हर हाथ तिरंगा हो

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-श्यामल सुमन-
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ना कोई नंगा हो, ना तो भिखमंगा हो।
चाहत कि रिश्ता आपसी घर में चंगा हो।।

धरती पर आई, लेकर खुशियाली।
सूखी मिट्टी में, भर दी हरियाली।
चाहत कि पहले की तरह निर्मल सी गंगा हो।
ना कोई नंगा हो—

ये जात-धरम की बात, सम्बन्धों पे आघात।
भाई से भाई क्यों, नित करता है प्रतिघात।
चाहत कि मानवता जगे, ना कोई दंगा हो।
ना कोई नंगा हो —

लो जाग रहे हैं लोग, जो मिटा दे सारे रोग।
अब छोड़ो भोग सुमन, और सीखो हर दिन योग।
चाहत कि वन्देमातरम् हर हाथ तिरंगा हो।
ना कोई नंगा हो —

तू करो ढिठई से तौबा, ना करो पढ़ाई से तौबा।
हो नहीं भलाई से तौबा, पर सभी बुराई से तौबा।
मेरे मालिक, मेरे राम, बन जाए सब इन्सान।
ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
हर देहरी पर दीप हो खुशियां सब-रंगा हो।
ना कोई नंगा हो—

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