प्रमोद भार्गव
धार्मिक आयोजनों में जतार्इ जाने वाली श्रद्धा और भक्ति से यह आशय कतर्इ नहीं निकाला जा सकता कि वाकर्इ इनमें भागीदारी से इहलोक या परलोक सुधरने वाले हैं। बलिक जिस तरह से धार्मिक स्थालों पर हादसे घटने का सिलसिला शुरू हुआ है उससे तो यह साफ हो रहा है कि इनमें भागीदारी कर हम अपने सुरक्षित जीवन को ही खतरे में डाल रहे हैं। इलाहाबाद में चल रहे कुंभ स्नान में अव्यवस्था के चलते मची भगदड़ व अफरा-तफरी में 36 श्रद्धालु मारे गए। धटना के दिन रविवार को मौनी अमावस्या होने के कारण संगम में स्नान का विशेष पर्व व महत्व था। इसलिए 3 करोड़ लोग अपने किए पापों से मोक्ष के लिए गंगा में डुबकी लगाने पहुंचे थे। यह दुर्धटना इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर पुलिस द्वारा लाठी फटकारे जाने के कारण घटी। इसी दिन इस धटना से पहले कुंभ क्षेत्र में स्नान हेतु मची अफरा-तफरी में 3 लोग प्राण गवां बैठे। इन धटनाओं में करीब 65 लोग घायल भी हुए हैं।
अभी दो माह पहले पटना के गंगाघाट पर छठ पूजा के दौरान कामचलाउ बांस का पुल ढहने से मची भगदढ़ में करीब बीस लोग अकाल मौत के गाल में समा गये थे। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। करीब छह माह पहले मथुरा के बरसाना और देवघर के श्री ठाकुर आश्रम में मची भगदड़ में लगभग एक दर्जन श्रद्धालू मौत के मूंह में चले गये थे। अब से करीब सवा साल पहले विश्व में सदभावना और शांति कायमी के लिए हरिद्धार में गायत्री परिवार द्धारा आयोजित विशाल यज्ञ में दम घुटने से करीब 20 लोग प्राण गंवा बैठे थे। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जन्म शताब्दी महोत्सव के अवसर पर 1551 यज्ञ बेदियों में अपनी अहुती देने के लिए देश के कोने – कोने से ही नहीं दुनिया के 80 देशों से श्रद्धालु आए थे। हादसे के दिन ही इनकी संख्या करीब साढ़े चार पांच लाख थी।
दरअसल जब – जब पर्याप्त व पुख्ता इंताजम कमजोर हुए हैं, तब – तब पुण्य कमाने के अलौलिक उपायों का मृत्यु के सत्य से ही साक्षात्कार हुआ है। शिव की पत्नी सती का बलिदान, पटना के गंगाघाट के पुल ढहने का हादसा और अब कुंभ के हादसे तक इन बानगियों से यही सत्य उभरता है कि सर्वज्ञानी भी स्वयं की भाग्य लिपि नहीं बच पाते। भाग्य ही सब कुछ हो और पुण्य के उपायों से भाग्य रेखा बदली जा सकती होती तो कर्म का तो कोर्इ अर्थ व महत्व ही नहीं रह जाता ? लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे राजनेता ऐसे अंधविश्वासों में भागीदारी कर इन कर्मकाण्डों का महिमामंडन करते हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और उनकी धर्मपत्नी रावड़ी देवी तो छठ पूजा में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
हालांकि पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जरुर युगद्रष्टा थे। उन्होंने अपने आत्मबल, इच्छाशकित व कठोर परिश्रम से कर्मकाण्ड के पाखण्ड की उस जड़ता पर कुठाराधात किया, जिसके संपादन के अधिकारी केवल ब्राह्मण थे। आज दुनिया भर में स्थापित गायत्री विधापीठ मंदिरों में किसी भी जाति के पुजारी पूजा – अर्चना, यज्ञ – हवन और पाणिग्रहण व मुंडन संस्कार कराते देखे जा सकते हैं। आचार्य श्री राम ने इस परपंरा को तोड़ने के साथ – साथ वैदिक साहित्य के पुनर्लेखन में भी उल्लेखनीय व अविस्मणीय योगदान दिया। उन्होंने चारों वेद, उपनिषद और पुराणों के संस्कृत भाष्यों की हिंदी में सरल व्यखाया की। यही नहीं शांति कुंज हरिद्वार में गीता प्रेस गोरखपुर की तरह एक छापाखाना स्थापित कर इस साहित्य को सस्ते मूल्य में देश – विदेश में विक्रय का सफल प्रबंधन भी किया। उन्होंने आध्यातिमक ज्ञान को विज्ञान से जोड़कर उसे मनुष्य जीवन के लिए उपयोगाी बनाया। इसलिए उनकी बौद्धिक दिव्यता, किसी भी स्थिति में नजरअंदाज करने लायक नहीं है। यह भीड़ तंत्र ही है, जो हरेक धार्मिक आयोजन को परलोक सुधारने का माध्यम बनाने की भूल करती है।
भारत में पिछले 10-12 सालों में मंदिरों और अन्य धार्मिक अयोजानों में जल्दबाजी व कुप्रबंधन से उपजी भगदड़ से डेढ़ हजार से भी ज्यादा लोग काल-कवलित हो चुके हैं। धर्म स्थल हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि हम कम से कम शालीनता और आत्मानुशासन का परिचय दें। किंतु इस बात की परवाह आयोजकों और प्रशासनिक आधिकारियों को नहीं रहती। इसलिए उनकी जो सजगता घटना से पूर्व सामने आनी चाहिए वह अकसर देखने में नहीं आती। इसी का नतीजा है कि देश के हर प्रमुख धार्मिक आयोजन, छोटे – बड़े हादसों का शिकार हो रहे हैं। इलाहाबाद के रेलवे स्टेशन पर भी कोर्इ पुलिस व प्रशासनिक व्यवस्था नही थी। दुनिया का सबसे बड़े मेले का आयोजन होने के बावजूद किसी भी प्रकार की प्राथमिक चिकित्सा के प्रबंध नहीं थे। हादसे के करीब एक घण्टे बाद बचाव दल मौके पर पहुंचा।
1954 में इलाहबाद में संपन्न हुए कुंभ मेले में भी एकाएक गुस्से में आए हाथियों ने इतनी भगदड़ मचार्इ थी कि एक साथ 800 श्रद्धालु काल कवलित हो गए थे। धर्म स्थलों पर मची भगदड़ से हुर्इ यह सबसे बड़ी घटना थी। महाराष्ट के सतारा के मांधर देवी मंदिर में मची भगदड़ में भी 300 लोग मारे गये थे। केरल के सबरी वाला मंदिर, जोधपुर के चामुण्डा देवी मंदिर, गुना के करीला मंदिर और प्रतापगढ़ के कृपालू महाराज आश्रम में भी मची भगदड़ों से दर्जनों लोग बेमौत मरे हैं।हमारे राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्रो का तो यह हाल है कि वह आजादी के बाद से ही उस अनियंत्रित स्थिति को काबू करने की कोशिश में लगा रहता है, जिसे वह समय पर नियंत्रित करने के इंतजाम करता तो हालात कमोवेश बेकाबू नहीं होते?
प्रशासन के साथ हमारे राजनेता, उधोगपति, फिल्मी सितारे और आला अधिकारी भी धार्मिक लाभ लेने की होड़ में व्यवस्था को भ्ंग करने का काम करते हैं। इनकी वीआर्इपी व्यवस्था और यज्ञ कुण्ड अ्रथवा मंदिरों के मूर्तिस्थल तक ही हर हाल में पहुंचने की जरूरत मौजूदा प्रबंध को लाचार बनाने का काम करते हैं। नतीजतन भीड़ ठसाठस के हालात में आ जाती है। ऐसे में कोर्इ महिला या बच्चा गिरकर अनजाने में भीड़ के पैरों तले रौंद दिया जाता है और भगदड़ मच जाती है। कभी – कभी गहने हथियाने के लिये भी बदमाश ऐसे हादसों को अंजाम देने का षडयंत्र रच देते हैं। हादसे के उपरांत मजिस्ट्र्रेटियल जांच के बहाने हादसों के कारणों की खोज का कोर्इ कारण नहीं रह जाता, क्योंकि इन कारणों की पड़ताल की जरूरत तो हादसे की संभावना के परिप्रेक्ष्य में पहले ही रहती है। इलाहाबाद की घटना के बाद रेल मंत्री पवन बंसल का जो बयान आया है,उसमें वे उन सभी तथ्यों को झुठला रहे हैं,जो घटना के शुरूआती समाचारों में खबरिया चैनलों ने दिखाए थे।
हमारे देश की जनसंख्या इतनी अधिक है ऊपर से अंधविश्वास के नशा, जी हाँ मै इसे नशा ही मानती हूँ जो लोग छोटे छोटे बच्चों को लेकर ऐसे भीड़ वाले स्थानो पर पंहुच जाते हैं।करोड़ो की भीड़ सभांलना आसान नहीं होता।परलोक सुधारने की जगह लोग परलोक पंहुच जाते हैं, पर कौन समझाये इन भक्तों को।