अंग्रेज़ी- हिंदी टक्करः 3

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-डॉ. मधुसूदन – english

अनुरोध: विषय आत्मसात करते हुए पढ़ें। प्रश्न अवश्य पूछें, विद्वान पाठक सुधार भी सूचित करें। यह आलेख टक्कर १ और २ पर भी आधार रखता है।

कुछ सारांश 
===>(१) हमारे शब्द, स्वयं अपना अर्थ, और ज्ञान-विज्ञान उदघाटित करते चलते हैं, जब, अग्रेज़ी के शब्दों की व्याख्या रटनी पडती है।
===>(२) संस्कृत भारत की प्रादेशिक भाषाओं में ऐसी फैली है, जैसी लातिनी-या ग्रीक भी युरपमें फैली नहीं है।—-ऐसा मॉनियर विल्यम्स का ही कहना हैं।
===>(२अ)  इस लिए पारिभाषिक संस्कृत शब्दावली सारी प्रादेशिक भाषाओं में, प्रयुक्त होकर, हमारी अतीव आवश्यक एकता भी दृढ कर सकती है।—लेखक
===>(३) प्रादेशिक भाषा में, इस के उपयोग से, प्रचलित (अंग्रेज़ी) शिक्षा प्रणाली की अपेक्षा देश की, २५ से ३० % आर्थिक  बचत हो  सकती है।
===>(४) न्य़ूनतम  दो-तीन वर्ष शालेय शिक्षा का समय भी बच सकता है; और ज्ञान की गुणवत्ता अतिरेकी सीमातक  बढ सकती है।(जिसका अनुमान कठिन है।) हमारा छात्र चिंतनशील भी हो सकता है और शोध कार्य में चिंतन द्वारा, आगे भी, बढ़  सकता है। अंग्रेज़ी में प्रायः चिंतन कठिन होता है। कविता रचना भी कठिन ही होता है।
===>(५)और अंग्रेज़ी पढने की इच्छा वाले छात्र  चाहे तो, इन बचे हुए वर्षों का अंग्रेज़ी पढ़ने में उपयोग कर सकते हैं।
(एक) एक पहेली 
एक ऐसा शब्द बताइए, जिसमें छोटा संस्कृत वाक्य समा गया हो? संकेत लीजिए, यह एक विषय का नाम है। आप इस शब्द को अवश्य जानते हैं। शाला में इस नाम का विषय पढ़ा भी होगा ही। केवल चार अक्षरों का ही शब्द है। और शब्द में पूरा अर्थ व्यक्त करने वाला वाक्य समा गया है।विचारना यदि चाहते हैं, तो यहींपर रुक जाइए।आगे इस पहेलीका उत्तर दे रहा हूं। कुछ पाठक पहचान भी गए होंगे। कौन सा विषय या शब्द है?
(दो) क्या उत्तर है आपका?
उत्तर है, “सहातिइ”। मात्र,  इसी को उलटे क्रम से पढ़ें। सही उत्तर है “इतिहास”। जब आप इतिहास शब्द का प्रयोग करते हैं, तो एक पूरा संस्कृत वाक्य बोल देते हैं? दिखने में एक शब्द है, चार अक्षरों का, पर है पूरा वाक्य। कैसे? इस शब्द को, संधि विच्छेद कर (तोड़कर) देखें। यह बना है तीन टुकडों से। इति+ह+आस।

क्या चमत्कार है? एक शब्द “इतिहास” एक पूरा वाक्य है? हां जी। पूरा वाक्य है। इति ह आस। कुछ संस्कृत वाक्य की शैली के अनुसार बोल के देखिए। इति ह आस। आप बोल रहे हैं, “ऐसा सचमुच था”।
जब पहली बार मैं ने, इस शब्द के पीछे का ऐसा अर्थ जाना था, तो छात्र-सुलभ कुतूहल से भर गया था। यही कुतूहल मुझे ऐसी आकांक्षा दे गया, आज तक प्रोत्साहित कर रही है। धन्य है, हम भारतीय, जो ऐसी भाषा पर जन्मसिद्ध अधिकार रखते हैं।हमने  “इतिहास” इस विषय के नाम से ही विषय को संक्षेप में बता दिया। इति=ऐसा, ह=सचमुच, आस=था।
ऐसे ही हमारे विषयों के नाम, ज्ञान विज्ञान उदघाटित करते चलते हैं।
कुछ अंग्रेज़ी के घोर प्रेमी History शब्द के निम्न अर्थ और उसकी एटिमॉलॉजी को देख लें। जिन्हें स्वयं डिक्षनरी देखकर सत्त्यापन करना है, वें जो चाहे वो डिक्षनरी देख ले।
(तीन) History  {यह, क्लिष्ट अंश है, ३ छोड़कर ४ पर जा सकते हैं}
जो अर्थ “इतिहास” इस शब्द या नाम से व्यक्त होता है, वह “History” इस नाम से व्यक्त नहीं होता। ये History की  निम्न एटिमॉलोजी देखने से स्पष्ट हो जाएगा।
इसमें  c हर जगह century -(सदी) बताता है। “History” शब्द से क्या व्यक्त होता है? (किसी डिक्षनरी से उद्धरित  करता हूं; अनुवाद नहीं करता। अंग्रेज़ी के पुरस्कर्ता पढ सकते हैं। Dictionary.com से निकाला है।
history (n.) Look up history at Dictionary.com
late 14c., “relation of incidents” (true or false), from Old French estoire, estorie “chronicle, history, story” (12c., Modern French histoire), from Latin historia “narrative of past events, account, tale, story,” from Greek historia “a learning or knowing by inquiry; an account of one’s inquiries, history, record, narrative,” from historein “inquire,” from histor “wise man, judge,” from PIE *wid-tor-, from root *weid- “to know,” literally “to see” (see vision).

Related to Greek idein “to see,” and to eidenai “to know.” In Middle English, not differentiated from story; sense of “record of past events” probably first attested late 15c. As a branch of knowledge, from 1842. Sense of “systematic account (without reference to time) of a set of natural phenomena” (1560s) is now obsolete except in natural history.

One difference between history and imaginative literature … is that history neither anticipates nor satisfies our curiosity, whereas literature does. [Guy Davenport, “Wheel Ruts,” 1996]

(चार) संस्कृत का तुलनात्मक 
मानदण्ड।
इतना अवश्य कहूंगा, कि, History शब्दका अर्थ कभी Story भी था, और उसके अलग अलग अर्थ भी रहे हैं।
पर इतिहास (“ऐसा सचमुच था”) इस शब्द का अर्थ तो कभी भी खो ही नहीं सकता।
इसी संस्कृत के गुण के कारण संस्कृत को एक मानदण्ड मानकर “तुलनात्मक भाषा विज्ञान” का विषय अस्तित्व में आया।
फ्रांत्स बोप (Franz Bopp;1791-1867) आधुनिक तुलनात्मक भाषा विज्ञान का प्रमुख प्रतिष्ठापक है, कहता है, “संस्कृत के आधार पर किया गया विवेचन ही अधिक मान्य और वैज्ञानिक होगा।” इस बिंदु का विवेचन देवेंद्रनाथ शर्मा लिखित “भाषा विज्ञान की भूमिका” के पृष्ठ ३१६-३१७ पर मिल जाएगा।  
आप , अपने  अंग्रेज़ी के पीछे भागनेवाले  मित्रों  को भी  यह जानकारी दे सकते हैं।

(पांच) यदि संस्कृत ना होती तो?

एक बार, एक मित्र प्रोफ़ेसर “संस्कृत को मर चुकी भाषा (Dead Language),” कहने लगे। इस पर मैंने चुनौती देकर विनय पूर्वक  कहा कि आप संस्कृत शब्दों का प्रयोग किए बिना, हिंदी का एक वाक्य, बोलकर बताएं। तो कुछ उत्तर दे नहीं पाए। आप प्रयास कीजिए।
संस्कृत ना होती, तो, हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला, उर्दू, तेलुगु, तमिल कोई भी भारतीय भाषा ना होती। “भाषा” यह शब्द भी ना होता। “बोली” ना होती।
हिंदी संस्कृत के विरोधक भी इन्हीं भाषाओं की सीढियों पर चढ़कर उसी सीढ़ी को गिराने के विचार भी उसी भाषा में व्यक्त करते हैं। तुलनात्मक भाषा विज्ञान ना होता। सारे भारत में प्रयोजी जाती पारिभाषिक शब्दावली ना होती। तो बंधुओं जान लीजिए कि यदि संस्कृत ना होती तो, यह हिंदी में लिखा आलेख भी लिखा ना जाता।
(छह) संस्कृत शब्दों का सच 
संस्कृत शब्दों का एक सच ऐसा है, जो भारतीय जानकारों के लिए ही, सहज स्वयं प्रकाशित है, सूरज जैसा स्पष्ट भी है। यह सच परदेशी संस्कृतज्ञों के सहज ध्यान में आना, भारतीय जानकारों की अपेक्षा अवश्य कठिन था। कारण है उनकी, अपनी भाषा की मर्यादा। जब तक कोई भारतीय जानकार उन्हें यह सच बताता नहीं, वे इस सचको स्वयं ढूंढ़ नहीं सकते। हमारी भाषाएं संस्कृत से भरी पड़ी है, इसलिए, ऐसा सच हमारे लिए, फिर भी सहज है।
जो सच हमारी समझ में आ सकता है; वैसा सच, मॅक्समूलर, मॉनियर विलियम्स, या विल्यम जोन्स की समझ में भी आना कठिन मानता हूं। शायद असंभव! हां, कोई हमारा विद्वान पण्डित उन्हें बताता, तो बात अलग थीं।
(सात)”भूगोल” एक और उदाहरण
तो आज इस सचके विषय में कुछ कहना चाहता हूँ। ज्ञान विज्ञान को  उदघाटित करते करते चलते है, हमारे शब्द। भूगोल शब्द लीजिए। आप सभीका परिचित शब्द है। तनिक इसे तोडकर देखें। भू + गोल= भूगोल।
यह शब्द भी, अपने आप अपना अर्थ प्रकट कर देता है। कहता है, कि, भू अर्थात पृथ्वी तो है ही, पर यह पृथ्वी गोल है। जैसा, बाइबल के अनुसार माना जाता है, वैसी  उपले जैसी या रोटी जैसी चपटी नहीं है। अभी पूरा विषय तो नहीं, पर उस विषय का अति महत्त्वपूर्ण गुण, और वह भी संक्षेप में, व्यक्त कर देता है। भूगोल पढ़ाने वाला शिक्षक इस प्रकार से विषय के नाम से ही जुडा हुआ, अर्थ समझाकर, किसी छात्र को पूछे कि पृथ्वी का आकार कैसा है? तो छात्र कण्ठस्थ किए बिना, या रटे बिना ही, कह सकता  है कि पृथ्वी गोल है, नारंगी जैसी। चपटी नहीं है, उपले जैसी या रोटी जैसी नहीं है। 
फिर पृथ्वी पर बसें देशों का, ऋतुओं का, वातावरण का, अध्ययन भी “भूगोल” इस संज्ञा से व्यक्त किया है। यह विस्तरित अर्थ भी समझाया जा सकता है। पर, जब हम अंग्रेज़ी में सिखाते हैं, तो इस लाभ से छात्र वंचित ही रहता है। Geography कहने पर, ऐसा गोलाकार पृथ्वी का चित्र या अर्थ छात्र के सामने नहीं आ सकता।
(आठ) Arithmetic या अंकगणित
अंकगणित शब्द लीजिए जो अंक और गणित  (गिनती) को जोड़कर बना है। जो अंकों की गिनती पर आधारित है, ऐसा विषय अंक गणित कहलाएगा। Arithmetic का स्पेलिंग और अर्थ दोनों भी कण्ठस्थ  करने की आवश्यकता होगी। पर अंकगणित एक तो स्वयं का अर्थ व्यक्त कर देगा। और ध्वन्यानुसारी होनेसे वर्तनी पर भी, शायद एक दो बार ध्यान देने पर कोई समस्या नहीं होगी।पर Arithmetic का अर्थ हमें किसी जानकार से जानना होगा, या किसी शब्दकोष में देखना होगा। स्पेलिंग भी कण्ठस्थ करना ही होगा।
(नौ) बीजगणित या Algebra
फिर गणित के साथ हम बीजगणित भी किसी ने एक बार बताने पर, समझ जाएंगे।  पर Algebra उसी बीजगणित का अंग्रेज़ी पर्याय स्वयं अपना अर्थ व्यक्त नहीं कर सकता। वह भी आप को किसी जानकार या शिक्षक से सीखना पड़ेगा। या शब्द कोश में देखकर रटना होगा।
संगणक
(दस)एक संक्षिप्त उदाहरण। संगणक 
शब्द लीजिए, सं + गणक =संगणक  सम् +गणक  = सम्‍ का अर्थ है, एक साथ, गण्क का अर्थ है गणना करनेवाला। अब कंप्युटर  क्या करता है, मूल रूपसे कंप्युटर गणना करता है। उसका नाम इसी व्युत्पत्ति से बना है। आज उसका प्रयोग विस्तरित हो चुका अवश्य है।
(ग्यारह) प्राण वायु या Oxygen 
आप जानते होंगे, प्राण-वायु प्राणों के लिए कितनी आवश्यक है। उसी के नाम से उसका प्राण से जुडा हुआ गुण पता चल गया। ऐसा “Oxygen” से नहीं होता। उसका प्राण से जुडा गुण आपको अलग से सीखना पड़ता है। प्राण पर आधारित प्राणी, जो प्राणवायु से जीवित है, इस अर्थ में ले सकते हैं। Oxygen शब्द से सीखने पर आप को रटना पड़ेगा कि Oxygen के श्वासोश्वास से प्राणी जीवित रहते हैं। फिर प्राणायाम, प्राणी, इत्यादि शब्द भी जुड़े हुए मिल जाएंगे।
(बारह) एक और संक्षिप्त उदाहरण 
थर्मामिटर (Thermometer) या तापमापक
थर्मामिटर कहने पर, आप ने यदि पहले सुना हुआ या देखा हुआ हो, तो आप के ध्यानमें एक उपकरण आता है, जो आपने बहुत बार देखा है। अच्छा इस उपकरण का उपयोग थर्मामिटर नाम से स्पष्ट नहीं होता।
पर “तापमापक” कहने पर न देखा होने पर भी, उसका अर्थ तो सामने आ ही जाता है कि किसी ऐसे उपकरण का नाम होगा, जो ताप को मापने के काम में आता है।
वैसे ही  तापमान या Temperature
(तेरह) संस्कृत पारिभाषिक शब्दावली 
और हमारी प्रादेशिक भाषाओं की, पाठ्य पुस्तकें संस्कृत पारिभाषिक शब्दावली के बिना लिखी नहीं जा सकती। सारी प्रादेशिक भाषाओं में ऐसी शब्दावली प्रयोजी जा सकती है। भारत की एकता के लिए भी ऐसा दृष्टिकोण ध्यान में रखना उचित होगा।

इसका प्रमाण मॉनियर विलियम्स स्वयं ही देते हैं उनकी डिक्षनरी की प्रस्तावना में।
“Sanskrit, the classical language of India,( which) bears a far closer relation to those dialects(प्रादेशिक भाषाएँ)  than Greek andLatin bear to the living languages of Europe.”
.”……..with much more reason may Sanskrit composition be made an essential at this Institution, (Indian Civil Sevice)  where are trained the whole body of civilians to whom the government of our Indian Empire(वाह) is to be intrusted”.
—“संस्कृत भारत की सांस्कृतिक भाषा है। और वह सारी प्रादेशिक भाषाओं के साथ घनिष्ठ संबध रखती है। ग्रीक और लातिनी, जितनी युरोप की भाषाओं से निकट है; उससे भी कई गुना अधिक संस्कृत प्रादेशिक भाषाओं के निकट है।
ध्यान में रखिए कि मॉनियर विल्यम्स कोई भारतभक्त बनकर नहीं आया था; जो उसने हमारा पक्ष लेकर ऐसा कहा हो। इस लिए उसका कथन मह्त्त्व रखता है।

(चौदह) अंत में
हम, मैकाले के द्वारा ठगे गए, मान भी ले, तो भी स्वतंत्र हो कर ६६ वर्ष बीते, अब तक जिस भाषा नें हमें पिछड़ा रखा उस से छुटकारा नहीं पा सकते? और ५४३ बुद्धिमान में बैठते हैं? यह वैयक्तिक उन्नति की बात नहीं है; पिछडे से पिछड़े ग्रामीण को लेकर समस्त भारत को आगे बढ़ाने की बात है।

उत्तर दे।
अंग्रेज़ी  के पुरस्कर्ता  मुझे संसार में, एक देशका नाम ढूंढ कर बताएं, जिस देश ने उसकी अपनी भाषा अंग्रेज़ी ना होते हुए भी अंग्रेज़ी के द्वारा बहुत उन्नति की है ?

8 COMMENTS

  1. डॉ मधुसूदन जी

    आप के लेख पढ़ते हुए मुझे अपने बचपन की एक घटना याद आ रही है। मेरे पिताजी एक कहानी सुनाया करते थे। कहते हैं एक बार अंग्रेजी और उर्दू में झगड़ा हो गया। झगड़ा था बड़े होने का -अपने को एक दूसरे से बड़ा बता रही थी। इस की पृष्ठभूमि यह है कि भारत में इस्लाम के आने के बाद उर्दू का प्रभाव बढ़ता गया था। कोर्ट कचहरी की भाषा भी उर्दू हो गयी थी और साधारण बोलचाल की भाषा तो थी ही। अंग्रेज़ो के आने के बाद सरकारी काम काज की भाषा अंग्रेजी होने लगी और कचहरी में उर्दू ही चलती रही। मेरा जन्म चूँकि विभाजन से पहले का था तो मेरी शुरुआत उर्दू से हुई लेकिन स्वतन्त्रता के साथ ही यानी १५ अगस्त के तुरंत बाद गांव के स्कूल का एक दम हिन्दीकरण हो गया था। स्कूल की दीवारों पर बड़े बड़े अक्षरों में हिंदी में -कक्षा १ और कक्षा २ लिख दिया गया था। लगता था जैसे पिताजी सहित गाँव के अन्य लोग इसी प्रतीक्षा में थे। कहने का तात्पर्य यह की मेरी शुरुआत अब उर्दू की अपेक्षा हिंदी में हो गयी। हमारे अपने घर में सभी लोग (मेरे पिता जी और दो बड़े भाई) उर्दू पढ़े थे अतः हम दो भाइयों को (मुझे और मेरे अनुज को) पिताजी ने घर पर स्वयं ही उर्दू पढ़ाई।

    बात कर रहे थे उर्दू और अंग्रेजी के पारस्परिक झगडे की। आपस में लड़ने से कोई लाभ नहीं अतः झगड़ा सुलझाने कोई निष्पक्ष निर्णायक होना चाहिए। देखने से लगा कि अधिकाँश भाषाएँ बड़ा कहलाने के झगडे में व्यस्त थी लेकिन खाली थी तो हिंदी भाषा। अतः अंग्रेजी और उर्दू ने हिंदी से उन का झगड़ा सुलझाने का निवेदन किया।

    हिंदी ने मान लिया और अंग्रेजी से कहा लिख कर दिखाओ – हरिद्धार।
    अंग्रेजी ने लिखा – Haridwar .
    हिंदी ने कहा ‘यह तो हरिदवार हो गया। मैंने कहा की हरिद्धार लिखो
    लेकिन फिर वही – हरिदवार। हिंदी ने कहा मुझे ठीक से सुनो और फिर लिखो . लेकिन कोई सुधार नहीं।
    क्योंकि अंग्रेजी में हृस्व और दीर्घ जैसा कुछ होता नहीं।
    इस के अतिरिक्त अंग्रेजी में सात अक्षर बने जबकि हिंदी में चार।

    अब हिंदी ने उर्दू से कहा लिखो – ‘परिणाम’। उर्दू ने लिखा – parinaam –
    हिंदी ने फिर कहा – ‘परिणाम’
    लेकिन उर्दू में ‘ण’ अक्षर होता ही नहीं। हिंदी ने कहा जैसे मैं उच्चारित करूँ वैसे लिखो तो कुछ निर्णय लिया जाये लेकिन सब व्यर्थ।००००

  2. मधु सूदन जी, आप हिंदी प्रदेश के न होकर भी हिंदी का इतना सम्मान करते है, कोई हिंदी प्रदेश का नही करता होगा । आपको प्रणाम और अभिनन्दन \

  3. “देखत में सरल लगैं,
    प्रभाव करें गम्भीर।
    अंग्रेजी भाषा पर
    ज्यों मधुसूदन के तीर ।।

    • आदरणीय तिवारी जी—
      ये पंक्तियाँ आप की निरी उदारता दर्शाती है।
      प्रोत्साहित और अनुगृहीत अनुभव कर रहा हूँ।
      सर्व शक्तिमान,मुझे परिश्रम की क्षमता दे।
      ॥ त्वदीय वस्तु गोविंद तुभ्यमेव समर्पये॥

      कृपांकित
      –मधु झवेरी

  4. इ मैल से आया हुआ संदेश। आप ने संक्षेप में उदाहरण भी जोडकर, कुछ बिंदुओंको प्रकाशित भी किया है। बहन शकुन्तला जी का धन्यवाद करते हुए, प्रस्तुत।
    –मधुसूदन
    ——————————————————————-
    आदरणीय डाॅ. मधुसूदन जी ,—-नमस्कार ।
    आपने इस आलेख में दोनों भाषाओं से सम्बन्धित सूक्ष्म तथ्यों का उद्घाटन जितनी प्रामाणिकता , व्यवहारिकता एवं व्यापकता के साथ किया है,वह निश्चय ही सराहनीय है ।
    अंग्रेज़ी की conventional Spellings कितनी ऊटपटाँग हैं कि समान ध्वनियों के लिये भिन्न भिन्न वर्णों के प्रयोग हैं और बहुधा जिन वर्णों को लिखा जाता है ,उनका उच्चारण भी नहीं होता है । उन्हें रट लेना ही एक मात्र उपाय है । lieutenant, bouquet, psychology जैसे कितने शब्दों के उच्चारण और प्रयुक्त वर्णों में कहीं कोई साम्य नहीं है ।जब कि हिन्दी में जैसा लिखते हैं वैसा ही पढ़ते हैं और जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं ।
    C-see,I- eye,v – We , would-wood जैसे कितने ही शब्द इंग्लिश सीखने वालों को भटकाने वाले हैं,
    इंग्लिश में मैंने एक बार ऐसे अनेक शब्दों का संग्रह किया था । इंग्लिश में ध्वनियों से संबन्धित कोई निश्चित नियम नहीं हैं । हिन्दी की तुलना में वर्ण और ध्वनियाँ बहुत अल्प संख्या में भी हैं । अत: उसे सीखने में अनेकों बड़ी कठिनाइयाँ हैं ।
    आपने विशदता से इन सभी तथ्यों को परखा है । आपके वैदुष्य को नमन !!
    सादर,——शकुन्तला बहादुर

  5. अंग्रेज़ी भाषा में शब्दों को अललटप्पू ढंग से गढ़-गढ़ कर और उससे भी बेतुकी स्पेलिंगों में लिख कर लोगों के सिर मढ़ दिया जाता है.संस्कृत की शब्द-संपदा ,जो अब हिन्दी ने पाई है वैसा, गंभीर विचार और नियमन वहां कहाँ .
    कबीर जैसे अनपढ़ भी उसके (अंग्रेज़ी के)लिए कह देते – बहा है बहि जात है कर गहि चहुँ ओर ,जो कहा नहिं माने ,तो दे धक्का कुछ और .
    -कबीर (विजयतीसी-चौथा प्रकरण )
    हमारे लोग पता नहीं क्यों उससे चिपके बैठे हैं !

    • नमस्कार डॉ. प्रो. प्रतिभा जी—
      कुछ विलंब के लिए क्षमा करें।
      आप ने कबीर के कुछ वचनों का उद्धरण दिया, यह मेरे लिए नयी जानकारी है। बहुत बहुत धन्यवाद।
      प्रवक्ता पर आप की जानकारी भरी टिप्पणी अवश्य योगदान है। ऐसे अपने मुक्त विचार और जानकारी देती रहें। मैं कबीर का उद्धरण खोजता हूँ।मेरे लिए नयी बात है।
      धन्यवाद।

  6. श्रद्धेय मधुसूदन जी,सदैव ही आपके आलेख विस्मयकारी होते हैं.पढ़कर व्यक्ति चमत्कृत हो जाता है. संस्कृत भाषा कि श्रेष्ठता का अभी तक बहुत अल्प ज्ञान ही पश्चिम को हो सका है.वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने अपनी पुस्तक ” एंशिएंट इण्डिया” में संस्कृत भाषा कि ऊंचाई का उल्लेख करते हुए लिखा था कि ऐसे काव्य लिखे गए जिनमे सीधे पढ़ने पर रामायण का और उलटे पढ़ने पर महाभारत का कथानक मिलता है.मैं ऐसी पुस्तक खोज रहा था.अनेक संस्कृत प्रेमियों से भी चर्चा की लेकिन कोई भी ऐसी पुस्तक नहीं बता पाया.पिछले वर्ष अमेरिका यात्रा के दौरान ओहायो में रह रहे मेरे एक निकट सम्बन्धी श्री गुलाब खंडेलवाल जी, जो स्वयं हिंदी के महँ कवी हैं और पिछले पिचहत्तर वर्षों में लगभग साठ काव्य ग्रन्थ प्रकाशित कर चुके हैं, ने एक पुस्तक ” दैवज्ञ श्री सूर्य पंडित विरचित रामकृष्णविलोमकाव्यम् मुझे दी. इसी पुस्तक के आवरण पर पंडित कविराज विरचित राघवपाण्डवीयम तथा श्री हरदत्तसूरि विरचित राघवनैषधीयम का भी उल्लेख किया गया है.इसमें श्री राम और एक अन्य युगीन राजा नल के महत्त्व का एक साठ चरित अंकन किया गया है.ये श्लेषकाव्य परंपरा सम्भवतः विश्व की किसी अन्य भाषा में नहीं है.

    • अनिल गुप्ता जी। आप की बात शत प्रतिशत सही है। हमारी देववाणी संस्कृत के अनेक अलंकारिक चमत्कार भी है। जैसे जैसे पढता हूँ, कुछ उभर कर, ध्यान में आने लगते हैं। कुछ ऐसे भी लगते हैं, जो मेरी समझमें आ जाते है, पर साधारण पाठक के सहज आकलन (समझ) में आयेंगे, ऐसा नहीं लगता। तो ऐसे गुणों को छोड कर लिखता हूँ। इस मर्यादा के अंदर लिखनेका प्रयास करता हूँ। नहीं तो पाठक पढ ही नहीं पाएगा।
      जो भी लिखा जाता है, वह सरलता से समझमें आये ऐसा भी हो, भारत के लिए उपयुक्त भी हो, तो सोने में सुहागा।
      आज का मुख्य लक्ष्य़ संस्कृत का वह गुण है, जिससे छात्र अध्ययन में सरलता से व्याख्याएं आत्मसात कर पाए।उसको अनावश्यक समय अंग्रेज़ी व्याख्याएं रटने में ना लगाना पडे। और जो हमारी सारी भाषाओं के लिए भी लाभकारी हो। यदि यह बात समझमे, आ जाए, तो अंग्रेज़ी की दासता से मुक्ति मिल जाए। —यही केंद्र-बिंदू आज का विशेष है।
      आप ने समय लेकर पढा और टिप्पणी दीं। कृपांकित अनुभव करता हूँ। धन्यवाद।

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