भारत-हितैषी
विशेष : सब से पहले, श्री श्याम रुद्र पाठक जी की, भारतीय भाषाओं में (न्याय-संगत) न्याय की माँग का समर्थन करता हूँ।
उसी संदर्भ में जान लें, कि, एक ऑस्ट्रेलियन विद्वान को जब पूछा गया, कि, अफ्रिका का सामान्य-जन, क्यों पिछडा है?
तो उसका उत्तर था; क्यों कि, अफ्रिका में शासन, शिक्षा, न्याय इत्यादि अंग्रेज़ी में होता है।
यह जब तक होता रहेगा, अफ्रिका पिछडा ही रहेगा।
अब बताइए, सामान्य भारतीय क्यों पिछडा है?
भारत भी और हज़ार वर्ष प्रयास कर ले, अंग्रेज़ी द्वारा पढाई करवा कर , ग्रामीणों सहित, समग्र भारत की उन्नति कभी नहीं हो सकती।
कभी नहीं।
यह मेरी एक स्वर्ण पदक विजेता स्नातक रह चुके, (P h d) ,( P. E,) गुजराती मातृभाषी, प्रोफ़ेसर की, जिसने अंग्रेज़ी में कई वर्ष अमरिका की एक नामी युनिवर्सिटी में, अभियांत्रिकी पढाई है, उसकी मान्यता है। जिसने कई निर्माणों की डिज़ाईन की है। World Trade Center की डिज़ाईन में भी जिसने एक अभियंता के नाते काम किया था, कई बहु-मंज़िला मकानों की डिज़ाईन में जिसने योगदान दिया था, उसकी मान्यता है। {विनयपूर्वक ही आत्म श्लाघा}
गत दस वर्ष पहले तक, मैं, जो मानता था, आज नहीं मानता।
एक बिजली की कडक जैसे चकाचौंध प्रकाश ने मुझे १० वर्ष पहले जगा दिया।
झूठ नहीं, भगवद-गीता पर हाथ रखकर कहता हूँ।
यह एक्के दुक्के के प्रगति की बात नहीं है।
क्या भारत अंग्रेज़ी पढा पढाकर अपने युवाओं की विद्वत्ता का लाभ परदेशों को देना चाहता है?
मेरी पीढी तो परदेशों की उन्नति में खप गयी।
परदेश भी हमारे बुद्धि-धन के कारण मालामाल होते हैं, इसी कारण प्रवेश भी देते हैं।
कोई उदारता नहीं है।
जागो मेरे प्रिय भारत जाग जाओ।
यह ध्रुव सत्य है, कुछ बताना या समझाना अपनी ही भाषा में बेहतर ढंग से हो सकता है, लेकिन हमारा दुर्भाग्य है की हमें न चाहते हुए भी आङ्ग्ल भाषा पढ़नी पड़ती है. दिमाग न चाहते हुए भी बंद हो जाता है, सोचने समझने की क्षमता प्रभावित होती है, हीनता का बोध होता है. बहुमूल्य बुद्धिमत्ता पूर्ण मानवीय क्षमता से प्रतिवर्ष भारत वंचित होता है.