आस्था के बाजार पर मिलावट खोरो का कब्ज़ा

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

बहुत ही पुराना और मशहूर फिल्मी गीत ‘‘देख तेरे इन्सान की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इन्सान’’ आज के इन्सान पर बरसो पुराना ये गीत कितना सही और सटीक बैठता की आज पैसा कमाने की होड में आदमी सब कुछ भूल इन्सानी जान से खेलने लग गया है जिस धर्म के लिये कल तक वो मर मिटने के लिये तैयार था आज उसी धर्म को सीढी बना कर वो लखपति करोडपति बनना चाहता है। नवरात्र में माता के भक्तो पर एक बार फिर कुटटू के आटे ने कहर बरपा दिया। रटौल क्षेत्र के पांच गांवो में बुधवार को कुटटू से बनी भोजन से बनी सामाग्री खाकर कम से कम 25 लोग बीमार हो गयें। इन में से तीन की हालत तो इतनी बिगड़ी की उन्हे उपचार के लिये दिल्ली रेफर किया गया। वही कुटटू के खुले आटे के पकवान के सेवन से ही बुलंदशहर में 14, हापुड़ में 30, और गाजियाबाद में 20 लोग बीमार हो गयें। पिछले साल भी नवरात्रो के अवसर पर दिल्ली, देहरादून, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर व आसपास के इलाको के कई लोग कुट्टू का मिलावटी आटा खाने से बीमार हो गये थे। जबकि एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।

आज बात अगर सरकार और उस की जिम्मेदारियो की करे तो निराशा होती है। सामाजिक व प्रशासनिक व्यवस्था की बात की जाये तो सिर्फ अंधकार ही नजर आता है। आखिर हमारे देश की ये कैसी व्यवस्था है कि आग लगने के बाद कुऑ खोद कर पानी निकाला जाता है और फिर आग बुझाई जाती है। कुटटू का आटा नवरात्र में पवित्रतम माना जाता है। जिस का फायदा उठा कर अपनी तिजोरिया भरने के लिये कुछ लालची लोग महीनो से तैयार रहते है। और पूरा का पूरा प्रशासनिक अमला आंख मूंद कर सोया रहता है उसे जरा भी भनक नही होती की कहा क्या हो रहा है आखिर इतने बडे राष्ट्र की ये कैसी अंधी व्यवस्था है कि किसी बडे हादसे से पहले हमारा प्रशासनिक अमला जागता ही नही, और जागने पर भी सिर्फ खानापूर्ति कर के फिर सो जाता है।

कई सालो से ये देखा जा रहा है कि नवरात्र के व्रत के दिनो में कुटटू का आटा श्रद्वालुओ के लिये ज़हर बन जाता है। जिसे न तो हम लोग ही गम्भीरता से लेते है और न प्रशासन। बडी समस्या मिलावट नही बल्कि वो लोग है जिन के कंधो पर इस मिलावट को रोने की जिम्मेदारी है। दरअसल आज के इन्सान में घटिया और संदिग्ध गुणवत्ता वाली खाने पीने की चीजो को पचाने की ताकत रही ही नही जिस कारण एक छोटे सा अटैक भी हमारा शरीर सहन नही कर पाता। दूसरी और हमारे देश के कानून के अनुसार खाद्य वस्तुओ में मिलावट करना कोई बडा अपराध नही माना जाता। आज भारत जैसे प्रगतिशील देश में मिलावटी खाद्य वस्तुओ की जॉच करने वाले अधिकारियो की तादात बहुत कम होने के साथ ही अधिक संख्या में नवीनतम प्रयोगशालाए नही है। और अगर कोई पकडा जाये तो सजा इतनी कम की अपराधी और अपराध की संख्या दिन प्रतिदिन कम होने की बजाये बढ रही है। वजह सजा का अपराधियो पर कोई डर या खौफ नही बैठ रहा है। खाद्य पदार्थ में मिलावट जितना गम्भीर अपराध है इसके मुकाबले सजा बेहद कम। जिस कुटटू के आटे को खाकर लोग बीमार होते है संभवतः वो आटा महीनो पहले गोदामो में स्टोर कर लिया जाता है जिस से उस मे फफॅूदी लग जाती है। वितरक द्वारा अधिक पैसा कमाने और पुराना माल निकालने की गरज से उसे बाजार में बेच दिया जाता है। पर क्या आटा बेचने वाले व्यापारी की ये जिम्मेदारी नही बनती की वो खराब माल का वितरण न कर के व्यापारी को माल लौटा दे। क्यो की ये आटा विशेश तौर पर सिर्फ उपवास के दिनो में ही बिकता है ऐसा होना संभव है।

वही दूसरी और देश का ये भी दुर्भाग्य है कि यदि प्रशासनिक व्यवस्था के तहत कोई अधिकारी किसी व्यापारी के माल का सैम्पल लेता है तो पूरा व्यापार संघ प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ उतर आता है और उस अधिकारी को बाजार से बेइज्जत कर के खदेड़ दिया जाता है। ये ही वजह है कि आज बिना किसी ड़र खौफ के घटिया खाद्य पदार्थ बेचने का कारोबार खुल्लम खुल्ला पूरे देश में चल रहा है सिंथेटिक दूध और मावा हर दुकान पर बिक रहा है सब्जियो फलो में हानिकारक रसायनो और रंगो का इस्तेमाल आम हो गया है जो देश के करोडो लोगो को धीरे धीरे प्रभावित कर शरीर में गम्भीर बीमारिया पैदा कर रही है अनाजो में इतना ज्यादा रसायनिक उवर्रको और कीटनाशको का इस्तेमाल हो रहा है कि आज का आदमी अनाज फल या सब्जी नही बल्कि दिन प्रतिदिन जहर खा रहा है। लगभग एक दशक से ऐसा क्यो हो रहा है की कुछ लोग त्यौहारो पर खुशिया बॉटने के बजाये मौत बाटने की तैयारी पहले ही कर लेते है और हमारा प्रशासन सोया रहता है आज अधिकतर त्यौहारो की मिठास इन मिलावट खोरो के लालच के कारण दिन प्रतिदिन फीकी पडती जा रही है।

पिछले साल दीपावली पर लाखो टन नकली मावा और मीठाईया देहली गाजियाबाद और मेरठ सहित आसपास के तमाम इलाको में पकडी गई। ईद, होली, दीपावली, रक्षा बंधन, भय्या दूज सहित हर एक धार्मिक त्यौहारो पर बिकने वाली मिठाई दूध मावे व अन्य सामानो से चॉदी काटने की तैयारियो महीनो पहले षुरू हो जाती है पर हमारा प्रशासन व कुछ जिम्मेदार अधिकारी मोटी मोटी रकम और तौहफे लेकर गॉधी जी के बन्दर बन जाते है जिन्हे बाजार में न तो कुछ बुरा दिखाई, देता है और न बुरा सुनाई देता है। नतीजा लोगो की जान पर बन आती है। वही जिन्दगी और मौत का सवाल बनते ही हमारा भी एक पवित्र वस्तु से विश्वास उठने लगता है। ये ही कारण है की बाजार में नकली और जानलेवा कुटटू के आटे की रोटी लोगो ने खानी छोड दी और कुछ लोग डरते डरते खा रहे है यदि आने वाले दिनो में लोग कुटटू के आटे को भूल भी जाये जो इस में कोई अचरज नही। पर यहा बहुत ही गम्भीर सा सवाल ये पैदा होता है कि मिलावट से बचने के लिये आने वाले वक्त में हमे और किन किन चीजो का त्याग करना पडेगा ये अभी देखना बाकी है

2 COMMENTS

  1. आपने अच्छी बात कही कि आस्था के बाजार पर मिलावट खोरों का कब्ज़ा,जो केवल कुट्टू के आंटे तक ही सीमित नहीं है.खाने की हर घटिया सामग्री इन्हीं दिनों बाजार में आती हैं.मुझे नहीं लगता की ये सब व्यापारी अपने आस्तिकता का ढोंग करने में अन्य लोगों से पीछे रहते होंगे .तो फिर यह नैतिक दोगलापन क्यों?क्यों इन तथाकथित आस्तिकों को इस तरह के घटिया काम करते समय इनके भगवन नहीयाद आते? उन्हें क्यों यह नहीं लगता कि ऐसा करना न केवल क़ानून की निगाह में जुर्म है,बल्कि नैतिक दृष्टि से भी महापाप है.?सरकार का भी इसमे कम दोष नहीं है.सच में क़ानून का लचरपन इसको और बढ़ावा देता है.

  2. शादाब भाई आपने केवल आस्था के बाज़ार की चर्चा की .सत्य यह है की पूरे बाज़ार पर चोरों का कब्ज़ा है और यह चोर बिरादरी कानून के रखवालों को पीट कर भगा देने में समर्थ है. चाहे रेत माफिया हो,तेल माफिया हो ,कोयला खोर हों या लोह अयस्क निर्यातक हों या और कोई आक्रामक बिरादरी हो पुलिस मार भी खाती है और फिर मनाने भी जाती है हमारे लोक तंत्र की असल तस्वीर यही है
    आगे आगे देखिये होता है क्या

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