यहाँ भीड़ मे हर कोई,
इक पहचान ढूँढता है।
जैसे परीक्षा परिणाम मे कोई,
अपना नाम ढूँढता है।
नाम जो मिल जाये तो,
फिर काम ढूँढता है,
काम मिल जाये तो,
आराम ढूँता है।
आराम मिल गया तो,
सुख शाँति ढूढता है,
सुख शाँति न मिले तो,
भगवान ढूँढ़ता है!
यहाँ भीड़ मे हर कोई,
इक पहचान ढूँढता है।
जैसे परीक्षा परिणाम मे कोई,
अपना नाम ढूँढता है।
नाम जो मिल जाये तो,
फिर काम ढूँढता है,
काम मिल जाये तो,
आराम ढूँता है।
आराम मिल गया तो,
सुख शाँति ढूढता है,
सुख शाँति न मिले तो,
भगवान ढूँढ़ता है!
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।