उत्तर हर बार औरत को ही क्यों देना पड़ता है? – कुलदीप चंद अग्निहोत्री

दिल्ली में पिछले दिनों चलती बस में कुछ लोगों ने तेईस साल की एक लड़की से बलात्कार किया । केवल बलात्कार ही नहीं बल्कि राक्षसी तरीक़े से उसे शारीरिक चोटें भी पहुँचाई गईं । अब वह लड़की जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही है । पुलिस इस समय भी उससे अपनी इच्छानुसार बयान लेना चाहती है । लड़की के बयान लेने गई एस डी एम का कहना है कि पुलिस ने लड़की के बयानों को प्रभावित करने की कोशिश की । दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तक ने पुलिस कमिश्नर को इसके बारे में लिखा । लेकिन पुलिस कमिश्नर का ग़ुस्सा इस बात को लेकर ज़्यादा है कि यह गोपनीय ख़त लीक कैसे हो गया ? उसको इस बात का भी ग़ुस्सा है कि एक अदना सी एस डी एम की हिम्मत कैसे हो गई पुलिस पर आरोप लगाने की ?

जिन लोगों के हाथ में सत्ता है उन का इस पूरे कांड में व्यवहार कैसा है , यह इसी प्रसंग से समझा जा सकता है । इसके कुछ नमूने और भी मिल सकते हैं । वैसे तो दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने ही कुछ समय पूर्व बलात्कार और औरतों के प्रति अपराधों अपराधों को रोकने का एक सरकारी तरीक़ा सुझाया था कि औरतों को रात को घर से बाहर निकलना नहीं चाहिये ।इससे अपराध रुकेंगे या नहीं यह तो बाद की बात है लेकिन यह सरकार और सत्ता में बैठे लोगों की मानसिकता को दर्शाता है । अब भोपाल में एक कृषि वैज्ञानिक ने इस बात पर दुख प्रकट किया है कि दिल्ली में बलात्कार का शिकार हुई इस लड़की ने बलात्कारियों के इस कृत्य का प्रतिरोध किया । उसका कहना है कि यदि यह लड़की उनके सामने समर्पण कर देती तो कम से कम उसकी आंतडियां तो बच ही जातीं । ध्यान रहे इनफ़ेक्शन के कारण उस लड़की की आंतडियां निकाल दी गईं हैं । भारत के राष्ट्रपति के बेटे ने इसमें और इज़ाफ़ा किया है । दिल्ली में इस बलात्कार के विरोध में जंतर मंतर पर कई दिनों से धरना प्रदर्शन चल रहा है । उस पर फबती कसते हुये उन्होंने कहा कि प्रदर्शन करने वाली लड़कियाँ डैंटड और पेंटड हैं । उन्होंने बंगला लहजे में कहा वे सुन्दर हैं ।

अभी कल ही पटियाला के समीप बहादुरगढ़ के पास बलात्कार का शिकार हुई एक लड़की ने ज़हर खा कर आत्महत्या कर ली । उसके साथ तीन लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था । पुलिस को दाद देनी होगी की उसने इस अपराध की प्राथमिक सूचना दर्ज कर ली । लेकिन किसी अपराधी को गिरफ़्तार नहीं किया । अलबत्ता इस रपट का पुलिस ने ही इतना लाभ ज़रुर उठाया कि उसके दो सिपाही देर सबेर लड़की के घर पहुँच जाते थे और लड़की को थाने ले जाकर उससे आपत्तिजनक प्रश्न पूछते थे । बलात्कार करने वाले तो गाँव में आकर धमकाते ही थे । लड़की के पास मरने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा था , और उसने उसी को चुना । मोगा में कुछ मास पहले श्रुति नाम की एक स्कूली लड़की का कुछ गुंडों ने घर में आकर अपहरण कर लिया । शिकायत दर्ज होने के बाद भी पुलिस चुप बैठी रही । शहर के लोगों के धरने प्रदर्शन के बाद सत्ताधारी विवशता में सक्रिय हुये और अपराधियों को पकड़ना पड़ा । लेकिन बीच बीच में पुलिस यह ज़रुरत समझाती रही कि लड़की ख़ुद अपनी इच्छा से गई होगी । अमृतसर में तो अपनी लड़की को छेड़ रहे सत्ताधारी दल के कुछ लोगों से बचाने के लिये उसका बाप गया तो उन्होंने बाप को ही गोली मार दी ।

इस प्रकार की घटनाओं की फ़ेहरिस्त लम्बी बनाई जा सकती है । हरियाणा के एक मंत्री गोपाल काँडा की बासना से विवश होकर एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी । जनमत का दबाव बढ़ा तो पुलिस को विवशता में काँडा को पकड़ना पड़ा । बलात्कार के मामले में पुलिस जो भी कार्यवाही करती है वह विवशता में ही करती है । और इस मामले में राज्य से , बुद्धिजीवियों से , प्रशासनिक अधिकारियों से जितनी भी सलाह मिलती है , वह लड़कियों को ही मिलती है । सलाह सब जगह से एक जैसी ही है । घर के अन्दर रहो , देर रात को घर से बाहर मत निकलो ,कपड़े ढंग के पहने , इत्यादि इत्यादि । कुछ स्थानों से एक नया प्रश्न भी पूछा जाने लगा है । लड़की लड़के के साथ सड़क पर क्यों घूम रही थी ? दिल्ली वाले इस मामले में भी समाज के तथाकथित पतन को लेकर चिन्तित कुछ लोग पूछ रहे हैं , आख़िर यह लड़की रात के दस बजे एक लड़के के साथ सड़क पर क्या कर रही थी , जबकि वह लड़का तो उसके साथ पढ़ता भी नहीं है ? ये प्रश्न समाज की किस मानसिकता की ओर संकेत करते हैं ? जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रही एक लडकी ने लिख रखा था , तुम्हारी सोच ते हमारी स्कर्ट से भी नीची है ।यही मानसिकता है जो वंश के सम्मान के नाम पर पिता से अपनी ही लड़की की हत्या करवा देती है । यही मानसिकता थी जो सौ पचास साल पहले लड़की को जन्म लेते ही मार देती थी । औरत को पूँजी मान लेने की यह मानसिकता महाभारत युद्ध के पाँच हज़ार साल बाद भी विलुप्त होने का नाम नहीं लेती । जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही दामिनी को ही अन्तत: प्रश्नित किया जा रहा है । हर प्रश्न का उत्तर देने की जिम्मेदारी औरत पर ही क्यों है ? प्रश्न केवल पुरुष पूछ सकता है ,उत्तर केवल औरत को ही क्यों देना पड़ता है ? वह बलात्कार की त्रासदी भी झेले और समाज के अपमान जनक प्रश्नों का उत्तर भी दे , ऐसा क्यों ? जो इस अपमान को नहीं झेल पातीं वह आत्महत्या को विवश है । जो झेल पातीं हैं वे जीवन भर समाज के कटाक्ष सहने को विवश हैं । जब राज्य का निर्माण हुआ था तो सोचा गया था कि राज्य बलशाली से निर्बल की सहायता करेगा । तब किसने सोचा था कि गोपाल काँडा ही एक दिन राज्य बन जायेगा । तब किसने सोचा था किराज्य की पुलिस दामिनी की बजाय अपनी साख बचाने को प्राथमिकता देगी । ध्यान रखना चाहिये जब विकल्प समाप्त हो जाते हैं तो ज्वारभाटा आता है ।

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