निष्‍पक्ष व पारदर्शी चुनाव के लिए आवश्‍यक है ईवीएम का विश्‍वसनीय होना

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चुनाव आयोग की हीरक जयंती जयंती पर विशेष

-अशोक बजाज

भारत में निर्वाचन आयोग अपनी स्‍थापना के 60 वर्ष पूर्ण होने पर हीरक जयंती मना रहा है। इस तारतम्‍य में राज्‍य की राजधानियों में फोटो प्रदर्शनी लगाई जा रही है। प्रदर्शनी में चुनाव आयोग की गतिविधियों को दर्शाने वाले विहंगम एवं दुर्लभ चित्र लगे हैं, जिसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते है। चित्रों में दिखाया गया है कि मतदान दल को मतदान कराने के लिए दुर्गम रास्तों पहाडि़यों व बर्फीले स्थानों पर जाने के लिए किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। देश में आज भी ऐसे स्थान है जहां पैदल जाना मुश्किल है लेकिन मतदान दल ऊंट या हाथी जैसे साधन का उपयोग करते है। गुजरात में एक स्थान हैं जहां केवल एक ही मतदाता है उसी एक मतदाता के लिए मतदान दल को मतदान के एक दिन पूर्व से ड्यूटी करनी पड़ती हैं।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश हैं। विभिन्न शासन प्रणालियों में लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली माना जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में 18 वर्ष या उससे अधिक के हर व्यक्ति को गुप्त मतदान के माध्यम से अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार हैं। इस व्यवस्था में प्रत्येक मतदाता को केवल एक व्होट देने का अधिकार है। चाहे वह व्यक्ति गरीब से गरीब हो या चाहे देश का राष्ट्रपति हो सबको केवल एक वोट का अधिकार हैं। इस मामले में आम मतदाता और सर्वाधिकार सम्पन्न राष्ट्रपति का अधिकार समान हैं।

देश में पहले राजतांत्रिक व्यवस्था थी। भारत अनेक राजवाड़ों में बंटा था। पूरा शासन तंत्र राजाओं-महाराजाओं एवं सामंतों के इशारे पर चलता था। यदि राजा नहीं रहा तो शासन की बागडोर उसके उत्तराधिकारी के हांथ में आ जाती थी। इसलिए कहा जाता हैं कि राजा पहले रानी के पेट से निकलता था अब पेटी से निकलता है। पेटी से आशय मतपेटी से है। मतदान के लिए अब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन ईवीएम का उपयोग होने लगा है। बटन दबाओं राजा निकल आता है। राजा चुनना अब जितना आसान हो गया है उतना ही इससे रिस्क बढ गया है। लोग पिछले कुछ वर्षो से ईवीएम की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। संचार क्रांति के इस युग में इलेट्रानिक उपकरणो से छेडछाड़ करके आसानी से परिणाम को बदला जा सकता है। ईवीएम में वाई.फाई का इस्तेमाल होता है यदि बैटरी बंद भी हो जाये तो प्रोग्राम को परिवर्तित किया जा सकता हैं।

विद्वानों एंव सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने समय समय पर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के मॉडलों का प्रयोग करके यह साबित कर दिया है कि इन मशीनों को आसानी से हैक किया जा सकता है केवल बीप की आवाज से ही यह स्पष्ट नहीं हो सकता कि वोट दिया जा चुका है। यदि चुनाव अधिकारी निष्पक्ष नहीं हुआ तो वह नाम व चिन्ह लोड करते समय भी गड़बडी़ कर सकता है। हैकर्स इस बात को प्रमाणित कर चुके है कि मशीन की प्रोग्रामिंग को गलत तरीके से सेटिंग करके अन्य उम्मीदवारों के मत को किसी एक खास उम्मीदवार के खाते डाला जा सकता है। पहले पहल तो ईवीएम का उपयोग ट्रायल के तौर पर सीमित स्थानों में किया गया था इसलिए ज्यादा हो हल्ला नहीं मचा लेकिन अब तो व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल होने लगा है। इंजीनियरों की सहायता से भविष्य में इन दोषों को दूर करने का उपाय करना होगा। चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए इसका पूरी तरह निष्पक्ष व पारदर्शी होनी आवश्यक है अन्यथा जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठ जायेगा।

15 COMMENTS

  1. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में वोट देने के बाद क्या आप दावे से कह सकते हैं कि आपका वोट उसी पार्टी के खाते में गया जिसे आपने वोट दिया था?
    कागजी मतपत्र पर तो आप अपने हाथ से अपनी आँखों के सामने मतपत्र पर सील लगाते हैं, जबकि EVM में क्या सिर्फ़ पंजे या कमल पर बटन दबाने और “पीं” की आवाज़ से ही आपने कैसे मान लिया कि आपका वोट दिया जा चुका है? जबकि हैकर्स इस बात को सिद्ध कर चुके हैं कि मशीन को इस प्रकार प्रोग्राम किया जा सकता है, कि “हर तीसरा या चौथा वोट” “किसी एक खास पार्टी” के खाते में ही जाये, ताकि कोई गड़बड़ी का आरोप भी न लगा सके।
    अमेरिका, जर्मनी, हॉलैण्ड जैसे तकनीकी रुप से समृद्ध और विकसित देश इन मशीनों को चुनाव सिस्टम से बाहर क्यों कर चुके हैं?
    अतः अब समय आ गया है कि इन मशीनों के उपयोग पर पुनर्विचार किया जाये |हमसबों को भी अब इस EVM मशीन का विरोध करना चाहिए |

  2. ashok bajaj ji thanx for your stuff on ec. indeed this is a topic of debate and we must rethink about evm. our democracy must not stand on surface of sand. if there is doubt sure evm must be tasted and foolproof and if there is 0.1% chances of tempering then it must be discarded. there is no alternative beyond it.i appreciate the thought of mr anil sehgal, mr rajesh kapoor, mr chimpulnakar and mr nirankush

  3. जीतू गोयल जी ने जिस प्रकार सुरेश जी के उठाये मुद्दे को सिरे से ही खारिज कर दिया, उससे उनके पुवाग्रहों का संकेत मिलता है. सारे प्रमाणों को केवल इसलिए खारिज कर देना की वहाँ हारे हुए नेता है, ते तर्क है या कुतर्क ?
    मानो चुनावमें हार जाना इस बात का प्रमाण पत्र है कि वे सब झूठे, गलत बयानी करने वाले होंगे ही होंगे. # हम इस प्रकार से सोच कर भी देख सकते हैं कि ई.वी.एम की बात आते ही सत्ताधारियों की नींद हराम होने लगती है और उनके एजेंट वाही-तबाही, बे सर=पैर की बातें कहने लगते हैं. सुरेश चिपलूनकर जी ने जितने प्रमाण दिए हैं, प्रथम द्रष्टया वे गंभीर हैं. उसके बाद सबसे ठोस बात ये है कि जिस पुस्तक को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, उसकी खिल्ली उड़ाने का प्रयास संदेह जगाता है कि कुछ तो है जिसकी पर्देदारी है.
    * सुरेश चिपलूनकर जी के प्रति ऐसी हल्की टिप्पणी एक अनैतिक, शरारती दिमाग का , गलत नीयत का स्पष्ट संकेत है. एक गंभीर लेखक एक पुस्तक के प्रचार के लिए लेख लिख रहे हैं? ऐसा ओछा आरोप निंदनीय है. लेखक की विश्वसनीयता और उनके द्वारा उठाये अत्यन गंभीर मुद्दे से हमें भटकाने का प्रयास है.
    * सुरेश जी जैसे लेखक के प्रती ऐसी हल्की भाषा का प्रयोग इस संदेह को और भी गहरा करता है कि कुछ ताकतें हैं जो सुनियोजित ढंग से राष्ट्रवादी विचारों व व्यक्तियों के विरुद्ध काम कर रही हैं. **हद ही है कि जब किसी राष्ट्र घातक लेखन के खिलाफ कड़वी भाषा इस्तेमाल कोई भावुक सज्जन करते हैं तो तुरंत ऐतराज़ शुरू हो जाता है तथा उसे भाषा सुधारने की सलाह दी जाती है.. जब कोई लेखक देशभक्तिपूर्ण विचार प्रकट करता है, तो वे ही सभ्य भाषा का उपदेश देने वाले असभ्य भाषा पर उतर आते हैं.
    # लोगों से जो छुपाने का अधिक प्रयास होगा, लोग उतना अधिक उसे जानना चाहेंगे. फिर सच तो सामने आ ही जाएगा.

  4. गोयल जी! ई.वी.एम् पर गडकरी जी को भी अपनी बात कहने का अधिकार है. पर उनका कथन इस विवाद पर पैदा प्रश्नों के विरोध में कोई ‘फतवा’ नहीं है और न ही हम किसी मुस्लिम देश के वासी हैं कि किसी का कथन अंतिम मान लिया जाए. कोई कारण नहीं कि गडकरी जी के कथन को इस गंभीर मसले का अवसान मान लिया जाए . ये भी ज़रूरी नहीं कि सारा देश उनसे सहमत हो. यह भी ज़रूरी नहीं कि उन्होंने जो तब कहा ,वे अब भी उसी मत के हों. होसकता है कि तथ्यों की जानकारी के बाद उनका मत बदल गया हो. आप ने उन्हें सही उधृत किया है, यह मान कर मेरा इतना निवेदन है.

  5. मैं डॉ. मधुसूदन जी की इस बात का समर्थन करने और इसके लिये संविधान के दायरे में जन जागरण करने की बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि मतदान करने के बाद, मतदाता को यह जानने का हक होना चाहिये कि उसका वोट वास्तव में उसी प्रत्याशी के पक्ष में दिया गया है, या नहीं, जिसे वह देना चाहता/चाहती है? जैसा कि मैडम दीपा शर्मा जी ने कहा है कि यह अनुच्छेद 19 में हमारा संवैधानिक मूल अधिकार भी है।

    अतः इस पहलु को ध्यान में रखकर हमें ईवीएम के प्रयोग के साथ-साथ मत के भौतिक सत्यापन की बात को हर मंच पर उठाना चाहिये, लेकिन जब तक, मत के भौतिक सत्यापन की व्यवस्था लागू नहीं हो जाती है, तब तक प्रतिपक्ष में बैठे, निराश एवं हताश राजनेताओं के सुर में सुर मिलकार हमें ईवीएम की विश्वसनीयता पर अकारण ही सन्देह भी नहीं करना चाहिये।

    हाँ हमें ऐसे कानून की अवश्य ही मांग करनी चाहिये, जिसमें ईवीएम में किसी भी चरण में गडबडी सिद्ध हो जाने पर दोषी व्यक्ति को कम से कम उम्रकैद की सजा का प्रावधान हो।

    केवल कुछ राजनेताओं एवं उनके समर्थक लेखकों आदि के द्वारा सन्देह प्रकट करने मात्र से ही ईवीएम का चलन बन्द कर देंगे तो फिर तो देश के सिस्टम को चलाना मुश्किल हो जायेगा। ऐसी अन्य बहुत सारी बातें हैं, जिन पर लोगों को पुख्ता सन्देह है, फिर भी वे सब चल रही हैं।

    हमारे देश का कानून साफ तौर पर उपबन्धित करता है कि किसी भी व्यक्ति या निकाय द्वारा किसी पर भी अधिरोपित आरोप को सिद्ध करने का कानूनी भार स्वयं आरोप अधिरोपित करने वाले पर है कि वह अपने आरोप को सन्देह से परे सिद्ध करे। इसके साथ-साथ यह भी स्पष्ट व्यवस्था की गयी है कि जिस किसी पर भी आरोप लगाया गया है, उसका यह दायित्व नहीं है, कि वह स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने के लिये सबूत पेश करे। अर्थात्‌ सत्य को सिद्ध करने की जरूरत नहीं होती है।

    ऐसे में ईवीएम पर सन्देह के बहाने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सन्देह प्रकट करने वालों (आरोप लगाने वालों) को अपने आरोप मीडिया के मंच पर नहीं, बल्कि भारत की न्यायपालिका के समक्ष सन्देह से परे प्रमाणित करने होंगे। जिस दिने ये दावे प्रमाणित हो जाते हैं, उस दिन कोर्ट के आदेश के अनुसार स्वतः ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।

    जब पहले से ही मामला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है तो फिर उन तथ्यों को, जिनका कि अभी सही पाया जाना या सही सिद्ध किया जाना सन्देहास्पद है, उन्हें अकारण समाज में प्रकट करके देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के माहौल को खराब करना, लोकतन्त्र के हित में नहीं है।

  6. मैं आगे लिखने से पूर्व साफ कर दूँ कि मैं हर उस बात के खिलाफ हूँ, जो इस देश को और देश के लोकतन्त्र को कमजोर करने वाली है। जिससे हर भारतीय को सहमत होना चाहिये। इसलिये मैंने श्री डॉ. राजेश कपूर जी के निम्न दावे की सत्यता जानने का प्रयास किया है :-

    “उक्त विषय पर प्रमाण मांगने वालों को मेरा विनम्र सुझाव है कि अनेक सन्दर्भों, सूत्रों व लिनक्स से भरपूर ‘सुरेश चिपलूनकर’ जी का लेख ”लोकतंत्र खतरे में …” इसी ई-पत्रिका में पढ़कर देखें, विश्वास है कि आप लोगों का समाधान हो जाएगा.”

    डॉ. कपूर के उक्त दावे के अनुसार श्री सुरेश चिपलूनकर जी के लेख को मैंने दो बार पढा है, इस लेख में लिखा गया है कि-

    “कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी राजनैतिक दलों के मन में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों को लेकर एक संशय है। इस विषय पर काफ़ी कुछ लिखा भी जा चुका है और विद्वानों और सॉफ़्टवेयर इंजीनियरों ने समय-समय पर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के मॉडलों पर प्रयोग करके यह साबित किया है कि वोटिंग मशीनों को आसानी से “हैक” किया जा सकता है, अर्थात इनके परिणामों से छेड़छाड़ और इनमें बदलाव किया जा सकता है”

    लेकिन इस लेख में कहीं कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष सबूत, तथ्य या प्रमाण नहीं दर्शाया गया है। इसमें ऐसे किसी दस्तावेज का भी उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे स्वयं श्री चिपलनूकर जी या डॉ. कपूर के आरोपों या श्री अशोक बजाज के इस लख की पुष्टि होती हो। इसके अलावा सम्पूर्ण लेख केवल आरोपों और सम्भावनाओं के आधार पर अपनी बात को अटकलों के जरिये सही ठहराने का अलोकतान्त्रिक प्रयास है। यह बोलने एवं लिखने की आजादी का खुला दुरुपयोग है। डॉ० कपूर जी द्वारा समर्थित, श्री चिपलूनकर जी का लेख में देश के लोगों को बरगलाने वाला और देश के लोकतन्त्र को कमजोर करता हुआ प्रतीत होता है।

    यही नहीं मुझे दुख के साथ लिखना पड रहा है कि श्री चिपलूनकर जी अपने लेख में एक किताब को खरीदकर पढने के लिये विज्ञापन भी कर रहे हैं। लेख में एक साइट का नाम भी दिया गया है, जहाँ पर सारे हारे हुए नेताओं की फ्रस्टेशन से परिपूर्ण बकवास दर्शायी गयी है।

    यदि किसी सोफ्टवेयर इंजीनियर ने ईवीएम मशीन में गडबडी किये जाने का कोई सबूत दिया हो तो उस इंजीनियर का नाम क्यों नहीं बतलाया जा रहा है? स्वयं श्री चिपलूनकर जी अपने लेख में दो एकदम विरोधाभाषी बातें लिख रहे हैं, जो नीचे प्रस्तुत हैं।

    “(अब चुनाव आयोग भी मान गया है कि छेड़छाड़ सम्भव है)”

    “चुनाव आयोग सतत इस बात का प्रचार करता रहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें पूर्णतः सुरक्षित और पारदर्शी हैं तथा इनमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।”

    क्या चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था से ऐसी दो-तरफा बातों की आशा की जा सकती है।

    श्री चिपलूनकर जी का आलेख एक बार लोगों को विचार करने को बाध्य भी कर सकता था, लेकिन उन्होंने लेख के अन्त में २००९ में सम्पन्न लोकसभा चुनावों को दुबारा करवाने की मांग करके स्वयं को भी हारे हुए नेताओं का ऐजेण्ट सिद्ध कर दिया है। आप भी पढकर देखें :-

    “2009 के लोकसभा चुनावों को तत्काल प्रभाव से दोबारा करवाया जाये…”लेखक : सुरेश चिपलूनकर

    इसके विपरीत श्री चिपलूनकर जी के परिचय में लिखा गया है कि वे सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी लेखक हैं। क्या लोकतन्त्र के बारे में निराधार भ्रम फैलाने को ही राष्ट्रवाद कहते हैं?

    • dr rajesh kapoor aur suresh chimpulnakar ke baare me aisi ashisht tippani aapko shobha nahi deti. kam se kam aap sabhya tarike se apni baat rakh sakte the. lekh me nuskh nikalne ke bajaye aap lekhni me hi kamiyan nikalne baith gaye? aap hame na bataiye ki ye secularist vote ko voter se lekar counting tak kaise manage karte hain? mujhko lagta hai aap congress ke agent hain. aisi bhasa aapko shobha nahi deti. aasha karta hoon aap bhavishya me lekh likhte samay aisi galti nahin karenge.

      • महोदय शिशिर जी ,
        क्या राजेश कपूर जी और चिपलोंकार जी को ये शोभा देता है की वो किसी पर भी कोइ भी टिपण्णी कर दें, बड़ा अमानवीय द्रष्टिकोण है आपका, इतना विरोधाभास लोगो में तुलना करने का अच्छा नहीं होता है , आप इन लोगो द्वारा मुझ पर की गयी टिप्पणिया देखें फिर कहें अशिष्टता किसको कहते हैं , मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की उसमे मधुसुधन जी तक उतर आये थे , परन्तु आपके आशीर्वाद से हमने अपने शब्दों की गरिमा को बचाए रखा है परन्तु यहाँ आपका कहना बिलकुल गलत है की अशिष्टता की गयी है आप संबोधन देखिये गोयल जी ने कहीं भी गलत शब्द नहीं लिखे हैं
        ……………….. दीपा शर्मा

  7. बजाज जी, लोकतंत्र के हित में उठाए इस मुद्दे के लिए वर्धापन स्वीकार करें!
    * उक्त विषय पर प्रमाण मांगने वालों को मेरा विनम्र सुझाव है कि अनेक सन्दर्भों, सूत्रों व लिनक्स से भरपूर ‘सुरेश चिपलूनकर’ जी का लेख ”लोकतंत्र खतरे में …” इसी ई-पत्रिका में पढ़कर देखें, विश्वास है कि आप लोगों का समाधान हो जाएगा.
    * एक ही बात, ”यदि ई.वी.एम. की बेईमानी हुई है तो यह शायद लोकतंत्र के साथ संसार का सबसे बड़ा धोखा है. पिछली बार अगर ये धोखा हुआ है तो दुबारा भी होने की संभावना को हम कैसे नकार सकते हैं? अतः देश के साथ हुई और होनेवाली अभूतपूर्व बेईमानी से बचाने के लिए इसके सभी पक्षों पर चर्चा होनी चाहिए व मतदाताओं को जागरूक किया जाना चाहिए.”
    * इस विषय पर राष्ट्रीय मीडिया से हम आशा नहीं कर सकते. अनेकों बार सिद्ध हो चुका है कि वह सदा देश विरोधी ताकतों के पक्ष में खडा नज़र आता है. देशभक्त शक्तियों को बदनाम करने में हर प्रकार के स्तरहीन, दुराग्रह पूर्ण हथकंडे अपनाता है. अतः देश हित के मुद्दों को हमें वैकल्पिक माध्यमों से उठाने के प्रयास करने होंगे.

  8. प्रिय श्री अनिल जी,
    डा. निरंकुश जी की ओर से उठाये गये सवालों के जवाब पेश करें, तो इस विषय पर कुछ आगे लिखा जाये। किसी भी विषय के लेख की तब ही विश्वसनीयता होती है, जबकि प्रस्तुत तथ्यों के समर्थन में कुछ सबूत जुटाये जावें। भाई मैं तो वकालत करता हँ और बिना गवाह, सबूत के मेरी दुकान तो चल नहीं सकती। आगे आपकी इच्छा।

  9. Is the new C E C listening?
    Election Commission must not put obstacles in technical examination of EVMs. EVMs are not the product of EC and it is not obliged to defend use of EVMs.
    Some developed democracies have discarded use of such voting machines.
    Can a view be taken by Election Commission before Bihar and West Bengal assembly elections are held?
    If no view is taken by EC expeditiously, there would be no alternative to judicial adjudication.

    • श्रीमान्‌ अनील सहगल जी,

      आप कुछ हिन्दी में भी लिखा करे, जिससे हम जैसे पाठक भी समझ सके कि आप क्या विचार रख रहे हैं। आपकी मेहरबानी होगी।

      धन्यवाद।

  10. आदरणीय बजाज जी,

    आपकी इस बात का हर भारतवासी को समर्थन करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि-

    “चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए इसका पूरी तरह निष्पक्ष व पारदर्शी होनी आवश्यक है अन्यथा जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठ जायेगा।”

    लेकिन आप लिखते है कि-

    “विद्वानों एंव सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने समय समय पर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के मॉडलों का प्रयोग करके यह साबित कर दिया है कि इन मशीनों को आसानी से हैक किया जा सकता है”

    “केवल बीप की आवाज से ही यह स्पष्ट नहीं हो सकता कि वोट दिया जा चुका है। यदि चुनाव अधिकारी निष्पक्ष नहीं हुआ तो वह नाम व चिन्ह लोड करते समय भी गड़बडी़ कर सकता है।”

    “हैकर्स इस बात को प्रमाणित कर चुके है कि मशीन की प्रोग्रामिंग को गलत तरीके से सेटिंग करके अन्य उम्मीदवारों के मत को किसी एक खास उम्मीदवार के खाते डाला जा सकता है।”

    आपने उक्त तीन गम्भीर बातों/आरोपों के समर्थन में एक भी साक्ष्य, तथ्य या प्रमाण का उल्लेख नहीं किया है, ऐसे में इन बातों का समर्थन कैसे किया जाये?

    दुसरे जब तक आप एक भी साक्ष्य, तथ्य या प्रमाण उपलब्ध नहीं करवाते है. उक्त तीनों बातें आपके, विचार, धारणा या आरोप से अधिक नहीं माने जा सकते.

    यदि आपके पास अपनी बात के समर्थन में एक भी साक्ष्य, तथ्य या प्रमाण उपलब्ध है तो हम आपके साथ जनांदोलन छेड़ने को तैयार है.

    अन्यथा ऐसी बातों को निष्पक्ष चुनाव आयोग की विशवसनीयत पर अनाधिकार संदेह करना/ फैलाना ही माना जायेगा. कृपया कुछ साक्ष्य, तथ्य या प्रमाण उपलब्ध कराएँ.

  11. बटन दबाओ राजा निकल आयेगा……..वाह क्या बात है. उम्मीद है मौका मिलने पर लोग आपके लिए भी इसी तरह बटन दबायेंगे….बढ़िया आलेख…..शानदार.

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