राष्ट्रमंडल पर टिकी हैं नजरें………

-अमल कुमार श्रीवास्तव

चारों ओर राष्ट्रमंडल खेलों का बोलबाला है जिसे देखों बस खेलों की ही बात कर रहा है।

माना जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों के बाद भारत विश्व में तीसरी सबसे बडी शक्ति के रूप में उभर कर सामने आयेगा। अभी कुछ दिन पूर्व तक ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि क्या भारत इन खेलों का आयोजन कर पाने में सफल साबित होगा? लेकिन भारत ने अपनी आंतरिक शक्ति का लोहा मनवाते हुए पूरे विश्व को दिखा दिया कि हम हर परिस्थिति में खुद को सम्भाल सकते हैं। हमे किसी बाहरी शक्ति के सहायता की आवश्यक्ता नहीं है। राष्ट्रमंडल खेल पर देश का अरबों रूपए खर्च तो जरूर हुआ है लेकिन भारत ने विश्व के महाशक्तियों में तीसरा पायदान भी हासिल कर लिया है। इन खेलों का आयोजन भारत द्वारा कराया जाना देश के लिए एक गौरव की बात है। एशियाई देशों में भारत दूसरा ऐसा देश है जहां इसका आयोजन किया गया है,इसके पूर्व मलेशिया में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया गया था। इस सम्बंध में एक और खुलासा हुआ है कि राष्ट्रमंडल खेलों के पश्चात् भारत में 25 लाख रोजगार के अवसर पैदा होंगे और भारत सीधा 9 फिसदी विकास की ओर अग्रसरित हो सकेगा। वर्तमान में जो स्थितियां भारत की थी उन सबको देखते हुए यह कह पाना कि देश इतना बडा आयोजन सफलतापूर्वक कर सकेगा,शायद किसी के लिए भी पचा सकने योग्य नहीं था लेकिन इन सब के बावजूद स्थितियों में इतने शीघ्र परिवर्तन वास्तव में कुशल नेतृत्व क्षमता का ही परिचय है। आखिर इस प्रकार के नेतृत्व क्षमता का परिचय सरकार पूर्व में ही क्यों नहीं देती है? क्या सरकार लोगों को यह दर्शाना चाहती है कि हम इतने संकट में होने के बावजूद आखिर सफल प्रदर्शन कर दिखाए? या फिर इसे भी आगामी चुनावों का मुद्दा बनाने का प्रयास किया जा रहा है? अभी कुछ दिन पूर्व ही दिल्ली की मुख्यमंत्री महोदया और कलमाडी जी का चेहरा देखने लायक था। यह जब भी मीडीया के सामने आते हमेशा चेहरे पर उदासी ही छायी रहती थी,मालूम होता कि कहीं मातम से आ रहे है। लेकिन एकाएक परिवर्तन हुए और सारी स्थितियां बदल गई। खेलों का शुभारम्भ ही बडे ही धूम धाम से शुरू हुआ। हालांकि इसे दिल्ली सरकार की एक बडी उपलब्धि माना जा सकता है। सोचने योग्य यह है कि वर्तमान परिवेश में हर आदमी जानता है कि कोर्इ्र भी बडा से बडा कार्य आप कर सकते है अगर आप आर्थिक रूप से मजबूत है तो फिर सरकार यह प्रोपगंडा क्यों बना रही है कि हम इतने बडे पैमाने पर खेलों का सफल आयोजन किस प्रकार समस्याओं को झेलते हुए और उनका सामना करते हुए कर रहे है। एक बात तो साफ तोर पर कहा जा सकता है कि भारत के राजनीतिज्ञों में एक खूबी तो बेशुमार है कि यहां कोई भी मुद्दा हो उसे राजनितिक रूप देने की कला राजनितिज्ञों के अन्दर कूट-कूट कर भरी पडी हुई है। अब कितने राजनीतिक इस प्रयास में भी बैठे होंगे कि राष्ट्रमंडल खेलों के अन्तरगत अगर कोई ऐसा मुद्दा मिल जाए कि जिसे आगामी चुनावों में उठाया जा सके। हाल फिलहाल राष्ट्रमंडल खेलों का अब तक का सफर तो बहुत ही अच्छा बीत रहा है और भारत 10 स्वर्ण कुल 22 पदक भी जीत चुका है लेकिन देखना यह है कि क्या यह यथास्थिति खेलों के समापन तक बरकरार रह सकेगी या फिर कोई चूक की राह देख रहे लोगों को उपलब्धि हासिल हो सकेगी।

2 COMMENTS

  1. राष्ट्रमंडल पर टिकी हैं नज़रें -by- अमल कुमार श्रीवास्तव

    श्रीवास्तव जी, खेद है कि आपका लेख गोल-माल है.

    (1) संख्या में अपेक्षा से अधिक स्वर्ण एवं अन्य पदक भारतीय इस लिए जीत रहें हैं क्योंकि वह अच्छा खेल रहें हैं.

    खेल कहीं भी होते पदकों की संख्या ऎसी ही होती.

    इसमें दिल्ली में खेल होने का तनिक भी योग नहीं है और स्थान का होना भी नहीं चाहिए. न कभी पहले हुआ है.

    (२) दूसरा, विश्व भर में हमारे प्रबंधन का दिवालियापन प्रदर्शित हो गया है.

    (३) अपने प्रबंधन के कारण असफलता की दहलीज से रोते पीटना उभरने को गुण बताना, केवल मूर्खता है.

    पूरे प्रशासन को इस दुखी प्रकरण से सीख लेनी चाहिए.

    (४) कलमाडी और दीक्षित की तो, कम से कम, सेवा निवृति होनी ही चाहिए.

    (५) कलमाडी पूर्व राष्ट्रपति और प्रिन्स चार्ल्स का नाम तक लिखे भाषण से ठीक नहीं पढ़ सका. लानत है.
    (६) श्रीवास्तव जी आपने क्या उल्टा-पुल्टा लिख दिया. जिनको बर्खास्त करना है, उनको पद्मश्री दिलवाना चाहते हो, क्या ?
    -अनिल सहगल-

  2. कबीरा गरब न कीजिये ,कबहूँ न हंसिये कोय .
    अबहूँ नाव मझधार में ,न जाने क्या होय ..
    कबीर का यह दोहा उनके लिएहै जो भारत से बैर रखते हुए उसकी खेल व्यवस्था का मज़ाक उड़ा रहे थे आलेख के बारे मैं निवेदन है की अपडेट नहीं है .ये संचार क्रांति का ज़माना है ..इस समय भारत के २० गोल्ड मेडल ततः कुल ५० मेडल हो चुके हैं …इंग्लॅण्ड तेजी से पीछा करते हुए हमें धक्का देकर दुसरे नंबर पर आने को sanghrsh कर रहा है

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