गीता मे लिखा है,
कर्म किये जा,
फल की इच्छा भी न कर।
कर्म का उद्देश्य ही फल है,
तो फल की इच्छा होना तो ज़रूरी है।
थोड़ी व्याकुलता भी होगी ही,
व्याकुलता पर
थोड़ा नियंत्रण भी रखना होगा।
लक्ष्य तक पंहुचे,
फल मिला तो,
ख़ुशी भी होगी,
ख़ुश होने का,
ख़ुशी मनाने का,
अधिकार भी होगा।
हर कर्मयोगी जानता है,
चाहें जितना कर्म कर ले,
फल मिलना या न मिलना ,
उसके अधिकार क्षेत्र मे नहीं है।
फिरभी फल की इच्छा है
तभी तो,कर्म करता है।
फल ना मिला तो,
पल दो पल की निराशा होगी,
कर्मयोगी फिर उठेगा
एक निर्णय लेगा,
उसी फल की इच्छा मे,
फिरसे वही कर्मकरे,
और दोगुनी ऊर्जा लगा दे,
या मार्ग बदल कर ,
किसी दूसरे फल की इच्छा लिये,
रास्ता बदलकर,
दिशा बदल कर,
किसी और कर्म मे,
अपनी संपूर्ण शक्ति लगादे।