल है ,नियंत्रित प्रजातंत्र. मकानो का आकार ,मांगलिक कार्यालयों की विशालता पर प्रतिबन्ध, प्रति परिवार का आर्थिक सर्वे,आवश्यक है. आरक्षण नीति का पुनरावलोकन हो,आरक्षण में प्रतिशत वही होक़िन्तु जिन्हे एकबार लाभ मिल चूका है बेटों बेटियों नातियों ,पड़पोतों को लाभ न मिले.inke बजाय उन्हें ही जिम्मेदारी दी जाय की आप आपके ही किसी अन्य रिश्तेदार को यह लाभ दिलवाएं. और सबसे अंत में सरकारी नौकरियों की भर्ती के लिए केंद्रीय कृत व्यवस्था न हो अन्यथा (म। प्र)सरीखा ”व्यापम”कांड कोई रोक नहीं सकता. एक देहात में चपरासी नियुक्त करना है तो प्रान्त की राजधानी का अधिकारी क्यों भर्ती करे?जिला स्तर पर किसी शिक्षक,बाबू,मेकेनिक ,ड्राइवर, की नियुक्ति करना है तो इसके लिए राजधानी के महाप्रभु क्यों अधिकृत हो?इस देश से भरषटाचार मिटाना समुद्र को उलीचना है.

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