इस बात में दो राय नहीं कि कानून बनाने की जिम्मेदारी भारतीय संविधान ने निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को दिया है। संविधान का उद्देश्य है कि समयानुकूल आवश्यकतानुसार नये कानून बनाये जांय किन्तु जब कोई राज्य की सरकार कानून की अलग ढंग से व्याख्या करने लगे, आतंकवाद के आरोपियों को छोड़ने की पहल होने लगे तो आखिर उसे क्या नाम दिया जाय। निर्दोष दण्डित नहीं होने चाहिये किन्तु जाति, धर्म पर केन्द्रित राजनीतिक दलों ने तो कानूनों की अपने ढंग से व्याख्या शुरू कर दिया है और अधिवक्ताओं को न्याय के लिये हड़ताल तक का सहारा लेना पड़ रहा है। यह विसंगतिपूर्ण समय निश्चित रूप से चिन्ताजनक है। उत्तर प्रदेश में सपा के नेता, पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने के लिये बेचैन है। इससे पूर्व यह बेचैनी बसपा नेताओं में देखी जाती थी जब सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी। अब मुद्दों का स्थानान्तरण हो गया है। जो सपने कभी बसपा के पास थे वे अब सपा खेमे में पल्लिवत हो रहे हैं।
बसपा के मनमानेपन से ऊबी उत्तर प्रदेश की जनता ने समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का मौका दिया। कुछ सपने जगे, उम्मीदे परवान चढी। बेरोजगार, भत्ता हासिल करने की जुगत में लग गये, नौजवानों में लैपटाप के सपने पाल दिये गये। किसानों को लगा कि धरती पुत्र मुलायम के राज में अब किसानों की बात सुनी जायेगी। थाना चौकी पर इंसाफ मिलने लगेगा, तहसील दिवसों में मामले केवल फाइलों में दफन नहीं होंगे, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ आम आदमी तक पहुंचेगा। खाद्यान्नों की काला बाजारी रूक जायेगी, किन्तु विसंगति देखिये कि सपा लोकसभा चुनाव के सियासी रथ पर सवार हैं और हालात बिगडते जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लाख प्रयास के बावजूद कानून व्यवस्था पटरी पर आने का नाम नहीं ले रही है। धान खरीद में किसान फिर ठगा जा रहा है। गन्ना मूल्य निर्धारण को लेकर आन्दोलन की तैयारियां हो रही है। सरकारी स्कूलों में पढाई बड़ी चुनौती है। बिजली में कोई अपेक्षित सुधार तो नहीं हुआ हां बिजली और बस के किराये में वृद्धि हो गयी। आम आदमी के प्रति संवेदनशीलता देखिये कि सरकार ने न तो डीजल का दर घटाया न घरेलू सिलेन्डर में रियायत की कोई घोषणा की गयी। एफडीआई के सवाल पर केन्द्र सरकार के समर्थन को लेकर पार्टी की किरकिरी अलग से हो रही है। किसानों के ऋण भुगतान के नाम पर भी छल हुआ।
ऐसे माहौल में आखिर समाजवादी पार्टी किस आधार पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के संकल्पों को पूरा करने में सफल हो सकेगी। सपने देखे जाने चाहिये किन्तु उन्हें पूरा करने के लिये कठिन संकल्पों की आवश्यकता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सपा मुखिया के सपने पूरे होंगे या ज्वलंत सवाल नयी समस्यायें खड़ी करंेगे। जरूरत है प्रभावशाली ढंग से समस्याओं से मुक्ति दिलाने की।
केवल भाषण देने से समस्याओं का हल होने वाला नही है। सिर्फ सपने देखना और दिखाना कभी सफल नहीं होता। काश सपा के रणनीतिकार और सरकार के जिम्मेदार सच के आमना-सामना का साहस जुटा पाते।