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पाती : कविता - सतीश सिंह - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
पाती मोबाईल और इंटरनेट के ज़माने में भले ही हमें नहीं याद आती है पाती पर आज़ भी विस्तृत फ़लक सहेजे-समेटे है इसका जीवन-संसार इसके जीवन-संसार में हमारा जीवन कभी पहली बारिश के बाद सोंधी-सोंधी मिट्टी की ख़ुशबू की तरह फ़िज़ा में रच-बस जाता है तो कभी नदी…