आईएस की दक्षिण एशिया में दस्तक ?

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-तनवीर जाफ़री-
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इराक़ तथा सीरिया के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण करने के बाद इस्लाम के नाम पर संचालित होने वाले आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने संभवत: दक्षिण एशिया में भी अपनी दस्तक दे दी है। बावजूद इसके कि इराक व सीरिया में आईएस हमलावरों को अमेरिकी गठबंधन सेना के साथ-साथ आईएस विरोधी कुर्द,शिया तथा सुन्नी समुदाय के एक बड़े वर्ग के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। परंतु अपनी हिंसक रणनीति पर चलते हुए आईएस के आतंकी अपने विस्तार का अभियान भी साथ-साथ छेड़े हुए हैं। आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह समझे जाने वाले पाकिस्तान में तो आईएस के विस्तार के समाचार पहले भी सुनाई दे चुके हैं। परंतु जिस प्रकार गत् 13 मई को प्रात:काल तीन मोटरसाईकलों पर सवार लगभग 8 हथियारबंद आतंकियों ने कराची में बस में घुसकर शिया इस्माईली समुदाय के 47 लोगों की हत्या की और बाद में घटना स्थल से इस्लामिक स्टेट के नाम के पर्चे पाए गए उसे देखकर ऐसा लगने लगा है कि अब आईएस अथवा दावत-ए-इस्लामिया ने दक्षिण एशिया में भी अपने पैर पसारने शुरु कर दिए हैं। गौरतलब है कि गत् 13 मई को शिया समुदाय से संबंध रखने वाले इस्माईली वर्ग के लगभग 60 व्यक्तियों से भरी एक बस पर हथियारबंद मोटरसाईकल सवारों द्वारा पाकिस्तान के दक्षिण बंदरगाह के महानगर कराची में डाठ मेडिकल कॉलेज के समीप सर्वप्रथम इस बस पर गोलियां बरसाकर लक्षित आक्रमण किया गया। उसके पश्चात उसी बस को कुछ दूरी पर गुलिस्तान-ए-जौहर क्षेत्र के सफोरा चौरंगी नामक स्थान पर इन्हीं हथियारबंद लोगों द्वारा रोक लिया गया। यह आतंकी बस रोककर उसमें प्रवेश कर गए। सर्वप्रथम उन्होंने बस ड्राईवर पर गोली चलाकर उसे घायल कर दिया। उसके पश्चात इस्माईली समुदाय के 47 लोगों के सिर पर गोलियां चलाकर उन्हें घटनास्थल पर ही मौत की नींद सुला दिया। मरने वालों में 29 पुरुष तथा 16 औरतें थीं । हमले में गंभीर रूप से घायल चश्मदीद लोगों के अनुसार हमलावर पुलिस वर्दी में आए थे। पाकिस्तान में पहले भी शिया व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय पर  इस प्रकार के हमलों की घटनाएं तथा इनकी सामूहिक हत्या के हादसे होते रहे हैं। और ऐसे हमलों की जि़म्मेदारी कई बार पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान तथा लश्करे झांग्वी जैसे संगठनों द्वारा ली जाती रही है। परंतु 13 मई की घटना की जि़म्मेदारी इन आतंकी संगठनों द्वारा फ़िलहाल नहीं ली गई है। बजाए इसके कराची हादसे की शिकार बस में हमलावरों द्वारा छोड़े गए कुछ पर्चे पुलिस के हाथ लगे हैं। इन पर्चों में लिखा हुआ है कि-‘दौलत-ए-इस्लामिया(आईएस)का आगाज़ हो चुका है और ‘राब्ज़ी’ संगीन नतायज का इंतज़ार करें। पाकिस्तान में किसी आतंकवादी घटना के बाद आईएस की ओर से इस प्रकार के पर्चे घटना स्थल पर फेंककर अपनी उपस्थिति की जानकारी देने की पहली घटना है। क्वेटा व सिंध प्रांत के शिकारपुर जैसे इलाकों में पहले भी शिया समुदाय के विरुद्ध कई बड़े लक्षित आक्रमण हो चुके हैं। परंतु यह पहला मौका है जबकि ऐसे किसी हमले में आईएस के संलिप्त होने की संभावना पाई जा रही है। इस घटना की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ जोकि अपने तीन दिवसीय श्रीलंका के दौरे पर गए हुए थे वे अपनी विदेश यात्रा बीच में ही छोडक़र स्वदेश वापस लौट आए और सीधे कराची पहुंच कर उच्चाधिकारियों के साथ हालात का जायज़ा लिया। पाकिस्तान में शिया समुदाय की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है। वहां न केवल शिया समुदाय बल्कि अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों पर भी लक्षित हिंसा के हादसे होते रहते हैं। पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समाज के लोग प्राय: प्रगतिवादी एवं उदारवादी विचार रखते हैं। जबकि आतंक व हिंसा की इबारत लिखने वाले संगठन कट्टरपंथी व रूढ़ीवादी विचार के हैं। यह लोग हिंसा के बल पर अपने तथाकथित कट्टरपंथी इस्लाम को दूसरों पर थोपना चाहते हैं तथा अपने अतिरिक्त अन्य समाज के लोगों की आस्था तथा विश्वास को झूठा तथा गैर इस्लामी बताते हैं। छटी शताब्दी की तर्ज पर यह लोग भी इस्लाम को ज़ोर-ज़बरदस्ती और हिंसा के बल पर दुनिया पर थोपना चाह रहे हैं। हालांकि इस विचारधारा को स्वयं इस्लाम धर्म के ही विभिन्न वर्गों में यहां तक कि सबसे बड़े पैमाने पर स्वयं बहुसंख्य इस्लामी समाज के सुन्नी समुदाय से ही कड़ी टक्कर मिल रही है। परंतु चूंकि इन्होंने हिंसा,आतंक तथा अपने दुर्दांत कारनामों को ही अपनी विचारधारा के विस्तार का मुख्य शस्त्र बना लिया है इसलिए यह संगठन केवल इस्लाम ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए एक बड़ा खतरा बन बैठा है।
इस्लाम के नाम पर सर्वप्रथम सबसे बड़ा काला धब्बा इसी इराक व सीरिया की सरज़मीं पर ही उस समय भी लगा था जबकि स्वयं को मुसलमान कहने वाले सीरियाई शासक यज़ीद ने पैगंबर-ए-रसूल हज़रत मोहम्मद के नवासे हज़रत इमाम हुसैन व उनके परिवार के अन्य सदस्यों की करबला में हत्या कर दी थी। आज पुन: उसी धरती से उसी विचारधारा की आवाज़ उसी अंदाज़ की हिंसा के साथ बुलंद की गई है। जिस प्रकार हज़रत इमाम हुसैन ने अपनी व अपने परिजनों की शहादत देकर यज़ीद के मनसूबों को सफल नहीं होने दिया था और इस्लाम की उदारवादी व परस्पर प्रेम व सद्भाव की विचारधारा को बचा पाने में सफल रहे थे उसी प्रकार आईएस के आतंकी भी अपने राक्षसी मिशन को परवान चढ़ा पाने में कभी सफल नहीं हो सकते। आईएस के प्रमुख सरगना अबु बकर अल बगदादी के भी मारे जाने का समाचार आ चुका है तथा इत्तेफाक से जिस दिन कराची में शिया इस्माईली समुदाय के लोगों की बस पर आईएस का हमला हुआ उसी दिन बगदादी के दूसरे उत्तराधिकारी अब्दुल रहमान मुस्तफ़ा मोहम्मद व उसके साथ अन्य बारह आईएस आतंकियों के दक्षिण इराक की एक मस्जिद में मारे जाने की खबरें सुनाई दीं। अमेरिकी गठबंधन सेना कई इस्लामी देशों की सेना के साथ मिलकर इराक व सीरिया में आईएस के विरुद्ध सैन्य अभियान छेड़े हुए है। परंतु निश्चित रूप से दुनिया के कुछ इस्लामी देश और वहां के तानाशाह ऐसे भी हैं जो आईएस को मदद पहुंचा रहे हें। कुछ शासक ऐसे हैं जो भयवश आईएस का साथ दे रहे हैं। परंतु जिस ढंग से इस्लामिक स्टेट आए दिन हिंसक वारदातों को अंजाम देता जा रहा है कभी पत्रकारों की हत्या करता है, कभी ईसाईयों के धर्मस्थलों को उड़ा देता है तो कभी ईसाई,कुर्द व शिया महिलाओं के साथ दुराचार करता है तो कभी प्राचीन ऐतिहासिक दरगाहों,मकबरों व इस्लामिक धरोहरों को ध्वस्त करता आ रहा है। इन सब घटनाओं ने आई एस को पूरी दुनिया कीे नज़रों से गिरा दिया है।
आईएस अपनी रणनीति के अनुसार इस्लाम में कट्टरपंथी विचारों के समर्थक बेरोज़गार मुस्लिम युवकों को हथियार देकर उन्हें जेहाद और जन्नत के नाम पर भावनात्मक रूप से अपने साथ जोडऩे की कोशिश कर रहा है। केवल पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि भारत से भी इस प्रकार की खबरें आ चुकी हैं कि यहां भी कुछ नवयुवक आईएस से प्रभावित हुए थे। परंतु भारत में तो इस आतंकी संगठन ने अपना सिर बुलंद नहीं किया जबकि पाकिस्तान में संभवत: इसे फलने-फूलने की उपयुक्त ज़मीन हमवार हो गई है। क्योंकि पाकिस्तान में 1970 के दशक के बाद से ही न केवल कट्टरपंथी शक्तियां तेज़ी से अपना विस्तार करने लगी हैं बल्कि इन्हीं चार दशकों में पाकिस्तान में गरीबी व बेरोज़गारी भी काफी बढ़ी है। परिणामस्वरूप कोई भी अभिभावक अपनी गरीबी के चलते अपने बच्चे को कट्टरपंथी शिक्षा देने हेतु अथवा किसी आतंकी संगठन में भर्ती करने हेतु आसानी से चंद पैसों के बदले राज़ी हो जाते हें। ऐसे अभिभावक अपनी संतान के बदले कुछ पैसे तो ले ही लेते हैं साथ ही साथ उनका यह विश्वास भी रहता है कि यदि उनकी संतान इस रास्ते पर चलकर मारी भी गई तो वह शहीद कहलाएगी और मरणोपरांत वह जन्नत की हकदार होगी।
दक्षिण एशिया के सर्वप्रमुख देशों भारत व पाकिस्तान की खासतौर पर तथा शेष अन्य सभी सार्क देशों को भी मिलकर आईएस की विचारधारा रखने वालों का सिर कुचलने की ज़रूरत है। पहले से ही प्रकृति के प्रकोप झेल रहा तथा अन्य मानवीय तथा वैचारिक समस्याओं से ग्रस्त दक्षिण एशिया में आईएस के अत्याचार व उसके वैचारिक कट्टरपंथ को सहन कर पाने की शक्ति नहीं है। इस हिंसक संगठन पर सार्क देशों की गुप्तचर संस्थाओं द्वारा सख्त नज़र रखी जानी चाहिए। तथा इस के पहले कि यह गैर इंसानी ताकतें इस क्षेत्र में अपना सिर बुलंद कर सकें इन्हें फ़ौरन समाप्त कर देना चाहिए।

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  1. इस्लाम को शांति का पैगाम देने वालों को मेरा निवेदन है कि पूरी दुनिया में उन्ही क्षेत्रों में सर्वाधिक नस्लीय, व वर्गीय हिंसा क्यों है?क्या यह गलत है कि स्वयं मुस्लिमों द्वारा ही अपने मुस्लिम भाईयों को पिछले एक सौ सालों में ही कम से कम दो-तीन करोड़ मुस्लिम लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया!अन्य समुदायों कि हत्याएं तो हैं ही!जरा सोचे कि ये कौन से अमन का सन्देश दिया जा रहा है?कहीं ये मरघट या कब्रिस्तान की शांति का सन्देश तो नहीं है?क्यों दुनिया के सभी ‘शांतिप्रिय’ मुसलमान इस नरसंहार के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद नहीं करते हैं?

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