आस्था से खिलवाड़

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अभिषेक रंजन

पवित्र अमरनाथ यात्रा के दौरान लगातार यात्रियों के मरने की घटनाएँ सामने आ रही है| गौर से देखा जाये तो इस वर्ष अन्य वर्षों से अधिक श्रद्धालुओं की मौत की खबर आयी है, जो निश्चित तौर पर दु:खद और चिंतनीय विषय है| सरकारी व मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इन शब्दों के लिखे जाने तक कुल 90 यात्रियों की मौत की खबर आ चुकी है| संख्या 90 ही है, यह अन्य सरकारी आंकड़ों की तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता| यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है | मिली जानकारी के मुताबिक, ज्यादातर मौत 40 वर्ष से कम आयु के यात्रियों की हो रही है और अनेक यात्री बीमार है | कारण- ख़राब प्रशासनिक व्यवस्था, उदासीन व लापरवाह जम्मू-कश्मीर की सरकार और खामोश धर्मनिरेपेक्षता की माला जपने वाले नेतागण | न तो कोई शोरगुल मच रही है और न ही यह समाचार चैनलों पर बहस का विषय बन रहा है | बहुत सारे लोग इस एकमुश्त हो रही मौत की घटनाओं को अन्य मौत की तरह ले रहे है| सरकारी पक्ष बिल्कुल दर्शक के मूड में है और इन मौतों का ठीकरा गलत स्वास्थ्य प्रमाण पत्र का बहाना बनाकर यात्रियों पर ही फोड़ रही है| यात्रा मार्ग में हो रहे परेशानियों की कही चर्चा तक करना भी मुनासिब नहीं समझा जा रहा| यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव पहलगाम और सोनमर्ग के विकास प्राधिकरण को यात्रा के शिविरों और यात्रा मार्ग पर साफ सफाई का विशेष अभियान चलाने का सिर्फ निर्देश मिल रहा है| अगर यात्रा किसी भी तरह चल रही है तो सिर्फ और सिर्फ सरहद की सुरक्षा करने वाले और देश के गौरव सेना के जवानों की वजह से | सेना न केवल सुरक्षा की चिंता में लगी है, बल्कि सेवा व स्वास्थ्य के माध्यम से यात्रियों की देखभाल कर रही है |

हाल में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लेते हुए यात्रा के दौरान मरने वाले श्रद्धालुओं की सुध ली और कारणों को जानने के लिए सम्बंधित पक्षकार, केंद्र सरकार, जम्मू एवं कश्मीर सरकार तथा अमरनाथ श्राइन बोर्ड को नोटिस जारी किया। लेकिन हम सब जानते की इन मौतों कि असली वजह क्या है ? ये मौत हो क्यों रही हैं? सबको पता है कि यात्रा अवधि घटने की वजह से कम समय में ही अधिक से अधिक यात्री पवित्र गुफा के दर्शन करना चाहते है| यात्रा करने की आपाधापी इन मौतों के लिए जिम्मेदार है जिससे न तो केंद्र सरकार और जम्मू एवं कश्मीर सरकार सहमत है और न ही अमरनाथ श्राइन बोर्ड|

धार्मिक यात्रायें, यात्रा पर जाने वाले सिर्फ यात्रियों की मंशा से होती है, लेकिन अमरनाथ यात्रा के सन्दर्भ में इसका ठीक उलट देखने को मिलता है | इस यात्रा में यात्रियों की मंशा से कुछ होना संभव नहीं क्यूंकि यह सरकार की मंशा से मेल नहीं खाती | सरकार की मंशा श्रद्धा व आस्था रखने वालें इन यात्रियों की सही सलामत यात्रा करवाने की कभी रही ही नहीं और यह किये गये लापरवाह व बेपरवाह प्रशासनिक उपायों से स्पष्ट दिखती है |

 

सवाल जब मंशा की उठी है तब किसी को भी शक में नहीं रहना चाहिए | अमरनाथ यात्रा को लगातार बाधित करने वाले लोगों को संरक्षण प्रदान करने वाली सरकार का यात्रा विरोध जगजाहिर है| उसे तो सिर्फ यात्रा ख़त्म करने का बहाना चाहिए | हम सभी जानते है कि किस प्रकार डरा- धमका कर यात्रा में न जाने के लिए अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकी हमले किये गये | अलगाववादियों के फरमान के आगे झुकते हुए ऐसे तमाम उपाय किये गए जिससे यात्रा के समय यात्रियों को असुविधा हो | फिर यात्रा की व्यवस्था के लिए अस्थायी तौर पर दी गयी ज़मीन वापस ली गयी | यह तो भला हो सुप्त पड़ी देश की जनता का , जिसने सडको पर संघर्ष किया, गोलिया खायी और अपने खून की कीमत पर अमरनाथ यात्रा की सुविधा के लिए आवंटित अस्थायी ज़मीन वापिस ले ली | उससे भी हर वर्ष “अमरनाथ यात्रा एक कठिन यात्रा है, कभी भी आतंकी हमले हो सकते है ” जानते हुए भी यात्रियों की संख्या लगातार बढती गयी तब सुरक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर इतनी सख्ती कर दी गयी कि अब यात्रा करना ही मुश्किल हो गया| तीन महीने चलने वाली यात्रा 39 दिन में सिमट गयी| आनेवालें दिनों में यात्रा अवधि और कम हो जाये तो कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं होगी, क्यूंकि ऐसी कोशिश लगातार जारी है |

 

यह समय क्यों घटाया गया इसका कोई भी स्पष्ट उत्तर किसी के पास नही है| सिर्फ बहाना है कि बाबा बर्फानी के पूर्ण स्वरुप का दर्शन नहीं हो पायेगा इसलिए यात्रा अवधि घटा दी गयी | इन सबके बाबजूद जो 39 दिनों की अवधि तय कर दी गयी उसमे भी यात्रा सुचारू ढंग से चलती तो मालूम होता कि वास्तव में स्थितियां कुछ ऐसी है कि यात्रा अवधि घटाने का निर्णय सही था और सरकारी स्तर पर प्रयाप्त बंदोबस्त किये गए है | लेकिन यात्रा के दौरान सरकार की तैयारी से पता चलता है कि सरकारी दावे झूठे थे और व्यवस्था के नाम पर कुछ ऐसे इंतजाम किये गए कि 88 यात्री यात्रा पूरा करने से पहले ही स्वर्ग सिधार गए| कुछ लोग इन मौतों के पीछे गलत स्वास्थ्य प्रमाण पत्र को आधार बनाकर मौत को सामान्य घटना बताते है | कोई बुद्धू ही इस दावे के समर्थन में वाहवाही से सराबोर तालिया ठोकेगा और कहेगा “भाई, सरकारी दावे बिल्कुल सही है ” | कोई कैसे यकीं कर सकता है कि लाखों यात्री अमरनाथ यात्रा जैसे पवित्र यात्रा जाने में झूठे प्रमाण पत्र बनवायेगा| एक क्षण के लिए यह मान भी लिया जाये तो झूठा प्रमाण पत्र बनवाने वाला व्यक्ति इतनी तो क्षमता रखता ही होगा की वह यात्रा में जा सके | किसी व्यक्ति द्वारा स्वास्थ्य अनुकूल न रहने पर भी दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ने की जिद करते कोई घटना न तो मैंने सुनी और न ही शायद किसी और ने सुनी होगी| फिर भी अगर किसी ने श्रद्धावश यात्रा करने के लिए गलत प्रमाण पत्र बनवा ही लिए तो सरकार यात्रियों के स्वास्थ्य परिक्षण की अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकती है? रास्ते में कोई ट्रक-बस की भिडंत में तो मौत नहीं हो रही, जिसमे टक्कर होते ही लोग मौत की नींद सो जाते है | इस वर्ष प्राकृतिक स्थितियां भी कुछ विकराल नहीं है | न तो कोई महामारी फैली, न ही कोई प्राकृतिक आपदा आ गयी , फिर इतने मौत क्यों हो रहे है? क्या इससे पहले सभी यात्री वैध प्रमाण पत्र के आधार पर ही यात्रा करते थे और इस वर्ष अवैध प्रमाण पत्र पर कर रहे है? अमरनाथ यात्रा की दृष्टि से यह कोई स्पेशल वर्ष तो है नहीं और न ही कुम्भ की तरह यह 12 वर्ष बाद आयोजित हो रही है जिसकी वजह से यात्रा करने के लिए मारामारी हो रही हो |

 

यात्रा संपन्न करवाने में पूरी तरह विफल रही सरकार, झूठे दावे करके यात्रियों की मौत की जिम्मेदारी लेने से कतरा रही है | इसलिए महज़ यह कह कर कि “बुलावा आया था या ईश्वर की इच्छा थी” समस्या से मुँह फेर लेना सही नही होगा| देश की जनता यह जरुर जानना चाहती है कि आखिर सरकार लगातार होती मौत की घटनाओं पर क्यों चुप्पी साधी हुई है ? क्या यह महज धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हो रहे बबंडर को देखते हुए किया जा रहा है ताकि सरकार की सेकुलर छवि को कोई नुकसान नहीं पहुंचे? या फिर यह पूरा षड़यंत्र अलगाववादियों और हिन्दू आस्था के विरोधियों के इशारे पर हो रही है? अगर यही सच्चाई है तब त्रिनेत्र खुलते देर नहीं लगेगी | भक्तों के ऊपर कृत्रिम हमले न तो देशभक्त जनता बर्दास्त करनेवाली है और न ही करोड़ो हिन्दूओं की आस्था के प्रतिक भगवान शिव|

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