मुख्यमंत्री इंजिनियर योजना: विकास दर में पिछड़ते देश के लिए आशा-किरण

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enginnerमध्यप्रदेश जिसे कि गठन के पूर्व और गठन के बाद भी देश का सर्वाधिक पिछड़ा राज्य माना था के विषय में लगता है अब देश और विदेश के विशेषज्ञों और विश्लेषकों को अपनी राय बदलनी पड़ेगी. मध्यप्रदेश के विषय में देश भर की राय बदलनें का यह विषय और भी अधिक महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाता है क्योंकि छत्तीसगढ़ के निर्माण के बाद तो इस राज्य को पिछड़े के साथ साधन विहीन भी माना जानें लगा था क्योंकि मध्यप्रदेश के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र और महत्वपूर्ण और महंगे खनन क्षेत्रों के साथ साथ बिजली घर और बड़ी बड़ी सभी ओद्योगिक ईकाइयां भी म.प्र. के विघटन के बाद छत्तीसगढ़ में चली गई थी. अब इस राज्य में पिछलें दस वर्षों में जिस प्रकार की योजनायें बनाई चलाई जा रही हैं और इस प्रदेश के निवासी जिस प्रकार मेहनत और लगन से प्रदेश के विकास क्रम में योगदान दे रहें हैं वह अपनें आप में विकास की एक अनुपम गाथा और अतुलनीय प्रयासों की शानदार श्रंखला हो गया है.

हाल ही के बीते वर्षों में जिस प्रकार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने बड़ी ही अनुपम और बहुउद्देशीय योजनाएं इस प्रदेश के चप्पे-चप्पे में फैलाई है उससे तो यह प्रदेश समुचें देश के लिए एक मिसाल बनता जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि हमारा देश जब विकास दर में आठ प्रतिशत से गिर कर चार प्रतिशत की ओर तेजी से बढ़ रहा हो तब यह और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग विधायिका अपनें आचरण को बदलें और देश की दर में प्रदेश का योगदान बढानें के लिए न केवल अपनें स्थापना खर्च को कम बल्कि नई और अभिनव योजनाओं के माध्यम से युवा वर्ग में आशा का नया वातावरण बनाएं. देश-प्रदेश में रोजगार अवसरों में जिस प्रकार कमी आ रही थी उससे चंहूओर निराशा का ही वातावरण निर्मित हो रहा था. देश भर में रोजगार, स्वरोजगार और काम-उद्योग धंधों में आ रही लगातार गिरावट को मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने चुनौती के रूप में लिया और यहाँ के योजनाकारों ने एक नया-अभिनव-उत्पादक और परिणामोन्मुखी मार्ग खोज लिया जिसे एक योजना के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे “मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर-कांट्रेक्टर योजना” का नाम दिया गया. सामान्यतः देश में और विदेशों में महाविद्यालयों से पढ़-लिखकर निकलनें वाले छात्रों और रोजगार के अवसरों में साम्य नहीं बैठ पाता है और छात्र जगत रोजगार की तलाश में निराशा के सागर में ही डूबता उतरता रहता है. युवा इंजिनियर वर्ग को इस स्थिति से उबारने के लिए ही यह योजना लाइ गई है, जिससे उसे वह स्थिति प्राप्त हो जायेगी जहां न केवल रोजगार के अवसर तलाशनें को मजबूर नहीं रहेंगा बल्कि अन्य पढ़े लिखे युवाओं को और मजदूरों को स्वयं के उपक्रम में रोजगार प्रदान करनें लगेगा और राष्ट्र के विकास में सहभागी होनें लगेगा. इस देश के युवा नौकरी मांगने वाले नही, देने वाले बने, इस दृष्टि से मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना मुख्यमंत्री युवा इंजिनियर कॉन्ट्रेक्टर योजना, चर्मशिल्पी, बांसशिल्पी, घुम्मकड़-अर्धघुम्मकड़ और विमुक्त जातियों के लिए रोजगार योजनाओं के साथ-साथ टंटया भील रोजगार योजना भी लागू की गई है किन्तु यह नई योजना तो जैसे सम्पूर्ण राष्ट्र के अन्य राज्यों के लिए कौतुहल और सफलता की ग्यारंटी का विषय बन गई है.

अभिनव इंजीनियर कांट्रेक्टर योजना लागू करनें के पूर्व भी मध्यप्रदेश के सुदूर गांवो के गरीब परिवारों के युवाओं को रोजगार मुहैया करवाने के लिए 250 से अधिक रोजगार मेलों के जरिए डेढ़ लाख से अधिक युवाओं को रोजगार दिया गया है व युवाओं को रोजगार प्राप्त करने योग्य बनाने के लिए कौशल विकास मिशन भी शुरू किया गया है. सरकार द्वारा प्रदेश के छात्रों को उच्च शिक्षा ऋण प्रदान करने हेतु ब्याज अनुदान एवं गांरटी दी जा रही है और इन सभी उपायों के सहारे ही म.प्र. तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में पिछले दस वर्षो में पुरे राष्ट्र के लिए एक मानक और अनुकरणीय राज्य बन गया है. यह गौरव का विषय है कि वर्ष 2002-03 में उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थानो की सख्या 186 थी, जो आज बढ़कर 728 है और प्रवेश क्षमता तब 24 हजार 231 थी जो अब 1 लाख 37 हजार 901 हो गई है, आई.टी.आई.की संख्या 2003 में 162 थी जो अब बढ़कर 376 हो गई है और इनकी प्रवेश क्षमता 17 हजार 866 थी जो अब 33 हजार तक बढ़ गई है. इतना ही नहीं तकनीकी शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रदेश के 38 पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों में 50 सीटर महिला छात्रावास स्थापित किये जा रहे है जिससे महिला शिक्षा के क्षेत्र में म.प्र. आनुपातिक रूप से अव्वल राज्य बन गया है. पिछले 10 वर्षो में पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों में 199 नवीन पाठ्यक्रम आरंभ किये गए हैं सभी जिलें में आदर्श आई.टी.आई.की स्थापना की जा रही है, चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में जबलपुर में मेडिकल विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है. सागर में चिकित्सा महाविद्यालय आरंभ हो गया है, तथा जहां रतलाम, शहड़ोल और विदिशा में चिकित्सा महाविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया जा चुका है वहीँ प्रदेश में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर मेंडिकल पाठ्यक्रमों की सीट्स में ऐतिहासिक वृद्धि हुई है. मेधावी विद्यार्थियों को हर तरह का प्रोत्साहन और शाला भवन सहित शिक्षकों की कमी को पूरा करने का कार्य निरंतर जारी है. वर्ष 2003 में जहा 78 हजार 434 स्कूल थे, आज 1 लाख 20 हजार 39 स्कूल हैं, तब 1 लाख 70 हजार 690 शिक्षक थे जो आज बढ़कर 3 लाख 77 हजार 540 हो गये है. प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में बच्चों को दर्ज करने की दर 99 प्रतिशत तक पहुंच गई है. ये पुरे आंकड़े म.प्र. को सम्पूर्ण राष्ट्र में अनुकरणीय प्रदेश का स्थान दिला रहें है और प्रदेश को एक स्वर्णिम युग की ओर बढानें में बेहद कारगर साबित हो रहें हैं.

१४ अगस्त को म.प्र. मंत्रिमंडल ने जिस ‘मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर-कांट्रेक्टर योजना” को मंजूरी दी उसके लिए लोक निर्माण विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है. योजना में किसी भी संकाय के इंजीनियरिंग में डिग्रीधारी 500 युवा अभियंता को 6 माह का प्रशिक्षण (इन्टर्नशिप) दिया जायेगा. प्रारंभिक वर्ष में प्रायोगिक तौर पर 500 युवा अभियंता को प्रशिक्षण का लक्ष्य रखा गया है व आगामी वर्षों में लक्ष्य और उपलब्धि का पुनरावलोकन कर लक्ष्य प्रतिवर्ष निर्धारित किया जायेगा. प्रशिक्षण की छह माह की अवधि को तीन भाग में विभाजित किया गया है और साथ साथ इसमें दो माह एकेडेमिक ट्रेनिंग भी दी जायेगी तथा कार्यालयीन ज्ञान तथा विभाग के संबंध में जानकारी के लिये एक माह और मैदानी प्रशिक्षण तीन माह का होगा. इस योजना में प्रशिक्षु को मध्यप्रदेश का मूल निवासी होना आवश्यक है और आवेदक डिग्री प्राप्त करने के 3 वर्ष के अंदर ही आवेदन कर सकता है. आवेदकों की संख्या अधिक होने पर प्रशिक्षु का चयन लॉटरी द्वारा किया जाएगा.

प्रशिक्षण अवधि में स्नातक अभियंता को 5000 रुपये प्रतिमाह मानदेय भी दिया जायेगा और मैदानी प्रशिक्षण के समय मैदानी भत्ते के रूप में 2000 रुपये प्रतिमाह अतिरिक्त मिलेगा. इस योजना में प्रशिक्षित युवा इंजीनियर कांट्रेक्टर को निविदा शर्तों में प्रावधान अनुसार उप ठेके (सब लेट्टिंग) के माध्यम से प्रतिष्ठित ठेकेदारों से भी जोड़ा जायेगा जिससे प्राप्त अनुभव के आधार पर युवा आगामी ठेके ले सकेंगे. प्रशिक्षण के बाद युवा इंजीनियरों को राज्य शासन की केन्द्रीयकृत पंजीयन प्रणाली के अंतर्गत ‘सी’ श्रेणी में पंजीकृत किया जा सकेगा, लेकिन मध्यप्रदेश अनुज्ञापन मण्डल (विद्युत) विनियमन 1960 की पूर्ति के लिये विद्युत वितरण, ट्रांसमिशन और उत्पादन से संबंधित कार्यों के लिये ठेकेदारों को ‘ए’ और ‘बी’ श्रेणी के विद्युत लायसेंस धारक होने की आवश्यकता यथावत बनी रहेगी. योजना में प्रशिक्षित इंजीनियर मुख्यमंत्री युवा स्व-रोजगार योजना में 25 लाख रुपये तक ऋण प्राप्त कर सकेंगे जिससे उनके पास स्वयं की सस्ती कार्यशील पूंजी हो सके व वह प्रतिस्पर्धा के इस भीषण युग में अपनी प्रतिभा और धन के दम पर मध्यप्रदेश के साथ भारत के तेज विकास में योगदान की एक अनुपम गाथा लिख सके.

 

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  1. सब बकवास हे, ऐसा लाइसेंस तो यू ही PWD से मिल जाता है, ओर कोई भी बैंक उपकरण खरीदने या उद्यम स्थापित करने के लिए इस फील्ड में लोन भी नही देता हैं, घर का पैसा डूब जाता है वो अलग से

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