प्रसार भारती के नए CEO शशि शेखर वेम्पती से खास बातचीत

रुहैल अमीन ।।

देश की पब्लिक ब्रॉडकास्ट कंपनी ‘प्रसार भारती’ के नए सीईओ शशि शेखर वेम्पती को पदभार संभाले अभी लगभग एक महीना ही हुआ है। उन्‍होंने एक ऐसे ऑर्गनाइजेशन की जिम्‍मेदारी ली है, जो तमाम चुनौतियों से जूझ रहा है। इन चुनौतियों में इसे आज के डिजिटल क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए उसी के अनुसार ढालने जैसा बड़ा काम भी शामिल है। तकनीकी विशेषज्ञ वेम्पती इससे पहले प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य रहे हैं और इस पद पर बैठने वाले पहले गैर आईएएस हैं। उनकी नियुक्ति पांच साल के लिए की गई है। ऐसे में वेम्‍पती ने अगले पांच वर्षों का प्‍लान तैयार किया है, जिसमें उन्‍हें ‘दूरदर्शन’ (DD) और ‘ऑल इंडिया रेडियो’ (AIR) को विश्‍व स्‍तर पर सम्‍मानित ब्रैंड बनाने के साथ-साथ प्रसार भारती को 21वीं सदी का ऑर्गनाइजेशन बनाना है जो समकालीन कार्य संस्कृति के साथ वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य और तकनीकी रूप से प्रासंगिक हो।

इस बारे में वेम्‍पती ने भविष्‍य की योजनाओं के साथ-साथ अपनी स्‍ट्रेटजी के बारे में भी विस्‍तार से चर्चा की। प्रस्‍तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

प्रसार भारती देश के सबसे बड़े मीडिया संस्‍थानों में से एक है। इसके बावजूद यह इस स्थिति का लाभ नहीं ले पा रहा है। यानी अपनी पोजीशन को भुना नहीं पा रहा है। आप किस तरह की प्‍लानिंग कर रहे हैं, जिससे यह और आधुनिक व मार्केट फ्रेंडली बन सके ?

यदि आप प्रसार भारती का इतिहास देखें तो इसका गठन पब्लिक ब्रॉडकास्‍टर के रूप में हुआ था, जो एक वैधानिक निकाय था और कॉरपोरेशन की तरह यह कंपनी एक्‍ट के दायरे में नहीं आता था। इसके बाद ‘दूरदर्शन’ और ‘ऑल इंडिया रेडियो’ को इसमें शामिल किया गया।

पिछले दो दशकों की बात करें तो अभी भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां आधुनिकीकरण होना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्‍य से किन्‍हीं कारणों की वजह से ऐसा नहीं हो सका। ऐसे में सबसे बड़ी जरूरत प्रसार भारती को 21वी सदी के कॉरपोरेट के रूप में ढालने की है और इसे ऐसे मीडिया ऑर्गनाइजेशन में बदलना है, जो आज के डिजिटल युग में चल रहा है।

इसलिए सबसे बड़ा जोर तो इसी बात पर है कि कैसे हम इसे 21वीं सदी का मीडिया ऑगनाइजेशन बनाएंगे। कैसे हम इसमें आधुनिक कॉरपोरेट कल्‍चर लेकर आएंगे। कैसे हम इसमें टेक्‍नोलॉजी का समावेश करेंगे और घरेलू व ग्‍लोबल स्‍तर पर कैसे डिजिटल क्षेत्र के लिए इसे तैयार कर पाएंगे। भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और करीब एक अरब की जनंसख्‍या होने के बाद भी हमारे पास ऐसी कोई ग्‍लोबल आवाज नहीं है। इसलिए हमें इसे ‘बीबीसी’, ‘अलजजीरा’ और ‘रसिया टुडे’ की तरह तैयार करने की जरूरत है।

क्‍या प्रसार भारती की रीब्रैंडिंग किए जाने की भी जरूरत है क्‍योंकि पब्लिक ब्रॉडकास्‍टर्स को सिर्फ सरकार के मुखपत्र के रूप में देखा जाता है। आप इसके लिए क्‍या प्‍लान बना र‍हे हैं ? 

पब्लिक ब्रॉडकास्‍टर की भूमिका को लेकर दो तरह की बातें हैं। इनमें एक पहलू तो न्‍यूज है। यदि हम एआईआर न्‍यूज को देखें तो ट्विटर पर इसके एक मिलियन से ज्‍यादा फॉलोअर्स हैं। वहीं डीडी न्‍यूज के भी ट्विटर पर एक मिलियन यानी दस लाख से ज्‍यादा फॉलोअर्स हैं। यदि यह सिर्फ सरकार का मुखपत्र होता तो इस तरह का आधार तैयार नहीं कर पाता। मैं रोजाना सोशल मीडिया पर सक्रिय रहता हूं और सभी तरह के लोगों के कमेंट्स देखता हूं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल होते हैं जो किसी भी पार्टी अथवा खास विचारधारा से नहीं जुड़े होते हैं। आम धारणा यह है कि अधिकांश निजी न्‍यूज चैनलों पर प्रसारित न्‍यूज किसी एजेंडे से संचालित होती है। यदि आपको विशुद्ध न्‍यूज देखनी है तो आपको दूरदर्शन देखना होगा और इसकी विश्‍वसनीयता अभी बनी हुई है। आज के समय में यदि आप टीयर2 और टीयर 3 शहरों में जाते हैं तो वहां के लोग ‘दूरदर्शन’ देखते हैं और ‘एआईआर’ न्‍यूज सुनते हैं। यहां तक कि बार्क के डाटा भी इसकी पुष्टि करते हैं। इसलिए इस तरह की धारणा बनाने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। यह सिर्फ अभिजात्‍य वर्ग के लोगों का नजरिया है क्‍योंकि उनका न्‍यूज देखने का नजरिया अलग होता है लेकिन यदि आप बिना किसी एजेंडे के वास्‍तविक न्‍यूज चाहते हैं, तो इसके लिए ‘डीडी’ और ‘एआईआर ही बेहतर हैं।’

प्राइवेट प्‍लेयर्स से आगे निकलने के लिए आपका क्‍या प्‍लान है ? 

प्राइवेट प्‍लेयर्स को मैं प्रतिद्वंद्वी के तौर पर नहीं देखता हूं। वे एक अच्‍छे पार्टनर हो सकते हैं। मेरा दायरा ज्‍यादा ग्‍लोबल है इसलिए जब भी मैं न्‍यूज स्‍पेस में पब्लिक ब्रॉडकॉस्‍टर्स का प्रभाव देखता हूं तो मैं इसे एक मजबूत ग्‍लोबल आवाज बनाना चाहता हूं। मैं विभिन्‍न प्राइवेट चैनल्‍स के बीच घरेलू विवाद में शामिल होना नहीं चाहता हूं।

यदि आप बार्क डाटा को देखें तो इंग्लिश न्‍यूज में हमारी हिस्‍सेदारी 50 प्रतिशत से ज्‍यादा है जबकि प्राइवेट प्‍लेयर्स की हिस्‍सेदारी 40 प्रतिशत अथवा उससे कम है। इसका मतलब दर्शकों तक हमारी पहुंच उनसे कहीं ज्‍यादा है और यह अभिजात्‍य वर्ग को भी आकर्षित कर रहा है। मेरा मानना है कि ओपिनियन मेकर्स को आकर्षित करने के लिए हमें अपने प्रोग्राम्‍स की क्‍वॉलिटी को और इंप्रूव करना होगा।

इतना ज्‍यादा मार्केट शेयर होने के बावजूद प्रसार भारती व्‍यावसायिक रूप से इसका फायदा क्‍यों नहीं उठा पा रहा है ?

आपने बिल्‍कुल सही कहा, हम अपनी क्षमता का पूरा इस्‍तेमाल नहीं कर पाए हैं। इसका कारण यह है कि हम अभी तक परंपरागत चीजों का ही अनुसरण कर रहे हैं और उससे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। हम कॉरपोरेट नहीं बल्कि एक वैधानिक निकाय हैं और हम पर तमाम पाबंदियां भी हैं कि आप ये कर सकते हैं अथवा ये नहीं कर सकते हैं। ऐसे में आप प्राइवेट कॉरपोरेट से व्‍यावसायिक प्रतिद्वंद्विता नहीं कर सकते हैं। यह कोई बहाना नहीं है कि हमारी मार्केटिंग टीमों को क्‍यों नहीं ज्‍यादा प्रभावी होना चाहिए अथवा आधुनिक टूल्‍स और उपायों का इस्‍तेमाल करना चाहिए ताकि हम अपनी क्षमता का बेहतर इस्‍तेमाल कर सकें। हालांकि हमने शुरुआत कर दी है और जल्‍द ही कुछ पहल शुरू की जाएंगी जिससे हम सेल्‍स टीम के लिए कुछ इंसेंटिव जुटा सकते हैं ताकि वे और बेहतर कर सकें।

प्रसार भारती को व्‍यावसायिक रूप से मजबूत ऑर्गनाइजेशन बनाने के लिए कौन से खास कदम उठाए जाएंगे ?

मुझे लगता है कि ‘डीडी फ्री डिश’ इसका बेहतर उदाहरण है कि चुनौतीपूर्ण माहौल में काम करते हुए भी हम एक नया मार्केट बनाने और रेवेन्‍यू जुटाने के नए तरीके तैयार में सफल रहे। फ्रीडिश ने फ्रीटूएयर (FTA) क्रांति कर दी थी। इससे पहले आपके पास जो कंटेंट होता था वह शहरी क्षेत्र को लक्ष्‍य करके तैयार किया जाता था। लेकिन अब यदि आप बार्क डाटा को देखें तो डीडी फ्री डिश पर फ्रीटूएयर चैनलों ने देश भर में एक बड़ा ऑडियंस बेस तैयार कर लिया है और इनकी गिनती टॉप टेन में होती है। यह बहुत बड़ी बात है इसके द्वारा हमने देश की बड़ी जनसंख्‍या के लिए मनोरंजन के नए द्वार खोल दिए हैं। इसी तरह के अवसर दूसरी टेक्‍नोलॉजी जैसे डिजिटल रेडियो आदि को लेकर हैं। आने वाला भविष्‍य इन्‍हीं चीजों पर टिका हुआ है जिसके द्वारा हम देश की आबादी के एक बड़े हिस्‍से को इनफॉर्मेशन और ऐंटरटेनमेंट दोनों उपलब्‍ध करा सकते हैं और इसे व्‍यावसायिक रूप दे सकते हैं।

मैं कहना चाहूंगा कि ऐडवर्टाइजिंग रेवेन्‍यू के लिए हमें प्राइवेट प्‍लेयर्स से प्रतिस्‍पर्धा करने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय हम ऐसा प्‍लेटफार्म तैयार कर रहे हैं जहां पर वे हमारे साथ बतौर पार्टनर जुड़ सकते हैं और यह दोनों पक्षों के लिए फायदेमेंद हो सकता है।

तकनीकी और संस्‍कृति के मोर्चे पर देखें तो इस परंपरागत ऑर्गनाइजेशन को डिजिटल में परिवर्ति‍त करना कितना मुश्किल है ?

कई मोर्चों पर बड़ी चुनौतियां हैं। सांस्‍कृतिक रूप से इसमें बदलाव बहुत बड़ी चुनौती है क्‍योंकि यदि आप हमारे ऑर्गनाइजेशन को देखें तो भारत एक युवा देश हो सकता है लेकिन प्रसार भारती काफी पुराना ऑर्गनाइजेशन है और यहां पर काम करने वाले अधिकांश लोग उम्र के पांचवे दशक में हैं। पांच-छह साल में यहां से कई लोग रिटायर हो जाएंगे। इसलिए यह अपने आप में बड़ी चुनौती है।

दूसरी चुनौती टेक्‍नोलॉजी को अपनाने को लेकर है। फिलहाल कुछ मोर्चों पर हम काफी प्रभावी रहे हैं। ‘डीटीएच’ में हमने बहुत अच्‍छा काम किया है और जल्‍द ही हम ‘सेट टॉप बॉक्‍स’ का नया वर्जन लेकर आएंगे। इसी तरह जब हम सोशल मीडिया की बात करते हैं तो मुझे लगता है कि इसमें हमने काफी बेहतर काम किया है। अब हमें उन चीजों पर काम करने की जरूरत है, जो आज के समय में युवाओं के लिए प्रासंगिक हो ओर यह सिर्फ डिजिटल के साथ ही हो सकता है।

प्रसार भारती में हमने कुछ अंदरूनी बदलाव भी किए हैं। उदाहरण के लिए: हमारे यहां लंबे समय से एचआर सिस्‍टम नहीं था। पिछले साल से एचआर इनफॉर्मेशन सिस्‍टम तैयार किया गया है। हालांकि यह एक छोटा सा कदम है लेकिन यह ऑर्गनाइजेशन के लिए काफी बड़ा बदलाव है और इसकी शुरुआत हो चुकी है। इसी तरह से हम अपनी जमीनों के रिकॉर्ड्स को डिजिटल कर रहे हैं ताकि हमें यह पता चल सके कि देश भर में हमारी संपत्ति कहां-कहां पर है। ऐसे ही कुछ उपाय किए जा रहे हैं और हमें इन्‍हें सुगम बनाने और आईटी के ढांचे में लाने की जरूरत है जो अभी मौजूद नहीं हैं।

आपके अनुसार ‘एआईआर’ और ‘डीडी’ किन बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं ?

सबसे बड़ा अंतर यह है कि हमने लंबे समय तक ह्यूमन रिसोर्स इश्‍यू को नजरअंदाज किया है।  आज हमारे पास मौजूद कार्यबल में बड़ी उम्र के लोगों की संख्‍या अधिक है, जिनकी पिछले दो दशकों में काफी उपेक्षा हुई है। इनमें से कई लोगों को प्रमोशन नहीं मिला और कई तो उसी पोस्‍ट से रिटायर हो गए। इसलिए ही हमने अपने यहां एचआर संबंधी मुद्दों को लेकर मिशन शुरू किया है। एक बार जब हमारे यहां का कार्यबल प्रेरित होगा तो वे और तेजी से काम करेंगे और जरूरत पड़ने पर हम उन्‍हें डिजिटल के लिए भी तैयार करेंगे, जिससे हमारे यहां के काम में ओर तेजी आएगी।

क्‍या आप बीबीसी और अलजजीरा की तरह डीडी को एक ग्‍लोबल ब्रैंड बनते हुए देखना चाहते हैं और क्‍या ऐसा हो सकता है ?

यह बहुत जरूरी है और हमें इस चुनौती को लेना पड़ेगा। आपने पूछा है कि क्‍या यह हो सकता है तो मैं कहना चाहूंगा कि हमारे पास और कोई चॉइस नहीं है और हमें यह करना ही होगा। यह कैसे होगा इसके लिए हम ऑर्गनाइजेशन में चर्चा करेंगे और ऐसे पार्टनर को तलाशेंगे जो हमारे साथ आकर काम करने का इच्‍छुक हो।

‘डीडी’ और ‘एआईआर’ के प्रभाव को बढ़ाने के लिए आप सोशल मीडिया का किस तरह से लाभ उठाने की योजना बना रहे हैं ?

‘डीडी’ और ‘एआईआर’ दोनों के सोशल मीडिया पर बहुत बड़ी संख्‍या में फॉलोअर्स हैं। लोगों दोनों को इस तरह के ब्रैंड के रूप में देखते हैं, जो बहुत ही विश्‍वसनीय खबरें देते हैं। हां, हमें कुछ और बेहतर काम करने हैं, जिससे इन क्षेत्रों पर और फोकस किया जा सके।

 

कॉरपोरेट क्षेत्र से पब्लिक ऑर्गनाइजेशन तक का आपका सफर कैसा रहा है, क्‍या इस बदलाव के दौरान आपको कुछ अप्रत्‍याशित अथवा खास चीजों का सामना करना पड़ा है ?

शुक्र है कि यह पूरी तरह से बदलाव नहीं है, क्‍योंकि मैं पिछले एक साल से इसके बोर्ड में शामिल था। ऐसे में मुझे यहां के बारे में बहुत पहले ही पता चल गया था। मैं कभी भी इतने कागजों पर साइन नहीं किए हैं, जो मैंने यहां पर किए हैं। इसका कारण यह है कि यहां पर हम जिस तरह का काम करते हैं, उसमें पेपर का काम ज्‍यादा होता है।

सबसे अच्‍छी बात यह रही कि प्रसार भारती के शुरू होने के बाद से पहली बार इसने अपना वित्‍तीय काम समय सीमा के भीतर और डेडलाइन से पहले पूर्ण कर लिया। ऐसे में यहां पर चीजों में सुधार तो हो रहा है लेकिन हमें तमाम परेशानियों के बीच इसे और बड़े पैमाने पर करना होगा।

‘एआईआर’ अभी तक व्‍यावसायिक क्षमता का लाभ उठाने में सक्षम नहीं हो पाया है। ऐसे में क्‍या आपको लगता है कि प्राइवेट प्‍लेयर्स के लिए यह सही मौका है ?

मैं इसे पॉलिसी मैटर मानता हूं और यह सरकार का विशेषाधिकार है। मुझे पूरा विश्‍वास है कि मंत्रालय भी इस बारे में जरूर काम करेगा और मैं इस बारे में ज्‍यादा बात नहीं कर सकता हूं क्‍योंकि यह मेरे अधिकार क्षेत्र के बाहर की बात है।

लेकिन, जैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि एआईआर को प्रतियोगी और कुशल होना चाहिए। क्‍योंकि तकनीकी तेजी से बदल रही है और कल हमने जिस टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल किया था, वह बहुत ही कम समय में बदल जाती है। हम अपने भविष्‍य के बारे में नहीं सोच रहे हैं और हम इतने प्रतियोगी और कुशल भी नहीं हैं इसलिए पॉलिसी चाहे जो हो, हमें अपने भविष्‍य के लिए तैयार रहना होगा।

वर्ष 2017 के लिए आपकी तीन प्रमुख प्राथमिकताएं क्‍या हैं ?

सबसे पहली चीज तो यह है कि हमें इंग्लिश न्‍यूज और हिंदी न्‍यूज के बारे में योजना बनानी होगी और इसे इंटरनेशनल फोकस देना होगा, जिससे हम ग्‍लोबल ब्रैंड तैयार करने की दिशा प्रक्रिया शुरू कर सकें।

दूसरी चीज यह है कि हमें आईटी के कार्यों को व्‍यवस्थित करना होगा और अपने काम करने के तरीकों को आधुनिक बनाना होगा। तीसरी चीज जो सबसे बड़ी है, वह यह है कि हम अपने कार्यस्‍थल के मुद्दों को किस तरह सुलझाते हैं। मुझे नहीं पता कि ये चीजें एक साल में हो सकती हैं या नहीं, लेकिन हम इन पर काम जरूर करेंगे।

‘डीडी फ्रीडिश’ की बात करें तो यह गेम चेंजर रहा है, इसका आगे का रास्‍ता क्‍या है ?

जल्‍द ही हम इसके चैनलों की संख्‍या बढ़ाने जा रहे हैं और इसमें नए पार्टनर भी शामिल करेंगे। दूसरा प्रयास यह है कि हम इसे कंज्‍यूमर के लिए और ज्‍यादा मजेदार बनाना चाहते हैं। ‍इसके अलावा हम यह भी देखेंगे कि क्‍या हम इतनी बड़ी जनसंख्‍या को ध्‍यान में रखते हुए कंटेंट के इस्‍तेमाल करने का नया मॉडल तैयार कर सकते हैं। सबसे बड़ी चुनौती ऐसा प्रीमियम मॉडल तैयार करना है, जिसका इस्‍तेमाल इस बड़े प्‍लेटफार्म पर कंटेंट हासिल करने में किया जा सकता है। इसके लिए हमें सभी चीजों को देखना होगा।

इन दिनों स्‍मार्ट फोन पर कंटेंट का ज्‍यादा उपभोग हो रहा है। ऐसे में क्‍या आप स्‍मार्ट फोन यूजर्स को भी टार्गेट करने की दिशा में काम करने की सोच रहे हैं ?

बिल्‍कुल, आने वाला भविष्‍य डिजिटल का है और यह सब कुछ मोबाइल पर होने जा रहा है। इसलिए जब हम फ्रीडिश के नए फीचर्स लेकर आएंगे तब आप देखेंगे कि मोबाइल भी इसका अहम हिस्‍सा होगा।

यदि हम न्‍यूज की बात करें तो जब हम ग्‍लोबल मोर्चे पर इंग्लिश कंटेंट पर काम करते हैं तो मोबाइल इसका महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा होगा। इसलिए मोबाइल ने कई सारी चीजें बदल दी हैं और इसकी भूमिका बहुत बढ़ गई है। इसलिए हम जो भी नई चीज लेकर आएंगे, उसमें मोबाइल की महत्‍वपूर्ण भूमिका होगी।

यूपीए सरकार के दौरान कुछ सिफारिशें आई थीं, ऐसे में प्रसार भारती को नई दिशा में ले जाने के लिए क्‍या आप उन पर विचार करने की योजना बना रहे हैं ?

हां, यह लंबे समय तक सार्व‍जनिक डोमेन रहा है और उन सिफारिशों के बारे में कुछ भी पक्षपातपूर्ण नहीं है और यह अभी भी प्रासंगिक बनी हुई हैं। मैं 1990 के अंत में प्रसार भारती पर नारायणमूर्ति की अध्यक्षता वाली एक रिपोर्ट पढ़ रहा था, जिनमें कई सिफारिशें अभी भी प्रासंगिक हैं। हम सैम पित्रोदा और नारायणमूर्ति की रिपोर्ट देखेंगे और जरूरी बदलाव करेंगे।

प्रसार भारती को वर्ष 2022 तक आप कहां ले जाना चाहते हैं ?

हम चाहते हैं कि वर्ष 2022 तक यह एक ग्‍लोबल स्‍तर पर सम्‍मानित ब्रैंड बन जाए। पूरे विश्‍व में हमारा लोकतंत्र काफी विशाल है और हम सबसे बड़े पब्लिक ब्रॉडकास्‍टर हैं। इसलिए हमें पूरे विश्‍व के सामने रोल मॉडल बनना चाहिए ताकि हम एक विश्‍व स्‍तर का ऑर्गनाइजेशन बन सकें और अपनी बात मजबूती से रख सकें।

क्‍या हम इसे प्रसार भारती में बोल्‍ड फैसलों के युग की शुरुआत मानें ?

उम्‍मीद है कि सब अच्‍छा होगा। मेरा मानना है कि प्रसार भारती में बोल्‍ड फैसला पिछले साल उस समय हुआ था जब हमने कहा था कि हम डीडी नेशनल पर प्राइम टाइम में बदलाव करेंगे। इसलिए हमारे यहां बोल्‍ड विचारों की कोई कमी नहीं है। मुझे लगता है कि यह उन सभी को सही ढंग से लागू करने की बात है क्‍योंकि जब यह सही से लागू होंगे तो बोल्‍डनेस भी अपने आप आ आएगी।

 

समाचार4मीडिया.कॉम

रुहैल अमीन ।

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